Old/New Testament
दान का गुप्त होना ज़रूरी है
6 “ध्यान रहे कि तुम लोगों की प्रशंसा पाने के उद्देश्य से धर्म के काम न करो अन्यथा तुम्हें तुम्हारे स्वर्गीय पिता से कोई भी प्रतिफल प्राप्त न होगा. 2 जब तुम दान दो तब इसका ढिंढोरा न पीटो, जैसा पाखण्डी यहूदी-सभागृहों तथा सड़कों पर किया करते हैं कि वे मनुष्यों द्वारा सम्मानित किए जाएँ. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके; 3 किन्तु तुम जब ज़रूरतमन्दों को दान दो तो तुम्हारे बायें हाथ को यह मालूम न हो सके कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है 4 कि तुम्हारी दान प्रक्रिया पूरी तरह गुप्त रहे. तब तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.
प्रार्थना का गुप्त होना ज़रूरी है
5 “प्रार्थना करते हुए तुम्हारी मुद्रा दिखावा करने वाले लोगों के समान न हो क्योंकि उनकी रुचि यहूदी-सभागृहों में तथा नुक्कड़ों पर खड़े हो कर प्रार्थना करने में होती है कि उन पर लोगों की दृष्टि पड़ती रहे. मैं तुम पर यह सच प्रकाशित कर रहा हूँ कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके. 6 इसके विपरीत जब तुम प्रार्थना करो, तुम अपनी कोठरी में चले जाओ, द्वार बन्द कर लो और अपने पिता से, जो अदृश्य हैं, प्रार्थना करो और तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.
प्रार्थना प्रतिरूप: जैसा प्रभु ने सिखाया
7 “अपनी प्रार्थना में अर्थहीन शब्दों को दोहराते न जाओ, जैसा अन्यजाति करते हैं क्योंकि उनका विचार है कि शब्दों के अधिक होने के कारण ही उनकी प्रार्थना सुनी जाएगी. 8 इसलिए उनके समान न बनो क्योंकि तुम्हारे स्वर्गीय पिता को विनती करने से पहले ही तुम्हारी ज़रूरत का अहसास रहता है.
प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का प्रतिमान
(लूकॉ 11:2-4)
9 “तुम प्रार्थना इस प्रकार किया करो:
“हमारे स्वर्गीय पिता, आपका नाम पवित्र रखा जाए.
10 आपका राज्य हर जगह हो.
आपकी इच्छा पूरी हो—
जिस प्रकार स्वर्ग में उसी प्रकार पृथ्वी पर भी.
11 आज हमें हमारा दैनिक आहार प्रदान कीजिए.
12 जैसे हमने उन्हें क्षमा किया है,
जिन्होंने हमारे विरुद्ध अपराध किए थे,
उसी प्रकार आप भी हमारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए.
13 हमें परीक्षा से बचा कर उस दुष्ट से हमारी रक्षा कीजिए क्योंकि राज्य,
सामर्थ्य तथा प्रताप सदा-सर्वदा आप ही का है. आमेन.
14 यदि तुम अन्यों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेंगे. 15 किन्तु यदि तुम अन्यों के अपराध क्षमा नहीं करते तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेंगे.
उपवास का गुप्त होना ज़रूरी है
16 “जब कभी तुम उपवास रखो तब पाखण्डियों के समान अपना मुँह मुरझाया हुआ न बना लो. वे अपना रूप ऐसा इसलिए बना लेते हैं कि लोगों की दृष्टि उन पर अवश्य पड़े. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके. 17 किन्तु जब तुम उपवास करो तो अपने बाल सँवारो और अपना मुँह धो लो 18 कि तुम्हारे उपवास के विषय में सिवाय तुम्हारे स्वर्गीय पिता के—जो अदृश्य हैं—किसी को भी मालूम न हो. तब तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.
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