Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Old/New Testament

Each day includes a passage from both the Old Testament and New Testament.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
Error: 'उत्पत्ति 13-15' not found for the version: Saral Hindi Bible
मत्तियाह 5:1-26

पर्वत से प्रवचन

इकट्ठा हो रही भीड़ को देख येशु पर्वत पर चले गए और जब वह बैठ गए तो उनके शिष्य उनके पास आए. येशु ने उन्हें शिक्षा देना प्रारम्भ किया.

धन्य वचन

(लूकॉ 6:17-26)

“धन्य हैं वे, जो दीन आत्मा के हैं
    क्योंकि स्वर्ग-राज्य उन्हीं का है.
धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं.
    क्योंकि उन्हें शान्ति दी जाएगी.
धन्य हैं वे, जो नम्र हैं
    क्योंकि पृथ्वी उन्हीं की होगी.
धन्य हैं वे, जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं
    क्योंकि उन्हें तृप्त किया जाएगा.
धन्य हैं वे, जो कृपालु हैं
    क्योंकि उन पर कृपा की जाएगी.
धन्य हैं वे, जिनके हृदय शुद्ध हैं
    क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे.
धन्य हैं वे, जो शान्ति कराने वाले हैं
    क्योंकि वे परमेश्वर की सन्तान कहलाएँगे.
10 धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए गए हैं
    क्योंकि स्वर्ग-राज्य उन्हीं का है.

11 “धन्य हो तुम, जब लोग तुम्हारी निन्दा करें और सताएं तथा तुम्हारे विषय में मेरे कारण सब प्रकार के बुरे विचार फैलाते हैं. 12 हर्षोल्लास में आनन्द मनाओ क्योंकि तुम्हारा प्रतिफल स्वर्ग में है. उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को भी इसी रीति से सताया था, जो तुमसे पहले आए हैं.

नमक और प्रकाश की शिक्षा

13 “तुम पृथ्वी के नमक हो किन्तु यदि नमक नमकीन न रहे तो उसके खारेपन को दोबारा कैसे लौटाया जा सकेगा? तब तो वह किसी भी उपयोग का नहीं सिवाय इसके कि उसे बाहर फेंक दिया जाए और लोग उसे रौंदते हुए निकल जाएँ.

14 “तुम संसार के लिए ज्योति हो. पहाड़ी पर स्थित नगर को छिपाया नहीं जा सकता. 15 कोई भी जलते हुए दीप को किसी बर्तन से ढाँक कर नहीं रखता—उसे उसके निर्धारित स्थान पर रखा जाता है कि वह उस घर में उपस्थित लोगों को प्रकाश दे. 16 लोगों के सामने अपना प्रकाश इस रीति से प्रकाशित होने दो कि वे तुम्हारे भले कामों को देख सकें तथा तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, स्तुति करें.

व्यवस्था की पूर्ति पर शिक्षा

17 “अपने मन से यह विचार निकाल दो कि मेरे आने का उद्देश्य व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं के लेखों को व्यर्थ साबित करना है—उन्हें पूरा करना ही मेरा उद्देश्य है. 18 मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूँ: जब तक आकाश और पृथ्वी अस्तित्व में हैं, पवित्रशास्त्र का एक भी बिन्दु या मात्रा गुम न होगी, जब तक सब कुछ नष्ट न हो जाए. 19 इसलिए जो कोई इनमें से छोटी सी छोटी आज्ञा को तोड़ता तथा अन्यों को यही करने की शिक्षा देता है, स्वर्ग-राज्य में शूद्रतम घोषित किया जाएगा. इसके विपरीत, जो कोई इन आदेशों का पालन करता और इनकी शिक्षा देता है, स्वर्ग-राज्य में विशिष्ट घोषित किया जाएगा.

20 “मैं तुम्हें इस सच्चाई से भी परिचित करा दूँ: यदि परमेश्वर के प्रति तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो तो तुम किसी भी रीति से स्वर्ग-राज्य में प्रवेश न कर सकोगे.

क्रोध पर शिक्षा

21 “यह तो तुम सुन ही चुके हो कि पूर्वजों को यह आज्ञा दी गई थी हत्या मत करो और जो कोई हत्या करता है, वह न्यायालय के प्रति उत्तरदायी होगा, 22 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि हर एक, जो अपने भाई से रुष्ट है,[a] वह न्यायालय के सामने दोषी होगा और जो कोई अपने भाई से कहे ‘अरे निकम्मे!’ वह सर्वोच्च न्यायालय के प्रति अपराध का दोषी होगा तथा वह, जो कहे, ‘अरे मूर्ख!’ वह तो नर्क की आग के योग्य दोषी होगा.

23 “इसलिए, यदि तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ाने जा रहे हो और वहाँ तुम्हें यह याद आए कि तुम्हारे भाई के मन में तुम्हारे प्रति वैमनस्य है, 24 अपनी भेंट वेदी के पास ही छोड़ दो और जा कर सबसे पहिले अपने भाई से मेल मिलाप करो और तब लौट कर अपनी भेंट चढ़ाओ.

25 “न्यायालय जाते हुए मार्ग में ही अपने दुश्मन से मित्रता का सम्बन्ध फिर से बना लो कि तुम्हारा दुश्मन तुम्हें न्यायाधीश के हाथ में न सौंपे और न्यायाधीश अधिकारी के और तुम्हें बन्दीगृह में डाला जाए. 26 मैं तुम्हें इस सच से परिचित कराना चाहता हूँ कि जब तक तुम एक-एक पैसा लौटा न दो बन्दीगृह से छूट न पाओगे.

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.