Old/New Testament
30 प्रेरित लौट कर मसीह येशु के पास आए और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों और दी गई शिक्षा का विवरण दिया. 31 मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ, कुछ समय के लिए कहीं एकान्त में चलें और विश्राम करें,” क्योंकि अनेक लोग आ-जा रहे थे और उन्हें भोजन तक का अवसर प्राप्त न हो सका था. 32 वे चुपचाप नाव पर सवार हो एक सुनसान जगह पर चले गए.
33 लोगों ने उन्हें वहाँ जाते हुए देख लिया. अनेकों ने यह भी पहचान लिया कि वे कौन थे. आस-पास के नगरों से अनेक लोग दौड़ते हुए उनसे पहले ही उस स्थान पर जा पहुँचे. 34 जब मसीह येशु तट पर पहुँचे, उन्होंने वहाँ एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा. उसे देख वह दुःखी हो उठे क्योंकि उन्हें भीड़ बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगी. वहाँ मसीह येशु उन्हें अनेक विषयों पर शिक्षा देने लगे.
35 दिन ढल रहा था. शिष्यों ने मसीह येशु के पास आ कर उनसे कहा, “यह सुनसान जगह है और दिन ढला जा रहा है. 36 अब आप इन्हें विदा कर दीजिए कि ये पास के गाँवों में जा कर अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.”
37 किन्तु मसीह येशु ने उन्हीं से कहा, “तुम ही दो इन्हें भोजन!”
शिष्यों ने इसके उत्तर में कहा, “इतनों के भोजन में कम से कम दो सौ दीनार लगेंगे. क्या आप चाहते हैं कि हम जा कर इनके लिए इतने का भोजन ले आएँ?”
38 “मसीह येशु ने उनसे पूछा,” “कितनी रोटियां हैं यहाँ?”
“जाओ, पता लगाओ!” उन्होंने पता लगा कर उत्तर दिया, “पाँच—और इनके अलावा दो मछलियां भी.”
39 मसीह येशु ने सभी लोगों को झुण्ड़ों में हरी घास पर बैठ जाने की आज्ञा दी. 40 वे सभी सौ-सौ और पचास-पचास के झुण्ड़ों में बैठ गए. 41 मसीह येशु ने वे पाँच रोटियां और दो मछलियां ले कर स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर उनके लिए धन्यवाद प्रकट किया. तब वह रोटियां तोड़ते और शिष्यों को देते गए कि वे उन्हें भीड़ में बाँटते जाएँ. इसके साथ उन्होंने वे दो मछलियां भी उनमें बांट दीं. 42 उन सभी ने खाया और तृप्त हो गए. 43 शिष्यों ने जब तोड़ी गई रोटियों तथा मछलियों के शेष भाग इकट्ठा किए तो उनसे बारह टोकरे भर गए. 44 जिन्होंने भोजन किया था, उनमें से पुरुष ही पाँच हज़ार थे.
मसीह येशु का पानी के ऊपर चलना
(मत्ति 14:22-33; योहन 6:16-21)
45 तुरन्त ही मसीह येशु ने शिष्यों को ज़बरन नाव पर बैठा उन्हें अपने से पहले दूसरे किनारे पर स्थित नगर बैथसैदा पहुँचने के लिए विदा किया—वह स्वयं भीड़ को विदा कर रहे थे. 46 उन्हें विदा करने के बाद वह प्रार्थना के लिए पर्वत पर चले गए.
47 सन्ध्या हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे. 48 मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुँचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे. 49 उन्हें जल-सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई प्रेत है और वे चिल्ला उठे 50 क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे.
इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूँ! मत डरो! साहस मत छोड़ो!” 51 यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यन्त चकित रह गए. 52 रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे.
53 झील पार कर वे गन्नेसरत प्रदेश में पहुँच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी. 54 मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया. 55 जहाँ कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहाँ ले आते थे. 56 मसीह येशु जिस किसी नगर, गाँव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.
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