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Old/New Testament

Each day includes a passage from both the Old Testament and New Testament.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
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मत्तियाह 26:1-25

येशु की हत्या का षड्यन्त्र

(मारक 14:1-2; लूकॉ 22:1-2)

26 इस रहस्य के खुलने के बाद येशु ने शिष्यों को देखकर कहा, “यह तो तुम्हें मालूम ही है कि दो दिन बाद फ़सह उत्सव है. इस समय मनुष्य के पुत्र को क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया जाएगा.”

दूसरी ओर प्रधान याजक और वरिष्ठ नागरिक कायाफ़स नामक महायाजक के घर के आँगन में इकट्ठा हुए. उन्होंने मिल कर येशु को छलपूर्वक पकड़ कर उनकी हत्या कर देने का विचार किया. वे यह विचार भी कर रहे थे: “यह फ़सह उत्सव के अवसर पर न किया जाए—कहीं इससे लोगों में बलवा न भड़क उठे.”

बैथनियाह नगर में येशु का अभ्यंजन

(मारक 14:3-9; योहन 12:1-11)

जब येशु बैथनियाह गाँव में शिमोन के घर पर थे—वही शिमोन, जिसे पहले कोढ़ रोग हुआ था, —एक स्त्री उनके पास संगमरमर के बर्तन में कीमती इत्र ले कर आई. उसे उसने भोजन के लिए बैठे येशु के सिर पर उण्डेल दिया.

यह देख शिष्य गुस्सा हो कहने लगे, “यह फिज़ूलखर्ची किस लिए? यह इत्र तो ऊँचे दाम पर बिक सकता था और प्राप्त धनराशि गरीबों में बांटी जा सकती थी.”

10 इस विषय को जानकर येशु ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, “क्यों सता रहे हो इस स्त्री को? इसने मेरे हित में एक सराहनीय काम किया है. 11 निर्धन तुम्हारे साथ हमेशा रहेंगे किन्तु मैं तुम्हारे साथ हमेशा नहीं रहूँगा. 12 मुझे मेरे अंतिम संस्कार के लिए तैयार करने के लिए इसने यह इत्र मेरे शरीर पर उण्डेला है. 13 सच तो यह है कि सारे जगत में जहाँ कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, इस स्त्री के इस कार्य का वर्णन भी इसकी याद में किया जाएगा.”

यहूदाह का धोखा

(मारक 14:10-11; लूकॉ 22:3-6)

14 तब कारयोतवासी यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान पुरोहितों के पास गया 15 और उनसे विचार-विमर्श करने लगा, “यदि मैं येशु को पकड़वा दूँ तो आप मुझे क्या देंगे?” उन्होंने उसे गिन कर चांदी के तीस सिक्के दे दिए. 16 उस समय से वह येशु को पकड़वाने के लिए सही अवसर की ताक में रहने लगा.

फ़सह भोज की तैयारी

(मारक 14:12-16; लूकॉ 22:7-13)

17 ख़मीर-रहित रोटी के उत्सव के पहिले दिन शिष्यों ने येशु के पास आ कर पूछा, “हम आपके लिए फ़सह भोज की तैयारी कहाँ करें? आप क्या चाहते हैं?”

18 येशु ने उन्हें निर्देश दिया, “नगर में एक व्यक्ति विशेष के पास जाना और उससे कहना, ‘गुरुवर ने कहा है, मेरा समय पास है. मुझे अपने शिष्यों के साथ आपके घर में फ़सह उत्सव मनाना है.’” 19 शिष्यों ने वैसा ही किया, जैसा येशु ने निर्देश दिया था और उन्होंने फ़सह भोज तैयार किया.

20 सन्ध्या समय येशु अपने बारह शिष्यों के साथ बैठे हुए थे. 21 जब वे भोजन कर रहे थे येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूँ: तुम्हीं में एक है, जो मेरे साथ धोखा करेगा.”

22 बहुत उदास मन से हर एक शिष्य येशु से पूछने लगा, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ?”

23 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ कटोरे में अपना कौर डुबोया था, वही है, जो मेरे साथ धोखा करेगा. 24 मानव-पुत्र को तो जैसा कि उसके विषय में पवित्रशास्त्र में लिखा है, जाना ही है; किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो मनुष्य के पुत्र के साथ धोखा करेगा. उस व्यक्ति के लिए अच्छा तो यही होता कि उसका जन्म ही न होता.”

25 यहूदाह ने, जो येशु के साथ धोखा कर रहा था, उनसे प्रश्न किया, “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूँ न?”[a]

येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह तुमने स्वयं ही कह दिया है.”

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