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New Testament in a Year

Read the New Testament from start to finish, from Matthew to Revelation.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
इफ़ेसॉस 4

एकता के लिए बुलाया जाना

इसलिए मैं, जो प्रभु के लिए बन्दी हूँ, तुमसे विनती करता हूँ कि तुम्हारी जीवनशैली तुम्हारी बुलाहट के अनुरूप हो. तुम में विशुद्ध विनम्रता, सौम्यता तथा धीरज के साथ आपस में प्रेम में सहने का भाव भर जाए. शान्ति के बन्धन में पवित्रात्मा की एकता को यथाशक्ति संरक्षित बनाए रखो. एक ही शरीर है, एक ही आत्मा. ठीक इसी प्रकार वह आशा भी एक ही है जिसमें तुम्हें बुलाया गया है. एक ही प्रभु, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा और सारी मानवजाति के पिता, जो सबके ऊपर, सबके बीच और सब में एक ही परमेश्वर हैं.

किन्तु हममें से हर एक को मसीह के वरदान के परिमाण के अनुसार अनुग्रह प्रदान किया गया है, इसी सन्दर्भ में पवित्रशास्त्र का लेख है:

जब वह सबसे ऊँचे पर चढ़ गए,
    बन्दियों को बन्दी बना कर ले गए और
    उन्होंने मनुष्यों को वरदान प्रदान किए.

इस कहावत का मतलब क्या हो सकता है कि वह सबसे ऊँचे पर चढ़ गए, सिवाय इसके कि वह पहले अधोलोक में नीचे उतर गए? 10 वह, जो नीचे उतरे, वही हैं, जो ऊँचे स्थान में बड़े सम्मान के साथ चढ़े कि सारे सृष्टि को परिपूर्ण कर दें. 11 उन्होंने कलीसिया को कुछ प्रेरित, कुछ भविष्यद्वक्ता, कुछ ईश्वरीय सुसमाचार सुनानेवाले तथा कुछ कलीसिया के रखवाले उपदेशक प्रदान किए 12 कि पवित्र सेवकाई के लिए सुसज्जित किए जाएँ, कि मसीह का शरीर विकसित होता जाए; 13 जब तक हम सभी को विश्वास और परमेश्वर-पुत्र के बहुत ज्ञान की एकता उपलब्ध न हो जाए—सिद्ध मनुष्य के समान—जो मसीह का सम्पूर्ण डील-डौल है.

14 तब हम बालक न रहेंगे, जो समुद्री लहरों जैसे इधर-उधर उछाले व फेंके जाते तथा मनुष्यों की ठग विद्या की आँधी और मनुष्य की चतुराइयों द्वारा बहाए जाते हैं; 15 परन्तु सच को प्रेमपूर्वक व्यक्त करते हुए हर एक पक्ष में हमारी उन्नति उनमें होती जाए, जो प्रधान हैं अर्थात् मसीह, 16 जिनके द्वारा सारा शरीर जोड़ों द्वारा गठकर और एक साथ मिलकर प्रेम में विकसित होता जाता है क्योंकि हर एक अंग अपना तय किया गया काम ठीक-ठाक करता जाता है.

मसीह में नवजीवन

17 इसलिए मैं प्रभु के साथ पुष्टि करते हुए तुमसे विनती के साथ कहता हूँ कि अब तुम्हारा स्वभाव अन्यजातियों के समान खोखली मन की रीति से प्रेरित न हो. 18 उनके मन की कठोरता से उत्पन्न अज्ञानता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग हैं और उनकी बुद्धि अंधेरी हो गई है, 19 सुन्न होकर उन्होंने स्वयं को लोभ से भरकर सब प्रकार की कामुकता और अनैतिकता के अधीन कर दिया है. 20 मसीह के विषय में ऐसी शिक्षा तुम्हें नहीं दी गई थी 21 यदि वास्तव में तुमने उनके विषय में सुना और उनकी शिक्षा को ग्रहण किया है, जो मसीह येशु में सच के अनुरूप है. 22 इसलिए अपने पुराने स्वभाव से प्रेरित स्वभाव को त्याग दो, जो छल की लालसाओं के कारण भ्रष्ट होता जा रहा है 23 कि तुम्हारे मन का स्वभाव नया हो जाए. 24 नए स्वभाव को धारण कर लो, जिसकी रचना धार्मिकता और पवित्रता में परमेश्वर के स्वरूप में हुई है.

25 इसलिए झूठ का त्याग कर, हर एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से सच ही कहे क्योंकि हम एक ही शरीर के अंग हैं. 26 यदि तुम क्रोधित होते भी हो, तो भी पाप न करो. सूर्यास्त तक तुम्हारे क्रोध का अन्त हो जाए. 27 शैतान को कोई अवसर न दो. 28 वह, जो चोरी करता रहा है, अब चोरी न करे किन्तु परिश्रम करे कि वह अपने हाथों से किए गए उपयोगी कामों के द्वारा अन्य लोगों की भी सहायता कर सके, जिन्हें किसी प्रकार की ज़रूरत है.

29 तुम्हारे मुख से कोई भद्दे शब्द नहीं परन्तु ऐसा वचन निकले, जो अवसर के अनुकूल, अन्यों के लिए अनुग्रह का कारण तथा सुननेवालों के लिए भला हो.

30 परमेश्वर की पवित्रात्मा को शोकित न करो, जिनके द्वारा तुम्हें छुटकारे के दिन के लिए छाप दी गई है. 31 सब प्रकार की कड़वाहट, रोष, क्रोध, झगड़ा, निन्दा, आक्रोश तथा बैर-भाव को स्वयं से अलग कर दो. 32 एक दूसरे के प्रति कृपालु तथा सहृदय बने रहो तथा एक-दूसरे को उसी प्रकार क्षमा करो जिस प्रकार परमेश्वर ने मसीह में तुम्हें क्षमा किया है.

Saral Hindi Bible (SHB)

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