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New Testament in a Year

Read the New Testament from start to finish, from Matthew to Revelation.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
मत्तियाह 23:1-22

शास्त्रियों और फ़रीसियों का पाखण्ड

(मारक 12:38-40; लूकॉ 20:45-47)

23 इसके बाद येशु ने भीड़ और शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, “फ़रीसियों और शास्त्रियों ने स्वयं को मोशेह के पद पर आसीन कर रखा है. इसलिए उनकी सभी शिक्षाओं के अनुरूप स्वभाव तो रखो किन्तु उनके द्वारा किए जा रहे कामों को बिल्कुल न मानना क्योंकि वे स्वयं ही वह नहीं करते, जो वह कहते हैं. वे लोगों के कन्धों पर भारी बोझ लाद तो देते हैं किन्तु उसे हटाने के लिए स्वयं एक उंगली तक नहीं लगाना चाहते.

“वे सभी काम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से ही करते हैं. वे उन पट्टियों को चौड़ा करते जाते हैं जिन पर वे पवित्रशास्त्र के वचन लिख कर शरीर पर बान्ध लेते हैं तथा वे ऊपरी वस्त्र की झालर को भी बढ़ाते जाते हैं. दावतों में मुख्य स्थान, यहूदी-सभागृहों में मुख्य आसन, नगर चौक में लोगों के द्वारा सम्मानपूर्ण अभिनन्दन तथा रब्बी कहलाना ही इन्हें प्रिय है.

“किन्तु तुम स्वयं के लिए रब्बी कहलाना स्वीकार न करना क्योंकि तुम्हारे शिक्षक मात्र एक हैं और तुम सब आपस में भाई हो. पृथ्वी पर तुम किसी को अपना पिता न कहना. क्योंकि तुम्हारे पिता मात्र एक हैं, जो स्वर्ग में हैं 10 और न तुम स्वयं के लिए स्वामी सम्बोधन स्वीकार करना क्योंकि तुम्हारे स्वामी मात्र एक हैं—मसीह. 11 अवश्य है कि तुममें जो बड़ा बनना चाहे वह तुम्हारा सेवक हो. 12 जो कोई स्वयं को बड़ा करता है, उसे छोटा बना दिया जाएगा और वह, जो स्वयं को छोटा बनाता है, बड़ा किया जाएगा.”

शास्त्रियों और फ़रीसियों पर सात उल्लाहनाएं

13 “धिक्कार है तुम पर पाखण्डी, फ़रीसियो, शास्त्रियो! जनसाधारण के लिए तो तुम स्वर्ग-राज्य के द्वार बन्द कर देते हो. तुम न तो स्वयं इसमें प्रवेश करते हो और न किसी अन्य को ही प्रवेश करने देते हो.

14 “धिक्कार है तुम पर पाखण्डी, फ़रीसियो, शास्त्रियो! तुम लम्बी-लम्बी प्रार्थनाओं का ढोंग करते हुए विधवाओं की सम्पत्ति निगल जाते हो. इसलिए अधिक होगा तुम्हारा दण्ड.

15 “धिक्कार है तुम पर पाखण्डी, फ़रीसियो, शास्त्रियो! तुम एक व्यक्ति को अपने मत में लाने के लिए लम्बी-लम्बी जल और थल यात्राएँ करते हो. उसके तुम्हारे मत में सम्मिलित हो जाने पर तुम उसे नर्क की आग के दण्ड का दोगुना अधिकारी बना देते हो.

16 “धिक्कार है तुम पर अंधे अगुवों! तुम जो यह शिक्षा देते हो, ‘यदि कोई मन्दिर की शपथ लेता है तो उसका कोई महत्व नहीं किन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की शपथ लेता है तो उसके लिए प्रतिज्ञा पूरी करना ज़रूरी हो जाता है.’ 17 अरे मूर्खो और अन्धो! अधिक महत्वपूर्ण क्या है—सोना या वह मन्दिर जिससे वह सोना पवित्र होता है? 18 इसी प्रकार तुम कहते हो, ‘यदि कोई वेदी की शपथ लेता है तो उसका कोई महत्व नहीं किन्तु यदि कोई वेदी पर चढ़ाई भेंट की शपथ लेता है तो उसके लिए अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना ज़रूरी है.’ 19 अरे अन्धो! अधिक महत्वपूर्ण क्या है, वेदी पर चड़ाई भेंट या वेदी जिससे भेंट पवित्र होती है? 20 इसलिए जो कोई वेदी की शपथ लेता है, वह वेदी तथा वेदी पर समर्पित भेंट दोनों ही की शपथ लेता है. 21 जो कोई मन्दिर की शपथ लेता है, वह मन्दिर तथा उनकी, जो इसमें रहते हैं, दोनों ही की शपथ लेता है. 22 इसी प्रकार जो कोई स्वर्ग की शपथ लेता है, वह परमेश्वर के सिंहासन की तथा उनकी जो उस पर बैठा हैं, दोनों ही की शपथ लेता है.

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