M’Cheyne Bible Reading Plan
अन्यों पर दोष लगाने के विरुद्ध शिक्षा
(लूकॉ 6:37-42)
7 “किसी पर भी दोष न लगाओ, तो लोग तुम पर भी दोष नहीं लगाएंगे 2 क्योंकि जैसे तुम किसी पर दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा तथा माप के लिए तुम जिस बर्तन का प्रयोग करते हो वही तुम्हारे लिए इस्तेमाल किया जाएगा. 3 तुम भला अपने भाई की आँख के कण की ओर उंगली क्यों उठाते हो जबकि तुम स्वयं अपनी आँख में पड़े लट्ठे की ओर ध्यान नहीं देते? 4 या तुम भला यह कैसे कह सकते हो ‘ज़रा ठहरो, मैं तुम्हारी आँख से वह कण निकाल देता हूँ,’ जबकि तुम्हारी अपनी आँख में तो लट्ठा पड़ा हुआ है? 5 अरे पाखण्डी! पहले तो स्वयं अपनी आँख में से उस लट्ठे को तो निकाल! तभी तू स्पष्ट रूप से देख सकेगा और अपने भाई की आँख में से उस कण को निकाल सकेगा.
6 “वे वस्तुएं, जो पवित्र हैं, कुत्तों को न दो और न सूअरों के सामने अपने मोती फेंको, कहीं वे उन्हें अपने पैरों से रौन्दें, मुड़ कर तुम्हें फाड़ें और टुकड़े-टुकड़े कर दें.
प्रार्थना के लिए प्रोत्साहन
7 “विनती करो और वह पूरी की जाएगी, खोजो और तुम पाओगे, द्वार खटखटाओ और वह द्वार तुम्हारे लिए खोला जाएगा 8 क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, उसकी विनती पूरी की जाती है, जो खोजता है, वह प्राप्त करता है और वह, जो द्वार खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.
9 “तुममें ऐसा कौन है कि जब उसका पुत्र उससे रोटी की माँग करता है तो उसे पत्थर देता है 10 या मछली की माँग करने पर साँप? 11 जब तुम पतित होने पर भी अपनी सन्तान को उत्तम वस्तुएं प्रदान करना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, कहीं अधिक बढ़कर वह प्रदान न करेंगे, जो उत्तम है?
12 “इसलिए हर एक परिस्थिति में लोगों से तुम्हारा व्यवहार ठीक वैसा ही हो जैसे व्यवहार की आशा तुम उनसे अपने लिए करते हो क्योंकि व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा भी यही है.
दो मार्ग
13 “सकेत द्वार में से प्रवेश करो क्योंकि विशाल है वह द्वार और चौड़ा है वह मार्ग, जो विनाश तक ले जाता है और अनेक हैं, जो इसमें से प्रवेश करते हैं 14 क्योंकि सकेत है वह द्वार तथा कठिन है वह मार्ग, जो जीवन तक ले जाता है और थोड़े ही हैं, जो इसे प्राप्त करते हैं.
फलदायी जीवन के विषय में शिक्षा
(लूकॉ 6:43-45)
15 “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के वेश में तुम्हारे बीच आ जाते हैं किन्तु वास्तव में वे भूखे भेड़िये होते हैं. 16 उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान जाओगे. न तो कँटीली झाड़ियों में से अंगूर और न ही भटकटैया से अंजीर इकट्ठे किए जाते हैं. 17 वस्तुतः हर एक उत्तम पेड़ उत्तम फल ही फलता है और बुरा पेड़ बुरा फल. 18 यह सम्भव ही नहीं कि उत्तम पेड़ बुरा फल दे और बुरा पेड़ उत्तम फल. 19 जो पेड़ उत्तम फल नहीं देता, उसे काट कर आग में झोंक दिया जाता है. 20 इसलिए उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान लोगे.
वास्तविक शिष्य
(लूकॉ 6:46-49)
21 “मुझे प्रभु, प्रभु सम्बोधित करता हुआ हर एक व्यक्ति स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं पाएगा परन्तु प्रवेश केवल वह पाएगा, जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है. 22 उस अवसर पर अनेक मुझसे प्रश्न करेंगे, ‘प्रभु, क्या हमने आपके नाम में भविष्यवाणी न की, क्या हमने आपके ही नाम में प्रेतों को न निकाला और क्या हमने आपके नाम में अनेक आश्चर्यकाम न किए?’ 23 मैं उनसे स्पष्ट कहूँगा, ‘मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं. दुष्टो! चले जाओ मेरे सामने से!’
24 “इसलिए हर एक की तुलना, जो मेरी इन शिक्षाओं को सुन कर उनका पालन करता है, उस बुद्धिमान व्यक्ति से की जा सकती है, जिसने अपने भवन का निर्माण चट्टान पर किया. 25 आँधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई और उस भवन पर थपेड़े पड़े, फिर भी वह भवन स्थिर खड़ा रहा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर थी. 26 इसके विपरीत हर एक जो, मेरी इन शिक्षाओं को सुनता तो है किन्तु उनका पालन नहीं करता, वह उस निर्बुद्धि के समान होगा जिसने अपने भवन का निर्माण रेत पर किया. 27 आँधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई, उस भवन पर थपेड़े पड़े और वह धराशायी हो गया—भयावह था उसका विनाश!”
28 जब येशु ने यह शिक्षाएं दीं, भीड़ आश्चर्यचकित रह गई 29 क्योंकि येशु की शिक्षा-शैली अधिकारपूर्ण थी, न कि शास्त्रियों के समान.
महासभा को स्तेफ़ानॉस का सम्बोधन
7 महायाजक ने उनसे प्रश्न किया, “क्या यह आरोप सच है?”
2 स्तेफ़ानॉस ने उसे उत्तर दिया, “आदरणीय गुरुवर और बन्धुओं,” कृपया सुनिए: महामहिम परमेश्वर ने हमारे पूर्वज अब्राहाम को उनके हारान प्रदेश में आकर बसने के पूर्व, जब वह मेसोपोतामिया में थे, दिव्य दर्शन देते हुए आज्ञा दी: 3 अपनी मातृभूमि और परिजनों का त्याग कर उस देश में चले जाओ, जो मैं तुम्हें दिखाऊँगा.
4 “इसलिए वह कसदियों के देश को छोड़कर हारान नगर में बस गए. इसके बाद उनके पिता की मृत्यु के बाद, परमेश्वर उन्हें इस भूमि पर ले आए जिस पर आप निवास कर रहे हैं. परमेश्वर ने उन्हें इस भूभाग का कोई उत्तराधिकार नहीं दिया; 5 यहाँ तक कि पैर रखने का भी स्थान नहीं. किन्तु परमेश्वर ने उनके उस समय निःसन्तान होने पर भी उनसे यह प्रतिज्ञा की कि उनके बाद वह उनके वंशजों को यह भूमि उनकी सम्पत्ति के रूप में प्रदान करेंगे. 6 आगे परमेश्वर ने यह भी कहा: ‘तुम्हारे वंशज विदेश में प्रवासी और दास बनाए जाएँगे तथा उन पर चार सौ वर्ष तक अत्याचार किया जाता रहेगा. 7 जिस किसी राष्ट्र के द्वारा वे उत्पीड़ित किए जाएँगे मैं उसे दण्ड दूँगा,’ ‘इसके बाद वे वहाँ से निकल आएंगे तथा इसी स्थान पर मेरी आराधना करेंगे.’ 8 परमेश्वर ने अब्राहाम के साथ ख़तना की वाचा स्थापित की. जब अब्राहाम के पुत्र इसहाक का जन्म हुआ, तो आठवें दिन उनका ख़तना किया गया. इसहाक के पुत्र थे याक़ोब और याक़ोब से बारह कुलपिता उत्पन्न हुए.
9 “जलन के कारण कुलपिताओं ने योसेफ़ को मिस्र देश में बेच दिया किन्तु परमेश्वर की कृपादृष्टि योसेफ़ पर बनी रही. 10 इसलिए परमेश्वर ने योसेफ़ को सभी यातनाओं से मुक्त कर उन्हें बुद्धि प्रदान की और मिस्र देश के राजा फ़रोह की कृपादृष्टि प्रदान की तथा फ़रोह ने उन्हें मिस्र देश और पूरे राजभवन पर अधिकारी बना दिया.
11 “तब सारे मिस्र और कनान देश में अकाल पड़ा जिससे हर जगह हाहाकार मच गया और हमारे पूर्वजों के सामने भोजन का अभाव हो गया. 12 किन्तु जब याक़ोब को यह मालूम हुआ कि मिस्र देश में अन्न उपलब्ध है, उन्होंने हमारे पूर्वजों को अन्न लेने वहाँ भेजा, जिनकी यह पहली मिस्र-यात्रा थी. 13 जब वे अन्न लेने वहाँ दूसरी बार गए, योसेफ़ ने स्वयं को अपने भाइयों पर प्रकट कर दिया, जिससे फ़रोह योसेफ़ के परिवार से परिचित हो गया. 14 तब योसेफ़ ने अपने पिता और सारे परिवार को, जिनकी संख्या पचहत्तर थी, मिस्र देश में बुला लिया. 15 तब याक़ोब मिस्र देश में बस गए और वहीं उनकी और हमारे पूर्वजों की मृत्यु हुई. 16 उनके अवशेष शकेम नगर लाए गए तथा उन्हें अब्राहाम द्वारा मोल ली गई कन्दरा-क़ब्र में रखा गया, जिसे अब्राहाम ने शकेम नगर के निवासी हामोर के पुत्रों को दाम देकर खरीदा था.
17 “जब परमेश्वर द्वारा अब्राहाम से की गई प्रतिज्ञा को पूरी करने का समय आया तब मिस्र देश में हमारे पूर्वजों की संख्या में कई गुणा वृद्धि हो चुकी थी. 18 उस समय मिस्र देश में एक अन्य फ़रोह का शासन था, जो योसेफ़ के विषय में कुछ भी नहीं जानता था. 19 उसने हमारे पूर्वजों के साथ चालाकी से बुरा व्यवहार किया और नवजात शिशुओं को नाश करने के लिए विवश किया कि एक भी शिशु बचा न रहे.
20 “इसी काल में मोशेह का जन्म हुआ. वह परमेश्वर की दृष्टि में चाहनेयोग्य थे. तीन माह तक उनका पालन-पोषण उनके पिता के ही परिवार में हुआ. 21 जब उनको छुपाए रखना असम्भव हो गया तब फ़रोह की पुत्री उन्हें ले गई. उसने उनका पालन-पोषण अपने पुत्र जैसे किया. 22 मिस्र देश की सारी विद्या में मोशेह को प्रशिक्षित किया गया. वह बातचीत और कर्तव्य पालन करने में प्रभावशाली थे.
23 “जब मोशेह लगभग चालीस वर्ष के हुए, उनके मन में अपने इस्राएली बन्धुओं से भेंट करने का विचार आया. 24 वहाँ उन्होंने एक इस्राएली के साथ अन्याय से भरा व्यवहार होते देख उसकी रक्षा की तथा सताए जाने वाले के बदले में मिस्रवासी की हत्या कर दी. 25 उनका विचार यह था कि उनके इस काम के द्वारा इस्राएली यह समझ जाएँगे कि परमेश्वर स्वयं उन्हीं के द्वारा इस्राएलियों को मुक्त करा रहे हैं किन्तु ऐसा हुआ नहीं. 26 दूसरे दिन जब उन्होंने आपस में लड़ते हुए दो इस्राएलियों के मध्य यह कहते हुए मेल-मिलाप का प्रयास किया, ‘तुम भाई-भाई हो, क्यों एक दूसरे को आहत करना चाह रहे हो?’
27 “उस अन्याय करने वाले इस्राएली ने मोशेह को धक्का देते हुए कहा, ‘किसने तुम्हें हम पर राजा और न्यायी ठहराया है? 28 कहीं तुम्हारा मतलब कल उस मिस्री जैसे मेरी भी हत्या का तो नहीं है? बोलो!’ 29 यह सुन मोशेह वहाँ से भाग खड़े हुए और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगे. वहाँ उनके दो पुत्र उत्पन्न हुए.
30 “चालीस वर्ष व्यतीत होने पर सीनय पर्वत के जंगल में एक जलती हुई कँटीली झाड़ी की ज्वाला में उन्हें एक स्वर्गदूत दिखाई दिया. 31 इस दृश्य ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया. जब वह इसे नज़दीकी से देखने के उद्देश्य से झाड़ी के पास गए तो परमेश्वर ने उनसे कहा: 32 ‘मैं तुम्हारे पूर्वजों के पिता अर्थात् अब्राहाम, इसहाक तथा याक़ोब का परमेश्वर हूँ.’ मोशेह भय से कांपने लगे और ऊपर आँख उठाने का साहस न कर सके.
33 “प्रभु ने मोशेह से कहा, ‘अपने पैरों से जूतियाँ उतार दो क्योंकि जिस जगह पर तुम खड़े हो वह पवित्र जगह है. 34 मिस्र देश में मेरी प्रजा पर हो रहा अत्याचार मैंने अच्छी तरह से देखा है. मैंने उनका कराहना भी सुना है. मैं उन्हें मुक्त कराने नीचे उतर आया हूँ. सुनो, मैं तुम्हें मिस्र देश भेजूँगा.’
35 “यह वही मोशेह हैं, जिन्हें इस्राएलियों ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था, ‘किसने तुम्हें हम पर राजा और न्याय करनेवाला ठहराया है?’ परमेश्वर ने उन्हीं को उस स्वर्गदूत द्वारा, जो झाड़ी में उन्हें दिखाई दिया था, राजा तथा छुड़ानेवाला ठहराकर भेज दिया. 36 यह वही मोशेह थे, जिन्होंने उनका नायक होकर उन्हें बाहर निकाला और मिस्र देश, लाल सागर तथा चालीस वर्ष जंगल में अद्भुत चिह्न दिखाते हुए उनका मार्गदर्शन किया.
37 “यही थे वह मोशेह, जिन्होंने इस्राएल की सन्तान के सामने यह घोषणा पहले से ही की थी, ‘तुम्हारे ही बन्धुओं में से परमेश्वर मेरे ही समान एक भविष्यद्वक्ता को उठाएंगे.’ 38 यह वही हैं, जो जंगल में इस्राएली समुदाय में उस स्वर्गदूत के साथ मौजूद थे, जिसने उनसे सीनय पर्वत पर बातें कीं और जो हमारे पूर्वजों के साथ थे तथा मोशेह ने तुम्हें सौंप देने के लिए जिनसे जीवित वचन प्राप्त किए.
39 “हमारे पूर्वज उनके आज्ञापालन के इच्छुक नहीं थे. वे मन ही मन मिस्र देश की कामना करने लगे. 40 वे हारोन से कहते रहे, ‘हमारे आगे-आगे जाने के लिए देवताओं को स्थापित करो. इस मोशेह की, जो हमें मिस्र साम्राज्य से बाहर लेकर आया है, कौन जाने क्या हुआ!’ 41 तब उन्होंने बछड़े की एक मूर्ति बनाई, उसे बलि चढ़ाई तथा अपने हाथों के कामों पर उत्सव मनाने लगे. 42 इससे परमेश्वर ने उनसे मुँह मोड़कर उन्हें नक्षत्रों की उपासना करने के लिए छोड़ दिया, जैसा भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख में लिखा है:
“‘इस्राएलवंशियों क्या तुमने जंगल
में चालीस वर्ष मुझे ही बलि तथा, भेंटें नहीं चढ़ाईं?
43 तुमने देवता मोलेक की वेदी की स्थापना की,
अपने देवता रेफ़ान के तारे को ऊँचा किया
और उन्हीं की मूर्तियों को आराधना के लिए स्थापित किया.
इसलिए मैं तुम्हें बाबेल से दूर’ निकाल ले जाऊँगा.
44 “जंगल में गवाही का तम्बू हमारे पूर्वजों के पास था. इसका निर्माण ठीक-ठीक परमेश्वर द्वारा मोशेह को दिए गए निर्देश के अनुसार किया गया था, जिसका आकार स्वयं मोशेह देख चुके थे. 45 हमारे पूर्वज इस गवाही के तम्बू को योशुआ के नेतृत्व में अपने साथ उस भूमि पर ले आए, जिसे उन्होंने अपने अधिकार में ले लिया था और जहाँ से परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों के सामने से राष्ट्रों को निकाल दिया था. ऐसा दाविद के समय तक रहा. 46 दाविद पर परमेश्वर की कृपादृष्टि थी. दाविद ने उनसे याक़ोब के परमेश्वर के लिए एक निवास स्थान बनाने की आज्ञा चाही. 47 किन्तु इस भवन का निर्माण शलोमोन द्वारा किया गया.
48 “सच तो यह है कि, परमप्रधान परमेश्वर मनुष्य के हाथ से बने भवन में वास नहीं करते. भविष्यद्वक्ता की घोषणा है: 49 परमेश्वर का कहना है,
“‘स्वर्ग मेरा सिंहासन
तथा पृथ्वी मेरे पैरों की चौकी है.
किस प्रकार का घर बनाओगे तुम मेरे लिए?
या कहाँ होगा मेरा विश्राम स्थान?
50 क्या ये सभी मेरे ही हाथों की रचना नहीं?’
51 “आप, जो हठीले हृदय और कान के ख़तना रहित लोग हैं, हमेशा पवित्रात्मा का विरोध करते रहते हैं. आप ठीक वही कर रहे हैं, जो आपके पूर्वजों ने किया. 52 क्या कभी भी कोई ऐसा भविष्यद्वक्ता हुआ है, जिसे आपके पूर्वजों ने सताया न हो? यहाँ तक कि उन्होंने तो उन भविष्यद्वक्ताओं की हत्या भी कर दी जिन्होंने उस धर्मी जन के आगमन की पहले से ही घोषणा की थी. यहाँ उसी की हत्या करके आप लोग विश्वासघाती और हत्यारे बन गए हैं. 53 आप वही हैं जिन्हें स्वर्गदूतों द्वारा प्रभावशाली व्यवस्था सौंपी गई थी, फिर भी आपने उसका पालन नहीं किया.”
स्तेफ़ानॉस का पथराव—शाऊल भी एक उत्पीड़क
54 यह सुन सारे सुननेवाले तिलमिला उठे और स्तेफ़ानॉस पर दाँत पीसने लगे.
55 किन्तु पवित्रात्मा से भरकर स्तेफ़ानॉस ने जब अपनी दृष्टि स्वर्ग की ओर उठाई, उन्होंने परमेश्वर की महिमा को और मसीह येशु को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़े हुए देखा. 56 स्तेफ़ानॉस ने सुननेवालों को सम्बोधित करते हुए कहा, “वह देखिए! मुझे स्वर्ग खुला हुआ तथा मनुष्य का पुत्र परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं.”
57 यह सुनते ही सुननेवालों ने चीखते हुए अपने कानों पर हाथ रख लिए. फिर वे गुस्से में स्तेफ़ानॉस पर एक साथ टूट पड़े. 58 उन्होंने स्तेफ़ानॉस को पकड़ा और घसीटते हुए नगर के बाहर ले गए और वहाँ उन्होंने पथराव करके उनकी हत्या कर दी. इस समय उन्होंने अपने बाहरी कपड़े शाऊल नामक युवक के पास रख छोड़े थे.
59 जब वे स्तेफ़ानॉस का पथराव कर रहे थे, स्तेफ़ानॉस ने प्रभु से इस प्रकार प्रार्थना की, “प्रभु येशु, मेरी आत्मा को स्वीकार कीजिए.” 60 तब उन्होंने घुटने टेककर ऊँचे शब्द में यह कहा, “प्रभु, इन्हें इस पाप का दोषी न ठहराना.” यह कहते हुए स्तेफ़ानॉस लंबी नींद में सो गए.
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