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M’Cheyne Bible Reading Plan

The classic M'Cheyne plan--read the Old Testament, New Testament, and Psalms or Gospels every day.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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1 कोरिन्थॉस 12

पवित्रात्मा द्वारा दी गई क्षमताएँ

12 अब पवित्रात्मा द्वारा दी गई क्षमताओं से सम्बन्धित बातों के विषय में: मैं नहीं चाहता, प्रियजन, कि तुम इनसे अनजान रहो. तुम्हें याद होगा कि मसीह में अविश्वासी स्थिति में तुम गूंगी मूर्तियों के पीछे चलने के लिए भटका दिए गए थे. इसलिए मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि परमेश्वर के आत्मा से प्रेरित कोई भी व्यक्ति यह कह ही नहीं सकता “शापित हो येशु” और न ही कोई पवित्रात्मा की प्रेरणा के बिना कह सकता है “येशु प्रभु हैं”.

क्षमताओं की अनेकता और एकता

आत्मा द्वारा दी गई क्षमताएँ अलग-अलग हैं किन्तु आत्मा एक ही हैं. सेवकाइयाँ भी अलग-अलग हैं किन्तु प्रभु एक ही हैं. काम करने के तरीके भी अनेक हैं किन्तु परमेश्वर एक ही हैं, जो सब मनुष्यों में उनका प्रभाव उत्पन्न करते हैं. हरेक को पवित्रात्मा का प्रकाशन सबके बराबर लाभ के उद्धेश्य से दिया जाता है. आत्मा द्वारा किसी को ज्ञान भरी सलाह की क्षमता और किसी को उन्हीं आत्मा द्वारा ज्ञान भरी शिक्षा की क्षमता प्रदान की जाती है; किसी को उन्हीं आत्मा द्वारा विश्वास की तथा किसी को उन्हीं आत्मा द्वारा चंगा करने की क्षमता प्रदान की जाती है; 10 किसी को सामर्थ्य के काम करने की, किसी को भविष्यवाणी की. किसी को आत्माओं की पहचान की, किसी को अन्य भाषाओं की तथा किसी को भाषाओं के वर्णन की क्षमता. 11 इन सबको सिर्फ एक और एक ही आत्मा के द्वारा किया जाता है तथा वह हर एक में ये क्षमताएँ व्यक्तिगत रूप से बांट देते हैं.

शरीर की अनुरूपता: एक शरीर, अनेक अंग

12 जिस प्रकार शरीर एक है और उसके अंग अनेक, शरीर के अंग अनेक होने पर भी शरीर एक ही है; इसी प्रकार मसीह भी हैं. 13 यहूदी हो या यूनानी, दास हो या स्वतंत्र, एक ही शरीर होने के लिए एक ही आत्मा में हमारा बपतिस्मा किया गया तथा हम सभी को एक ही आत्मा पिलाया गया.

14 शरीर सिर्फ एक अंग नहीं परन्तु अनेक अंग है. 15 यदि पैर कहे, “मैं हाथ नहीं इसलिए मैं शरीर का अंग नहीं.” तो क्या उसके ऐसा कहने से वह शरीर का अंग नहीं रह जाता? 16 और यदि कान कहे, “मैं आँख नहीं इसलिए मैं शरीर का अंग नहीं.” तो क्या उसके ऐसा कहने से वह शरीर का अंग नहीं रह जाता? 17 यदि सारा शरीर आँख ही होता तो सुनना कैसे होता? यदि सारा शरीर कान ही होता तो सूँघना कैसे होता? 18 किन्तु परमेश्वर ने अपनी अच्छी बुद्धि के अनुसार हर एक अंग को शरीर में नियुक्त किया है. 19 यदि सभी अंग एक ही अंग होते तो शरीर कहाँ होता? 20 इसलिए वास्तविकता यह है कि अंग अनेक किन्तु शरीर एक ही है.

21 आँख हाथ से नहीं कह सकता, “मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं;” या हाथ पैर से, “मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं.” 22 इसके विपरीत शरीर के वे अंग, जो दुर्बल मालूम होते हैं, बहुत ज़रूरी हैं. 23 शरीर के जो अंग तुलना में कम महत्व के समझे जाते हैं, उन्हीं को हम अधिक महत्व देते हैं और तुच्छ अंगों को हम विशेष ध्यान रखते हुए ढ़ांके रखते हैं, 24 जबकि शोभनीय अंगों को इसकी कोई ज़रूरत नहीं किन्तु परमेश्वर ने शरीर में अंगों को इस प्रकार बनाया है कि तुच्छ अंगों की महत्ता भी पहचानी जाए 25 कि शरीर में कोई फूट न हो परन्तु हर एक अंग एक दूसरे का ध्यान रखे. 26 यदि एक अंग को पीड़ा होती है, तो उसके साथ सभी अंग पीड़ित होते हैं. यदि एक अंग को सम्मानित किया जाता है तो उसके साथ सभी अंग उसके आनन्द में सहभागी होते हैं.

27 तुम मसीह के शरीर हो और तुममें से हर एक इस शरीर का अंग है. 28 कलीसिया में परमेश्वर ने सबसे पहिले प्रेरितों, दूसरा भविष्यद्वक्ताओं तथा तीसरा शिक्षकों को नियुक्त किया है. इसके बाद उनको, जिन्हें अद्भुत काम, चंगा करने का, भलाई करनेवाले, प्रशासन-प्रबन्ध करने वाले तथा अन्य भाषा बोलने की क्षमता प्रदान की गई है. 29 इसलिए क्या सभी प्रेरित हैं? सभी भविष्यद्वक्ता हैं? सभी शिक्षक हैं? सभी अद्भुत काम करते हैं? 30 क्या सभी को चंगाई करने की क्षमता दी गई है? क्या सभी को अन्य भाषाओं में बात करने की क्षमता दी गई है? क्या सभी को अनुवाद की क्षमता दी गई है? नहीं!

पवित्रात्मा द्वारा दी गई क्षमताओं में महत्ता का क्रम

31 सही तो यह होगा कि तुम ऊँची क्षमताओं की इच्छा करो.

अब मैं तुम्हें सबसे उत्तम स्वभाव के विषय में बताना चाहूँगा.

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