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Read the Gospels in 40 Days

Read through the four Gospels--Matthew, Mark, Luke, and John--in 40 days.
Duration: 40 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
मत्तियाह 7-9

अन्यों पर दोष लगाने के विरुद्ध शिक्षा

(लूकॉ 6:37-42)

“किसी पर भी दोष न लगाओ, तो लोग तुम पर भी दोष नहीं लगाएंगे क्योंकि जैसे तुम किसी पर दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा तथा माप के लिए तुम जिस बर्तन का प्रयोग करते हो वही तुम्हारे लिए इस्तेमाल किया जाएगा. तुम भला अपने भाई की आँख के कण की ओर उंगली क्यों उठाते हो जबकि तुम स्वयं अपनी आँख में पड़े लट्ठे की ओर ध्यान नहीं देते? या तुम भला यह कैसे कह सकते हो ‘ज़रा ठहरो, मैं तुम्हारी आँख से वह कण निकाल देता हूँ,’ जबकि तुम्हारी अपनी आँख में तो लट्ठा पड़ा हुआ है? अरे पाखण्डी! पहले तो स्वयं अपनी आँख में से उस लट्ठे को तो निकाल! तभी तू स्पष्ट रूप से देख सकेगा और अपने भाई की आँख में से उस कण को निकाल सकेगा.

“वे वस्तुएं, जो पवित्र हैं, कुत्तों को न दो और न सूअरों के सामने अपने मोती फेंको, कहीं वे उन्हें अपने पैरों से रौन्दें, मुड़ कर तुम्हें फाड़ें और टुकड़े-टुकड़े कर दें.

प्रार्थना के लिए प्रोत्साहन

“विनती करो और वह पूरी की जाएगी, खोजो और तुम पाओगे, द्वार खटखटाओ और वह द्वार तुम्हारे लिए खोला जाएगा क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, उसकी विनती पूरी की जाती है, जो खोजता है, वह प्राप्त करता है और वह, जो द्वार खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.

“तुममें ऐसा कौन है कि जब उसका पुत्र उससे रोटी की माँग करता है तो उसे पत्थर देता है 10 या मछली की माँग करने पर साँप? 11 जब तुम पतित होने पर भी अपनी सन्तान को उत्तम वस्तुएं प्रदान करना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, कहीं अधिक बढ़कर वह प्रदान न करेंगे, जो उत्तम है?

12 “इसलिए हर एक परिस्थिति में लोगों से तुम्हारा व्यवहार ठीक वैसा ही हो जैसे व्यवहार की आशा तुम उनसे अपने लिए करते हो क्योंकि व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा भी यही है.

दो मार्ग

13 “सकेत द्वार में से प्रवेश करो क्योंकि विशाल है वह द्वार और चौड़ा है वह मार्ग, जो विनाश तक ले जाता है और अनेक हैं, जो इसमें से प्रवेश करते हैं 14 क्योंकि सकेत है वह द्वार तथा कठिन है वह मार्ग, जो जीवन तक ले जाता है और थोड़े ही हैं, जो इसे प्राप्त करते हैं.

फलदायी जीवन के विषय में शिक्षा

(लूकॉ 6:43-45)

15 “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के वेश में तुम्हारे बीच आ जाते हैं किन्तु वास्तव में वे भूखे भेड़िये होते हैं. 16 उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान जाओगे. न तो कँटीली झाड़ियों में से अंगूर और न ही भटकटैया से अंजीर इकट्ठे किए जाते हैं. 17 वस्तुतः हर एक उत्तम पेड़ उत्तम फल ही फलता है और बुरा पेड़ बुरा फल. 18 यह सम्भव ही नहीं कि उत्तम पेड़ बुरा फल दे और बुरा पेड़ उत्तम फल. 19 जो पेड़ उत्तम फल नहीं देता, उसे काट कर आग में झोंक दिया जाता है. 20 इसलिए उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान लोगे.

वास्तविक शिष्य

(लूकॉ 6:46-49)

21 “मुझे प्रभु, प्रभु सम्बोधित करता हुआ हर एक व्यक्ति स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं पाएगा परन्तु प्रवेश केवल वह पाएगा, जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है. 22 उस अवसर पर अनेक मुझसे प्रश्न करेंगे, ‘प्रभु, क्या हमने आपके नाम में भविष्यवाणी न की, क्या हमने आपके ही नाम में प्रेतों को न निकाला और क्या हमने आपके नाम में अनेक आश्चर्यकाम न किए?’ 23 मैं उनसे स्पष्ट कहूँगा, ‘मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं. दुष्टो! चले जाओ मेरे सामने से!’

24 “इसलिए हर एक की तुलना, जो मेरी इन शिक्षाओं को सुन कर उनका पालन करता है, उस बुद्धिमान व्यक्ति से की जा सकती है, जिसने अपने भवन का निर्माण चट्टान पर किया. 25 आँधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई और उस भवन पर थपेड़े पड़े, फिर भी वह भवन स्थिर खड़ा रहा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर थी. 26 इसके विपरीत हर एक जो, मेरी इन शिक्षाओं को सुनता तो है किन्तु उनका पालन नहीं करता, वह उस निर्बुद्धि के समान होगा जिसने अपने भवन का निर्माण रेत पर किया. 27 आँधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई, उस भवन पर थपेड़े पड़े और वह धराशायी हो गया—भयावह था उसका विनाश!”

28 जब येशु ने यह शिक्षाएं दीं, भीड़ आश्चर्यचकित रह गई 29 क्योंकि येशु की शिक्षा-शैली अधिकारपूर्ण थी, न कि शास्त्रियों के समान.

कोढ़ के रोगी की शुद्धि

(मारक 1:40-45; लूकॉ 5:12-16)

जब येशु पर्वत से उतर कर आए तब बड़ी भीड़ उनके पीछे-पीछे चलने लगी. एक कोढ़ के रोगी ने उनके सामने झुक कर उनसे विनती कर के कहा, “प्रभु, यदि आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं.”

येशु ने हाथ बढ़ा कर उसे स्पर्श करते हुए कहा, “मैं चाहता हूँ. शुद्ध हो जाओ.” वह उसी क्षण कोढ़ रोग से शुद्ध हो गया. येशु ने उसे आज्ञा दी, “यह ध्यान रहे कि तुम इसके विषय में किसी को न बताओ. अब जा कर याजक के सामने स्वयं को परीक्षण के लिए प्रस्तुत करो, और मोशेह द्वारा निर्धारित बलि भेंट करो कि तुम्हारा स्वास्थ्य-लाभ उनके सामने गवाही हो जाए.”

रोमी अधिकारी का विश्वास

(लूकॉ 7:1-10)

जब येशु ने कफ़रनहूम नगर में प्रवेश किया, तब एक सेनापति ने आ कर उनसे नम्रतापूर्वक निवेदन किया, “प्रभु, घर पर मेरा सेवक लकवा रोग से पीड़ित है और वह घोर पीड़ा में है.”

येशु ने उसे आश्वासन दिया, “मैं आ कर उसे चंगा करूँगा.”

किन्तु सेनापति ने कहा, “नहीं प्रभु, नहीं, मैं इस योग्य नहीं कि आप मेरे घर आएँ. आप केवल मुँह से कह दीजिए और मेरा सेवक स्वस्थ हो जाएगा. मैं स्वयं किसी के अधीन व्यक्ति हूँ और मेरे अधीन एक सैनिक टुकड़ी है. मैं एक को जाने की आज्ञा देता हूँ तो वह जाता है और दूसरे को आने की, वह आता है. मैं अपने दास को आज्ञा देता हूँ ‘यह करो’ और वह ऐसा ही करता है.”

10 यह सुन कर येशु आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने पीछे आ रही भीड़ से कहा, “यह एक सच है कि मैंने इस्राएल राष्ट्र में भी किसी में ऐसा विश्वास नहीं देखा. 11 मैं तुम्हें सूचित करना चाहता हूँ कि स्वर्ग-राज्य में अब्राहाम, इसहाक और याक़ोब के साथ भोज में शामिल होने के लिए पूर्व और पश्चिम दिशाओं से अनेकानेक आ कर संगति करेंगे 12 किन्तु राज्य के वारिस बाहर अन्धकार में फेंक दिए जाएँगे. वह स्थान ऐसा होगा जहाँ रोना और दाँत पीसना होता रहेगा.”

13 तब येशु ने सेनापति से कहा, “जाओ, तुम्हारे लिए वैसा ही होगा जैसा तुम्हारा विश्वास है.” उसी क्षण वह सेवक चंगा हो गया.

पेतरॉस की सास की चंगाई

(मारक 1:29-34; लूकॉ 4:38-41)

14 जब येशु पेतरॉस के घर पर आए, उन्होंने उनकी सास को बुखार से पीड़ित पाया. 15 उन्होंने उनके हाथ का स्पर्श किया और वह बुखार से मुक्त हो गईं और उठ कर उन सबकी सेवा करने में जुट गईं.

16 जब सन्ध्या हुई तब लोग प्रेतात्मा से पीड़ित लोगों को उनके पास लाने लगे और येशु अपने वचन मात्र से उन्हें प्रेत मुक्त करते गए, साथ ही रोगियों को स्वस्थ. 17 यह भविष्यद्वक्ता यशायाह द्वारा की गई इस भविष्यवाणी की पूर्ति थी:

“उन्होंने स्वयं हमारी दुर्बलताओं को
    अपने ऊपर ले लिया तथा हमारे रोगों को उठा लिया.”

प्रेरिताई की बुलाहट पर अनुसरण की कठिनाई

(लूकॉ 9:51-62)

18 अपने आसपास भीड़ को देख येशु ने शिष्यों को झील की दूसरी ओर जाने की आज्ञा दी. 19 उसी समय एक शास्त्री ने आ कर येशु से विनती की, “गुरुवर, आप जहाँ भी जाएँ, मैं आपके साथ चलूँगा.”

20 येशु ने उसके उत्तर में कहा, “लोमड़ियों के पास उनकी गुफाएं तथा पक्षियों के पास उनके बसेरे होते हैं किन्तु मनुष्य के पुत्र के पास तो सिर रखने तक का स्थान नहीं है!”

21 एक अन्य शिष्य ने उनसे विनती की, “प्रभु, मुझे अपने पिता का अन्तिम संस्कार तक परिचर्या करने की अनुमति दे दीजिए.”[a]

22 किन्तु येशु ने उससे कहा, “मृत अपने मरे हुओं का प्रबन्ध कर लेंगे,[b] तुम मेरे पीछे हो लो.”

बवण्डर का शमन

(मारक 4:35-41; लूकॉ 8:22-25)

23 जब उन्होंने नाव में प्रवेश किया उनके शिष्य भी उनके साथ हो लिए. 24 अचानक झील में ऐसा प्रचण्ड बवण्डर उठा कि लहरों ने नाव को ढ़ांक लिया किन्तु येशु इस समय सो रहे थे. 25 इस पर शिष्यों ने येशु के पास जा कर उन्हें जगाते हुए कहा, “प्रभु, हमारी रक्षा कीजिए, हम नाश हुए जा रहे हैं!”

26 येशु ने उनसे कहा, “क्यों डर रहे हो, अल्पविश्वासियो!” वह उठे और उन्होंने बवण्डर और झील को डाँटा और उसी क्षण ही पूरी शान्ति छा गई.

27 शिष्य हैरान रह गए और विचार करने लगे, “ये किस प्रकार के व्यक्ति हैं कि बवण्डर और झील तक इनकी आज्ञा का पालन करते हैं!”

प्रेतों को सूअरों के झुण्ड में भेजना

(मारक 5:1-20; लूकॉ 8:26-39)

28 झील पार कर वे गदारा नामक अंचल (प्रदेश) में आए. वहाँ क़ब्रों की गुफाओं से निकल कर दो प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति उनके सामने आ गए. वे दोनों इतने अधिक हिंसक थे कि कोई भी उस ओर से निकल नहीं पाता था. 29 येशु को देख वे दोनों चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे, “परमेश्वर-पुत्र, आपका हमसे क्या लेना-देना? क्या आप समय से पहले ही हमें दुःख देने आ पहुँचे हैं?”

30 वहाँ कुछ दूर सूअरों का एक झुण्ड चर रहा था. 31 प्रेत येशु से विनती करने लगे, “यदि आप हमें बाहर निकाल ही रहे हैं तो हमें इन सूअरों के झुण्ड में भेज दीजिए.”

32 येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “जाओ!” वे निकल कर सूअरों में प्रवेश कर गए और पूरा झुण्ड ढलान पर सरपट भागता हुआ झील में जा गिरा और डूब गया. 33 रखवाले भागे और नगर में जा कर घटना का सारा हाल कह सुनाया; साथ ही यह भी कि उन प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्तियों के साथ क्या-क्या हुआ. 34 सभी नागरिक नगर से निकल कर येशु के पास आने लगे. जब उन्होंने येशु को देखा तो उनसे विनती करने लगे कि वह उस क्षेत्र की सीमा से बाहर चले जाएँ.

लकवा पीड़ित को चंगाई

(मारक 2:1-12; लूकॉ 5:17-26)

इसलिए येशु नाव में सवार हो कर झील पार करके अपने ही नगर में आ गए.

कुछ लोग एक लकवा पीड़ित को बिछौने पर उनके पास लाए. उनका विश्वास देख येशु ने रोगी से कहा, “तुम्हारे लिए यह आनन्द का विषय है: तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं.”

कुछ शास्त्री आपस में कहने लगे, “परमेश्वर-निन्दा कर रहा है यह!”

उनके विचारों का अहसास होने पर येशु उन्हें सम्बोधित कर बोले, “क्यों अपने मनों में बुरा विचार कर रहे हो? कौन सा कथन सरल हो सकता है, ‘तुम्हारे पाप क्षमा हो गए’ या ‘उठो, चलने लगो?’ किन्तु इस का उद्देश्य यह है कि तुम्हें यह मालूम हो जाए कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप-क्षमा का अधिकार सौंपा गया है.” तब रोगी से येशु ने कहा, “उठो, अपना बिछौना उठाओ और अपने घर जाओ.” वह उठा और घर चला गया. यह देख भीड़ हैरान रह गई और परमेश्वर का गुणगान करने लगी, जिन्होंने मनुष्यों को इस प्रकार का अधिकार दिया है.

मत्तियाह का बुलाया जाना

(मारक 2:13-17; लूकॉ 5:27-32)

वहाँ से जाने के बाद येशु ने चुँगी लेने वाले के आसन पर बैठे हुए एक व्यक्ति को देखा, जिसका नाम मत्तियाह था. येशु ने उसे आज्ञा दी, “मेरे पीछे हो ले.” मत्तियाह उठ कर येशु के साथ हो लिए.

10 जब येशु भोजन के लिए बैठे थे, अनेक चुँगी लेने वाले तथा अपराधी व्यक्ति भी उनके साथ शामिल थे. 11 यह देख फ़रीसियों ने आपत्ति उठाते हुए येशु के शिष्यों से कहा, “तुम्हारे गुरु चुँगी लेने वाले और अपराधी व्यक्तियों के साथ भोजन क्यों करते हैं?”

12 यह सुन येशु ने स्पष्ट किया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं परन्तु रोगी व्यक्ति को होती है. 13 अब जाओ और इस कहावत का अर्थ समझो: मुझे बलि नहीं परन्तु दया चाहिए. क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने के लिए इस पृथ्वी पर आया हूँ.”

उपवास के प्रश्न का उत्तर

(मारक 2:18-22; लूकॉ 5:33-39)

14 बपतिस्मा देने वाले योहन के शिष्य येशु के पास आए और उनसे प्रश्न किया, “क्या कारण है कि फ़रीसी और हम तो उपवास करते हैं किन्तु आपके शिष्य नहीं?”

15 येशु ने उन्हें समझाया.

“क्या यह सम्भव है कि दुल्हे के होते हुए बाराती विलाप करें? हाँ, ऐसा समय आएगा जब दुल्हा उनसे अलग कर दिया जाएगा—तब वे उपवास करेंगे.

16 “पुराने वस्त्र में कोई भी नये कपड़े का जोड़ नहीं लगाता, नहीं तो कोरा वस्त्र-जोड़ सिकुड़ कर वस्त्र से अलग हो जाता है और वस्त्र और भी अधिक फट जाता है.

17 “वैसे ही लोग नए दाखरस को पुरानी मटकियों में नहीं रखते; अन्यथा वे फट जाती हैं और दाखरस तो बह कर नाश हो ही जाता है, साथ ही मटकियाँ भी. नया दाखरस नई मटकियों में ही रखा जाता है. परिणामस्वरूप दोनों ही सुरक्षित रहते हैं.”

लहूस्राव-पीड़ित स्त्री की चंगाई तथा मरी हुई बालिका का नया जीवन

(मारक 5:21-43; लूकॉ 8:40-56)

18 जब येशु उन लोगों से इन विषयों पर बातचीत कर रहे थे, यहूदी-सभागृह का एक अधिकारी उनके पास आया और उनके सामने झुक कर विनती करने लगा, “कुछ देर पहले ही मेरी पुत्री की मृत्यु हुई है. आप कृपया आकर उस पर हाथ रख दीजिए और वह जीवित हो जाएगी.” 19 येशु और उनके शिष्य उसके साथ चले गए.

20 मार्ग में बारह वर्ष से लहूस्राव-पीड़ित एक स्त्री ने पीछे से आ कर येशु के वस्त्र के छोर को छुआ 21 क्योंकि उसका यह विश्वास था, “यदि मैं उनके वस्त्र को छू भर लूँ, तो मैं रोगमुक्त हो जाऊँगी.”

22 येशु ने पीछे मुड़ कर उसे देखा और उससे कहा, “तुम्हारे लिए यह आनन्द का विषय है: तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ कर दिया.” उसी क्षण वह स्त्री स्वस्थ हो गई.

23 जब येशु यहूदी-सभागृह के अधिकारी के घर पर पहुँचे तो उन्होंने भीड़ का कोलाहल और शोक-संगीत सुना. 24 इसलिए उन्होंने आज्ञा दी, “यहाँ से चले जाओ क्योंकि बालिका की मृत्यु नहीं हुई है—वह सो रही है.” इस पर वे येशु का ठठ्ठा करने लगे 25 किन्तु जब भीड़ को बाहर निकाल दिया गया, येशु ने कक्ष में प्रवेश कर बालिका का हाथ पकड़ा और वह उठ बैठी. 26 यह समाचार सारे क्षेत्र में फैल गया.

अंधों को आँखों की रोशनी तथा गूंगों को आवाज़

27 जब येशु वहाँ से विदा हुए, दो अंधे व्यक्ति यह पुकारते हुए उनके पीछे चलने लगे, “दाविद-पुत्र, हम पर कृपा कीजिए!” 28 जब येशु ने घर में प्रवेश किया वे अंधे भी उनके पास पहुँच गए. येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या तुम्हें विश्वास है कि मुझ में यह करने की सामर्थ है?”

उन्होंने उत्तर दिया, “जी हाँ, प्रभु.”

29 तब येशु ने यह कहते हुए उनके नेत्रों का स्पर्श किया, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारी इच्छा पूरी हो,” 30 और उन्हें दृष्टि प्राप्त हो गई. येशु ने उन्हें कड़ी चेतावनी दी, “यह ध्यान रखना कि इसके विषय में किसी को मालूम न होने पाए!” 31 किन्तु उन्होंने जा कर सभी क्षेत्र में येशु के विषय में यह समाचार प्रसारित कर दिया.

32 जब वे सब वहाँ से बाहर निकल रहे थे, उनके सामने एक गूँगा व्यक्ति, जो प्रेतात्मा से पीड़ित था, लाया गया. 33 प्रेत के निकल जाने के बाद वह बातें करने लगा. यह देख भीड़ चकित रह गई और कहने लगी, “इससे पहले इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया.” 34 जबकि फ़रीसी कह रहे थे, “यह प्रेतों का निकालना प्रेतों के प्रधान की सहायता से करता है.”

भीड़ की वेदना

35 येशु नगर-नगर और गाँव-गाँव की यात्रा कर रहे थे. वह उनके यहूदी-सभागृहों में शिक्षा देते, स्वर्ग-राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते तथा हर एक प्रकार के रोग और दुर्बलताओं को स्वस्थ करते जा रहे थे. 36 भीड़ को देख येशु का हृदय करुणा से दुःखित हो उठा क्योंकि वे बिन चरवाहे की भेड़ों के समान व्याकुल और निराश थे. 37 इस पर येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “उपज तो बहुत है किन्तु मज़दूर कम, 38 इसलिए उपज के स्वामी से विनती करो कि इस उपज के लिए मज़दूर भेज दें.”

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