Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Read the Gospels in 40 Days

Read through the four Gospels--Matthew, Mark, Luke, and John--in 40 days.
Duration: 40 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 10-12

बहत्तर प्रचारकों का भेजा जाना

10 इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर व्यक्तियों को चुन कर उन्हें दो-दो कर के उन नगरों और स्थानों पर अपने आगे भेज दिया, जहाँ वह स्वयं जाने पर थे. मसीह येशु ने उनसे कहा, “फसल तो काफी है किन्तु मज़दूर कम. इसलिए फसल के स्वामी से खेत में मज़दूर भेजने की विनती करो. जाओ! मैं तुम्हें भेज रहा हूँ. तुम भेड़ियों के मध्य मेमनों के समान हो. अपने साथ न तो धन, न झोला और न ही जूतियाँ ले जाना. मार्ग में किसी का कुशल मंगल पूछने में भी समय खर्च न करना.

“जिस किसी घर में प्रवेश करो, तुम्हारे सबसे पहिले शब्द हों, ‘इस घर में शान्ति बनी रहे.’ यदि परिवार-प्रधान शान्तिप्रिय व्यक्ति है, तुम्हारी शान्ति उस पर बनी रहेगी. यदि वह ऐसा नहीं है तो तुम्हारी शान्ति तुम्हारे ही पास लौट आएगी. उसी घर के मेहमान बने रहना. भोजन और पीने के लिए जो कुछ तुम्हें परोसा जाए, उसे स्वीकार करना क्योंकि सेवक अपने वेतन का अधिकारी है. एक घर से निकल कर दूसरे घर में मेहमान न बनना.

“जब तुम किसी नगर में प्रवेश करो और वहाँ लोग तुम्हें सहर्ष स्वीकार करें, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाए, उसे खाओ. वहाँ जो बीमार हैं, उन्हें चँगा करना और उन्हें सूचित करना, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है.’ 10 किन्तु यदि तुम किसी नगर में प्रवेश करो और वहाँ नगरवासियों द्वारा स्वीकार न किए जाओ तो उस नगर की गलियों में जा कर यह घोषणा करो, 11 ‘तुम्हारे नगर की धूल तक, जो हमारे पाँवों में लगी है, उसे हम तुम्हारे सामने झाड़े दे रहे हैं; परन्तु यह जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है.’ 12 सच मानो, न्याय के दिन पर सोदोम नगर के लिए तय किया गया दण्ड उस नगर के लिए तय किए दण्ड की तुलना में सहने योग्य होगा.

13 “तुम पर धिक्कार है कोराज़ीन नगर! धिक्कार है तुम पर बैथसैदा नगर! यदि वे सामर्थ्य के काम, जो तुम में किए गए हैं, त्सोर और त्सीदोन नगरों में किए जाते तो वे कब के शोक के वस्त्र धारण कर, राख में बैठ पश्चाताप कर चुके होते. 14 किन्तु तुम दोनों नगरों की तुलना में त्सोर और त्सीदोन नगरों का दण्ड सहने योग्य होगा. 15 और तुम, कफ़रनहूम! क्या तुम आकाश तक ऊँचे किए जाओगे? बिलकुल नहीं! तुम तो पाताल में उतार दिए जाओगे.

16 “वह, जो तुम्हारी शिक्षा को सुनता है, मेरी शिक्षा को सुनता है; वह, जो तुम्हें अस्वीकार करता है, मुझे अस्वीकार करता है किन्तु वह, जो मुझे अस्वीकार करता है, उन्हें अस्वीकार करता है, जिन्होंने मुझे भेजा है.”

17 वे बहत्तर बहुत उत्साह से भरकर लौटे और कहने लगे, “प्रभु! आपके नाम में तो प्रेत भी हमारे सामने समर्पण कर देते हैं!”

18 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरते देख रहा था. 19 मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौन्दने तथा शत्रु के सभी सामर्थ्य का नाश करने का अधिकार दिया है इसलिए किसी भी रीति से तुम्हारी हानि न होगी. 20 फिर भी, तुम्हारे लिए आनन्द का विषय यह न हो कि प्रेत तुम्हारी आज्ञाओं का पालन करते हैं परन्तु यह कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे जा चुके हैं.”

येशु की प्रार्थना

21 मसीह येशु पवित्रात्मा के आनन्द से भरकर कहने लगे, “पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के स्वामी, मैं आपकी स्तुति करता हूँ कि आपने ये सभी सच बुद्धिमानों और ज्ञानियों से छुपा रखे और नन्हे बालकों पर प्रकट कर दिए क्योंकि पिता, आपकी दृष्टि में यही अच्छा था.

22 “सब कुछ मुझे मेरे पिता द्वारा सौंपा गया है. कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है अतिरिक्त पिता के और कोई नहीं जानता कि पिता कौन हैं अतिरिक्त पुत्र के तथा उनके, जिन पर पुत्र ने उन्हें—पिता को—प्रकट करना सही समझा.”

23 तब मसीह येशु ने अपने शिष्यों की ओर उन्मुख हो उनसे व्यक्तिगत रूप से कहा, “धन्य हैं वे आँख, जो वह देख रही हैं, जो तुम देख रहे हो 24 क्योंकि सच मानो, अनेक भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने यही देखने की कामना की थी, जो तुम देख रहे हो किन्तु वे इससे वंचित रहे और वे वह सब सुनने की इच्छा करते रहे, जो तुम सुन रहे हो किन्तु न सुन सके.”

सर्वोपरि आज्ञा

25 एक अवसर पर एक वकील ने मसीह येशु को परखने के उद्देश्य से उनके सामने यह प्रश्न रखा: “गुरुवर, अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मैं क्या करूँ?”

26 मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “व्यवस्था में क्या लिखा है, इसके विषय में तुम्हारा विश्लेषण क्या है?”

27 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “‘प्रभु, अपने परमेश्वर से अपने सारे हृदय, अपने सारे प्राण, अपनी सारी शक्ति तथा अपनी सारी समझ से प्रेम करो तथा अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम’.”

28 मसीह येशु ने उससे कहा, “तुम्हारा उत्तर बिलकुल सही है. यही करने से तुम जीवित रहोगे.”

29 स्वयं को संगत प्रमाणित करने के उद्देश्य से उसने मसीह येशु से प्रश्न किया, “तो यह बताइए कौन है मेरा पड़ोसी?”

30 मसीह येशु ने उत्तर दिया. “येरूशालेम नगर से एक व्यक्ति येरीख़ो नगर जा रहा था कि डाकुओं ने उसे घेर लिया, उसके वस्त्र छीन लिए, उसकी पिटाई की और उसे अधमरी हालत में छोड़ कर भाग गए. 31 संयोग से एक याजक उसी मार्ग से जा रहा था. जब उसने उस व्यक्ति को देखा, वह मार्ग के दूसरी ओर से आगे बढ़ गया. 32 इसी प्रकार एक लेवी भी उसी स्थान पर आया, उसकी दृष्टि उस पर पड़ी तो वह भी दूसरी ओर से होता हुआ चला गया. 33 एक शोमरोनी भी उसी मार्ग से यात्रा करते हुए उस जगह पर आ पहुँचा. जब उसकी दृष्टि उस घायल व्यक्ति पर पड़ी, वह दया से भर गया. 34 वह उसके पास गया और उसके घावों पर तेल और दाखरस लगा कर पट्टी बांधी. तब वह घायल व्यक्ति को अपने वाहक पशु पर बैठा कर एक यात्री निवास में ले गया तथा उसकी सेवा टहल की. 35 अगले दिन उसने दो दीनार यात्री निवास के स्वामी को देते हुए कहा, ‘इस व्यक्ति की सेवा टहल कीजिए. इसके अतिरिक्त जो भी व्यय होगा वह मैं लौटने पर चुका दूँगा.’

36 “यह बताओ तुम्हारे विचार से इन तीनों व्यक्तियों में से कौन उन डाकुओं द्वारा घायल व्यक्ति का पड़ोसी है?”

37 वकील ने उत्तर दिया, “वही, जिसने उसके प्रति करुणाभाव का परिचय दिया.” मसीह येशु ने उससे कहा, “जाओ, तुम्हारा स्वभाव भी ऐसा ही हो.”

मार्था और मरियम के घर में मसीह येशु

38 मसीह येशु और उनके शिष्य यात्रा करते हुए एक गाँव में पहुँचे, जहाँ मार्था नामक एक स्त्री ने उन्हें अपने घर में आमन्त्रित किया. 39 उसकी एक बहन थी, जिसका नाम मरियम था. वह प्रभु के चरणों में बैठ कर उनके प्रवचन सुनने लगी 40 किन्तु मार्था विभिन्न तैयारियों में उलझी रही. वह मसीह येशु के पास आई और उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, क्या आपको इसका लेशमात्र भी ध्यान नहीं कि मेरी बहन ने अतिथि-सत्कार का सारा बोझ मुझ अकेली पर ही छोड़ दिया है? आप उससे कहें कि वह मेरी सहायता करे.”

41 “मार्था, मार्था,” प्रभु ने कहा, “तुम अनेक विषयों की चिन्ता करती और घबरा जाती हो 42 किन्तु ज़रूरत तो कुछ ही की है—वास्तव में एक ही की. मरियम ने उसी उत्तम भाग को चुना है, जो उससे कभी अलग न किया जाएगा.”

प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का उदाहरण

(मत्ति 6:9-13)

11 एक दिन मसीह येशु एक स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे. जब उन्होंने प्रार्थना समाप्त की उनके शिष्यों में से एक ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमको प्रार्थना करना सिखा दीजिए—ठीक जैसे योहन ने अपने शिष्यों को सिखाया है.”

मसीह येशु ने उनसे कहा, “जब भी तुम प्रार्थना करो, इस प्रकार किया करो:

“‘हमारे स्वर्गीय पिता!
आपका नाम सभी जगह सम्मानित हो.
आपका राज्य हर जगह स्थापित हो.
हमारा रोज़ का भोजन हमें हर दिन दिया कीजिए.
हमारे पापों को क्षमा कीजिए.
    हम भी उनके पाप क्षमा करते हैं, जो हमारे विरुद्ध पाप करते हैं.
हमें परीक्षा में फँसने से बचाइए.’”

“कल्पना करो,” मसीह येशु ने उनसे आगे कहा, “तुममें से किसी का एक मित्र आधी रात में आ कर यह विनती करे, ‘मित्र! मुझे तीन रोटियां दे दो; क्योंकि मेरा एक मित्र यात्रा करते हुए घर आया है और उसके भोजन के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.’ तब वह अंदर ही से उत्तर दे, ‘मुझे मत सताओ! द्वार बन्द हो चुका है और मेरे बालक मेरे साथ सो रहे हैं. अब मैं उठ कर तुम्हें कुछ नहीं दे सकता.’ मैं जो कह रहा हूँ उसे समझो: हालांकि वह व्यक्ति मित्र होने पर भी भले ही उसे देना न चाहे, फिर भी उस मित्र के बहुत विनती करने पर उसकी ज़रूरत के अनुसार उसे अवश्य देगा.

“यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है: विनती करो, तो तुम्हें दिया जाएगा; खोजो, तो तुम पाओगे; द्वार खटखटाओ, तो वह तुम्हारे लिए खोल दिया जाएगा 10 क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, प्राप्त करता है; हर एक, जो खोजता है, पाता है तथा हर एक, जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.

11 “तुममें कौन पिता ऐसा है, जो अपने पुत्र के मछली माँगने पर उसे साँप दे 12 या अण्डे की विनती पर बिच्छू? 13 जब तुम बुरे होते हुए भी अपने बालकों को सबसे अच्छी वस्तुएं देना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता कहीं अधिक बढ़कर उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, पवित्रात्मा क्यों न देंगे!”

मसीह येशु पर शैतान का दूत होने का आरोप

(मत्ति 12:22-37; मारक 3:20-30)

14 मसीह येशु एक व्यक्ति में से, जो गूँगा था, एक प्रेत को निकाल रहे थे. प्रेत के निकलते ही वह, जो गूँगा था, बोलने लगा. यह देख भीड़ अचम्भित रह गई. 15 किन्तु उनमें से कुछ ने कहा, “वह तो प्रेतों के प्रधान शैतान की सहायता से प्रेत निकालता है.” 16 कुछ अन्य ने मसीह येशु को परखने के उद्देश्य से उनसे अद्भुत चिह्न की माँग की.

17 उनके मन की बातें जानकर मसीह येशु ने उनसे कहा, “कोई भी राज्य, जिसमें फूट पड़ चुकी है, नाश हो जाता है और जिस परिवार में फूट पड़ चुकी हो, उसका नाश हो जाता है. 18 यदि शैतान अपने ही विरुद्ध काम करने लगे तो उसका राज्य स्थिर कैसे रह सकता है? मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ कि तुम यह दावा कर रहे हो कि मैं प्रेतों को शैतान की सहायता से निकाला करता हूँ. 19 अच्छा, यदि मैं प्रेतों को शैतान की सहायता से निकाला करता हूँ, तब तुम्हारे शिष्य उन्हें किसकी सहायता से निकाला करते हैं? परिणामस्वरूप तुम्हारे ही शिष्य तुम पर आरोप लगाएँगे. 20 किन्तु यदि मैं प्रेतों को परमेश्वर के सामर्थ्य के द्वारा निकालता हूँ, तब परमेश्वर का राज्य तुम्हारे मध्य आ चुका है.

21 “जब कोई बलवान व्यक्ति शस्त्रों से पूरी तरह से सुसज्जित हो कर अपने घर की चौकसी करता है, तो उसकी सम्पत्ति सुरक्षित रहती है 22 किन्तु जब उससे अधिक बलवान कोई व्यक्ति उस पर आक्रमण कर उसे अपने वश में कर लेता है और वे सभी शस्त्र, जिन पर वह भरोसा करता था, छीन लेता है, तो वह उसकी सम्पत्ति को लूट कर बांट देता है.

23 “वह, जो मेरे पक्ष में नहीं है मेरे विरुद्ध है और वह, जो मेरे साथ इकट्ठा नहीं करता, वह बिखेरता है.

24 “जब प्रेत किसी व्यक्ति में से बाहर निकलता है, वह सूखे स्थानों में विश्राम की खोज में भटकता रहता है और न मिलने पर वह विचार करता है, ‘मैं उसी घर में लौट जाऊँगा, जिसमें से मैं निकला था.’ 25 वहाँ पहुँच कर वह उस घर को साफ़ और सजा हुआ पाता है. 26 वह जा कर अपने से अधिक दुष्ट सात अन्य प्रेत ले आता है. वे सभी उस मनुष्य में प्रवेश कर उसमें निवास करने लगते हैं. उस व्यक्ति की यह दशा पहली दशा से अधिक बुरी हो जाती है.”

27 जब मसीह येशु यह शिक्षा दे रहे थे, भीड़ में से एक नारी पुकार उठी, “धन्य है वह माता, जिसने आपको जन्म दिया और आपका पालन-पोषण किया.”

28 किन्तु मसीह येशु ने कहा, “परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर के वचन को सुन कर उसका पालन करते हैं.”

अविश्वास के प्रति चेतावनी

29 जब और अधिक लोग इकट्ठा होने लगे, मसीह येशु ने कहा, “यह पीढ़ी अत्यन्त बुरी पीढ़ी है. यह चमत्कार चिह्नों की माँग करती है किन्तु भविष्यद्वक्ता योना के चिह्न के अतिरिक्त इसे और कोई चिह्न नहीं दिया जाएगा. 30 जिस प्रकार परमेश्वर की ओर से भविष्यद्वक्ता योना नीनवे नगरवासियों के लिए एक चिह्न थे, उसी प्रकार मनुष्य का पुत्र इस पीढ़ी के लिए एक चिह्न है. 31 न्याय के दिन पर इस समय की पीढ़ी के साथ दक्षिण की रानी भी होगी, जो इस पीढ़ी की निन्दा करेगी क्योंकि वह पृथ्वी के सीमान्त से राजा शलोमोन के ज्ञान के वचन सुनने आई थी; और आज, जो यहाँ है, वह शलोमोन से भी बढ़कर है. 32 नीनवे नगरवासी न्याय के दिन पर इस पीढ़ी के साथ इकट्ठा होंगे तथा वे इस पीढ़ी की निन्दा करेंगे क्योंकि उन्होंने तो योना का प्रचार सुन कर पश्चाताप किया था, किन्तु आज जो यहाँ है, वह भविष्यद्वक्ता योना से भी बढ़कर है.

भीतरी ज्योति के विषय में शिक्षा

33 “दीप जला कर कोई भी उसे न तो ऐसे स्थान पर रखता है, जहाँ वह छुप जाए और न ही किसी बर्तन के नीचे; परन्तु वह उसे उसके नियत स्थान पर रखता है, कि जो प्रवेश करते हैं, देख सकें. 34 तुम्हारे शरीर का दीपक तुम्हारी आँख हैं. यदि तुम्हारी आँख निरोगी हैं, तुम्हारा सारा शरीर उजियाला होगा किन्तु यदि तुम्हारी आँखें रोगी हैं, तो तुम्हारा शरीर भी अंधियारा होगा. 35 ध्यान रहे कि तुम्हारे भीतर छिपा हुआ उजाला अन्धकार न हो. 36 इसलिए यदि तुम्हारा सारा शरीर उजियाला है, उसमें ज़रा सा भी अन्धकार नहीं है, तब वह सब जगह उजाला देगा—जैसे एक दीप अपने उजाले से तुम्हें उजियाला करता है.”

यहूदी अगुवों के पाखण्ड की उल्लाहना

37 जब मसीह येशु अपना प्रवचन समाप्त कर चुके, एक फ़रीसी ने उन्हें भोजन के लिए आमन्त्रित किया. मसीह येशु उसके साथ गए तथा भोजन के लिए बैठ गए. 38 उस फ़रीसी को यह देख आश्चर्य हुआ कि भोजन के पूर्व मसीह येशु ने हाथ नहीं धोए.

39 प्रभु मसीह येशु ने इस पर उससे कहा, “तुम फ़रीसी प्याले और थाली को बाहर से तो साफ़ करते हो किन्तु तुम्हारे हृदय लोभ और दुष्टता से भरे हुए हैं. 40 निर्बुद्धियों! जिसने बाहरी भाग बनाया है, क्या उसी ने अन्दरूनी भाग नहीं बनाया? 41 तुम में जो अन्दर बसा हुआ है, उसे दान में दे दो, तब तुम और तुम्हारे संस्कार शुद्ध हो पाएँगे.

42 “धिक्कार है तुम पर, फ़रीसियो! तुम परमेश्वर को अपने पुदीना, ब्राम्ही तथा अन्य हर एक साग पात का दसवां अंश तो देते हो किन्तु मनुष्यों के प्रति न्याय और परमेश्वर के प्रति प्रेम की उपेक्षा करते हो. ये ही वे चीज़ें हैं, जिनको पूरा करना आवश्यक है—अन्यों की उपेक्षा किए बिना.

43 “धिक्कार है तुम पर, फ़रीसियो! तुम्हें सभागृहों में प्रधान आसन तथा नगर चौक में लोगों द्वारा सम्मान भरा नमस्कार पसन्द है.

44 “धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम उन छिपी हुई क़ब्रों के समान हो जिन पर लोग अनजाने ही चलते-फिरते हैं.”

45 एक वकील ने मसीह येशु से कहा, “गुरुवर! ऐसा कह कर आप हमारा भी अपमान कर रहे हैं.”

46 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “धिक्कार है तुम पर भी, वकीलों! क्योंकि तुम लोगों पर नियमों का ऐसा बोझ लाद देते हो, जिसको उठाना कठिन होता है, जबकि तुम स्वयं उनकी सहायता के लिए अपनी उँगली से छूते तक नहीं.

47 “धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम भविष्यद्वक्ताओं के लिए स्मारक बनाते हो, जबकि तुम्हारे अपने पूर्वजों ने ही उन भविष्यद्वक्ताओं की हत्या की थी. 48 इस प्रकार तुम अपने पूर्वजों के कुकर्मों के गवाह हो और इसका पूरी तरह समर्थन करते हो—क्योंकि ये ही थे, जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं की हत्या की थी और अब तुम उन्हीं के स्मारक बनाते हो. 49 इसीलिए परमेश्वर की बुद्धि का भी यह कहना है: ‘मैं उनके पास भविष्यद्वक्ता और प्रेरित भेजूँगा. वे उनमें से कुछ की हत्या कर देंगे तथा कुछ को उत्पीड़ित करेंगे 50 कि सृष्टि की स्थापना से ले कर आज तक सारे भविष्यद्वक्ताओं के लहू बहने का हिसाब इसी पीढ़ी से लिया जाए; 51 हाबिल से ले कर ज़कर्याह तक, जिनकी हत्या वेदी तथा मन्दिर के मध्य की गई थी. हाँ, मेरा विश्वास करो: इसका हिसाब इसी पीढ़ी से लिया जाएगा.’”

52 “धिक्कार है तुम पर, वकीलों! तुमने ज्ञान की कुंजी तो ले ली हैं, किन्तु तुमने ही इसमें प्रवेश नहीं किया, और जो इसमें प्रवेश कर रहे थे, उनका भी मार्ग बंद कर दिया है.”

53 मसीह येशु के वहाँ से निकलने पर शास्त्री और फ़रीसी, जो उनके कट्टर विरोधी हो गए थे, उनसे अनेक विषयों पर कठिन प्रश्न करने लगे. 54 वे इस घात में थे कि वे मसीह येशु को उनके ही किसी कथन द्वारा फँसा लें.

मसीह येशु का स्पष्ट तथा निडर प्रवचन

12 इसी समय वहाँ हज़ारों लोगों का इतना विशाल समूह इकट्ठा हो गया कि वे एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे. मसीह येशु ने सबसे पहिले अपने शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, “फ़रीसियों के ख़मीर अर्थात् ढ़ोंग से सावधान रहो. ऐसा कुछ भी ढ़का नहीं, जिसे खोला न जाएगा या ऐसा कोई रहस्य नहीं, जिसे प्रकट न किया जाएगा. वे शब्द, जो तुमने अन्धकार में कहे हैं, प्रकाश में सुने जाएँगे, जो कुछ तुमने भीतरी कमरे में कानों में कहा है, वह छत से प्रचार किया जाएगा.

“मेरे मित्रों, मेरी सुनो: उनसे भयभीत न हो, जो शरीर का तो नाश कर सकते हैं किन्तु इसके बाद इससे अधिक और कुछ नहीं पर मैं तुम्हें समझाता हूँ कि तुम्हारा किससे डरना सही है: उन्हीं से, जिन्हें शरीर का नाश करने के बाद नर्क में झोंकने का अधिकार है. सच मानो, तुम्हारा उन्हीं से डरना उचित है. क्या दो अस्सारिओन में पाँच गौरैयाँ नहीं बेची जातीं? फिर भी परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलते. सच तो यह है कि तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है. मत डरो! तुम्हारा दाम अनेक गौरैयों से कहीं अधिक बढ़कर है.

“मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करता है, मनुष्य का पुत्र उसे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने स्वीकार करेगा, किन्तु जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करता है, उसका परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने इनकार किया जाएगा. 10 यदि कोई मनुष्य के पुत्र के विरुद्ध एक भी शब्द कहता है, उसे तो क्षमा कर दिया जाएगा किन्तु पवित्रात्मा की निन्दा बिलकुल क्षमा न की जाएगी.

11 “जब तुम उनके द्वारा सभागृहों, शासकों और अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किए जाओ तो इस विषय में कोई चिन्ता न करना कि अपने बचाव में तुम्हें क्या उत्तर देना है या क्या कहना है 12 क्योंकि पवित्रात्मा ही तुम पर प्रकट करेंगे कि उस समय तुम्हारा क्या कहना सही होगा.”

सम्पत्ति के इकट्ठा करने पर विचार

13 उपस्थित भीड़ में से किसी ने मसीह येशु से कहा, “गुरुवर, मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे साथ पिता की सम्पत्ति का बँटवारा कर ले.”

14 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “भलेमानुस! किसने मुझे तुम्हारे लिए न्यायकर्ता या मध्यस्थ ठहराया है?” 15 तब मसीह येशु ने भीड़ को देखते हुए उन्हें चेतावनी दी, “स्वयं को हर एक प्रकार के लालच से बचाए रखो. मनुष्य का जीवन उसकी सम्पत्ति की बहुतायत होने पर भला नहीं है.”

16 तब मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “किसी व्यक्ति की भूमि से अच्छी फसल उत्पन्न हुई. 17 उसने मन में विचार किया, ‘अब मैं क्या करूँ? फसल रखने के लिए तो मेरे पास स्थान ही नहीं है.’

18 “तब उसने विचार किया, ‘मैं ऐसा करता हूँ: मैं इन बखारियों को तोड़ कर बड़े भण्डार निर्मित करूँगा. तब मेरी सारी उपज तथा वस्तुओं का रख रखाव हो सकेगा. 19 तब मैं स्वयं से कहूँगा, “अनेक वर्षों के लिए अब तेरे लिए उत्तम वस्तुएं इकट्ठा हैं. विश्राम कर! खा, पी और आनन्द कर!.”’

20 “किन्तु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘अरे मूर्ख! आज ही रात तेरे प्राण तुझ से ले लिए जाएँगे; तब ये सब, जो तूने अपने लिए इकट्ठा कर रखा है, किसका होगा?’

21 “यही है उस व्यक्ति की स्थिति, जो मात्र अपने लिए इस प्रकार इकट्ठा करता है किन्तु जो परमेश्वर की दृष्टि में धनवान नहीं है.”

चिन्ता के विरुद्ध चेतावनी

22 इसके बाद अपने शिष्यों से उन्मुख हो मसीह येशु ने कहा, “यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है, अपने जीवन के विषय में यह चिन्ता न करो कि हम क्या खाएँगे या अपने शरीर के विषय में कि हम क्या पहनेंगे. 23 जीवन भोजन से तथा शरीर वस्त्रों से बढ़कर है. 24 कौवों पर विचार करो: वे न तो बोते हैं और न काटते हैं. उनके न तो खलिहान होते हैं और न भण्ड़ार; फिर भी परमेश्वर उन्हें भोजन प्रदान करते हैं. तुम्हारा दाम पक्षियों से कहीं अधिक बढ़कर है! 25 तुममें से कौन है, जो चिन्ता के द्वारा अपनी आयु में एक पल भी बढ़ा पाया है? 26 जब तुम यह छोटा-सा काम ही नहीं कर सकते तो भला अन्य विषयों के लिए चिन्तित क्यों रहते हो?

27 “जंगली फूलों को देखो! वे न तो कताई करते हैं और न बुनाई; परन्तु मैं कहता हूँ कि राजा शलोमोन तक अपने सारे ऐश्वर्य में इनमें से एक के तुल्य भी सजे न थे. 28 यदि परमेश्वर भूमि की घास को, जो आज तो है किन्तु कल आग में झोंक दी जाएगी, इस रीति से सजाते हैं तो अल्पविश्वासियो! वह तुम्हें और कितना अधिक सुशोभित न करेंगे! 29 इस उधेड़-बुन में लगे न रहो कि तुम क्या खाओगे या क्या पिओगे और न ही इसकी कोई चिन्ता करो. 30 विश्व के सभी राष्ट्र इसी कार्य में लगे हैं. तुम्हारे पिता को पहले ही यह मालूम है कि तुम्हें इन वस्तुओं की ज़रूरत है. 31 इनकी जगह परमेश्वर के राज्य की खोज करो और ये सभी वस्तुएं तुम्हारी हो जाएँगी.

32 “तुम, जो संख्या में कम हो, भयभीत न होना क्योंकि तुम्हारे पिता तुम्हें राज्य दे कर संतुष्ट हुए हैं.

33 “अपनी सम्पत्ति बेच कर प्राप्त धनराशि निर्धनों में बांट दो. अपने लिए ऐसा धन इकट्ठा करो, जो नष्ट नहीं किया जा सकता है—स्वर्ग में इकट्ठा किया धन; जहाँ न तो किसी चोर की पहुँच है और न ही विनाश करने वाले कीड़ों की. 34 तुम्हारा मन वहीं लगा होगा, जहाँ तुम्हारा धन है.”

मसीह येशु के दोबारा आगमन की अनपेक्षितता

35 “हमेशा तैयार रहो तथा अपने दीप जलाए रखो, 36 उन सेवकों के समान, जो अपने स्वामी की प्रतीक्षा में हैं कि वह जब विवाह उत्सव से लौट कर आए और द्वार खटखटाए तो वे तुरन्त उसके लिए द्वार खोल दें. 37 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी लौटने पर जागते पाएगा. सच तो यह है कि स्वामी ही सेवक के वस्त्र धारण कर उन्हें भोजन के लिए बैठाएगा तथा स्वयं उन्हें भोजन परोसेगा. 38 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे प्रहर में भी आ कर जागते पाए. 39 किन्तु तुम यह जान लो: यदि घर के स्वामी को यह मालूम हो कि चोर किस समय आएगा तो वह उसे अपने घर में घुसने ही न दे. 40 इसलिए तुम भी हमेशा तैयार रहो क्योंकि मनुष्य के पुत्र का आगमन ऐसे समय पर होगा जब तुमने उसके आगमन की आशा भी न की होगी.”

41 पेतरॉस ने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, आपका यह दृष्टान्त मात्र हमारे लिए ही है या भीड़ के लिए भी?”

42 प्रभु ने उत्तर दिया, “वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भण्ड़ारी कौन होगा जिसे स्वामी सभी सेवकों का प्रधान ठहराए कि वह अन्य सेवकों को निर्धारित समय पर भोज्य सामग्री दे दे. 43 धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी लौटने पर यही करता हुआ पाए. 44 सच तो यह है कि स्वामी उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी ठहराएगा. 45 किन्तु यदि वह दास अपने मन में कहने लगे, ‘अभी तो मेरे स्वामी के लौटने में बहुत समय है’ और वह अन्य दास-दासियों की पिटाई करने लगे और खा-पी कर नशे में चूर हो जाए. 46 उसका स्वामी एक ऐसे दिन लौटेगा, जिसकी उसने कल्पना ही न की थी और एक ऐसे क्षण में, जिसके विषय में उसे मालूम ही न था तो स्वामी उसे मृत्युदण्ड दे कर उसकी गिनती अविश्वासियों में कर देगा.

47 “वह दास, जिसे अपने स्वामी की इच्छा का पूरा पता था किन्तु वह न तो इसके लिए तैयार था और न उसने उसकी इच्छा के अनुसार व्यवहार ही किया, कठोर दण्ड पाएगा. 48 किन्तु वह, जिसे इसका पता ही न था और उसने दण्ड पाने योग्य अपराध किए, कम दण्ड पाएगा. हर एक से, जिसे बहुत ज़्यादा दिया गया है उससे बहुत ज़्यादा मात्रा में ही लिया जाएगा तथा जिसे अधिक मात्रा में सौंपा गया है, उससे अधिक का ही हिसाब लिया जाएगा.

49 “मैं पृथ्वी पर आग बरसाने के लक्ष्य से आया हूँ और कैसा उत्तम होता यदि यह इसी समय हो जाता! 50 किन्तु मेरे लिए बपतिस्मा की प्रक्रिया निर्धारित है और जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, कैसी दुःखदायी है इसकी पीड़ा!”

आने वाली फूट की भविष्यवाणी

51 “क्या विचार है तुम्हारा—क्या मैं पृथ्वी पर शान्ति की स्थापना का लक्ष्य ले कर आया हूँ? नहीं! शान्ति नहीं परन्तु फूट का. 52 अब से पाँच सदस्यों के परिवार में फूट पड़ जाएगी तीन के विरुद्ध दो और दो के विरुद्ध तीन. 53 वे सब एक-दूसरे के विरुद्ध होंगे—पिता पुत्र के और पुत्र पिता के; माता पुत्री के और पुत्री माता के; सास पुत्रवधू के और पुत्रवधू सास के.”

निकट आते संकट की भविष्यवाणी

54 भीड़ को सम्बोधित करते हुए मसीह येशु ने कहा, “जब तुम पश्चिम दिशा में बादल उठते देखते हो तो तुम तुरन्त कहते हो, ‘बारिश होगी’ और बारिश होती है. 55 जब पवन दक्षिण दिशा से बहता है तुम कहते हो, ‘अब गर्मी पड़ेगी,’ और ऐसा ही हुआ करता है. 56 पाखण्डियो! तुम धरती और आकाश की ओर देख कर तो भेद कर लेते हो किन्तु इस युग का भेद क्यों नहीं कर सकते?

57 “तुम स्वयं अपने लिए सही गलत का फैसला क्यों नहीं कर लेते? 58 जब तुम अपने शत्रु के साथ न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत होने जा रहे हो, पूरा प्रयास करो कि मार्ग में ही तुम दोनों में मेल हो जाए अन्यथा वह तो तुम्हें घसीट कर न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत कर देगा, न्यायाधीश तुम्हें अधिकारी के हाथ सौंप देगा और अधिकारी तुम्हें जेल में डाल देगा. 59 मैं तुमसे कहता हूँ कि जेल से बाहर आने के कार्य में तुम कंगाल हो जाओगे.”

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.