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Read the Gospels in 40 Days

Read through the four Gospels--Matthew, Mark, Luke, and John--in 40 days.
Duration: 40 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
योहन 11-12

लाज़रॉस की मृत्यु

11 लाज़रॉस नामक व्यक्ति बीमार था, जो मरियम तथा उसकी बहन मार्था के गाँव बैथनियाह का निवासी था. यह वही मरियम थी, जिसने कीमती और शुद्ध सुगन्ध-द्रव्य से मसीह येशु के चरणों को मलकर उन्हें अपने केशों से पोंछा था, उसी का भाई लाज़रॉस अस्वस्थ था. इसलिए बहनों ने मसीह येशु को सन्देश भेजा, “प्रभु, आपका प्रिय, लाज़रॉस बीमार है.”

यह सुन कर मसीह येशु ने कहा, “यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा का साधन बनेगी, जिससे परमेश्वर का पुत्र महिमित हो.” मार्था, मरियम और लाज़रॉस मसीह येशु के प्रियजन थे. उसकी बीमारी के विषय में मालूम होने पर भी मसीह येशु वहीं दो दिन और ठहरे रहे, जहाँ वह थे.

इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “चलो, हम दोबारा यहूदिया चलें.”

शिष्यों ने उनसे प्रश्न किया, “रब्बी, अभी तो यहूदी पथराव द्वारा आपकी हत्या करना चाह रहे थे, फिर भी आप वहाँ जाना चाहते हैं?”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “क्या दिन में प्रकाश के बारह घण्टे नहीं होते? यदि कोई दिन में चले तो वह ठोकर नहीं खाता क्योंकि वह संसार की ज्योति को देखता है. 10 किन्तु यदि कोई रात में चले तो ठोकर खाता है क्योंकि उसमें ज्योति नहीं.”

11 इसके बाद मसीह येशु ने उनसे कहा, “हमारा मित्र लाज़रॉस सो गया है. मैं जा रहा हूँ कि उसे नींद से जगाऊँ.”

12 तब शिष्यों ने उनसे कहा, “प्रभु, यदि वह मात्र सो गया है तो स्वस्थ हो जाएगा.” 13 मसीह येशु ने तो उसकी मृत्यु के विषय में कहा था किन्तु शिष्य समझे कि वह नींद के विषय में कह रहे थे.

14 इस पर मसीह येशु ने उनसे स्पष्ट शब्दों में कहा, “लाज़रॉस की मृत्यु हो चुकी है. 15 यह तुम्हारे ही हित में है कि मैं वहाँ नहीं था—कि तुम विश्वास करो. आओ, अब हम उसके पास चलें.”

16 तब थोमॉस ने, जिनका उपनाम दिदुमॉस था, अपने साथी शिष्यों से कहा, “आओ, इनके साथ हम भी मरने चलें.”

मार्था और मरियम को धीरज

17 वहाँ पहुँच कर मसीह येशु को मालूम हुआ कि लाज़रॉस को कन्दरा-क़ब्र में रखे हुए चार दिन हो चुके है. 18 बैथनियाह नगर येरूशालेम के पास, लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर था. 19 अनेक यहूदी मार्था और मरियम के पास उनके भाई की मृत्यु पर शान्ति देने आ गए थे. 20 जैसे ही मार्था को मसीह येशु के नगर के पास होने की सूचना मिली, वह उनसे मिलने चली गई किन्तु मरियम घर में ही रही.

21 मार्था ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, यदि आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु न होती. 22 फिर भी मैं जानती हूँ कि अब भी आप परमेश्वर से जो कुछ माँगेंगे, वह आपको देंगे.”

23 मसीह येशु ने उससे कहा, “तुम्हारा भाई फिर से जीवित हो जाएगा.” 24 मार्था ने मसीह येशु से कहा, “मैं जानती हूँ. अन्तिम दिन पुनरुत्थान के समय वह फिर से जीवित हो जाएगा.”

मसीह येशु—पुनरुत्थान और जीवन

25 मसीह येशु ने उससे कहा, “मैं ही वह पुनरुत्थान और वह जीवन हूँ. जो कोई मुझ में विश्वास करता है, वह जिएगा—भले ही उसकी मृत्यु हो जाए 26 तथा वह जीवित व्यक्ति, जो मुझ में विश्वास करता है, उसकी मृत्यु कभी न होगी. क्या तुम यह विश्वास करती हो?”

27 उसने कहा, “जी हाँ, प्रभु, मुझे विश्वास है कि आप ही मसीह हैं, आप ही परमेश्वर-पुत्र हैं और आप ही वह हैं, जिनके संसार में आने के बारे में पहले से बताया गया था.”

28 यह कह कर वह लौट गई और अपनी बहन मरियम को अलग ले जा कर उसे सूचित किया, “गुरुवर आ गए हैं और तुम्हें बुला रहे हैं.” 29 यह सुन कर मरियम तत्काल मसीह येशु से मिलने निकल पड़ी. 30 मसीह येशु ने अब तक नगर में प्रवेश नहीं किया था. वह वहीं थे, जहाँ मार्था ने उनसे भेंट की थी. 31 जब वहाँ शान्ति देने आए यहूदियों ने मरियम को एकाएक उठ कर बाहर जाते हुए देखा तो वे भी उसके पीछे-पीछे यह समझ कर चले गए कि वह क़ब्र पर रोने के लिए जा रही है.

32 मसीह येशु के पास पहुँच मरियम उनके चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी, “प्रभु, यदि आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु न होती.”

33 मसीह येशु ने उसे और उसके साथ आए यहूदियों को रोते हुए देखा तो उनका हृदय व्याकुल हो उठा. उन्होंने उदास शब्द में पूछा, 34 “तुमने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उनसे कहा.

“आइए, प्रभु, देख लीजिए.”

35 मसीह येशु के आँसू बहने लगे.

36 यह देख यहूदी कहने लगे, “देखो वह इन्हें कितना प्रिय था!”

37 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, “क्या यह, जिन्होंने अंधे को आँखों की रोशनी दी, इस व्यक्ति को मृत्यु से बचा न सकते थे?”

मृत लाज़रॉस का उज्जीवन

38 दोबारा बहुत उदास हो मसीह येशु क़ब्र पर आए, जो वस्तुत: एक कन्दरा थी, जिसके प्रवेश द्वार पर एक पत्थर रखा हुआ था. 39 मसीह येशु ने वह पत्थर हटाने को कहा. मृतक की बहन मार्था ने आपत्ति प्रकट करते हुए उनसे कहा, “प्रभु, उसे मरे हुए चार दिन हो चुके हैं. अब तो उसमें से दुर्गन्ध आ रही होगी.”

40 मसीह येशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि यदि तुम विश्वास करोगी तो परमेश्वर की महिमा को देखोगी?”

41 इसलिए उन्होंने पत्थर हटा दिया. मसीह येशु ने अपनी आँखें ऊपर उठाईं और कहा, “पिता, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरी सुन ली. 42 मैं जानता हूँ कि आप हमेशा मेरी सुनते हैं किन्तु यहाँ उपस्थित भीड़ के कारण मैंने ऐसा कहा है कि वे सब विश्वास करें कि आप ने ही मुझे भेजा है.” 43 तब उन्होंने ऊँचे शब्द में पुकारा, “लाज़रॉस, बाहर आ जाओ!” 44 वह, जो चार दिन से मरा हुआ था, बाहर आ गया. उसका सारा शरीर पट्टियों में और उसका मुख कपड़े में लिपटा हुआ था. मसीह येशु ने उनसे कहा, “इसे खोल दो और जाने दो.”

45 यह देख मरियम के पास आए यहूदियों में से अनेकों ने मसीह येशु में विश्वास किया. 46 परन्तु कुछ ने फ़रीसियों को जा बताया कि मसीह येशु ने क्या-क्या किया था.

मसीह येशु की हत्या का षड़यन्त्र

47 तब प्रधान पुरोहितों और फ़रीसियों ने महासभा बुलाई और कहा, “हम इस व्यक्ति के विषय में क्या कर रहे हैं? यह अद्भुत चिह्नों पर चिह्न दिखा रहा है! 48 यदि हम इसे ये सब यों ही करते रहने दें तो सभी इसमें विश्वास करने लगेंगे और रोमी हमसे हमारे अधिकार व राष्ट्र दोनों ही छीन लेंगे.”

49 तब सभा में उपस्थित उस वर्ष के महायाजक कायाफ़स ने कहा, “आप न तो कुछ जानते हैं 50 और न ही यह समझते हैं कि आपका हित इसी में है कि सारे राष्ट्र के विनाश की बजाय मात्र एक व्यक्ति राष्ट्र के हित में प्राणों का त्याग करे.”

51 यह उसने अपनी ओर से नहीं कहा था परन्तु उस वर्ष के महायाजक होने के कारण उसने यह भविष्यवाणी की थी कि राष्ट्र के हित में मसीह येशु प्राणों का त्याग करेंगे, 52 और न केवल राष्ट्र के हित में परन्तु परमेश्वर की तितर-बितर सन्तान को इकट्ठा करने के लिए भी. 53 उस दिन से वे सब एकजुट हो कर उनकी हत्या की योजना बनाने लगे.

54 इसलिए मसीह येशु ने यहूदियों के मध्य सार्वजनिक रूप से घूमना बन्द कर दिया. वहाँ से वह जंगल के पास अपने शिष्यों के साथ एफ़्रायिम नामक नगर में जा कर रहने लगे.

दुःख-भोग के पूर्व आसन्न फ़सह पर्व

55 यहूदियों का फ़सह पर्व पास था. आसपास से अनेक लोग येरूशालेम गए कि फ़सह में सम्मिलित होने के लिए स्वयं को सांस्कारिक रूप से शुद्ध करें. 56 वे मसीह येशु की खोज में थे और मन्दिर परिसर में खड़े हुए एक-दूसरे से पूछ रहे थे, “तुम्हारा क्या विचार है, वह पर्व में आएगा या नहीं?” 57 प्रधान पुरोहितों और फ़रीसियों ने मसीह येशु को बन्दी बनाने के उद्देश्य से आज्ञा दे रखी थी कि जिस किसी को उनकी जानकारी हो, वह उन्हें तुरन्त सूचित करे.

बैथनियाह नगर में मसीह येशु का अभिषेक

(मत्ति 26:6-13; मारक 14:3-9)

12 फ़सह के पर्व से छः दिन पूर्व मसीह येशु लाज़रॉस के नगर बैथनियाह आए, जहाँ उन्होंने उसे मरे हुओं में से जीवित किया था. वहाँ उनके लिए भोज का आयोजन किया गया था. मार्था भोजन परोस रही थी और मसीह येशु के साथ भोज में सम्मिलित लोगों में लाज़रॉस भी था. वहाँ मरियम ने बालछड़ के लगभग तीन सौ मिलीलीटर कीमती और शुद्ध सुगन्ध-द्रव्य मसीह येशु के चरणों पर मला और उन्हें अपने केशों से पोंछा. सारा घर इससे सुगन्धित हो गया.

इस पर उनका एक शिष्य—कारियोतवासी यहूदाह, जो उनके साथ धोखा करने पर था, कहने लगा, “यह सुगन्ध-द्रव्य गरीबों के लिये तीन सौ दीनार में क्यों नहीं बेचा गया?” यह उसने इसलिए नहीं कहा था कि वह गरीबों की चिन्ता करता था परन्तु इसलिए कि वह चोर था; धनराशि रखने की जिम्मेदारी उसकी थी, जिसमें से वह धन चुराया करता था.

मसीह येशु ने कहा, “उसे यह करने दो, यह मेरे अन्तिम संस्कार की तैयारी के लिए है. गरीब तुम्हारे साथ हमेशा रहेंगे किन्तु मैं तुम्हारे साथ हमेशा नहीं रहूँगा.”

यह मालूम होने पर कि मसीह येशु वहाँ हैं, बड़ी संख्या में यहूदी न केवल मसीह येशु को परन्तु लाज़रॉस को भी देखने आने लगे, जिसे मसीह येशु ने मरे हुओं में से जीवित किया था. 10 परिणामस्वरूप प्रधान याजक लाज़रॉस की भी हत्या की योजना करने लगे 11 क्योंकि लाज़रॉस के कारण अनेक यहूदी उन्हें छोड़ मसीह येशु में विश्वास करने लगे थे.

विजयोल्लास में येरूशालेम प्रवेश

(मत्ति 21:1-11; मारक 11:1-11; लूकॉ 19:28-44)

12 अगले दिन पर्व में आए विशाल भीड़ ने सुना कि मसीह येशु येरूशालेम आ रहे हैं. 13 वे सब खजूर के वृक्षों की डालियाँ ले कर मसीह येशु से मिलने निकल पड़े और ऊँचे शब्द में जय जयकार करने लगे.

“होशान्ना!”

“धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम में आ रहे हैं!”

“धन्य हैं इस्राएल के राजा!”

14 वहाँ मसीह येशु गधे के एक बच्चे पर बैठ गए—वैसे ही जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है:

15 “त्सियोन की पुत्री,
    भयभीत न हो! देखो,
    तुम्हारा राजा गधे पर बैठा हुआ आ रहा है.”

16 उनके शिष्य उस समय तो यह नहीं समझे किन्तु जब मसीह येशु की महिमा हुई तो उन्हें याद आया कि पवित्रशास्त्र में यह सब उन्हीं के विषय में लिखा गया था और भीड़ ने सब कुछ वचन के अनुसार ही किया था.

17 वे सब, जिन्होंने मसीह येशु के द्वारा लाज़रॉस को क़ब्र से बाहर बुलाए जाते तथा मरे हुओं में से दोबारा जीवित किए जाते देखा था, उनकी गवाही दे रहे थे. 18 भीड़ का उन्हें देखने के लिए आने का एक कारण यह भी था कि वे मसीह येशु के इस अद्भुत चिह्न के विषय में सुन चुके थे. 19 यह सब जान कर फ़रीसी आपस में कहने लगे, “तुम से कुछ भी नहीं हो पा रहा है. देखो, सारा संसार उसके पीछे हो लिया है!”

मसीह येशु द्वारा अपनी मृत्यु का प्रकाशन

20 पर्व की आराधना में सम्मिलित होने आए लोगों में कुछ यूनानी भी थे. 21 उन्होंने गलील प्रदेश के बैथसैदावासी फ़िलिप्पॉस से विनती की, “श्रीमान! हम मसीह येशु से भेंट करना चाहते हैं.” 22 फ़िलिप्पॉस ने आन्द्रेयास को यह सूचना दी और उन दोनों ने जा कर मसीह येशु को. 23 यह सुन कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “मनुष्य के पुत्र के महिमित होने का समय आ गया है. 24 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक बीज भूमि में पड़ कर मर न जाए, अकेला ही रहता है परन्तु यदि वह मर जाए तो बहुत फलता है. 25 जो अपने जीवन से प्रेम रखता है, उसे खो देता है परन्तु जो इस संसार में अपने जीवन से प्रेम नहीं रखता, उसे अनन्त जीवन के लिए सुरक्षित रखेगा. 26 यदि कोई मेरी सेवा करता है, वह मेरे पीछे चले. मेरा सेवक वहीं होगा जहाँ मैं हूँ. जो मेरी सेवा करता है, उसका पिता परमेश्वर आदर करेंगे.

27 “इस समय मेरी आत्मा व्याकुल है. मैं क्या कहूँ? ‘पिता, मुझे इस स्थिति से बचा लीजिए’? किन्तु इसी कारण से तो मैं यहाँ तक आया हूँ. 28 पिता, अपने नाम को महिमित कीजिए.”

इस पर स्वर्ग से निकल कर यह आवाज़ सुनाई दी, “मैंने तुम्हें महिमित किया है और दोबारा महिमित करूँगा.” 29 भीड़ ने जब यह सुना तो कुछ ने कहा, “देखो, बादल गरजा!” अन्य कुछ ने कहा, “किसी स्वर्गदूत ने उनसे कुछ कहा है.” 30 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “यह आवाज़ मेरे नहीं, तुम्हारे लिए है. 31 इस संसार के न्याय का समय आ गया है और अब इस संसार के हाकिम को निकाल दिया जाएगा. 32 जब मैं पृथ्वी से ऊँचे पर उठाया जाऊँगा तो सब लोगों को अपनी ओर खींच लूँगा.” 33 इसके द्वारा मसीह येशु ने यह संकेत दिया कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी.

34 भीड़ ने उनसे प्रश्न किया, “हमने व्यवस्था में से सुना है कि मसीह का अस्तित्व सर्वदा रहेगा. आप यह कैसे कहते हैं कि मनुष्य के पुत्र का ऊँचे पर उठाया जाना ज़रूरी है? कौन है यह मनुष्य का पुत्र?”

35 तब मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “ज्योति तुम्हारे मध्य कुछ ही समय तक है. जब तक ज्योति है, चलते रहो, ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे क्योंकि जो अन्धकार में चलता है, वह नहीं जानता कि किस ओर जा रहा है. 36 जब तक तुम्हारे पास ज्योति है, ज्योति में विश्वास करो कि तुम ज्योति की सन्तान बन सको.” यह कह कर मसीह येशु वहाँ से चले गए और उनसे छिपे रहे.

यहूदियों द्वारा अविश्वास का हठ

37 यद्यपि मसीह येशु ने उनके सामने अनेक अद्भुत चिह्न दिखाए थे तौभी वे लोग उनमें विश्वास नहीं कर रहे थे; 38 जिससे भविष्यद्वक्ता यशायाह का यह वचन पूरा हो:

“प्रभु, किसने हमारे समाचार पर विश्वास किया,
    किस पर प्रभु का बाहुबल प्रकट हुआ?”

39 वे विश्वास इसलिए नहीं कर पाये कि भविष्यद्वक्ता यशायाह ने यह भी कहा है:

40 “परमेश्वर ने उनकी आँखें अंधी
    तथा उनका ह्रदय कठोर कर दिया,
कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें,
    मन से समझें और पश्चाताप कर लें,
    और मैं उन्हें स्वस्थ कर दूँ.”

41 यशायाह ने यह वर्णन इसलिए किया कि उन्होंने प्रभु का प्रताप देखा और उसका वर्णन किया.

42 अनेकों ने, यहाँ तक कि अधिकारियों ने भी मसीह येशु में विश्वास किया किन्तु फ़रीसियों के कारण सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया कि कहीं उन्हें यहूदी सभागृह से निकाल न दिया जाए 43 क्योंकि उन्हें परमेश्वर से प्राप्त आदर की तुलना में मनुष्यों से प्राप्त आदर अधिक प्रिय था.

मसीह येशु द्वारा अपने सन्देश की संक्षेपावृत्ति.

44 मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में कहा, “जो कोई मुझ में विश्वास करता है, वह मुझ में ही नहीं परन्तु मेरे भेजनेवाले में विश्वास करता है. 45 क्योंकि जो कोई मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है. 46 मैं संसार में ज्योति हो कर आया हूँ कि वे सभी, जो मुझ में विश्वास करें, अन्धकार में न रहें.

47 “मैं उस व्यक्ति पर दोष नहीं लगाता, जो मेरे सन्देश सुन कर उनका पालन नहीं करता क्योंकि मैं संसार पर दोष लगाने नहीं परन्तु संसार के उद्धार के लिए आया हूँ. 48 जो कोई मेरा तिरस्कार करता है और मेरे समाचार को ग्रहण नहीं करता, उसका एक ही आरोपी है: मेरा समाचार. वही उसे अन्तिम दिन दोषी घोषित करेगा. 49 मैंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा, परन्तु मेरे पिता ने, जो मेरे भेजनेवाले हैं, आज्ञा दी है कि मैं क्या कहूँ और कैसे कहूँ. 50 मैं जानता हूँ कि उनकी आज्ञा का पालन अनन्त जीवन है. इसलिए जो कुछ मैं कहता हूँ, ठीक वैसा ही कहता हूँ, जैसा पिता ने मुझे कहने की आज्ञा दी है.”

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