Book of Common Prayer
16 क्या तुम्हें यह अहसास नहीं कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो तथा तुममें परमेश्वर का आत्मा वास करता है? 17 यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नाश करे तो वह भी परमेश्वर द्वारा नाश कर दिया जाएगा क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है और स्वयं तुम वह मन्दिर हो.
निष्कर्ष
18 धोखे में न रहो. यदि तुममें से कोई यह सोच बैठा है कि वह सांसारिक बातों के अनुसार बुद्धिमान है, तो सही यह होगा कि वह स्वयं को मूर्ख बना ले कि वह बुद्धिमान बन जाए 19 क्योंकि सच यह है कि सांसारिक ज्ञान परमेश्वर की दृष्टि में मूर्खता है; जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: वही हैं, जो बुद्धिमानों को उनकी चतुराई में फँसा देते हैं. 20 और यह भी: परमेश्वर जानते हैं कि बुद्धिमानों के विचार व्यर्थ हैं. 21 इसलिए कोई भी मनुष्य की उपलब्धियों का गर्व न करे. सब कुछ तुम्हारा ही है: 22 चाहे पौलॉस हो या अपोल्लॉस या कैफ़स, चाहे वह संसार हो या जीवन-मृत्यु, चाहे वह वर्तमान हो या भविष्य—सब कुछ तुम्हारा ही है 23 और तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर के.
11 “धन्य हो तुम, जब लोग तुम्हारी निन्दा करें और सताएं तथा तुम्हारे विषय में मेरे कारण सब प्रकार के बुरे विचार फैलाते हैं. 12 हर्षोल्लास में आनन्द मनाओ क्योंकि तुम्हारा प्रतिफल स्वर्ग में है. उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को भी इसी रीति से सताया था, जो तुमसे पहले आए हैं.
नमक और प्रकाश की शिक्षा
13 “तुम पृथ्वी के नमक हो किन्तु यदि नमक नमकीन न रहे तो उसके खारेपन को दोबारा कैसे लौटाया जा सकेगा? तब तो वह किसी भी उपयोग का नहीं सिवाय इसके कि उसे बाहर फेंक दिया जाए और लोग उसे रौंदते हुए निकल जाएँ.
14 “तुम संसार के लिए ज्योति हो. पहाड़ी पर स्थित नगर को छिपाया नहीं जा सकता. 15 कोई भी जलते हुए दीप को किसी बर्तन से ढाँक कर नहीं रखता—उसे उसके निर्धारित स्थान पर रखा जाता है कि वह उस घर में उपस्थित लोगों को प्रकाश दे. 16 लोगों के सामने अपना प्रकाश इस रीति से प्रकाशित होने दो कि वे तुम्हारे भले कामों को देख सकें तथा तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, स्तुति करें.
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