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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
प्रेरितों के काम 6:8-16:37

यहूदियों द्वारा स्तिफनुस का विरोध

स्तिफनुस एक ऐसा व्यक्ति था जो अनुग्रह और सामर्थ्य से परिपूर्ण था। वह लोगों के बीच बड़े-बड़े आश्चर्य कर्म और अद्भुत चिन्ह प्रकट किया करता था। किन्तु तथाकथित स्वतन्त्र किये गये लोगों के आराधनालय के कुछ लोग जो कुरेनी और सिकन्दरिया से तथा किलिकिया और एशिया से आये यहूदी थे, वे उसके विरोध में वाद-विवाद करने लगे। 10 किन्तु वह जिस बुद्धिमानी और आत्मा से बोलता था, वे उसके सामने नहीं ठहर सके।

11 फिर उन्होंने कुछ लोगों को लालच देकर कहलवाया, “हमने मूसा और परमेश्वर के विरोध में इसे अपमानपूर्ण शब्द कहते सुना है।” 12 इस तरह उन्होंने जनता को, बुजुर्ग यहूदी नेताओं को और यहूदी धर्मशास्त्रियों को भड़का दिया। फिर उन्होंने आकर उसे पकड़ लिया और सर्वोच्च यहूदी महासभा के सामने ले आये।

13 उन्होंने वे झूठे गवाह पेश किये जिन्होंने कहा, “यह व्यक्ति इस पवित्र स्थान और व्यवस्था के विरोध में बोलते कभी रुकता ही नहीं है। 14 हमने इसे कहते सुना है कि यह नासरी यीशु इस स्थान को नष्ट-भ्रष्ट कर देगा और मूसा ने जिन रीति-रिवाजों को हमें दिया है उन्हें बदल देगा।” 15 फिर सर्वोच्च यहूदी महासभा में बैठे हुए सभी लोगों ने जब उसे ध्यान से देखा तो पाया कि उसका मुख किसी स्वर्गदूत के मुख के समान दिखाई दे रहा था।

स्तिफनुस का भाषण

फिर महायाजक ने कहा, “क्या यह बात ऐसे ही है?” उसने उत्तर दिया, “बंधुओं और पितृतुल्य बुजुर्गो! मेरी बात सुनो। हारान में रहने से पहले अभी जब हमारा पिता इब्राहीम मिसुपुतामिया में ही था, तो महिमामय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिये और कहा, ‘अपने देश और अपने लोगों को छोड़कर तू उस धरती पर चला जा, जिसे तुझे मैं दिखाऊँगा।’

“सो वह कसदियों की धरती को छोड़ कर हारान में जा बसा जहाँ से उसके पिता की मृत्यु के बाद परमेश्वर ने उसे इस देश में आने की प्रेरणा दी जहाँ तुम अब रह रहे हो। परमेश्वर ने यहाँ उसे उत्तराधिकार में कुछ नहीं दिया, डग भर धरती तक नहीं। यद्यपि उसके कोई संतान नहीं थी किन्तु परमेश्वर ने उससे प्रतिज्ञा की कि यह देश वह उसे और उसके वंशजों को उनकी सम्पत्ति के रूप में देगा।

“परमेश्वर ने उससे यह भी कहा, ‘तेरे वंशज कहीं विदेश में परदेसी होकर रहेंगे और चार सौ साल तक उन्हें दास बनाकर, उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाएगा।’ परमेश्वर ने कहा, ‘दास बनाने वाली उस जाति को मैं दण्ड दूँगा और इसके बाद वे उस देश से बाहर आ जायेंगे और इस स्थान पर वे मेरी सेवा करेंगे।’

“परमेश्वर ने इब्राहीम को ख़तने की मुद्रा से मुद्रित करके करार-प्रदान किया। और इस प्रकार वह इसहाक का पिता बना। उसके जन्म के बाद आठवें दिन उसने उसका ख़तना किया। फिर इसहाक से याकूबऔर याकूब से बारह कुलों के आदि पुरुष पैदा हुए।

“वे आदि पुरूष यूसुफ़ से ईर्ष्या रखते थे। सो उन्होंने उसे मिसर में दास बनने के लिए बेच दिया। किन्तु परमेश्वर उसके साथ था। 10 और उसने उसे सभी विपत्तियों से बचाया। परमेश्वर ने यूसुफ़ को विवेक दिया और उसे इस योग्य बनाया जिससे वह मिसर के राजा फिरौन का अनुग्रह पात्र बन सका। फिरौन ने उसे मिसर का राज्यपाल और अपने घर-बार का अधिकारी नियुक्त किया। 11 फिर समूचे मिसर और कनान देश में अकाल पड़ा और बड़ा संकट छा गया। हमारे पूर्वज खाने को कुछ नहीं पा सके।

12 “जब याकूब ने सुना कि मिसर में अन्न है, तो उसने हमारे पूर्वजों को वहाँ भेजा-यह पहला अवसर था। 13 उनकी दूसरी यात्रा के अवसर पर यूसुफ़ ने अपने भाइयों को अपना परिचय दे दिया और तभी फिरौन को भी यूसुफ़ के परिवार की जानकारी मिली। 14 सो यूसुफ़ ने अपने पिता याकूब और परिवार के सभी लोगों को, जो कुल मिलाकर पिचहत्तर थे, बुलवा भेजा। 15 तब याकूब मिसर आ गया और उसने वहाँ वैसे ही प्राण त्यागे जैसे हमारे पूर्वजों ने वहाँ प्राण त्यागे थे। 16 उनके शव वहाँ से वापस सेकेम ले जाये गये जहाँ उन्हें मकबरे में दफना दिया गया। यह वही मकबरा था जिसे इब्राहीम ने हमोर के बेटों से कुछ धन देकर खरीदा था।

17 “जब परमेश्वर ने इब्राहीम को जो वचन दिया था, उसके पूरा होने का समय निकट आया तो मिसर में हमारे लोगों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी। 18 आख़िरकार मिसर पर एक ऐसे राजा का शासन हुआ जो यूसुफ़ को नहीं जानता था। 19 उसने हमारे लोगों के साथ धूर्ततापूर्ण व्यवहार किया। उसने हमारे पूर्वजों को बड़ी निर्दयता के साथ विवश किया कि वे अपने बच्चों को बाहर मरने को छोड़ें ताकि वे जीवित ही न बच पायें।

20 “उसी समय मूसा का जन्म हुआ। वह बहुत सुन्दर बालक था। तीन महीने तक वह अपने पिता के घर के भीतर पलता बढ़ता रहा। 21 फिर जब उसे बाहर छोड़ दिया गया तो फिरौन की पुत्री उसे अपना पुत्र बना कर उठा ले गयी। उसने अपने पुत्र के रूप में उसका लालन-पालन किया। 22 मूसा को मिसरियों के सम्पूर्ण कला-कौशल की शिक्षा दी गयी। वह वाणी और कर्म दोनों में ही समर्थ था।

23 “जब वह चालीस साल का हुआ तो उसने इस्राएल की संतान, अपने भाई-बंधुओं के पास जाने का निश्चय किया। 24 सो जब एक बार उसने देखा कि उनमें से किसी एक के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है तो उसने उसे बचाया और मिसरी व्यक्ति को मार कर उस दलित व्यक्ति का बदला ले लिया। 25 उसने सोचा था कि उसके अपने भाई बंधु जान जायेंगे कि उन्हें छुटकारा दिलाने के लिए परमेश्वर उसका उपयोग कर रहा है। किन्तु वे इसे नहीं समझ पाये।

26 “अगले दिन उनमें से (उसके अपने लोगों में से) जब कुछ लोग झगड़ रहे थे तो वह उनके पास पहुँचा और यह कहते हुए उनमें बीच-बचाव का जतन करने लगा, ‘कि तुम लोग तो आपस में भाई-भाई हो। एक दूसरे के साथ बुरा बर्ताव क्यों करते हो?’ 27 किन्तु उस व्यक्ति ने जो अपने पड़ोसी के साथ झगड़ रहा था, मूसा को धक्का मारते हुए कहा, ‘तुझे हमारा शासक और न्यायकर्ता किसने बनाया? 28 जैसे तूने कल उस मिस्री की हत्या कर दी थी, क्या तू वैसे ही मुझे भी मार डालना चाहता है?’(A) 29 मूसा ने जब यह सुना तो वह वहाँ से चला गया और मिद्यान में एक परदेसी के रूप में रहने लगा। वहाँ उसके दो पुत्र हुए।

30 “चालीस वर्ष बीत जाने के बाद सिनाई पर्वत के पास मरुभूमि में एक जलती झाड़ी की लपटों के बीच उसके सामने एक स्वर्गदूत प्रकट हुआ। 31 मूसा ने जब यह देखा तो इस दृश्य पर वह आश्चर्य चकित हो उठा। जब और अधिक निकटता से देखने के लिये वह उसके पास गया तो उसे प्रभु की वाणी सुनाई दी: 32 ‘मैं तेरे पूर्वजों का परमेश्वर हूँ, इब्राहीम का, इसहाक का और याकूब का परमेश्वर हूँ।’(B) भय से काँपते हुए मूसा कुछ देखने का साहस नहीं कर पा रहा था।

33 “तभी प्रभु ने उससे कहा, ‘अपने पैरों की चप्पलें उतार क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। 34 मैंने मिस्र में अपने लोगों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखा है, परखा है। मैंने उन्हें विलाप करते हुए सुना है। उन्हें मुक्त कराने के लिये मैं नीचे उतरा हूँ। आ, अब मैं तुझे मिस्र भेजूँगा।’(C)

35 “यह वही मूसा है जिसे उन्होंने यह कहते हुए नकार दिया था, ‘तुझे शासक और न्यायकर्ता किसने बनाया है?’ यह वही है जिसे परमेश्वर ने उस स्वर्गदूत द्वारा, जो उसके लिए झाड़ी में प्रकट हुआ था, शासक और मुक्तिदाता होने के लिये भेजा।(D) 36 वह उन्हें मिसर की धरती और लाल सागर तथा वनों में से चालीस साल तक आश्चर्य कर्म करते हुए और चिन्ह दिखाते हुए बाहर निकाल लाया।

37 “यह वही मूसा है जिसने इस्राएल की संतानों से कहा था, ‘तुम्हारे भाइयों में से ही तुम्हारे लिये परमेश्वर एक मेरे जैसा नबी भेजेगा।’(E) 38 यह वही है जो वीराने में सभा के बीच हमारे पूर्वजों और उस स्वर्गदूत के साथ मौजूद था जिसने सिनाई पर्वत पर उससे बातें की थी। इसी ने हमें देने के लिये परमेश्वर से सजीव वचन प्राप्त किये थे।

39 “किन्तु हमारे पूर्वजों ने उसका अनुसरण करने को मना कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने उसे नकार दिया और अपने हृदयों में वे फिर मिस्र की ओर लौट गये। 40 उन्होंने औरों से कहा था, ‘हमारे लिये ऐसे देवताओं की रचना करो जो हमें मार्ग दिखायें। इस मूसा के बारे में, जो हमें मिस्र से बाहर निकाल लाया, हम नहीं जानते कि उसके साथ क्या कुछ घटा।’(F) 41 उन्हीं दिनों उन्होंने बछड़े की एक मूर्ति बनायी। और उस मूर्ति पर बलि चढ़ाई। वे, जिसे उन्होंने अपने हाथों से बनाया था, उस पर आनन्द मनाने लगे। 42 किन्तु परमेश्वर ने उनसे मुँह मोड़ लिया था। उन्हें आकाश के ग्रह-नक्षत्रों की उपासना के लिये छोड़ दिया गया था। जैसा कि नबियों की पुस्तक में लिखा है:

‘हे इस्राएल के परिवार के लोगो, क्या तुम पशुबलि और अन्य बलियाँ वीराने में मुझे नहीं चढ़ाते रहे चालीस वर्ष तक?
43 तुम मोलेक के तम्बू और अपने देवता
    रिफान के तारे को भी अपने साथ ले गये थे।
वे मूर्तियाँ भी तुम ले गये जिन्हें तुमने उपासना के लिये बनाया था।
    इसलिए मैं तुम्हें बाबुल से भी परे भेजूँगा।’(G)

44 “साक्षी का तम्बू भी उस वीराने में हमारे पूर्वजों के साथ था। यह तम्बू उसी नमूने पर बनाया गया था जैसा कि उसने देखा था और जैसा कि मूसा से बात करने वाले ने बनाने को उससे कहा था। 45 हमारे पूर्वज उसे प्राप्त करके तभी वहाँ से आये थे जब यहोशू के नेतृत्त्व में उन्होंने उन जातियों से यह धरती ले ली थी जिन्हें हमारे पूर्वजों के सम्मुख परमेश्वर ने निकाल बाहर किया था। दाऊद के समय तक वह वहीं रहा। 46 दाऊद ने परमेश्वर के अनुग्रह का आनन्द उठाया। उसने चाहा कि वह याकूब के लोगों[a] के लिए एक मन्दिर बनवा सके 47 किन्तु वह सुलैमान ही था जिसने उसके लिए मन्दिर बनवाया।

48 “कुछ भी हो परम परमेश्वर तो हाथों से बनाये भवनों में नहीं रहता। जैसा कि नबी ने कहा है:

49 ‘प्रभु ने कहा,
स्वर्ग मेरा सिंहासन है,
    और धरती चरण की चौकी बनी है।
किस तरह का मेरा घर तुम बनाओगे?
    कहीं कोई जगह ऐसी है, जहाँ विश्राम पाऊँ?
50 क्या यह सभी कुछ, मेरे करों की रचना नहीं रही?’”(H)

51 “हे बिना ख़तने के मन और कान वाले हठीले लोगो! तुमने सदा ही पवित्र आत्मा का विरोध किया है। तुम अपने पूर्वजों के जैसे ही हो। 52 क्या कोई भी ऐसा नबी था, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने नहीं सताया? उन्होंने तो उन्हें भी मार डाला जिन्होंने बहुत पहले से ही उस धर्मी के आने की घोषणा कर दी थी, जिसे अब तुमने धोखा देकर पकड़वा दिया और मरवा डाला। 53 तुम वही हो जिन्होंने स्वर्गदूतों द्वारा दिये गये व्यवस्था के विधान को पा तो लिया किन्तु उस पर चले नहीं।”

स्तिफनुस की हत्या

54 जब उन्होंने यह सुना तो वे क्रोध से आगबबूला हो उठे और उस पर दाँत पीसने लगे। 55 किन्तु पवित्र आत्मा से भावित स्तिफनुस स्वर्ग की ओर देखता रहा। उसने देखा परमेश्वर की महिमा को और परमेश्वर के दाहिने खड़े यीशु को। 56 सो उसने कहा, “देखो। मैं देख रहा हूँ कि स्वर्ग खुला हुआ है और मनुष्य का पुत्र परमेश्वर के दाहिने खड़ा है।”

57 इस पर उन्होंने चिल्लाते हुए अपने कान बन्द कर लिये और फिर वे सभी उस पर एक साथ झपट पड़े। 58 वे उसे घसीटते हुए नगर से बाहर ले गये और उस परपथराव करने लगे। तभी गवाहों ने अपने वस्त्र उतार कर शाउल नाम के एक युवक के चरणों में रख दिये। 59 स्तिफ़नुस पर जब से उन्होंने पत्थर बरसाना प्रारम्भ किया, वह यह कहते हुए प्रार्थना करता रहा, “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को स्वीकार कर।” 60 फिर वह घुटनों के बल गिर पड़ा और ऊँचे स्वर में चिल्लाया, “प्रभु, इस पाप कोउनके विरुद्ध मत ले।” इतना कह कर वह चिर निद्रा में सो गया।

1-3 इस तरह शाऊल ने स्तिफनुस की हत्या का समर्थन किया।

विश्वासियों पर अत्याचार

उसी दिन से यरूशलेम की कलीसिया पर घोर अत्याचार होने आरम्भ हो गये। प्रेरितों को छोड़ वे सभी लोग यहूदिया और सामरिया के गाँवों में तितर-बितर हो कर फैल गये। कुछ भक्त जनों ने स्तिफनुस को दफना दिया और उसके लिये गहरा शोक मनाया। शाऊल ने कलीसिया को नष्ट करना आरम्भ कर दिया। वह घर-घर जा कर औरत और पुरूषों को घसीटते हुए जेल में डालने लगा। उधर तितर-बितर हुए लोग हर कहीं जा कर सुसमाचार का संदेश देने लगे।

सामरिया में फिलिप्पुस का उपदेश

फिलिप्पुस सामरिया नगर को चला गया और वहाँ लोगों में मसीह का प्रचार करने लगा। फिलिप्पुस के लोगों ने जब सुना और जिन अद्भुत चिन्हों को वह प्रकट किया करता था, देखा, तो जिन बातों को वह बताया करता था, उन पर उन्होंने गम्भीरता के साथ ध्यान दिया। बहुत से लोगों में से, जिनमें दुष्टात्माएँ समायी थी, वे ऊँचे स्वर में चिल्लाती हुई बाहर निकल आयीं थी। बहुत से लकवे के रोगी और विकलांग अच्छे हो रहे थे। उस नगर में उल्लास छाया हुआ था।

वहीं शमौन नाम का एक व्यक्ति हुआ करता था। वह काफी समय से उस नगर में जादू-टोना किया करता था। और सामरिया के लोगों को आश्चर्य में डालता रहता था। वह महापुरुष होने का दावा किया करता था। 10 छोटे से लेकर बड़े तक सभी लोग उसकी बात पर ध्यान देते और कहते, “यह व्यक्ति परमेश्वर की वही शक्ति है जो ‘महान शक्ति कहलाती है।’” 11 क्योंकि उसने बहुत दिनों से उन्हें अपने चमत्कारों के चक्कर में डाल रखा था, इसीलिए वे उस पर ध्यान दिया करते थे। 12 किन्तु उन्होंने जब फिलिप्पुस पर विश्वास किया क्योंकि उसने उन्हें परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार और यीशु मसीह का नाम सुनाया था, तो वे स्त्री और पुरुष दोनों ही बपतिस्मा लेने लगे। 13 और स्वयं शमौन ने भी उन पर विश्वास किया। और बपतिस्मा लेने के बाद फिलिप्पुस के साथ वह बड़ी निकटता से रहने लगा। उन महान् चिन्हों और किये जा रहे अद्भुत कार्यों को जब उसने देखा, तो वह दंग रह गया।

14 उधर यरूशलेम में प्रेरितों ने जब यह सुना कि सामरिया के लोगों ने परमेश्वर के वचन को स्वीकार कर लिया है तो उन्होंने पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेजा। 15 सो जब वे पहुँचे तो उन्होंने उनके लिये प्रार्थना की कि उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हो। 16 क्योंकि अभी तक पवित्र आत्मा किसी पर भी नहीं उतरा था, उन्हें बस प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा ही दिया गया 17 सो पतरस और यूहन्ना ने उन पर अपने हाथ रखे और उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हो गया।

18 जब शमौन ने देखा कि प्रेरितों के हाथ रखने भर से पवित्र आत्मा दे दिया गया तो उनके सामने धन प्रस्तुत करते हुए वह बोला, 19 “यह शक्ति मुझे दे दो ताकि जिस किसी पर मैं हाथ रखूँ, उसे पवित्र आत्मा मिल जाये।”

20 पतरस ने उससे कहा, “तेरा और तेरे धन का सत्यानाश हो, क्योंकि तूने यह सोचा कि तू धन से परमेश्वर के वरदान को मोल ले सकता है। 21 इस विषय में न तेरा कोई हिस्सा है, और न कोई साझा क्योंकि परमेश्वर के सम्मुख तेरा हृदय ठीक नहीं है। 22 इसलिए अपनी इस दुष्टता से मन फिराव कर और प्रभु से प्रार्थना कर। हो सकता है तेरे मन में जो विचार था, उस विचार के लिये तू क्षमा कर दिया जाये। 23 क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि तू कटुता से भरा है और पाप के चंगुल में फँसा है।”

24 इस पर शमौन ने उत्तर दिया, “तुम प्रभु से मेरे लिये प्रार्थना करो ताकि तुमने जो कुछ कहा है, उसमें से कोई भी बात मुझ पर न घटे!”

25 फिर प्रेरित अपनी साक्षी देकर और प्रभु का वचन सुना कर रास्ते के बहुत से सामरी गाँवों में सुसमाचार का उपदेश करते हुए यरूशलेम लौट आये।

कूश से आये व्यक्ति को फिलिप्पुस का उपदेश

26 प्रभु के एक दूत ने फिलिप्पुस को कहते हुए बताया, “तैयार हो, और दक्षिण दिशा में उस राह पर जा, जो यरूशलेम से गाजा को जाती है।” (यह एक सुनसान मार्ग है।)

27 सो वह तैयार हुआ और चल पड़ा। वहीं एक कूश का खोजा था। वह कूश की रानी कंदाके का एक अधिकारी था जो उसके समुचे कोष का कोषपाल था। वह आराधना के लिये यरूशलेम गया था। 28 लौटते हुए वह अपने रथ में बैठा भविष्यवक्ता यशायाह का ग्रंथ पढ़ रहा था।

29 तभी फिलिप्पुस को आत्मा से प्रेरणा मिली, “उस रथ के पास जा और वहीं ठहर।” 30 फिलिप्पुस जब उस रथ के पास दौड़ कर गया तो उसने उसे यशायाह को पढ़ते सुना। सो वह बोला, “क्या जिसे तू पढ़ रहा है, उसे समझता है?”

31 उसने कहा, “मैं भला तब तक कैसे समझ सकता हूँ, जब तक कोई मुझे इसकी व्याख्या नहीं करे?” फिर उसने फिलिप्पुस को रथ पर अपने साथ बैठने को बुलाया। 32 शास्त्र के जिस अंश को वह पढ़ रहा था, वह था:

“उसे वध होने वाली भेड़ के समान ले जाया जा रहा था।
वह तो उस मेमने के समान चुप था। जो अपनी ऊन काटने वाले के समक्ष चुप रहता है,
    ठीक वैसे ही उसने अपना मुँह खोला नहीं!
33 ऐसी दीन दशा में उसको न्याय से वंचित किया गया।
उसकी पीढ़ी का कौन वर्णन करेगा?
    क्योंकि धरती से उसका जीवन तो ले लिया था।”(I)

34 उस खोजे ने फिलिप्पुस से कहा, “अनुग्रह करके मुझे बता कि भविष्यवक्ता यह किसके बारे में कह रहा है? अपने बारे में या किसी और के?” 35 फिर फिलिप्पुस ने कहना शुरू किया और इस शास्त्र से लेकर यीशु के सुसमाचार तक सब उसे कह सुनाया।

36 मार्ग में आगे बढ़ते हुए वे कहीं पानी के पास पहुँचे। फिर उस खोजे ने कहा, “देख! यहाँ जल है। अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या बाधा है?” 37 [b] 38 तब उसने रथ को रोकने की आज्ञा दी। फिर फिलिप्पुस और वह खोजा दोनों ही पानी में उतर गए और फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया। 39 और फिर जब वे पानी से बाहर निकले तो फिलिप्पुस को प्रभु की आत्मा कहीं उठा ले गई, और उस खोजे ने फिर उसे कभी नहीं देखा। उधर खोजा आनन्द मनाता हुआ अपने मार्ग पर आगे चला गया। 40 उधर फिलिप्पुस ने अपने आपको अशदोद में पाया और जब तक वह कैसरिया नहीं पहुँचा तब तक, सभी नगरों में सुसमाचार का प्रचार करते हुए यात्रा करता रहा।

शाऊल का हृदय परिवर्तन

शाऊल अभी प्रभु के अनुयायियों को मार डालने की धमकियाँ दिया करता था। वह प्रमुख याजक के पास गया और उसने दमिश्क के आराधनालयों के नाम माँग कर अधिकार पत्र ले लिया जिससे उसे वहाँ यदि कोई इस पंथ का अनुयायी मिले, फिर चाहे वह स्त्री हो, चाहे पुरुष, तो वह उन्हें बंदी बना सके और फिर वापस यरूशलेम ले आये।

सो जब चलते चलते वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो अचानक उसके चारों ओर आकाश से एक प्रकाश कौंध गया और वह धरती पर जा पड़ा। उसने एक आवाज़ सुनी जो उससे कह रही थी, “शाऊल, अरे ओ शाऊल! तू मुझे क्यों सता रहा है?”

शाऊल ने पूछा, “प्रभु, तू कौन है?”

वह बोला, “मैं यीशु हूँ जिसे तू सता रहा है। पर तू अब खड़ा हो और नगर में जा। वहाँ तुझे बता दिया जायेगा कि तुझे क्या करना चाहिये।”

जो पुरुष उसके साथ यात्रा कर रहे थे, अवाक्‌ खड़े थे। उन्होंने आवाज़ तो सुनी किन्तु किसी को भी देखा नहीं। फिर शाऊल धरती पर से खड़ा हुआ। किन्तु जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह कुछ भी देख नहीं पाया। सो वे उसे हाथ पकड़ कर दमिश्क ले गये। तीन दिन तक वह न तो कुछ देख पाया, और न ही उसने कुछ खाया या पिया।

10 दमिश्क में हनन्याह नाम का एक शिष्य था। प्रभु ने दर्शन देकर उससे कहा, “हनन्याह।”

सो वह बोला, “प्रभु, मैं यह रहा।”

11 प्रभु ने उससे कहा, “खड़ा हो और सीधी कहलाने वाली गली में जा। और वहाँ यहूदा के घर में जाकर तरसुस निवासी शाऊल नाम के एक व्यक्ति के बारे में पूछताछ कर क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है। 12 उसने एक दर्शन में देखा है कि हनन्याह नाम के एक व्यक्ति ने घर में आकर उस पर हाथ रखे हैं ताकि वह फिर से देख सके।”

13 हनन्याह ने उत्तर दिया, “प्रभु मैंने इस व्यक्ति के बारे में बहुत से लोगों से सुना है। यरूशलेम में तेरे संतों के साथ इसने जो बुरी बातें की हैं, वे सब मैंने सुना है। 14 और यहाँ भी यह प्रमुख याजकों से तेरे नाम में सभी विश्वास रखने वालों को बंदी बनाने का अधिकार लेकर आया है।”

15 किन्तु प्रभु ने उससे कहा, “तू जा क्योंकि इस व्यक्ति को विधर्मियों, राजाओं और इस्राएल के लोगों के सामने मेरा नाम लेने के लिये, एक साधन के रूप में मैंने चुना है। 16 मैं स्वयं उसे वह सब कुछ बताऊँगा, जो उसे मेरे नाम के लिए सहना होगा।”

17 सो हनन्याह चल पड़ा और उस घर के भीतर पहुँचा और शाऊल पर उसने अपने हाथ रख दिये और कहा, “भाई शाऊल, प्रभु यीशु ने मुझे भेजा है, जो तेरे मार्ग में तेरे सम्मुख प्रकट हुआ था ताकि तू फिर से देख सके और पवित्र आत्मा से भावित हो जाये।” 18 फिर तुरंत छिलकों जैसी कोई वस्तु उसकी आँखों से ढलकी और उसे फिर दिखाई देने लगा। वह खड़ा हुआ और उसने बपतिस्मा लिया। 19 फिर थोड़ा भोजन लेने के बाद उसने अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर ली।

शाऊल का दमिश्क में प्रचार कार्य

वह दमिश्क में शिष्यों के साथ कुछ समय ठहरा। 20 फिर वह तुरंत यहूदी आराधनालयों में जाकर यीशु का प्रचार करने लगा। वह बोला, “यह यीशु परमेश्वर का पुत्र है।”

21 जिस किसी ने भी उसे सुना, चकित रह गया और बोला, “क्या यह वही नहीं है, जो यरूशलेम में यीशु के नाम में विश्वास रखने वालों को नष्ट करने का यत्न किया करता था। और क्या यह उन्हें यहाँ पकड़ने और प्रमुख याजकों के सामने ले जाने नहीं आया था?”

22 किन्तु शाऊल अधिक से अधिक शक्तिशाली होता गया और दमिश्क में रहने वाले यहूदियों को यह प्रमाणित करते हुए कि यह यीशु ही मसीह है, पराजित करने लगा।

शाऊल का यहूदियों से बच निकलना

23 बहुत दिन बीत जाने के बाद यहूदियों ने उसे मार डालने का षड्यन्त्र रचा। 24 किन्तु उनकी योजनाओं का शाऊल को पता चल गया। वे नगर द्वारों पर रात दिन घात लगाये रहते थे ताकि उसे मार डालें। 25 किन्तु उसके शिष्य रात में उसे उठा ले गये और टोकरी में बैठा कर नगर की चारदिवारी से लटका कर उसे नीचे उतार दिया।

यरूशलेम में शाऊल का पहुँचना

26 फिर जब वह यरूशलेम पहुँचा तो वह शिष्यों के साथ मिलने का जतन करने लगा। किन्तु वे तो सभी उससे डरते थे। उन्हें यह विश्वास नहीं था कि वह भी एक शिष्य है। 27 किन्तु बरनाबास उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले गया और उसने उन्हें बताया कि शाऊल ने प्रभु को मार्ग में किस प्रकार देखा और प्रभु ने उससे कैसे बातें कीं और दमिश्क में किस प्रकार उसने निर्भयता से यीशु के नाम का प्रचार किया।

28 फिर शाऊल उनके साथ यरूशलेम में स्वतन्त्रतापूर्वक आते जाते रहने लगा। वह निर्भीकता के साथ प्रभु के नाम का प्रवचन किया करता था। 29 वह यूनानी भाषा-भाषी यहूदियों के साथ वाद-विवाद और चर्चाएँ करता किन्तु वे तो उसे मार डालना चाहते थे। 30 किन्तु जब बंधुओं को इस बात का पता चला तो वे उसे कैसरिया ले गये और फिर उसे तरसुस पहुँचा दिया।

31 इस प्रकार समूचे यहूदिया, गलील और सामरिया के कलीसिया का वह समय शांति से बीता। वह कलीसिया और अधिक शक्तिशाली होने लगी। क्योंकि वह प्रभु से डर कर अपना जीवन व्यतीत करती थी, और पवित्र आत्मा ने उसे और अधिक प्रोत्साहित किया था सो उसकी संख्या बढ़ने लगी।

पतरस लिद्दा और याफा में

32 फिर उस समूचे क्षेत्र में घूमता फिरता पतरस लिद्दा के संतों से मिलने पहुँचा। 33 वहाँ उसे अनियास नाम का एक व्यक्ति मिला जो आठ साल से बिस्तर में पड़ा था। उसे लकवा मार गया था। 34 पतरस ने उससे कहा, “अनियास, यीशु मसीह तुझे स्वस्थ करता है। खड़ा हो और अपना बिस्तर ठीक कर।” सो वह तुरंत खड़ा हो गया। 35 फिर लिद्दा और शारोन में रहने वाले सभी लोगों ने उसे देखा और वे प्रभु की ओर मुड़ गये।

36 याफा में तबीता नाम की एक शिष्या रहा करती थी। जिसका यूनानी अनुवाद है दोरकास अर्थात् “हिरणी।” वह सदा अच्छे अच्छे काम करती और गरीबों को दान देती। 37 उन्हीं दिनों वह बीमार हुई और मर गयी। उन्होंने उसके शव को स्नान करा के सीढ़ियों के ऊपर कमरे में रख दिया। 38 लिद्दा याफा के पास ही था, सो शिष्यों ने जब यह सुना कि पतरस लिद्दा मैं है तो उन्होंने उसके पास दो व्यक्ति भेजे कि वे उससे विनती करें, “अनुग्रह कर के जल्दी से जल्दी हमारे पास आ जा!”

39 सो पतरस तैयार होकर उनके साथ चल दिया। जब पतरस वहाँ पहुँचा तो वे उसे सीढ़ियों के ऊपर कमरे में ले गये। वहाँ सभी विधवाएँ विलाप करते हुए और उन कुर्तियों और दूसरे वस्त्रों को जिन्हें दोरकास ने जब वह उनके साथ थी, बनाया था, दिखाते हुए उसके चारों ओर खड़ी हो गयीं। 40 पतरस ने हर किसी को बाहर भेज दिया और घुटनों के बल झुक कर उसने प्रार्थना की। फिर शव की ओर मुड़ते हुए उसने कहा, “तबीता-खड़ी हो जा!” उसने अपनी आँखें खोल दीं और पतरस को देखते हुए वह उठ बैठी। 41 उसे अपना हाथ देकर पतरस ने खड़ा किया और फिर संतों और विधवाओं को बुलाकर उन्हें उसे जीवित सौंप दिया।

42 समूचे याफा में हर किसी को इस बात का पता चल गया और बहुत से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया। 43 फिर याफा में शमोन नाम के एक चर्मकार के यहाँ पतरस बहुत दिनों तक ठहरा।

पतरस और कुरनेलियुस

10 कैसरिया में कुरनेलियुस नाम का एक व्यक्ति था। वह सेना के उस दल का नायक था जिसे इतालवी कहा जाता था। वह परमेश्वर से डरने वाला भक्त था और उसका परिवार भी वैसा ही था। वह गरीब लोगों की सहायता के लिये उदारतापूर्वक दान दिया करता था और सदा ही परमेश्वर की प्रार्थना करता रहता था। दिन के नवें पहर के आसपास उसने एक दर्शन में स्पष्ट रूप से देखा कि परमेश्वर का एक स्वर्गदूत उसके पास आया है और उससे कह रहा है, “कुरनेलियुस।”

सो कुरनेलियुस डरते हुए स्वर्गदूत की ओर देखते हुए बोला, “हे प्रभु, यह क्या है?”

स्वर्गदूत ने उससे कहा, “तेरी प्रार्थनाएँ और दीन दुखियों को दिया हुआ तेरा दान एक स्मारक के रूप में तुझे याद दिलानेके लिए परमेश्वर के पास पहुचें हैं। सो अब कुछ व्यक्तियोंको याफा भेज और शमौन नाम के एक व्यक्ति को, जो पतरस भी कहलाता है, यहाँ बुलवा ले। वह शमौन नाम के एक चर्मकार के साथ रह रहा है। उसका घर सागर के किनारे है।” वह स्वर्गदूत जो उससे बात कर रहा था, जब चला गया तो उसने अपने दो सेवकों और अपने निजी सहायकों में से एक भक्त सिपाही को बुलाया और जो कुछ घटित हुआ था, उन्हें सब कुछ बताकर याफा भेज दिया।

अगले दिन जब वे चलते चलते नगर के निकट पहुँचने ही वाले थे, पतरस दोपहर के समय प्रार्थना करने को छत पर चढ़ा। 10 उसे भूख लगी, सो वह कुछ खाना चाहता था। वे जब भोजन तैयार कर ही रहे थे तो उसकी समाधि लग गयी। 11 और उसने देखा कि आकाश खुल गया है और एक बड़ी चादर जैसी कोई वस्तु नीचे उतर रही है। उसे चारों कोनों से पकड़ कर धरती पर उतारा जा रहा है। 12 उस पर हर प्रकार के पशु, धरती के रेंगने वाले जीवजंतु और आकाश के पक्षी थे। 13 फिर एक स्वर ने उससे कहा, “पतरस उठ। मार और खा।”

14 पतरस ने कहा, “प्रभु, निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि मैंने कभी भी किसी तुच्छ या समय के अनुसार अपवित्र आहार को नहीं लिया है।”

15 इस पर उन्हें दूसरी बार फिर वाणी सुनाई दी, “किसी भी वस्तु को जिसे परमेश्वर ने पवित्र बनाया है, तुच्छ मत कहना!” 16 तीन बार ऐसा ही हुआ और वह वस्तु फिर तुरंत आकाश में वापस उठा ली गयी।

17 पतरस ने जिस दृश्य को दर्शन में देखा था, उस पर वह अभी चक्कर में ही पड़ा हुआ था कि कुरनेलियुस के भेजे वे लोग दरवाजे पर खड़े पूछ रहे थे कि शमौन का घर कहाँ है?

18 उन्होंने बाहर बुलाते हुए पूछा, “क्या पतरस कहलाने वाला शमौन अतिथि के रूप में यहीं ठहरा है?”

19 पतरस अभी उस दर्शन के बारे में सोच ही रहा था कि आत्मा ने उससे कहा, “सुन, तीन व्यक्ति तुझे ढूँढ रहे हैं। 20 सो खड़ा हो, और नीचे उतर बेझिझक उनके साथ चला जा, क्योंकि उन्हें मैंने ही भेजा है।” 21 इस प्रकार पतरस नीचे उतर आया और उन लोगों से बोला, “मैं वही हूँ, जिसे तुम खोज रहे हो। तुम क्यों आये हो?”

22 वे बोले, “हमें सेनानायक कुरनेलियुस ने भेजा है। वह परमेश्वर से डरने वाला नेक पुरुष है। यहूदी लोगों में उसका बहुत सम्मान है। उससे पवित्र स्वर्गदूत ने तुझे अपने घर बुलाने का निमन्त्रण देने को और जो कुछ तू कहे उसे सुनने को कहा है।” 23 इस पर पतरस ने उन्हें भीतर बुला लिया और ठहरने को स्थान दिया।

फिर अगले दिन तैयार होकर वह उनके साथ चला गया। और याफा के निवासी कुछ अन्य बन्धु भी उसके साथ हो लिये। 24 अगले ही दिन वह कैसरिया जा पहुँचा। वहाँ अपने सम्बन्धियों और निकट-मित्रों को बुलाकर कुरनेलियुस उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।

25 पतरस जब भीतर पहुँचा तो कुरनेलियुस से उसकी भेंट हुई। कुरनेलियुस ने उसके चरणों पर गिरते हुए उसको दण्डवत प्रणाम किया। 26 किन्तु उसे उठाते हुए पतरस बोला, “खड़ा हो। मैं तो स्वयं मात्र एक मनुष्य हूँ।” 27 फिर उसके साथ बात करते करते वह भीतर चला गया। और वहाँ उसने बहुत से लोगों को एकत्र पाया।

28 उसने उनसे कहा, “तुम जानते हो कि एक यहूदी के लिये किसी दूसरी जाति के व्यक्ति के साथ कोई सम्बन्ध रखना या उसके यहाँ जाना विधान के विरुद्ध है किन्तु फिर भी परमेश्वर ने मुझे दर्शाया है कि मैं किसी भी व्यक्ति को अशुद्ध या अपवित्र न कहूँ। 29 इसीलिए मुझे जब बुलाया गया तो मैं बिना किसी आपत्ति के आ गया। इसलिए मैं तुमसे पूछता हूँ कि तुमने मुझे किस लिये बुलाया है।”

30 इस पर कुरनेलियुस ने कहा, “चार दिन पहले इसी समय दिन के नवें पहर (तीन बजे) मैं अपने घर में प्रार्थना कर रहा था। अचानक चमचमाते वस्त्रों में एक व्यक्ति मेरे सामने आकर खड़ा हुआ। 31 और कहा, ‘कुरनेलियुस! तेरी विनती सुन ली गयी है और दीन दुखियों को दिये गये तेरे दान परमेश्वर के सामने याद किये गये हैं। 32 इसलिए याफा भेजकर पतरस कहलाने वाले शमौन को बुलवा भेज। वह सागर किनारे चर्मकार शमौन के घर ठहरा हुआ है।’ 33 इसीलिए मैंने तुरंत तुझे बुलवा भेजा और तूने यहाँ आने की कृपा करके बहुत अच्छा किया। सो अब प्रभु ने जो कुछ आदेश तुझे दिये हैं, उस सब कुछ को सुनने के लिये हम सब यहाँ परमेश्वर के सामने उपस्थित हैं।”

कुरनेलियुस के घर पतरस का प्रवचन

34 फिर पतरस ने अपना मुँह खोला। उसने कहा, “अब सचमुच मैं समझ गया हूँ कि परमेश्वर कोई भेद भाव नहीं करता। 35 बल्कि हर जाति का कोई भी ऐसा व्यक्ति जो उससे डरता है और नेक काम करता है, वह उसे स्वीकार करता है। 36 यही है वह संदेश जिसे उसने यीशु मसीह के द्वारा शांति के सुसमाचार का उपदेश देते हुए इस्राएल के लोगों को दिया था। वह सभी का प्रभु है।

37 “तुम उस महान घटना को जानते हो, जो समूचे यहूदिया में घटी थी। गलील में प्रारम्भ होकर यूहन्ना द्वारा बपतिस्मा दिए जाने के बाद से जिसका प्रचार किया गया था। 38 तुम नासरी यीशु के विषय में जानते हो कि परमेश्वर ने पवित्र आत्मा और शक्ति से उसका अभिषेक कैसे किया था और उत्तम कार्य करते हुए तथा उन सब को जो शैतान के बस में थे, चंगा करते हुए चारों ओर वह कैसे घूमता रहा था। क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था।

39 “और हम उन सब बातों के साक्षी हैं जिन्हें उसने यहूदियों के प्रदेश और यरूशलेम में किया था। उन्होंने उसे ही एक पेड़ पर लटका कर मार डाला। 40 किन्तु परमेश्वर ने तीसरे दिन उसे फिर से जीवित कर दिया और उसे प्रकट होने को प्रेरित किया। 41 सब लोगों के सामने नहीं वरन् बस उन साक्षियों के सामने जो परमेश्वर के द्वारा पहले से चुन लिये गये थे। अर्थात् हमारे सामने जिन्होंने उसके मरे हुओं में से जी उठने के बाद उसके साथ खाया और पिया।

42 “उसी ने हमें आदेश दिया है कि हम लोगों को उपदेश दें और प्रमाणित करें कि यह वही है, जो परमेश्वर के द्वारा जीवितों और मरे हुओं का न्यायकर्ता बनने को नियुक्त किया गया है। 43 सभी भविष्यवक्ताओं ने उसके विषय में साक्षी दी है कि उसमें विश्वास करने वाला हर व्यक्ति उसके नाम के द्वारा पापों की क्षमा पाता है।”

ग़ैर यहूदियों पर पवित्र आत्मा का उतरना

44 पतरस अभी ये बातें कह ही रहा था कि उन सब पर पवित्र आत्मा उतर आया जिन्होंने सुसंदेश सुना था। 45 क्योंकि पवित्र आत्मा का वरदान ग़ैर यहूदियों पर भी उँडेला जा रहा था, सो पतरस के साथ आये यहूदी विश्वासी आश्चर्य में डूब गये। 46 वे उन्हें नाना भाषाएँ बोलते और परमेश्वर की स्तुति करते हुए सुन रहे थे। तब पतरस बोला, 47 “क्या कोई इन लोगों को बपतिस्मा देने के लिये, जल सुलभ कराने को मना कर सकता है? इन्हें भी वैसे ही पवित्र आत्मा प्राप्त हुआ हैं, जैसे हमें।” 48 इस प्रकार उसने यीशु मसीह के नाम में उन्हें बपतिस्मा देने की आज्ञा दी। फिर उन्होंने पतरस से अनुरोध किया कि वह कुछ दिन उनके साथ ठहरे।

पतरस का यरूशलेम लौटना

11 समूचे यहूदिया में बंधुओं और प्रेरितों ने सुना कि प्रभु का वचन ग़ैर यहूदियों ने भी ग्रहण कर लिया है! सो जब पतरस यरूशलेम पहुँचा तो उन्होंने जो ख़तना के पक्ष में थे, उसकी आलोचना की। वे बोले, “तू ख़तना रहित लोगों के घर में गया है और तूने उनके साथ खाना खाया है।”

इस पर पतरस वास्तव में जो घटा था, उसे सुनाने समझाने लगा, “मैंने याफा नगर में प्रार्थना करते हुए समाधि में एक दृश्य देखा। मैंने देखा कि एक बड़ी चादर जैसी कोई वस्तु नीचे उतर रही है, उसे चारों कोनों से पकड़ कर आकाश से धरती पर उतारा जा रहा है। फिर वह उतर कर मेरे पास आ गयी। मैंने उसको ध्यान से देखा। मैंने देखा कि उसमें धरती के चौपाये जीव-जंतु, जँगली पशु रेंगने वाले जीव और आकाश के पक्षी थे। फिर मैंने एक आवाज़ सुनी, जो मुझसे कह रही थी, ‘पतरस उठ, मार और खा।’

“किन्तु मैंने कहा, ‘प्रभु निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि मैंने कभी भी किसी तुच्छ या समय के अनुसार किसी अपवित्र आहार को नहीं लिया है।’

“आकाश से दूसरी बार उस स्वर ने फिर कहा, ‘जिसे परमेश्वर ने पवित्र बनाया है, उसे तू अपवित्र मत समझ!’

10 “तीन बार ऐसा ही हुआ। फिर वह सब आकाश में वापस उठा लिया गया। 11 उसी समय जहाँ मैं ठहरा हुआ था, उस घर में तीन व्यक्ति आ पहुचें। उन्हें मेरे पास कैसरिया से भेजा गया था। 12 आत्मा ने मुझसे उनके साथ बेझिझक चले जाने को कहा। ये छह: बन्धु भी मेरे साथ गये। और हमने उस व्यक्ति के घर में प्रवेश किया। 13 उसने हमें बताया कि एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़े उसने कैसे देखा था। जो कह रहा था याफा भेज कर पतरस कहलाने वाले शमौन को बुलवा ले। 14 वह तुझे वचन सुनायेगा जिससे तेरा और तेरे परिवार का उद्धार होगा।

15 “जब मैंने प्रवचन आरम्भ किया तो पवित्र आत्मा उन पर उतर आया। ठीक वैसे ही जैसे प्रारम्भ में हम पर उतरा था। 16 फिर मुझे प्रभु का कहा यह वचन याद हो आया, ‘यूहन्ना जल से बपतिस्मा देता था किन्तु तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा दिया जायेगा।’ 17 इस प्रकार यदि परमेश्वर ने उन्हें भी वही वरदान दिया जिसे उसने जब हमने प्रभु यीशु मसीह में विश्वास किया था, तब हमें दिया था, तो विरोध करने वाला मैं कौन होता था?”

18 विश्वासियों ने जब यह सुना तो उन्होंने प्रश्न करना बन्द कर दिया। वे परमेश्वर की महिमा करते हुए कहने लगे, “अच्छा, तो परमेश्वर ने विधर्मियों तक को मन फिराव का वह अवसर दिया है, जो जीवन की ओर ले जाता है!”

अन्ताकिया में सुसमाचार का आगमन

19 वे लोग जो स्तिफनुस के समय में दी जा रही यातनाओं के कारण तितर-बितर हो गये थे, दूर-दूर तक फीनिक, साइप्रस और अन्ताकिया तक जा पहुँचे। ये यहूदियों को छोड़ किसी भी और को सुसमाचार नहीं सुनाते थे। 20 इन्हीं विश्वासियों में से कुछ साइप्रस और कुरैन के थे। सो जब वे अन्ताकिया आये तो यूनानियों को भी प्रवचन देते हुए प्रभु यीशु का सुसमाचार सुनाने लगे। 21 प्रभु की शक्ति उनके साथ थी। सो एक विशाल जन समुदाय विश्वास धारण करके प्रभु की ओर मुड़ गया।

22 इसका समाचार जब यरूशलेम में कलीसिया के कानों तक पहुँचा तो उन्होंने बरनाबास को अन्ताकिया जाने को भेजा। 23 जब बरनाबास ने वहाँ पहुँच कर प्रभु के अनुग्रह को सकारथ होते देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उन सभी को प्रभु के प्रति भक्तिपूर्ण ह्रदय से विश्वासी बने रहने को उत्साहित किया। 24 क्योंकि वह पवित्र आत्मा और विश्वास से पूर्ण एक उत्तम पुरुष था। फिर प्रभु के साथ एक विशाल जनसमूह और जुड़ गया।

25 बरनाबास शाऊल को खोजने तरसुस को चला गया। 26 फिर वह उसे ढूँढ कर अन्ताकिया ले आया। सारे साल वे कलीसिया से मिलते जुलते और विशाल जनसमूह को उपदेश देते रहे। अन्ताकिया में सबसे पहले इन्हीं शिष्यों को “मसीही” कहा गया।

27 इसी समय यरूशलेम से कुछ नबी अन्ताकिया आये। 28 उनमें से अगबुस नाम के एक भविष्यवक्ता ने खड़े होकर पवित्र आत्मा के द्वारा यह भविष्यवाणी की सारी दुनिया में एक भयानक अकाल पड़ने वाला है (क्लोदियुस के काल में यह अकाल पड़ा था।) 29 तब हर शिष्य ने अपनी शक्ति के अनुसार यहूदिया में रहने वाले बन्धुओं की सहायता के लिये कुछ भेजने का निश्चय किया था। 30 सो उन्होंने ऐसा ही किया और उन्होंने बरनाबास और शाऊल के हाथों अपने बुजुर्गों के पास अपने उपहार भेजे।

हेरोदेस का कलीसिया पर अत्याचार

12 उसी समय के आसपास राजा हेरोदेस[c] ने कलीसिया के कुछ सदस्यों को सताना प्रारम्भ कर दिया। उसने यूहन्ना के भाई याकूब की तलवार से हत्या करवा दी। उसने जब यह देखा कि इस बात से यहूदी प्रसन्न होते हैं तो उसने पतरस को भी बंदी बनाने के लिये हाथ बढ़ाया (यह बिना ख़मीर की रोटी के उत्सव के दिनों की बात है) हेरोदेस ने पतरस को पकड़ कर जेल में डाल दिया। उसे चार चार सैनिकों की चार पंक्तियों के पहरे के हवाले कर दिया गया। प्रयोजन यह था कि उस पर मुकदमा चलाने के लिये फसह पर्व के बाद उसे लोगों के सामने बाहर लाया जाये। सो पतरस को जेल में रोके रखा गया। उधर कलीसिया ह्रदय से उसके लिये परमेश्वर से प्रार्थना करती रही।

जेल से पतरस का छुटकारा

जब हेरोदेस मुकदमा चलाने के लिये उसे बाहर लाने को था, उस रात पतरस दो सैनिकों के बीच सोया हुआ था। वह दो ज़ंजीरों से बँधा था और द्वार पर पहरेदार जेल की रखवाली कर रहे थे। अचानक प्रभु का एक स्वर्गदूत वहाँ आकर खड़ा हुआ, जेल की कोठरी प्रकाश से जगमग हो उठी, उसने पतरस की बगल थपथपाई और उसे जगाते हुए कहा, “जल्दी खड़ा हो।” जंजीरें उसके हाथों से खुल कर गिर पड़ी। तभी स्वर्गदूत ने उसे आदेश दिया, “तैयार हो और अपनी चप्पल पहन ले।” सो पतरस ने वैसा ही किया। स्वर्गदूत ने उससे फिर कहा, “अपना चोगा पहन ले और मेरे पीछे चला आ।”

फिर उसके पीछे-पीछे पतरस बाहर निकल आया। वह समझ नहीं पाया कि स्वर्गदूत जो कुछ कर रहा था, वह यथार्थ था। उसने सोचा कि वह कोई दर्शन देख रहा है। 10 पहले और दूसरे पहरेदार को छोड़ कर आगे बढ़ते हुए वे लोहे के उस फाटक पर आ पहुँचे जो नगर की ओर जाता था। वह उनके लिये आप से आप खुल गया। और वे बाहर निकल गये। वे अभी गली पार ही गये थे कि वह स्वर्गदूत अचानक उसे छोड़ गया।

11 फिर पतरस को जैसे होश आया, वह बोला, “अब मेरी समझ में आया कि यह वास्तव में सच है कि प्रभु ने अपने स्वर्गदूत को भेज कर हेरोदेस के पंजे से मुझे छुड़ाया है। यहूदी लोग मुझ पर जो कुछ घटने की सोच रहे थे, उससे उसी ने मुझे बचाया है।”

12 जब उसने यह समझ लिया तो वह यूहन्ना की माता मरियम के घर चला गया। यूहन्ना जो मरकुस भी कहलाता है। वहाँ बहुत से लोग एक साथ प्रार्थना कर रहे थे। 13 पतरस ने द्वार को बाहर से खटखटाया। उसे देखने रूदे नाम की एक दासी वहाँ आयी। 14 पतरस की आवाज को पहचान कर आनन्द के मारे उसके लिये द्वार खोले बिना ही वह उल्टे भीतर दौड़ गयी और उसने बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है। 15 वे उससे बोले, “तू पागल हो गयी है।” किन्तु वह बलपूर्वक कहती रही कि यह ऐसा ही है। इस पर उन्होंने कहा, “वह उसका स्वर्गदूत होगा।”

16 उधर पतरस द्वार खटखटाता ही रहा। फिर उन्होंने जब द्वार खोला और उसे देखा तो वे अचरज में पड़ गये। 17 उन्हें हाथ से चुप रहने का संकेत करते हुए उसने खोलकर बताया कि प्रभु ने उसे जेल से कैसे बाहर निकाला है। उसने कहा, “याकूब तथा अन्य बन्धुओं को इस विषय में बता देना।” और तब वह उस स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान को चला गया।

18 जब भोर हुई तो पहरेदारों में बड़ी खलबली फैल गयी। वे अचरज में पड़े सोच रहे थे कि पतरस के साथ क्या हुआ होगा। 19 इसके बाद हेरोदेस जब उसकी खोज बीन कर चुका और वह उसे नहीं मिला तो उसने पहरेदारों से पूछताछ की और उन्हें मार डालने की आज्ञा दी।

हेरोदेस की मृत्यु

हेरोदेस फिर यहूदिया से जा कर कैसरिया में रहने लगा। वहाँ उसने कुछ समय बिताया। 20 वह सूर और सैदा के लोगों से बहुत क्रोधित रहता था। वे एक समूह बनाकर उससे मिलने आये। राजा के निजी सेवक बलासतुस को मनाकर उन्होंने हेरोदेस से शांति की प्रार्थना की क्योंकि उनके देश को राजा के देश से ही खाने को मिलता था।

21 एक निश्चित दिन हेरोदेस अपनी राजसी वेश-भूषा पहन कर अपने सिंहासन पर बैठा और लोगों को भाषण देने लगा। 22 लोग चिल्लाये, “यह तो किसी देवता की वाणी है, मनुष्य की नहीं।” 23 क्योंकि हेरोदेस ने परमेश्वर को महिमा प्रदान नहीं की थी, इसलिए तत्काल प्रभु के एक स्वर्गदूत ने उसे बीमार कर दिया। और उसमें कीड़े पड़ गये जो उसे खाने लगे और वह मर गया।

24 किन्तु परमेश्वर का वचन प्रचार पाता रहा और फैलता रहा।

25 बरनाबास और शाऊल यरूशलेम में अपना काम पूरा करके मरकुस कहलाने वाले यूहन्ना को भी साथ लेकर अन्ताकिया लौट आये।

बरनाबास और शाऊल का चुना जाना

13 अन्ताकिया के कलीसिया में कुछ नबी और बरनाबास, काला कहलाने वाला शमौन, कुरेन का लूकियुस, देश के चौथाई भाग के राजा हेरोदेस के साथ पालितपोषित मनाहेम और शाऊल जैसे कुछ शिक्षक थे। वे जब उपवास करते हुए प्रभु की उपासना में लगे हुए थे, तभी पवित्र आत्मा ने कहा, “बरनाबास और शाऊल को जिस काम के लिये मैंने बुलाया है, उसे करने के लिये मेरे निमित्त, उन्हें अलग कर दो।”

सो जब शिक्षक और नबी अपना उपवास और प्रार्थना पूरी कर चुके तो उन्होंने बरनाबास और शाऊल पर अपने हाथ रखे और उन्हें विदा कर दिया।

बरनाबास और शाऊल की साइप्रस यात्रा

पवित्र आत्मा के द्वारा भेजे हुए वे सिलुकिया गये जहाँ से जहाज़ में बैठ कर वे साइप्रस पहुँचें। फिर जब वे सलमीस पहुँचे तो उन्होंने यहूदियों के आराधनालयों में परमेश्वर के वचन का प्रचार किया। यूहन्ना सहायक के रूप में उनके साथ था।

उस समूचे द्वीप की यात्रा करते हुए वे पाफुस तक जा पहुँचे। वहाँ उन्हें एक जादूगर मिला, वह झूठा नबी था। उस यहूदी का नाम था बार-यीशु। वह एक अत्यंत बुद्धिमान पुरुष था। वह राज्यपाल सिरगियुस पौलुस का सेवक था जिसने परमेश्वर का वचन फिर सुनने के लिये बरनाबास और शाऊल को बुलाया था। किन्तु इलीमास जादूगर ने उनका विरोध किया। (यह बार-यीशु का अनुवादित नाम है।) उसने नगर-पति के विश्वास को डिगाने का जतन किया। फिर शाऊल ने (जिसे पौलुस भी कहा जाता था,) पवित्र आत्मा से अभिभूत होकर इलीमास पर पैनी दृष्टि डालते हुए कहा, 10 “सभी प्रकार के छलों और धूर्तताओं से भरे, और शैतान के बेटे, तू हर नेकी का शत्रु है। क्या तू प्रभु के सीधे-सच्चे मार्ग को तोड़ना मरोड़ना नहीं छोड़ेगा? 11 अब देख प्रभु का हाथ तुझ पर आ पड़ा है। तू अंधा हो जायेगा और कुछ समय के लिये सूर्य तक को नहीं देख पायेगा।”

तुरन्त एक धुंध और अँधेरा उस पर छा गया और वह इधर-उधर टटोलने लगा कि कोई उसका हाथ पकड़ कर उसे चलाये। 12 सो नगर-पति ने, जो कुछ घटा था, जब उसे देखा तो उसने विश्वास धारण किया। वह प्रभु सम्बन्धी उपदेशों से बहुत चकित हुआ।

पौलुस और बरनाबास का साइप्रस से प्रस्थान

13 फिर पौलुस और उसके साथी पाफुस से नाव के द्वारा पम्फूलिया के पिरगा में आ गये। किन्तु यूहन्ना उन्हें वहीं छोड़ कर यरूशलेम लौट आया। 14 उधर वे अपनी यात्रा पर बढ़ते हुए पिरगा से पिसिदिया के अन्ताकिया में आ पहुँचे।

फिर सब्त के दिन यहूदी आराधनालय में जा कर बैठ गये। 15 व्यवस्था के विधान और नबियों के ग्रन्थों का पाठ कर चुकने के बाद यहूदी प्रार्थना सभागार के अधिकारियों ने उनके पास यह संदेश कहला भेजा, “हे भाईयों, लोगों को शिक्षा देने के लिये तुम्हारे पास कहने को कोई और वचन है तो उसे सुनाओ।”

16 इस पर पौलुस खड़ा हुआ और अपने हाथ हिलाते हुए बोलने लगा, “हे इस्राएल के लोगों और परमेश्वर से डरने वाले ग़ैर यहूदियों सुनो: 17 इन इस्राएल के लोगों के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुना था और जब हमारे लोग मिसरमें ठहरे हुए थे, उसने उन्हें महान् बनाया था और अपनी महान शक्ति से ही वह उनको उस धरती से बाहर निकाल लाया था। 18 और लगभग चालीस वर्ष तक वह जंगल में उनके साथ रहा। 19 और कनान देश की सात जातियों को नष्ट करके उसने वह धरती इस्राएल के लोगों को उत्तराधिकार के रूप में दे दी। 20 इस सब कुछ में कोई लगभग साढ़े चार सौ वर्ष लगे।

“इसके बाद शमूएल नबी के समय तक उसने उन्हें अनेक न्यायकर्ता दिये। 21 फिर उन्होंने एक राजा की माँग की, सो परमेश्वर ने बिन्यामीन के गोत्र के एक व्यक्ति कीश के बेटे शाऊल को चालीस साल के लिये उन्हें दे दिया। 22 फिर शाऊल को हटा कर उसने उनका राजा दाऊद को बनाया जिसके विषय में उसने यह साक्षी दी थी, ‘मैंने यिशे के बेटे दाऊद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पाया है, जो मेरे मन के अनुकूल है। जो कुछ मैं उससे कराना चाहता हूँ, वह उस सब कुछ को करेगा।’

23 “इस ही मनुष्य के एक वंशज को अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार परमेश्वर इस्राएल में उद्धारकर्ता यीशु के रूप में ला चुका है। 24 उसके आने से पहले यूहन्ना इस्राएल के सभी लोगों में मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करता रहा है। 25 यूहन्ना जब अपने काम को पूरा करने को था, तो उसने कहा था, ‘तुम मुझे जो समझते हो, मैं वह नहीं हूँ। किन्तु एक ऐसा है जो मेरे बाद आ रहा है। मैं जिसकी जूतियों के बन्ध खोलने के लायक भी नहीं हूँ।’

26 “भाईयों, इब्राहीम की सन्तानो और परमेश्वर के उपासक ग़ैर यहूदियो! उद्धार का यह सुसंदेश हमारे लिए ही भेजा गया है। 27 यरूशलेम में रहने वालों और उनके शासकों ने यीशु को नहीं पहचाना। और उसे दोषी ठहरा दिया। इस तरह उन्होंने नबियों के उन वचनों को ही पूरा किया जिनका हर सब्त के दिन पाठ किया जाता है। 28 और यद्यपि उन्हें उसे मृत्यु दण्ड देने का कोई आधार नहीं मिला, तो भी उन्होंने पिलातुस से उसे मरवा डालने की माँग की।

29 “उसके विषय में जो कुछ लिखा था, जब वे उस सब कुछ को पूरा कर चुके तो उन्होंने उसे क्रूस पर से नीचे उतार लिया और एक कब्र में रख दिया। 30 किन्तु परमेश्वर ने उसे मरने के बाद फिर से जीवित कर दिया। 31 और फिर जो लोग गलील से यरूशलेम तक उसके साथ रहे थे वह उनके सामने कई दिनों तक प्रकट होता रहा। ये अब लोगों के लिये उसकी साक्षी हैं।

32 “हम तुम्हें उस प्रतिज्ञा के विषय में सुसमाचार सुना रहे हैं जो हमारे पूर्वजों के साथ की गयी थी। 33 यीशु को मर जाने के बाद पुनर्जीवित करके, उनकी संतानों के लिये परमेश्वर ने उसी प्रतिज्ञा को हमारे लिए पूराकिया है। जैसा कि भजन संहिता के दूसरे भजन में लिखा भी गया है:

‘तू मेरा पुत्र है,
    मैं ने तुझे आज ही जन्म दिया है।’(J)

34 और उसने उसे मरे हुओं में से जिला कर उठाया ताकि क्षय होने के लिये उसे फिर लौटाना न पड़े। उसने इस प्रकार कहा था:

‘मैं तुझे वह पवित्र और अटल आषीष दूँगा जिन्हें देने का वचन मैंने दाऊद को दिया था।’(K)

35 इसी प्रकार एक अन्य भजन संहिता में वह कहता है:

‘तू अपने उस पवित्र जन को क्षय का अनुभव नहीं होने देगा।’(L)

36 फिर दाऊद अपने युग में परमेश्वर के प्रयोजन के अनुसार अपना सेवा-कार्य पूरा करके चिर-निद्रा में सो गया। उसे उसके पूर्वजों के साथ दफना दिया गया और उसका क्षय हुआ। 37 किन्तु जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं के बीच से जिला कर उठाया उसका क्षय नहीं हुआ। 38-39 सो हे भाईयों, तुम्हें जान लेना चाहिये कि यीशु के द्वारा ही पापों की क्षमा का उपदेश तुम्हें दिया गया है। और इसी के द्वारा हर कोई जो विश्वासी है, उन पापों से छुटकारा पा सकता है, जिनसे तुम्हें मूसा की व्यवस्था छुटकारा नही दिला सकती थी। 40 सो सावधान रहो, कहीं नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम पर न घट जाये:

41 ‘निन्दा करने वालो, देखो,
    भौचक्के हो कर मर जाओ;
क्योंकि तुम्हारे युग में
    एक कार्य ऐसा करता हूँ,
जिसकी चर्चा तक पर तुमको कभी प्रतीति नहीं होने की।’”(M)

42 पौलुस और बरनाबास जब वहाँ से जा रहे थे तो लोगों ने उनसे अगले सब्त के दिन ऐसी ही और बातें बताने की प्रार्थना की। 43 जब सभा समाप्त हुई तो बहुत से यहूदियों और ग़ैर यहूदी भक्तों ने पौलुस और बरनाबास का अनुसरण किया। पौलुस और बरनाबास ने उनसे बातचीत करते हुए आग्रह किया कि वे परमेश्वर के अनुग्रह में स्थिति बनाये रखें।

44 अगले सब्त के दिन तो लगभग समूचा नगर ही प्रभु का वचन सुनने के लिये उमड़ पड़ा। 45 इस विशाल जनसमूह को जब यहूदियों ने देखा तो वे बहुत कुढ़ गये और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए पौलुस ने जो कुछ कहा था, उसका विरोध करने लगे। 46 किन्तु पौलुस और बरनाबास ने निडर होकर कहा, “यह आवश्यक था कि परमेश्वर का वचन पहले तुम्हें सुनाया जाता किन्तु क्योंकि तुम उसे नकारते हो तथा तुम अपने आपको अनन्त जीवन के योग्य नहीं समझते, सो हम अब गैर यहूदियों की ओर मुड़ते हैं। 47 क्योंकि प्रभु ने हमें ऐसी आज्ञा दी है:

‘मैंने तुमको ग़ैर यहूदियों के लिये ज्योति बनाया,
    ताकि धरती के छोर तक सभी के उद्धार का माध्यम हो।’”(N)

48 ग़ैर यहूदियों ने जब यह सुना तो वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रभु के वचन का सम्मान किया। फिर उन्होंने जिन्हें अनन्त जीवन पाने के लिये निश्चित किया था, विश्वास ग्रहण कर लिया।

49 इस प्रकार उस समूचे क्षेत्र में प्रभु के वचन का प्रसार होता रहा। 50 उधर यहूदियों ने उच्च कुल की भक्त महिलाओं और नगर के प्रमुख व्यक्तियों को भड़काया तथा पौलुस और बरनाबास के विरुद्ध अत्याचार करने आरम्भ कर दिये और दबाव डाल कर उन्हें अपने क्षेत्र से बाहर निकलवा दिया। 51 फिर पौलुस और बरनाबास उनके विरोध में अपने पैरों की धूल झाड़ कर इकुनियुम को चल दिये। 52 किन्तु उनके शिष्य आनन्द और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।

इकुनियुम में पौलुस और बरनाबास

14 इसी प्रकार पौलुस और बरनाबास इकुनियुम में यहूदी आराधनालय में गये। वहाँ उन्होंने इस ढंग से व्याख्यान दिया कि यहूदियों के एक विशाल जनसमूह ने विश्वास धारण किया। किन्तु उन यहूदियों ने जो विश्वास नहीं कर सके थे, ग़ैर यहूदियों को भड़काया और बन्धुओं के विरूद्ध उनके मनों में कटुता पैदा कर दी।

सो पौलुस और बरनाबास वहाँ बहुत दिनों तक ठहरे रहे तथा प्रभु के विषय में निर्भयता से प्रवचन करते रहे। उनके द्वारा प्रभु अद्भुत चिन्ह और आश्चर्यकर्मों को करवाता हुआ अपने दया के संदेश की प्रतिष्ठा कराता रहा। उधर नगर के लोगों में फूट पड़ गयी। कुछ प्रेरितों की तरफ और कुछ यहूदियों की तरफ़ हो गये।

फिर जब ग़ैर यहूदियों और यहूदियों ने अपने नेताओं के साथ मिलकर उनके साथ बुरा व्यवहार करने और उन पर पथराव करने की चाल चली। जब पौलुस और बरनाबास को इसका पता चल गया और वे लुकाउनिया के लिस्तरा और दिरबे जैसे नगरों तथा आसपास के क्षेत्र में बच भागे। वहाँ भी वे सुसमाचार का प्रचार करते रहे।

लिस्तरा और दिरबे में पौलुस

लिस्तरा में एक व्यक्ति बैठा हुआ था। वह अपने पैरों से अपंग था। वह जन्म से ही लँगड़ा था, चल फिर तो वह कभी नहीं पाया। इस व्यक्ति ने पौलुस को बोलते हुए सुना था। पौलुस ने उस पर दृष्टि गड़ाई और देखा कि अच्छा हो जाने का विश्वास उसमें है। 10 सो पौलुस ने ऊँचे स्वर में कहा, “अपने पैरों पर सीधा खड़ा हो जा!” सो वह ऊपर उछला और चलने-फिरने लगा।

11 पौलुस ने जो कुछ किया था, जब भीड़ ने उसे देखा तो लोग लुकाउनिया की भाषा में पुकार कर कहने लगे, “हमारे बीच मनुष्यों का रूप धारण करके, देवता उतर आये है!” 12 वे बरनाबास को “ज़ेअस”[d] और पौलुस को “हिरमेस”[e] कहने लगे। पौलुस को हिरमेस इसलिये कहा गया क्योंकि वह प्रमुख वक्ता था। 13 नगर के ठीक बाहर बने ज़ेअस के मन्दिर का याजक नगर द्वार पर साँड़ों और मालाओं को लेकर आ पहुँचा। वह भीड़ के साथ पौलुस और बरनाबास के लिये बलि चढ़ाना चाहता था।

14 किन्तु जब प्रेरित बरनाबास और पौलुस ने यह सुना तो उन्होंने अपने कपड़े फाड़ डाले[f] और वे ऊँचे स्वर में यह कहते हुए भीड़ में घुस गये, 15 “हे लोगो, तुम यह क्यों कर रहे हो? हम भी वैसे ही मनुष्य हैं, जैसे तुम हो। यहाँ हम तुम्हें सुसमाचार सुनाने आये हैं ताकि तुम इन व्यर्थ की बातों से मुड़ कर उस सजीव परमेश्वर की ओर लौटो जिसने आकाश, धरती, सागर और इनमें जो कुछ है, उसकी रचना की।

16 “बीते काल में उसने सभी जातियों को उनकी अपनी-अपनी राहों पर चलने दिया। 17 किन्तु तुम्हें उसने स्वयं अपनी साक्षी दिये बिना नहीं छोड़ा। क्योंकि उसने तुम्हारे साथ भलाइयाँ की। उसने तुम्हें आकाश से वर्षा दी और ऋतु के अनुसार फसलें दी। वही तुम्हें भोजन देता है और तुम्हारे मन को आनन्द से भर देता है।”

18 इन वचनों के बाद भी वे भीड़ को उनके लिये बलि चढ़ाने से प्रायः नहीं रोक पाये।

19 फिर अन्ताकिया और इकुनियुम से आये यहूदियों ने भीड़ को अपने पक्ष में करके पौलुस पर पथराव किया और उसे मरा जान कर नगर के बाहर घसीट ले गये। 20 फिर जब शिष्य उसके चारों ओर इकट्ठे हुए, तो वह उठा और नगर में चला आया और फिर अगले दिन बरनाबास के साथ वह दिरबे के लिए चल पड़ा।

सीरिया के अन्ताकिया को लौटना

21-22 उस नगर में उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करके बहुत से शिष्य बनाये। और उनकी आत्माओं को स्थिर करके विश्वास में बने रहने के लिये उन्हें यह कह कर प्रेरित किया “हमें बड़ी यातनाएँ झेल कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है,” वे लिस्तरा, इकुनियुम और अन्ताकिया लौट आये। 23 हर कलीसिया में उन्होंने उन्हें उस प्रभु को सौंप दिया जिसमें उन्होंने विश्वास किया था।

24 इसके पश्चात पिसिदिया से होते हुए वे पम्फूलिया आ पहुँचे। 25 और पिरगा में जब सुसमाचार सुना चुके तो इटली चले गये। 26 वहाँ से वे अन्ताकिया को जहाज़ द्वारा गये जहाँ जिस काम को अभी उन्होंने पूरा किया था, उस काम के लिये वे परमेश्वर के अनुग्रह को समर्पित हो गये।

27 सो जब वे पहुँचे तो उन्होंने कलीसिया के लोगों को इकट्ठा किया और परमेश्वर ने उनके साथ जो कुछ किया था, उसका विवरण कह सुनाया। और उन्होंने घोषणा की कि परमेश्वर ने विधर्मियों के लिये भी विश्वास का द्वार खोल दिया है। 28 फिर अनुयायियों के साथ वे बहुत दिनों तक वहाँ ठहरे रहे।

यरूशलेम में एक सभा

15 फिर कुछ लोग यहूदिया से आये और भाइयों को शिक्षा देने लगे: “यदि मूसा की विधि के अनुसार तुम्हारा ख़तना नहीं हुआ है तो तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता।” पौलुस और बरनाबास उनसे सहमत नहीं थे, सो उनमें एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ। सो पौलुस बरनाबास तथा उनके कुछ और साथियों को इस समस्या के समाधान के लिये प्रेरितों और मुखियाओं के पास यरूशलेम भेजने का निश्चय किया गया।

वे कलीसिया के द्वारा भेजे जाकर फीनीके और सामरिया होते हुए सभी भाइयों को अधर्मियों के हृदय परिवर्तन का विस्तार के साथ समाचार सुनाकर उन्हें हर्षित कर रहे थे। फिर जब वे यरूशलेम पहुँचे तो कलीसिया ने, प्रेरितों ने और बुजुर्गों ने उनका स्वागत सत्कार किया। और उन्होंने उनके साथ परमेश्वर ने जो कुछ किया था, वह सब कुछ उन्हें कह सुनाया। इस पर फरीसियों के दल के कुछ विश्वासी खड़े हुए और बोले, “उनका ख़तना अवश्य किया जाना चाहिये और उन्हें आदेश दिया जाना चाहिए कि वे मूसा की व्यवस्था के विधान का पालन करें।”

सो इस प्रश्न पर विचार करने के लिये प्रेरित तथा बुजुर्ग लोग परस्पर एकत्र हुए। एक लम्बे चौड़े वाद-विवाद के बाद पतरस खड़ा हुआ और उनसे बोला, “भाइयो! तुम जानते हो कि बहुत दिनों पहले तुममें से प्रभु ने एक चुनाव किया था कि मेरे द्वारा अधर्मी लोग सुसमाचार का संदेश सुनेंगे और विश्वास करेंगे। और अन्तर्यामी परमेश्वर ने हमारे ही समान उन्हें भी पवित्र आत्मा का वरदान देकर, उनके सम्बन्ध में अपना समर्थन दर्शाया था। विश्वास के द्वारा उनके हृदयों को पवित्र करके हमारे और उनके बीच उसने कोई भेद भाव नहीं किया। 10 सो अब शिष्यों की गर्दन पर एक ऐसा जुआ लाद कर जिसे न हम उठा सकते हैं और न हमारे पूर्वज, तुम परमेश्वर को झमेले में क्यों डालते हो? 11 किन्तु हमारा तो यह विश्वास है कि प्रभु यीशु के अनुग्रह से जैसे हमारा उद्धार हुआ है, वैसे ही हमें भरोसा है कि उनका भी उद्धार होगा।”

12 इस पर समूचा दल चुप हो गया और बरनाबास तथा पौलुस को सुनने लगा। वे, ग़ैर यहूदियों के बीच परमेश्वर ने उनके द्वारा दो अद्भुत चिन्ह प्रकट किए और आश्चर्य कर्म किये थे, उनका विवरण दे रहे थे। 13 वे जब बोल चुके तो याकूब कहने लगा, “हे भाइयो, मेरी सुनो। 14 शमौन ने बताया था कि परमेश्वर ने ग़ैर यहूदियों में से कुछ लोगों को अपने नाम के लिये चुनकर सर्वप्रथम कैसे प्रेम प्रकट किया था। 15 नबियों के वचन भी इसका समर्थन करते हैं। जैसा कि लिखा गया है:

16 ‘मैं इसके बाद आऊँगा।
    फिर से मैं खड़ा करूँगा
    दाऊद के उस घर को जो गिर चुका।
फिर से सँवारूँगा
    उसके खण्डहरों को जीर्णोद्धार करूँगा।
17 ताकि जो बचे हैं वे ग़ैर यहूदी
    सभी जो अब
मेरे कहलाते हैं,
    प्रभु की खोज करें।’(O)

18 ‘यह बात वही प्रभु कहता है जो युगयुग से इन बातों को प्रकट करता रहा है।’

19 “इस प्रकार मेरा यह निर्णय है कि हमें उन लोगों को, जो गैर यहूदी होते हुए भी परमेश्वर की ओर मुड़े हैं, सताना नहीं चाहिये। 20 बल्कि हमें तो उनके पास लिख भेजना चाहिये कि:

मूर्तियों पर चढ़ाया गया भोजन तुम्हें नहीं लेना चाहिये।

और व्यभिचार से बचे रहे।

गला घोंट कर मारे गये किसी भी पशु का माँस खाने से बचें और लहू को कभी न खायें।

21 अनादि काल से मूसा की व्यवस्था के विधान का पाठ करने वाले नगर-नगर में पाए जाते रहे हैं। हर सब्त के दिन मूसा की व्यवस्था के विधान का आराधनालयों में पाठ होता रहा है।”

ग़ैर यहूदी विश्वासियों के नाम पत्र

22 फिर प्रेरितों और बुजुर्गों ने समूचे कलीसिया के साथ यह निश्चय किया कि उन्हीं में से कुछ लोगों को चुनकर पौलुस और बरनाबास के साथ अन्ताकिया भेजा जाये। सो उन्होंने बरसब्बा कहे जाने वाले यहूदा और सिलास को चुन लिया। वे भाइयों में सर्व प्रमुख थे। 23 उन्होंने उनके हाथों यह पत्र भेजा:

तुम्हारे बंधु, बुजुर्गों और प्रेरितों की ओर से

अन्ताकिया, सीरिया और किलिकिया के

गैर यहूदी भाईयों को नमस्कार पहुँचे।

प्यारे भाईयों:

24 हमने जब से यह सुना है कि हमसे कोई आदेश पाये बिना ही, हममें से कुछ लोगों ने जाकर अपने शब्दों से तुम्हें दुःख पहुँचाया है, और तुम्हारे मन को अस्थिर कर दिया है 25 हम सबने परस्पर सहमत होकर यह निश्चय किया है कि हम अपने में से कुछ लोग चुनें और अपने प्रिय बरनाबास और पौलुस के साथ उन्हें तुम्हारे पास भेजें। 26 ये वे ही लोग हैं जिन्होंने हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिये अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी थी। 27 हम यहूदा और सिलास को भेज रहे हैं। वे तुम्हें अपने मुँह से इन सब बातों को बताएँगे। 28 पवित्र आत्मा को और हमें यही उचित जान पड़ा कि तुम पर इन आवश्यक बातों के अतिरिक्त और किसी बात का बोझ न डाला जाये:

29 मूर्तियों पर चढ़ाया गया भोजन तुम्हें नहीं लेना चाहिये।

गला घोंट कर मारे गये किसी भी पशु का मांस खाने से बचें और लहू को कभी न खायें।

व्यभिचार से बचे रहो।

यदि तुम ने अपने आपको इन बातों से बचाये रखा तो तुम्हारा कल्याण होगा।

अच्छा विदा।

30 इस प्रकार उन्हें विदा कर दिया गया और वे अंताकिया जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने धर्म-सभा बुलाई और उन्हें वह पत्र दे दिया। 31 पत्र पढ़ कर जो प्रोत्साहन उन्हें मिला, उस पर उन्होंने आनन्द मनाया। 32 यहूदा और सिलास ने, जो स्वयं ही दोनों नबी थे, भाईयों के सामने उन्हें उत्साहित करते हुए और दृढ़ता प्रदान करते हुए, एक लम्बा प्रवचन किया। 33 वहाँ कुछ समय बिताने के बाद, भाईयों ने उन्हें शांतिपूर्वक उन्हीं के पास लौट जाने को विदा किया जिन्होंने उन्हें भेजा था। 34 [g]

35 पौलुस तथा बरनाबास ने अन्ताकिया में कुछ समय बिताया। बहुत से दूसरे लोगों के साथ उन्होंने प्रभु के वचन का उपदेश देते हुए लोगों में सुसमाचार का प्रचार किया।

पौलुस और बरनाबास का अलग होना

36 कुछ दिनों बाद बरनाबास से पौलुस ने कहा, “आओ, जिन-जिन नगरों में हमनें प्रभु के वचन का प्रचार किया है, वहाँ अपने भाइयों के पास वापस चल कर यह देखें कि वे क्या कुछ कर रहे हैं।”

37 बरनाबास चाहता था कि मरकुस कहलाने वाले यूहन्ना को भी वे अपने साथ ले चलें। 38 किन्तु पौलुस ने यही ठीक समझा कि वे उसे अपने साथ न लें जिसने पम्फूलिया में उनका साथ छोड़ दिया था और (प्रभु के) कार्य में जिसने उनका साथ नहीं निभाया। 39 इस पर उन दोनों में तीव्र विरोध पैदा हो गया। परिणाम यह हुआ कि वे आपस में एक दूसरे से अलग हो गये। बरनाबास मरकूस को लेकर पानी के जहाज़ से साइप्रस चला गया।

40 पौलुस सिलास को चुनकर वहाँ से चला गया और भाइयों ने उसे प्रभु के संरक्षण में सौंप दिया। 41 सो पौलुस सीरिया और किलिकिया की यात्रा करते हुए वहाँ की कलीसिया को सृदृढ़ करता रहा।

तिमुथियुस का पौलुस और सिलास के साथ जाना

16 पौलुस दिरबे और लुस्तरा में भी आया। वहीं तिमुथियुस नामक एक शिष्य हुआ करता था। वह किसी विश्वासी यहूदी महिला का पुत्र था किन्तु उसका पिता यूनानी था। लिस्तरा और इकुनियुम के बंधुओं के साथ उसकी अच्छी बोलचाल थी। पौलुस तिमुथियुस को यात्रा पर अपने साथ ले जाना चाहता था। सो उसे उसने साथ ले लिया और उन स्थानों पर रहने वाले यहूदियों के कारण उसका ख़तना किया; क्योंकि वे सभी जानते थे कि उसका पिता एक यूनानी था।

नगरों से यात्रा करते हुए उन्होंने वहाँ के लोगों को उन नियमों के बारे में बताया जिन्हें यरूशलेम में प्रेरितों और बुजुर्गो ने निश्चित किया था। इस प्रकार वहाँ की कलीसिया का विश्वास और सुदृढ़ होता गया और दिन प्रतिदिन उनकी संख्या बढ़ने लगी।

पौलुस का एशिया से बाहर बुलाया जाना

सो वे फ्रूगिया और गलातिया के क्षेत्र से होकर निकले क्योंकि पवित्र आत्मा ने उन्हें एशिया में वचन सुनाने को मना कर दिया था। फिर वे जब मूसिया की सीमा पर पहुँचे तो उन्होंने बितुनिया जाने का जतन किया। किन्तु यीशु की आत्मा ने उन्हें वहाँ भी नहीं जाने दिया। सो वे मूसिया होते हुए त्रोआस पहुँचे।

रात के समय पौलुस ने दिव्यदर्शन में देखा कि मकिदुनिया का एक पुरुष उस से प्रार्थना करते हुए कह रहा है, “मकिदुनिया में आ और हमारी सहायता कर।” 10 इस दिव्यदर्शन को देखने के बाद तुरन्त ही यह परिणाम निकालते हुए कि परमेश्वर ने उन लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार करने हमें बुलाया है, हमने मकिदुनिया जाने की ठान ली।

लीदिया का ह्रदय परिवर्तन

11 इस प्रकार हमने त्रोआस से जल मार्ग द्वारा जाने के लिये अपनी नावें खोल दीं और सीधे समोथ्रोके जा पहुँचे। फिर अगले दिन नियापुलिस चले गये। 12 वहाँ से हम एक रोमी उपनिवेश फिलिप्पी पहुँचे जो मकिदुनिया के उस क्षेत्र का एक प्रमुख नगर है। इस नगर में हमने कुछ दिन बिताये।

13 फिर सब्त के दिन यह सोचते हुए कि प्रार्थना करने के लिये वहाँ कोई स्थान होगा हम नगर-द्वार के बाहर नदी पर गये। हम वहाँ बैठ गये और एकत्र स्त्रियों से बातचीत करने लगे। 14 वहीं लीदिया नाम की एक महिला थी। वह बैंजनी रंग के कपड़े बेचा करती थी। वह परमेश्वर की उपासक थी। वह बड़े ध्यान से हमारी बातें सुन रही थी। प्रभु ने उसके ह्रदय के द्वार खोल दिये थे ताकि, जो कुछ पौलुस कह रहा था, वह उन बातों पर ध्यान दे सके। 15 अपने समूचे परिवार समेत बपतिस्मा लेने के बाद उसने हमसे यह कहते हुए विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु की सच्ची भक्त मानते हो तो आओ और मेरे घर ठहरो।” सो उसने हमें जाने के लिए तैयार कर लिया।

पौलुस और सिलास को बंदी बनाया जाना

16 फिर ऐसा हुआ कि जब हम प्रार्थना स्थल की ओर जा रहे थे, हमें एक दासी मिली जिसमें एक शकुन बताने वाली आत्मा[h] समायी थी। वह लोगों का भाग्य बता कर अपने स्वामियों को बहुत सा धन कमा कर देती थी। 17 वह हमारे और पौलुस के पीछे पीछे यह चिल्लाते हुए हो ली, “ये लोग परम परमेश्वर के सेवक हैं। ये तुम्हें मुक्ति के मार्ग का संदेश सुना रहे हैं।” 18 वह बहुत दिनों तक ऐसा ही करती रही सो पौलुस परेशान हो उठा। उसने मुड़ कर उस आत्मा से कहा, “मैं यीशु मसीह के नाम पर तुझे आज्ञा देता हूँ, इस लड़की में से बाहर निकल आए।” सो वह उसमें से तत्काल बाहर निकल गयी।

19 फिर उसके स्वामियों ने जब देखा कि उनकी कमाई की आशा पर ही पानी फिर गया है तो उन्होंने पौलुस और सिलास को धर दबोचा और उन्हें घसीटते हुए बाजार के बीच अधिकारियों के सामने ले गये। 20 फिर दण्डनायक के पास उन्हें ले जाकर वे बोले, “ये लोग यहूदी हैं और हमारे नगर में गड़बड़ी फैला रहे हैं। 21 ये ऐसे रीति रिवाजों की वकालत करते हैं जिन्हें अपनाना या जिन पर चलना हम रोमियों के लिये न्यायपूर्ण नहीं है।”

22 भीड़ भी विरोध में लोगों के साथ हो कर उन पर चढ़ आयी। दण्डाधिकारी ने उनके कपड़े फड़वा कर उतरवा दिये और आज्ञा दी कि उन्हें पीटा जाये। 23 उन पर बहुत मार पड़ चुकने के बाद उन्होंने उन्हें जेल में डाल दिया और जेल के अधिकारी को आज्ञा दी कि उन पर कड़ा पहरा बैठा दिया जाये। 24 ऐसी आज्ञा पाकर उसने उन्हें जेल की भीतरी कोठरी में डाल दिया। उसने उनके पैर काठ में कस दिये।

25 लगभग आधी रात गये पौलुस और सिलास परमेश्वर के भजन गाते हुए प्रार्थना कर रहे थे और दूसरे क़ैदी उन्हें सुन रहे थे। 26 तभी वहाँ अचानक एक ऐसा भयानक भूकम्प हुआ कि जेल की नीवें हिल उठीं। और तुरंत जेल के फाटक खुल गये। हर किसी की बेड़ियाँ ढीली हो कर गिर पड़ीं। 27 जेल के अधिकारी ने जाग कर जब देखा कि जेल के फाटक खुले पड़े हैं तो उसने अपनी तलवार खींच ली और यह सोचते हुए कि कैदी भाग निकले हैं वह स्वयं को जब मारने ही वाला था तभी 28 पौलुस ने ऊँचे स्वर में पुकारते हुए कहा, “अपने को हानि मत पहुँचा क्योंकि हम सब यहीं हैं!”

29 इस पर जेल के अधिकारी ने मशाल मँगवाई और जल्दी से भीतर गया। और भय से काँपते हुए पौलुस और सिलास के सामने गिर पड़ा। 30 फिर वह उन्हें बाहर ले जा कर बोला, “महानुभावो, उद्धार पाने के लिये मुझे क्या करना चाहिये?”

31 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु यीशु पर विश्वास कर। इससे तेरा उद्धार होगा-तेरा और तेरे परिवार का।” 32 फिर उसके समूचे परिवार के साथ उन्होंने उसे प्रभु का वचन सुनाया। 33 फिर जेल का वह अधिकारी उसी रात और उसी घड़ी उन्हें वहाँ से ले गया। उसने उनके घाव धोये और अपने सारे परिवार के साथ उनसे बपतिस्मा लिया। 34 फिर वह पौलुस और सिलास को अपने घर ले आया और उन्हें भोजन कराया। परमेश्वर में विश्वास ग्रहण कर लेने के कारण उसने अपने समूचे परिवार के साथ आनन्द मनाया।

35 जब पौ फटी तो दण्डाधिकारियों ने यह कहने अपने सिपाहियों को वहाँ भेजा कि उन लोगों को छोड़ दिया जाये।

36 फिर जेल के अधिकारी ने ये बातें पौलुस को बतायीं कि दण्डाधिकारी ने तुम्हें छोड़ देने के लिये कहलवा भेजा है। इसलिये अब तुम बाहर आओ और शांति के साथ चले जाओ।

37 किन्तु पौलुस ने उन सिपाहियों से कहा, “यद्यपि हम रोमी नागरिक हैं पर उन्होंने हमें अपराधी पाये बिना ही सब के सामने मारा-पीटा और जेल में डाल दिया। और अब चुपके-चुपके वे हमें बाहर भेज देना चाहते हैं, निश्चय ही ऐसा नहीं होगा। होना तो यह चाहिये के वे स्वयं आ कर हमें बाहर निकालें!”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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