Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
अनुसरण करने योग्य मसीह येशु
12 इसलिए जब हमारे चारों ओर गवाहों का ऐसा विशाल बादल छाया हुआ है, हम भी हर एक रुकावट तथा पाप से, जो हमें अपने फन्दे में उलझा लेता है, छूट कर अपने लिए निर्धारित दौड़ में धीरज के साथ आगे बढ़ते जाएँ, 2 हम अपनी दृष्टि मसीह येशु—हमारे विश्वास के कर्ता तथा सिद्ध करने वाले पर लगाए रहें, जिन्होंने उस आनन्द के लिए, जो उनके लिए निर्धारित किया गया था, लज्जा की चिन्ता न करते हुए क्रूस की मृत्यु सह ली और परमेश्वर के सिंहासन की दाईं ओर बैठ गए. 3 उन पर विचार करो, जिन्होंने पापियों द्वारा दिए गए घोर कष्ट इसलिए सह लिए कि तुम निराश होकर साहस न छोड़ दो.
शिष्यों के साथ मसीह येशु का अन्तिम भोज
(मत्ति 26:20-30; मारक 14:17-26; लूकॉ 22:14-30)
21 यह कहते-कहते मसीह येशु आत्मा में व्याकुल हो उठे. उन्होंने कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम में से एक मेरे साथ धोखा करेगा.”
22 शिष्य संदेह में एक दूसरे को देखने लगे कि गुरु यह किसके विषय में कह रहे हैं. 23 एक शिष्य, जो मसीह येशु का विशेष प्रियजन था, उनके अत्यन्त पास बैठा था; 24 शिमोन पेतरॉस ने उससे संकेत से पूछा, “प्रभु ऐसा किसके विषय में कह रहे हैं?”
25 उस शिष्य ने मसीह येशु से पूछा, “कौन है वह, प्रभु?” 26 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जिसे मैं यह रोटी डुबो कर दूँगा, वह.” तब उन्होंने रोटी शिमोन के पुत्र कारियोतवासी यहूदाह को दे दी. 27 टुकड़ा लेते ही उसमें शैतान समा गया. मसीह येशु ने उससे कहा.
“तुम्हें जो कुछ करना है, शीघ्र करो.”
28 भोजन पर बैठे किसी भी शिष्य को यह मालूम न हो पाया कि उन्होंने यह उससे किस मतलब से कहा था. 29 कुछ ने यह समझा कि मसीह येशु उससे कह रहे हैं कि जो कुछ हमें पर्व के लिए चाहिए, शीघ्र मोल लो या गरीबों को कुछ दे दो क्योंकि यहूदाह के पास धन की थैली रहती थी. 30 इसलिए यहूदाह तत्काल बाहर चला गया. वह रात का समय था.
निकट आती विदाई तथा एक नई आज्ञा
31 जब यहूदाह बाहर चला गया तो मसीह येशु ने कहा, “अब मनुष्य का पुत्र महिमित हुआ है और उसमें परमेश्वर महिमित हुए हैं. 32 यदि उसमें परमेश्वर महिमित हुए हैं तो परमेश्वर भी उसे स्वयं महिमित करेंगे और शीघ्र ही महिमित करेंगे.
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