Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
5 हे यहोवा, तोहार बिस्ससनीय पिरेम अकासे स भी ऊँच बाटइ।
हे यहोवा, तोहार सच्चाई बादर स भी ऊँच बाटइ।
6 हे यहोवा, तोहार धर्मी भावना सबन त ऊँची पर्वते स भी ऊँची बाटइ।
तोहार सोभा गहिर सागर स भी गहिर अहइ।
हे यहोवा, तू मनइयन अउ गोरूअन क रच्छक अहा।
7 तोहरी करुणा स जियादा मूल्यवान कछू भी नाहीं अहइ।
मनई अउ दूत तोहरे सरण मँ आवा अहइँ।
8 हे यहोवा, तोहरे मन्दिर क उत्तिम बातन स उ सबइ नई सक्ती पावत हीं।
तू ओनका आपन अद्भुत नदी क पानी क पिअइ देत अहा।
9 हे यहोवा, तोहसे जिन्नगी क झरना फूटत ह!
तोहार जोति ही हमका प्रकास देखाँवत ह।
10 हे यहोवा, जउन तोहका सच्चाई स जानत हीं, ओनसे पिरेम करत रहा।
ओन लोगन पइ तू आपन खुद क नेकी बरसावा जउन तोहरे बरे सच्चा अहइँ।
19 मइँ यानी यहोवा अपने स कहेउँ,
“मइँ तू पचन स आपन बचवन क नाई बेउहार करइ चाहत हउँ,
मइँ तू पचन्क एक सुहावना देस देइ चाहत हउँ।
उ देस जउन कउनो भी रास्ट्र स जियादा सुन्नर होइ।
मइँ सोचे रहेउँ कि तू पचे मोका ‘बाप’ कहब्या।
मइँ सोचे रहेउँ कि तू पचे मोर सदैव अनुसरण करब्या।
20 मुला तू पचे उ मेहरारू क नाई भया जउन पतिव्रता नाहीं रही।
इस्राएल क परिवार, तू पचे मोरे बरे बिस्सासघाती रह्या।”
इ सँदेसा यहोवा क रहा।
21 “तू पचे नंगी पहाड़ियन पइ रोउब सुन सकत ह।
इस्राएल क लोग कृपा बरे रोवत रहेन अउर पराथना करत अहइँ।
उ पचे बहोत बुरा होइ ग रहेन।
उ पचे आपन परमेस्सर यहोवा क बिसरी ग रहेन।
22 “इस्राएल क अबिस्सासी लोगो, तू पचे मोरे लगे लउटि आवा,
अउर मइँ तोहरे पचन्क अबिस्सासी होइ क अपराध क छिमा करब।
“लोगन क कहइ चाहीं, ‘हाँ, हम लोग तोहरे लगे आउब
तू हमार परमेस्सर यहोवा अहा।
23 निहचय ही पहाड़ियन पइ देवमूरतियन क पूजा
अउर पहाड़न पइ जमा होइ सिरिफ झूठी आसा देत ह।
निहचय ही, इस्राएल क मुक्ति,
यहोवा आपन परमेस्सर स आवत ह।
24 उ मुरतियन हमरे पुरखन क हर एक चीज
बलि क रूप मँ हम लोगन क बचपन क अमइ स ही खाएस।
उ मूरितयन हमरे पुरखन क पसु,
भेड़ी, पूत, बिटिया लिहस।
25 हम पचन्क आपन लाज मँ,
माथा टेकइ चाही,
लज्जा हम लोगन क कम्बल क नाई ढाँप लाइ।
हम अउर हमार पुरखन आपन परमेस्सर यहोवा क खिलाफ पाप किहे अही।
हम आपन परमेस्सर यहोवा क आग्या
आपन बचपन स ही नाहीं माने अही।’”
बियाह
7 अब इन बातन क बारे मँ जउन तू लिखे रह्या: अच्छा इ बा कि कउनउ मनई कीहीउ स्त्री स बियाह न करइ। 2 मुला यौन अनैतिकता क घटना क सम्भावनावन क कारण हर पुरूस क आपन पत्नी होइ चाही अउर हर स्त्री क आपन पति। 3 पति क चाही कि पत्नी क रूप मँ जउन कछू पत्नी क अधिकार बनत ह, ओका देइ। अउर इही तरह पत्नी क भी चाही कि पति क ओकर यथोचित प्रदान करइ। 4 अपने सरीर पर पत्नी क कउनउ अधिकार नाहीं बा, बल्कि ओकरे पति क बा। अउर इही तरह पति क ओकरे अपने सरीर पर कउनउ अधिकार नाहीं बा, बल्कि ओकरे पत्नी क अहइ। 5 अपने आप क पराथना मँ समर्पित करइ क बरे थोड़े समइ तक एक दूसरे स समागम न करइ क आपसी सहमति क छोड़िके, एक दूसरे क संभोग स वंचित जिन करा। फिन आतिमा संयम क अभाउ क कारण कहूँ सइतान तोहे कउनउ परीच्छा मँ न डालि देइ, इही बरे तू फिन समागम कइ ल्या। 6 मइँ इ एक छूट क रूप मँ कहत रहत हउँ, आदेस क रूपें मँ नाहीं।
7 मइँ तउ चाहित हउँ सभन लोग मोरे जइसेन होतेन। मुला हर मनई क परमेस्सर स एक विंशेष बरदान मिला बा। कीहीउ क जिअइ क एक ढंग बात त दुसरे क दूसर।
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version. Copyright © 2005 Bible League International.