Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
16 मसीह येशु नाज़रेथ नगर आए, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ था. शब्बाथ पर अपनी रीति के अनुसार वह यहूदी सभागृह में जा कर पवित्रशास्त्र पढ़ने के लिए खड़े हो गए. 17 उन्हें भविष्यद्वक्ता यशायाह का अभिलेख दिया गया. उन्होंने उसमें वह जगह निकाली, जहाँ लिखा है:
18 “प्रभु का आत्मा मेरे साथ हैं,
क्योंकि उन्होंने कंगालों को सुसमाचार देने के लिए मेरा अभिषेक किया है.
उन्होंने मुझे बन्दियों के छुटकारे का प्रचार, अंधों को रोशनी,
कुचले हुओं को कष्ट से छुड़ाने
19 तथा प्रभु की कृपादृष्टि के समय के प्रचार के लिए भेजा है.”
20 तब उन्होंने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथों में दे दी और स्वयं बैठ गए. सभागृह में हर एक व्यक्ति उन्हें एकटक देख रहा था. 21 मसीह येशु ने आगे कहा, “आज आपके सुनते-सुनते यह लेख पूरा हुआ.”
22 सभी मसीह येशु की सराहना कर रहे थे तथा उनके मुख से निकलने वाले सुन्दर विचारों ने सबको चकित कर रखा था. वे आपस में पूछ रहे थे, “यह योसेफ़ का ही पुत्र है न?”
23 मसीह येशु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “मैं जानता हूँ कि आप मुझसे यह कहना चाहेंगे, ‘अरे चिकित्सक! पहले स्वयं को तो स्वस्थ कर! अपने गृहनगर में भी वह सब कर दिखा, जो हमने तुझे कफ़रनहूम में करते सुना है.’”
24 मसीह येशु ने आगे कहा, “वास्तव में कोई, भी भविष्यद्वक्ता अपने गृहनगर में सम्मान नहीं पाता. 25 सच तो यह है कि एलियाह के समय में जब साढ़े तीन वर्ष वर्षा न हुई, इस्राएल राष्ट्र में अनेक विधवाएँ थीं, तथा सभी राष्ट्र में भयंकर अकाल पड़ा; 26 एलियाह को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, अतिरिक्त उसके, जो त्सीदोन प्रदेश के सारेप्ता नगर में थी. 27 वैसे ही भविष्यद्वक्ता एलीशा के समय में इस्राएल राष्ट्र में अनेक कोढ़ रोगी थे किन्तु सीरियावासी नामान के अतिरिक्त कोई भी शुद्ध नहीं किया गया.”
28 यह सुनते ही यहूदी सभागृह में इकट्ठा सभी व्यक्ति अत्यन्त क्रोधित हो गए. 29 उन्होंने मसीह येशु को धक्के मारते हुए नगर के बाहर निकाल दिया और उन्हें खींचते हुए उस पर्वत शिखर पर ले गए, जिस पर वह नगर बसा हुआ था कि उन्हें चट्टान पर से नीचे धकेल दें 30 किन्तु मसीह येशु बचते हुए भीड़ के बीच से निकल गए.
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