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Revised Common Lectionary (Semicontinuous)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with sequential stories told across multiple weeks.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 133

दाऊद का आरोहण गीत।

परमेश्वर के भक्त मिल जुलकर शांति से रहे।
    यह सचमुच भला है, और सुखदायी है।
यह वैसा सुगंधित तेल जैसा होता है जिसे हारून के सिर पर उँडेला गया है।
    यह, हारून की दाढ़ी से नीचे जो बह रहा हो उस तेल सा होता है।
    यह, उस तेल जैसा है जो हारून के विशेष वस्त्रों पर ढुलक बह रहा।
यह वैसा है जैसे धुंध भरी ओस हेर्मोन की पहाड़ी से आती हुई सिय्योन के पहाड पर उतर रही हो।
    यहोवा ने अपने आशीर्वाद सिय्योन के पहाड़ पर ही दिये थे। यहोवा ने अमर जीवन की आशीष दी थी।

उत्पत्ति 41:37-57

37 फ़िरौन को यह अच्छा विचार मालूम हुआ। इससे सभी अधिकारी सहमत थे। 38 फ़िरौन ने अपने अधिकारियों से पूछा, “क्या तुम लोगों में से कोई इस काम को करने के लिए यूसुफ से अच्छा व्यक्ति ढूँढ सकता है? परमेश्वर की आत्मा ने इस व्यक्ति को सचमुच बुद्धिमान बना दिया है।”

39 फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “परमेश्वर ने ये सभी चीज़ें तुम को दिखाई हैं। इसलिए तुम ही सर्वाधिक बुद्धिमान हो। 40 इसलिए मैं तुमको देश का प्रशासक बनाऊँगा। जनता तुम्हारे आदेशों का पालन करेगी। मैं अकेला इस देश में तुम से बड़ा प्रशासक रहूँगा।”

41 एक विशेष समारोह और प्रदर्शन था जिसमें फ़िरौन ने यूसुफ को प्रशासक बनाया तब फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “मैं अब तुम्हें मिस्र के पूरे देश का प्रशासक बनाता हूँ।” 42 तब फिरौन ने अपनी राज्य की मुहर वाली अगूँठी यूसुफ को दी और यूसुफ को एक सुन्दर रेशमी वस्त्र पहनने को दिया। फ़िरौन ने यूसुफ के गले में एक सोने का हार डाला। 43 फ़िरौन ने दूसरे श्रेणी के राजकीय रथ पर यूसुफ को सवार होने को कहा। उसके रथ के आगे विशेष रक्षक चलते थे। वे लोगों से कहते थे, “हे लोगो, यूसुफ को झुककर प्रणाम करो। इस तरह यूसुफ पूरे मिस्र का प्रशासक बना।”

44 फ़िरौन ने उससे कहा, “मैं सम्राट फ़िरौन हूँ। इसलिए मैं जो करना चाहूँगा, करूँगा। किन्तु मिस्र में कोई अन्य व्यक्ति हाथ पैर नहीं हिला सकता है जब तक तुम उसे न कहो।” 45 फ़िरौन ने उसे दूसरा नाम सापन तपानेह दिया। फ़िरौन ने आसनत नाम की एक स्त्री, जो ओन के याजक पोतीपेरा की पुत्री थी, यूसुफ को पत्नी के रूप में दी। इस प्रकार यूसुफ पूरे मिस्र देश का प्रशासक हो गया।

46 यूसुफ उस समय तीस वर्ष का था जब वह मिस्र के सम्राट की सेवा करने लगा। यूसुफ ने पूरे मिस्र देश में यात्राएँ कीं। 47 अच्छे सात वर्षों में देश में पैदावार बहुत अच्छी हुई 48 और यूसुफ ने मिस्र में सात वर्ष खाने की चीजें बचायीं। यूसुफ ने भोजन नगरों में जमा किया। यूसुफ ने नगर के चारों ओर के खेतों के उपजे अन्न को हर नगर में जमा किया। 49 यूसुफ ने बहुत अन्न इकट्ठा किया। यह समुद्र के बालू के सदृश था। उसने इतना अन्न इकट्ठा किया कि उसके वजन को भी न आँका जा सके।

50 यूसुफ की पत्नी आसनत ओन के याजक पोतीपरा कि पुत्री थी। भूखमरी के पहले वर्ष के आने के पूर्व यूसुफ और आसनेत के दो पुत्र हुए। 51 पहले पुत्र का नाम मनश्शे रखा गया। यूसुफ ने उसका यह नाम रखा क्योंकि उसने बताया, “मुझे जितने सारे कष्ट हुए तथा घर की हर बात परमेश्वर ने मुझसे भुला दी।” 52 यूसुफ ने दूसरे पुत्र का नाम एप्रैम रखा। यूसुफ ने उसका नाम यह रखा क्योंकि उसने बताया, “मुझे बहुत दुःख मिला, लेकिन परमेश्वर ने मुझे फुलाया—फलाया।”

भूखमरी का समय आरम्भ होता है

53 सात वर्ष तक लोगों के पास खाने के लिए यह सब भोजन था जिसकी उन्हें आवश्यकता थी और जो चीजें उन्हें आवश्यक थीं वे सभी उगती थीं। 54 किन्तु सात वर्ष वाद भूखमरी के दिन शुरु हुए। यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा यूसुफ ने कहा था। सारी भूमि में चारों ओर अन्न पैदा न हुआ। लोगों के पास खाने को कुछ न था। किन्तु मिस्र में लोगों के खाने के लिए काफी था, क्योंकि यूसुफ ने अन्न जमा कर रखा था। 55 भूखमरी का समय शुरु हुआ और लोग भोजन के लिए फ़िरौन के सामने रोने लगे। फ़िरौन ने मिस्री लोगों से कहा, “यूसुफ से पूछो। वही करो जो वह करने को कहता है।”

56 इसलिए जब देश में सर्वत्र भूखमरी थी, यूसुफ ने अनाज के गोदामों से लोगों को अन्न दिया। यूसुफ ने जमा अन्न को मिस्र के लोगों को बेचा। मिस्र में बहुत भयंकर अकाल था। 57 मिस्र के चारों ओर के देशों के लोग अनाज खरीदने मिस्र आए। वे यूसुफ के पास आए क्योंकि वहाँ संसार के उस भाग में सर्वत्र भूखमरी थी।

प्रेरितों के काम 14:19-28

19 फिर अन्ताकिया और इकुनियुम से आये यहूदियों ने भीड़ को अपने पक्ष में करके पौलुस पर पथराव किया और उसे मरा जान कर नगर के बाहर घसीट ले गये। 20 फिर जब शिष्य उसके चारों ओर इकट्ठे हुए, तो वह उठा और नगर में चला आया और फिर अगले दिन बरनाबास के साथ वह दिरबे के लिए चल पड़ा।

सीरिया के अन्ताकिया को लौटना

21-22 उस नगर में उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करके बहुत से शिष्य बनाये। और उनकी आत्माओं को स्थिर करके विश्वास में बने रहने के लिये उन्हें यह कह कर प्रेरित किया “हमें बड़ी यातनाएँ झेल कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है,” वे लिस्तरा, इकुनियुम और अन्ताकिया लौट आये। 23 हर कलीसिया में उन्होंने उन्हें उस प्रभु को सौंप दिया जिसमें उन्होंने विश्वास किया था।

24 इसके पश्चात पिसिदिया से होते हुए वे पम्फूलिया आ पहुँचे। 25 और पिरगा में जब सुसमाचार सुना चुके तो इटली चले गये। 26 वहाँ से वे अन्ताकिया को जहाज़ द्वारा गये जहाँ जिस काम को अभी उन्होंने पूरा किया था, उस काम के लिये वे परमेश्वर के अनुग्रह को समर्पित हो गये।

27 सो जब वे पहुँचे तो उन्होंने कलीसिया के लोगों को इकट्ठा किया और परमेश्वर ने उनके साथ जो कुछ किया था, उसका विवरण कह सुनाया। और उन्होंने घोषणा की कि परमेश्वर ने विधर्मियों के लिये भी विश्वास का द्वार खोल दिया है। 28 फिर अनुयायियों के साथ वे बहुत दिनों तक वहाँ ठहरे रहे।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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