Revised Common Lectionary (Complementary)
धन्यवाद का एक गीत।
1 हे धरती, तुम यहोवा के लिये गाओ।
2 आनन्दित रहो जब तुम यहोवा की सेवा करो।
प्रसन्न गीतों के साथ यहोवा के सामने आओ।
3 तुम जान लो कि वह यहोवा ही परमेश्वर है।
उसने हमें रचा है और हम उसके भक्त हैं।
हम उसकी भेड़ हैं।
4 धन्यवाद के गीत संग लिये यहोवा के नगर में आओ,
गुणगान के गीत संग लिये यहोवा के मन्दिर में आओ।
उसका आदर करो और नाम धन्य करो।
5 यहोवा उत्तम है।
उसका प्रेम सदा सर्वदा है।
हम उस पर सदा सर्वदा के लिये भरोसा कर सकते हैं!
17 मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है, “और तुम, मेरी रेवड़, मैं प्रत्येक भेड़ के साथ न्याय करूँगा। मैं मेढ़ों और बकरों के बीच न्याय करूँगा। 18 तुम अच्छी भूमि पर उगी घास खा सकते हो। अत: तुम उस घास को क्यों कुचलते हो जिसे दूसरी भेड़ें खाना चाहती हैं। तुम पर्याप्त स्वच्छ जल पी सकते हो। अत: तुम उस जल को हिलाकर गन्दा क्यों करते हो, जिसे अन्य भेड़ें पीना चाहती हैं। 19 मेरी रेवड़ उस घास को खाएंगी जिसे तुमने अपने पैरों से कुचला और वह पानी पीएंगी जिसे तुमने अपने पैरों से हिलाकर गन्दा कर दिया!”
20 अत: मेरा स्वामी यहोवा उनसे कहता है: “मैं स्वयं मोटी और पतली भेड़ों के साथ न्याय करूँगा! 21 तुम अपनी बगल से और अपने कन्धों से धक्का देकर और अपनी सींगों से सभी कमजोर भेड़ों को तब तक मार गिरोते हो, जब तक तुम उनको दूर चले जाने के लिये विवश नहीं करते। 22 अत: मैं अपनी रेवड़ को बचाऊँगा। वे भविष्य में जंगली जानवरों से नहीं पकड़ी जाएंगीं। मैं प्रत्येक भेड़ के साथ न्याय करूँगा। 23 तब मैं उनके उपर एक गड़ेरिया अपने सेवक दाऊद को रखूँगा। वह उन्हें अपने आप खिलाएगा और उनका गड़ेरिया होगा।
परमेश्वर का जन-समूह
5 अब मैं तुम्हारे बीच जो बुज़ुर्ग हैं, उनसे निवेदन करता हूँ: मैं, जो स्वयं एक बुज़ुर्ग हूँ और मसीह ने जो यातनाएँ झेली हैं, उनका साक्षी हूँ तथा वह भावी महिमा जो प्रकट होने को है, उसका सहभागी हूँ। 2 राह दिखाने वाले परमेश्वर का जन-समूह तुम्हारी देख-रेख में है और निरीक्षक के रूप में तुम उसकी सेवा करते हो; किसी दबाव के कारण नहीं, बल्कि परमेश्वर की इच्छानुसार ऐसा करने की स्वेच्छा के कारण तुम अपना यह काम धन के लालच में नहीं बल्कि सेवा करने के प्रति अपनी तत्परता के कारण करते हो। 3 देख-रेख के लिए जो तुम्हें सौंपे गए हैं, तुम उनके कठोर निरंकुश शासक मत बनो। बल्कि लोगों के लिए एक आदर्श बनो। 4 ताकि जब वह प्रधान रखवाला प्रकट हो तो तुम्हें विजय का वह भव्य मुकुट प्राप्त हो जिसकी शोभा कभी घटती नहीं है।
5 इसी प्रकार हे नव युवकों! तुम अपने धर्मवृद्धों के अधीन रहो। तुम एक दूसरे के प्रति विनम्रता धारण करो, क्योंकि
“परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है
किन्तु दीन जनों पर सदा अनुग्रह रहता है।”(A)
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