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Old/New Testament

Each day includes a passage from both the Old Testament and New Testament.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
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लूकॉ 19:28-48

विजयोल्लास में येरूशालेम प्रवेश

(मत्ति 21:1-11; मारक 11:1-11; योहन 12:12-19)

28 इसके बाद मसीह येशु उनके आगे-आगे चलते हुए येरूशालेम नगर की ओर बढ़ गए. 29 जब मसीह येशु ज़ैतून नामक पर्वत पर बसे गाँव बैथफ़गे तथा बैथनियाह पहुँचे, उन्होंने अपने दो शिष्यों को इस आज्ञा के साथ आगे भेज दिया, 30 “सामने उस गाँव में जाओ. वहाँ प्रवेश करते ही तुम्हें गधे का एक बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिसकी अब तक किसी ने सवारी नहीं की है उसे खोल कर यहाँ ले आओ. 31 यदि कोई तुमसे यह प्रश्न करे, ‘क्यों खोल रहे हो इसे?’ तो उसे उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है.’”

32 जिन्हें इसके लिए भेजा गया था, उन्होंने ठीक वैसा ही पाया, जैसा उन्हें सूचित किया गया था. 33 जब वे उस बच्चे को खोल ही रहे थे, उसके स्वामियों ने उनसे पूछा, “क्यों खोल रहे हो इसे?”

34 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है.”

35 वे उसे प्रभु के पास ले आए और उस पर अपने वस्त्र डाल कर मसीह येशु को उस पर बैठा दिया. 36 जब प्रभु जा रहे थे, लोगों ने अपने बाहरी वस्त्र मार्ग पर बिछा दिए.

37 जब वे उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ ज़ैतून पर्वत का ढाल प्रारम्भ होता है, सारी भीड़ उन सभी अद्भुत कामों को याद करते हुए, जो उन्होंने देखे थे, ऊँचे शब्द में आनन्दपूर्वक परमेश्वर की स्तुति करने लगी:

38 “स्तुति के योग्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!
स्वर्ग में शान्ति और सर्वोच्च में महिमा हो!”

39 भीड़ में से कुछ फ़रीसियों ने, आपत्ति उठाते हुए मसीह येशु से कहा, “गुरु, अपने शिष्यों को डांटिए!”

40 “मैं आपको यह बताना चाहता हूँ,” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि ये शान्त हो गए तो स्तुति इन पत्थरों से निकलने लगेगी.”

41 जब वह येरूशालेम नगर के पास आए तो नगर को देख वह यह कहते हुए रो पड़े, 42 “यदि तुम, हाँ तुम, आज इतना ही समझ लेते कि शान्ति का मतलब क्या है! किन्तु यह तुमसे छिपाकर रखा गया है. 43 वे दिन आ रहे हैं जब शत्रु सेना तुम्हारे चारों ओर घेराबन्दी करके तुम्हारे निकलने का रास्ता बन्द कर देगी. 44 वे तुम्हें तथा तुम्हारी सन्तानों को धूल में मिला देंगे. वे तुम्हारे घरों का एक भी पत्थर दूसरे पत्थर पर न छोड़ेंगे क्योंकि तुमने तुम्हें दिए गए सुअवसर को नहीं पहचाना.”

दूसरी बार मसीह येशु द्वारा मन्दिर की शुद्धि

(मत्ति 21:12-17; मारक 11:15-19)

45 मन्दिर में प्रवेश करने पर मसीह येशु ने सभी विक्रेताओं को यह कहते हुए वहाँ से बाहर करना प्रारम्भ कर दिया, 46 “लिखा है: मेरा घर प्रार्थना का घर होगा किन्तु तुमने तो इसे डाकुओं की गुफ़ा बना रखी है!”

47 मसीह येशु हर रोज़ मन्दिर में शिक्षा दिया करते थे. प्रधान याजक, शास्त्री तथा जनसाधारण में से प्रधान नागरिक उनकी हत्या की योजना कर रहे थे, 48 किन्तु उनकी कोई भी योजना सफल नहीं हो रही थी क्योंकि लोग मसीह येशु के प्रवचनों से अत्यन्त प्रभावित थे.

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