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Old/New Testament

Each day includes a passage from both the Old Testament and New Testament.
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Saral Hindi Bible (SHB)
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मत्तियाह 27:1-26

पिलातॉस के न्यायालय में येशु

(मारक 15:1; लूकॉ 22:66-71)

27 प्रातःकाल सभी प्रधान पुरोहितों तथा पुरनियों ने आपस में येशु को मृत्युदण्ड देने की सहमति की. येशु को बेड़ियों से बान्ध कर वे उन्हें राज्यपाल पिलातॉस के यहाँ ले गए.

इसी समय, जब येशु पर दण्ड की आज्ञा सुनाई गई, यहूदाह, जिसने येशु के साथ धोखा किया था, दुःख और पश्चाताप से भर उठा. उसने प्रधान पुरोहितों और पुरनियों के पास जा कर चांदी के वे तीस सिक्के यह कहते हुए लौटा दिए, “एक निर्दोष के साथ धोखा करके मैंने पाप किया है.”

“हमें इससे क्या?” वे बोले, “यह तुम्हारी समस्या है!”

वे सिक्के मन्दिर में फेंक यहूदाह चला गया और जा कर फाँसी लगा ली.

उन सिक्कों को इकट्ठा करते हुए उन्होंने विचार किया, “इस राशि को मन्दिर के कोष में डालना उचित नहीं है क्योंकि यह लहू का दाम है.” तब उन्होंने इस विषय में विचार-विमर्श कर उस राशि से परदेशियों के अंतिम संस्कार के लिए कुम्हार का एक खेत मोल लिया. यही कारण है कि आज तक उस खेत को लहू-खेत नाम से जाना जाता है. इससे भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह द्वारा की गई यह भविष्यवाणी पूरी हो गई: उन्होंने चांदी के तीस सिक्के लिए—यह उसका दाम है, जिसका दाम इस्राएल वंश के द्वारा निर्धारित किया गया था 10 और उन्होंने वे सिक्के कुम्हार के खेत के लिए दे दिए, जैसा निर्देश प्रभु ने मुझे दिया था.

येशु दोबारा पिलातॉस के सामने

(मारक 15:2-5; लूकॉ 23:1-5; योहन 18:28-38)

11 येशु राज्यपाल के सामने लाए गए और राज्यपाल ने उनसे प्रश्न करने प्रारम्भ किए, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”

येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह आप स्वयं ही कह रहे हैं.”

12 जब येशु पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों द्वारा आरोप पर आरोप लगाए जा रहे थे, येशु मौन बने रहे. 13 इस पर पिलातॉस ने येशु से कहा, “क्या तुम सुन नहीं रहे ये लोग तुम पर कितने आरोप लगा रहे हैं?” 14 येशु ने पिलातॉस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर न दिया. राज्यपाल के लिए यह अत्यन्त आश्चर्यजनक था.

15 फ़सह उत्सव पर परम्परा के अनुसार राज्यपाल की ओर से उस बन्दी को, जिसे लोग चाहते थे, छोड़ दिया जाता था. 16 उस समय बन्दीगृह में बार-अब्बास नामक एक कुख्यात अपराधी बन्दी था. 17 इसलिए जब लोग इकट्ठा हुए पिलातॉस ने उनसे प्रश्न किया, “मैं तुम्हारे लिए किसे छोड़ दूँ, बार-अब्बास को या येशु को, जो मसीह कहलाता है? क्या चाहते हो तुम?” 18 पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि मात्र जलन के कारण ही उन्होंने येशु को उनके हाथों में सौंपा था.

19 जब पिलातॉस न्यायासन पर बैठा था, उसकी पत्नी ने उसे यह सन्देश भेजा, “उस धर्मी व्यक्ति को कुछ न करना क्योंकि पिछली रात मुझे स्वप्न में उसके कारण घोर पीड़ा हुई है.”

20 इस पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने भीड़ को उकसाया कि वे बार-अब्बास की मुक्ति की और येशु के मृत्युदण्ड की माँग करें.

21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो, दोनों में से मैं किसे छोड़ दूँ?” भीड़ का उत्तर था.

“बार-अब्बास को.”

22 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तब मैं येशु का, जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?”

उन सभी ने एक साथ कहा.

“उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”

23 पिलातॉस ने पूछा, “क्यों? क्या अपराध है उसका?”

किन्तु वे और अधिक चिल्लाने लगे, “क्रूस पर चढ़ाया जाए उसे!”

24 जब पिलातॉस ने देखा कि वह कुछ भी नहीं कर पा रहा परन्तु हुल्लड़ की सम्भावना है तो उसने भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए यह घोषणा कर दी, “मैं इस व्यक्ति के लहू का दोषी नहीं हूँ. तुम ही इसके लिए उत्तरदायी हो.”

25 लोगों ने उत्तर दिया, “इसकी हत्या का दोष हम पर तथा हमारी सन्तान पर हो!”

26 तब पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को मुक्त कर दिया किन्तु येशु को कोड़े लगवा कर क्रूसित करने के लिए भीड़ के हाथों में सौंप दिया.

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