Old/New Testament
26 जब वे भोजन के लिए बैठे, येशु ने रोटी ली, उसके लिए आशीष विनती की, उसे तोड़ा और शिष्यों को देते हुए कहा, “यह लो, खाओ; यह मेरा शरीर है.”
27 तब येशु ने प्याला लिया, उसके लिए धन्यवाद दिया तथा शिष्यों को देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो. 28 यह वाचा का[a] मेरा लहू है जो अनेकों की पाप-क्षमा के लिए उण्डेला जा रहा है. 29 मैं तुम पर यह सच प्रकट करना चाहता हूँ कि अब मैं दाखरस उस समय तक नहीं पिऊँगा जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया दाखरस न पिऊँ.”
30 तब एक भक्ति गीत गाने के बाद वे सब ज़ैतून पर्वत पर चले गए.
शिष्यों की भावी निर्बलता की भविष्यवाणी
31 येशु ने शिष्यों से कहा, “आज रात तुम सभी मेरा साथ छोड़ कर चले जाओगे जैसा कि इस सम्बन्ध में पवित्रशास्त्र का लेख है:
“‘मैं चरवाहे का संहार करूँगा और,
झुण्ड की सभी भेड़ें
तितर-बितर हो जाएँगी.’
32 हाँ, पुनर्जीवित किए जाने के बाद मैं तुमसे पहले गलील प्रदेश पहुँच जाऊँगा.”
33 किन्तु पेतरॉस ने येशु से कहा, “सभी शिष्य आपका साथ छोड़ कर जाएँ तो जाएँ किन्तु मैं आपका साथ कभी न छोड़ूँगा.”
34 येशु ने उनसे कहा, “सच्चाई तो यह है कि आज ही रात में, इसके पहले कि मुर्ग बाँग दे, तुम मुझे तीन बार नकार चुके होंगे.”
35 पेतरॉस ने दोबारा उनसे कहा, “मुझे आपके साथ यदि मृत्यु को भी गले लगाना पड़े तो भी मैं आपको नहीं नकारूंगा.” अन्य सभी शिष्यों ने यही दोहराया.
गेतसेमनी बगीचे में येशु की अवर्णनीय वेदना
(मारक 14:32-42; लूकॉ 22:39-46)
36 तब येशु उनके साथ गेतसेमनी नामक स्थान पर पहुँचे. उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “तुम यहीं बैठो जब तक मैं वहाँ जा कर प्रार्थना करता हूँ.” 37 फिर वह पेतरॉस और ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्रों को अपने साथ ले आगे चले गए. वहाँ येशु अत्यन्त उदास और व्याकुल होने लगे. 38 उन्होंने शिष्यों से कहा, “मेरे प्राण इतने अधिक उदास हैं, मानो मेरी मृत्यु हो रही हो. मेरे साथ तुम भी जागते रहो.”
39 तब येशु उनसे थोड़ी ही दूर जा मुख के बल गिर कर प्रार्थना करने लगे. उन्होंने परमेश्वर से निवेदन किया, “मेरे पिता, यदि सम्भव हो तो यह प्याला मुझसे टल जाए; फिर भी मेरी नहीं परन्तु आपकी इच्छा के अनुरूप हो.”
40 जब वह अपने शिष्यों के पास लौटे तो उन्हें सोया हुआ देख उन्होंने पेतरॉस से कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ एक घण्टा भी सजग न रह सके! 41 सजग रहो, प्रार्थना करते रहो, ऐसा न हो कि तुम परीक्षा में पड़ जाओ. हाँ, निःसन्देह आत्मा तो तैयार है किन्तु शरीर दुर्बल.”
42 तब येशु ने दूसरी बार जा कर प्रार्थना की, “मेरे पिता, यदि यह प्याला मेरे पिए बिना मुझ से टल नहीं सकता तो आप ही की इच्छा पूरा हो.”
43 वह दोबारा लौट कर आए तो देखा कि शिष्य सोए हुए हैं—क्योंकि उनकी पलकें बोझिल थीं. 44 एक बार फिर वह उन्हें छोड़ आगे चले गए और तीसरी बार प्रार्थना की और उन्होंने प्रार्थना में वही सब दोहराया.
45 तब वह शिष्यों के पास लौटे और उनसे कहा, “सोते रहो और विश्राम करो! बहुत हो गया! देखो! आ गया है वह क्षण! मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथों पकड़वाया जा रहा है. 46 उठो! यहाँ से चलें. देखो, जो मुझे पकड़वाने पर है, वह आ गया!”
येशु का बन्दी बनाया जाना
(मारक 14:43-52; लूकॉ 22:47-53; योहन 18:1-11)
47 येशु अपना कथन समाप्त भी न कर पाए थे कि यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, वहाँ आ पहुँचा. उसके साथ एक बड़ी भीड़ थी, जो तलवारें और लाठियाँ लिए हुए थी. ये सब प्रधान पुरोहितों और पुरनियों की ओर से प्रेषित किए गए थे. 48 येशु के विश्वासघाती ने उन्हें यह संकेत दिया था: “मैं जिसे चूमूँ, वही होगा वह. उसे ही पकड़ लेना.” 49 तुरन्त यहूदाह येशु के पास आया और कहा, “प्रणाम, रब्बी!” और उन्हें चूम लिया.
50 येशु ने यहूदाह से कहा.
“मेरे मित्र, जिस काम के लिए आए हो, उसे पूरा कर लो.” उन्होंने आ कर येशु को पकड़ लिया.
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.