M’Cheyne Bible Reading Plan
गिरासेनॉस का प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति
5 तब वे झील के दूसरे तट पर गिरासेनॉस क्षेत्र में आए. 2 मसीह येशु के नाव से नीचे उतरते ही एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी क़ब्र से निकल कर उनके पास आया. 3 वह क़ब्रों के मध्य ही रहा करता था. अब कोई भी उसे साँकलों तथा बेड़ियों से भी बान्ध पाने में समर्थ न था. 4 बहुधा उसे बेड़ियों तथा साँकलों में बांधे जाने के प्रयास किए गए किन्तु वह साँकलों को तोड़ देता तथा बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर डालता था. अब किसी में इतनी क्षमता न थी कि उसे वश में कर सके. 5 रात-दिन क़ब्रों के मध्य तथा पहाड़ियों में वह चिल्लाता रहता था तथा स्वयं को पत्थर मार-मार कर घायल कर लेता था.
6 दूर से ही जब उसने मसीह येशु को देखा, वह दौड़ कर उनके पास आया, अपना सिर झुकाया 7 और उसमें से उँची आवाज़ में ये शब्द सुनाई दिए, “परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र येशु! मेरा आपका कोई लेन-देन नहीं. आपको परमेश्वर की शपथ, मुझे कोई कष्ट न दें,” 8 क्योंकि मसीह येशु उसे आज्ञा दे चुके थे, “ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ!”
9 तब मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या नाम है तेरा?”
प्रेत ने उत्तर दिया, “सेना—क्योंकि हम बहुत हैं.” 10 प्रेत मसीह येशु से विनती करने लगा कि वह उसे उस प्रदेश से बाहर न भेजें.
11 वहीं पहाड़ी पर सूअरों का एक विशाल झुण्ड चर रहा था. 12 प्रेत-समूह ने मसीह येशु से विनती की, “हमें इन सूअरों में भेज दीजिए कि हम उनमें जा बसें.” 13 मसीह येशु ने उन्हें यह आज्ञा दे दी. वे प्रेत बाहर निकल कर उन सूअरों में प्रवेश कर गए. लगभग दो हज़ार सूअरों का वह झुण्ड पहाड़ की तीव्र ढलान पर तेज़ गति से दौड़ता हुआ झील में जा डूबा.
14 भयभीत रखवाले भाग गए तथा नगर और पास के क्षेत्रों में जा कर इस घटना के विषय में बताने लगे. नगरवासी, जो कुछ हुआ था, उसे देखने वहाँ आने लगे. 15 जब वे मसीह येशु के पास पहुँचे, उन्होंने देखा कि वह प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति वस्त्र धारण किए हुए सचेत स्थिति में वहाँ बैठा था. यह वही व्यक्ति था जिसमें प्रेतों की सेना पैठी थी. यह देख वे डर गए. 16 सारे घटनाक्रम को देखने वाले लोगों ने उनके सामने इसका बयान किया कि प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति तथा सूअरों के साथ क्या-क्या हुआ है. 17 इस पर वे मसीह येशु से विनती करने लगे कि वह उनके क्षेत्र से बाहर चले जाएँ.
18 जब मसीह येशु नाव पर सवार हो रहे थे, प्रेतों से विमुक्त हुआ व्यक्ति मसीह येशु से विनती करने लगा कि उसे उनके साथ ले लिया जाए. 19 मसीह येशु ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी परन्तु उसे आदेश दिया, “अपने परिजनों के पास लौट जाओ और उन्हें बताओ कि तुम्हारे लिए प्रभु ने कैसे-कैसे आश्चर्यकाम किए हैं तथा तुम पर उनकी कैसी कृपादृष्टि हुई है.” 20 वह देकापोलीस नगर में गया और उन कामों का वर्णन करने लगा, जो मसीह येशु ने उसके लिए किए थे. यह सुन सभी चकित रह गए.
तथा मरी हुई लड़की का जी उठना
(मत्ति 9:18-26; लूकॉ 8:40-56)
21 मसीह येशु दोबारा झील के दूसरे तट पर चले गए. एक बड़ी भीड़ उनके पास इकट्ठी हो गयी. मसीह येशु झील तट पर ही रहे. 22 स्थानीय यहूदी सभागृह का एक अधिकारी, जिसका नाम याइरॉस था, वहाँ आया. यह देख कि वह कौन हैं, वह उनके चरणों पर गिर पड़ा. 23 बड़ी ही विनती के साथ उसने मसीह येशु से कहा, “मेरी बेटी मरने पर है. कृपया चलिए और उस पर हाथ रख दीजिए कि वह स्वस्थ हो जाए और जीवित रहे.” 24 मसीह येशु उसके साथ चले गए.
बड़ी भीड़ भी उनके पीछे-पीछे चल रही थी और लोग उन पर गिरे पड़ रहे थे.
25 एक स्त्री बारह वर्ष से रक्तस्राव से पीड़ित थी. 26 अनेक चिकित्सकों के हाथों उसने अनेक पीड़ाएं सही थीं. इसमें वह अपना सब कुछ व्यय कर चुकी थी फिर भी इससे उसे लाभ के बदले हानि ही उठानी पड़ी थी. 27 मसीह येशु के विषय में सुन कर उसने भीड़ में उनके पीछे आ कर उनका वस्त्र छुआ. 28 उसका यह विश्वास था: “यदि मैं उनके वस्त्र को छू भर लूँ तो मैं स्वस्थ हो जाऊँगी.” 29 उसी क्षण उसका रक्तस्राव थम गया. स्वयं उसे अपने शरीर में यह मालूम हो गया कि वह अपनी पीड़ा से ठीक हो चुकी है.
30 उसी क्षण मसीह येशु को भी यह आभास हुआ कि उनमें से सामर्थ्य निकली है. भीड़ में ही उन्होंने मुड़ कर प्रश्न किया, “कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है?”
31 शिष्यों ने उनसे कहा, “आप तो देख ही रहे हैं कि किस प्रकार भीड़ आप पर गिरी पड़ रही है और आप प्रश्न कर रहे हैं, ‘कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है’!”
32 प्रभु की दृष्टि उसे खोजने लगी, जिसने यह किया था. 33 वह स्त्री यह जानते हुए कि उसके साथ क्या हुआ है, भय से काँपती हुई उनके चरणों पर आ गिरी और उन पर सारी सच्चाई प्रकट कर दी. 34 मसीह येशु ने उस स्त्री से कहा, “पुत्री, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है. शान्ति में विदा हो जाओ और स्वस्थ रहो.”
35 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, याइरॉस के घर से आए कुछ लोगों ने यह सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है. अब गुरुवर को कष्ट देने का क्या लाभ?”
36 मसीह येशु ने यह सुन उस यहूदी सभागृह अधिकारी से कहा, “भयभीत न हो—केवल विश्वास करो.”
37 उन्होंने पेतरॉस, याक़ोब तथा याक़ोब के भाई योहन के अतिरिक्त अन्य किसी को भी अपने साथ आने की अनुमति न दी 38 और ये सब यहूदी सभागृह अधिकारी के घर पर पहुँचे. मसीह येशु ने देखा कि वहाँ शोर मचा हुआ है तथा लोग ऊँची आवाज़ में रो-पीट रहे हैं. 39 घर में प्रवेश कर मसीह येशु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “यह शोर और रोना-पीटना क्यों! बच्ची की मृत्यु नहीं हुई है—वह केवल सो रही है.” 40 यह सुन वे मसीह येशु का ठठ्ठा करने लगे, किन्तु मसीह येशु ने उन सभी को वहाँ से बाहर निकाल बच्ची के पिता तथा अपने साथियों को साथ ले उस कक्ष में प्रवेश किया, जहाँ वह बालिका थी.
41 वहाँ उन्होंने बालिका का हाथ पकड़ कर उससे कहा, “तालीथा कोऊम” अर्थात् बालिके, उठो! 42 उसी क्षण वह उठ खड़ी हुई और चलने-फिरने लगी. इस पर वे सभी चकित रह गए. बालिका की आयु बारह वर्ष थी. 43 मसीह येशु ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिए कि इस घटना के विषय में कोई भी जानने न पाए और फिर उनसे कहा कि उस बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए.
विश्वास उद्धार का आश्वासन है
5 इसलिए जब हम अपने विश्वास के द्वारा धर्मी घोषित किए जा चुके हैं, परमेश्वर से हमारा मेल-मिलाप हमारे प्रभु मसीह येशु के द्वारा हो चुका है, 2 जिनके माध्यम से विश्वास के द्वारा हमारी पहुँच उस अनुग्रह में है, जिसमें हम अब स्थिर हैं. अब हम परमेश्वर की महिमा की आशा में आनन्दित हैं. 3 इतना ही नहीं, हम अपने क्लेशों में भी आनन्दित बने रहते हैं. हम जानते हैं कि क्लेश में से धीरज; 4 धीरज में से खरा चरित्र तथा खरे चरित्र में से आशा उत्पन्न होती है 5 और आशा लज्जित कभी नहीं होने देती क्योंकि हमें दी हुई पवित्रात्मा द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उण्डेल दिया गया है.
6 जब हम निर्बल ही थे, सही समय पर मसीह येशु ने अधर्मियों के लिए मृत्यु स्वीकार की. 7 शायद ही कोई किसी व्यवस्था के पालन करने वाले के लिए अपने प्राण दे दे. हाँ, सम्भावना यह अवश्य है कि कोई किसी परोपकारी के लिए प्राण देने के लिए तैयार हो जाए 8 किन्तु परमेश्वर ने हमारे प्रति अपना प्रेम इस प्रकार प्रकट किया कि जब हम पापी ही थे, मसीह येशु ने हमारे लिए अपने प्राण त्याग दिए.
9 हम मसीह येशु के लहू के द्वारा धर्मी घोषित तो किए ही जा चुके हैं, इससे कहीं बढ़कर यह है कि हम उन्हीं के कारण परमेश्वर के क्रोध से भी बचाए जाएँगे. 10 जब शत्रुता की अवस्था में परमेश्वर से हमारा मेल-मिलाप उनके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हो गया तो इससे बढ़कर यह है कि मेल-मिलाप हो जाने के कारण उनके पुत्र के जीवन द्वारा हमारा उद्धार सुनिश्चित है. 11 इतना ही नहीं, मसीह येशु के कारण हम परमेश्वर में आनन्दित हैं जिनके कारण हम इस मेल-मिलाप की स्थिति तक पहुँचे हैं.
आदम तथा मसीह येशु
12 एक मनुष्य के कारण पाप ने संसार में प्रवेश किया तथा पाप के द्वारा मृत्यु ने और मृत्यु सभी मनुष्यों में समा गई—क्योंकि पाप सभी ने किया. 13 पाप व्यवस्था के प्रभावी होने से पहले ही संसार में मौजूद था लेकिन जहाँ व्यवस्था ही नहीं, वहाँ पाप गिना नहीं जाता! 14 आदम से मोशेह तक मृत्यु का शासन था—उन पर भी, जिन्होंने आदम के समान अनाज्ञाकारिता का पाप नहीं किया था. आदम उनके प्रतिरूप थे, जिनका आगमन होने को था.
15 अपराध, वरदान के समान नहीं. एक मनुष्य के अपराध के कारण अनेकों की मृत्यु हुई, जबकि परमेश्वर के अनुग्रह तथा एक मनुष्य, मसीह येशु के अनुग्रह में दिया हुआ वरदान अनेकों अनेक में स्थापित हो गया. 16 परमेश्वर का वरदान उसके समान नहीं, जो एक मनुष्य के अपराध के परिणामस्वरूप आया. एक ओर तो एक अपराध से न्यायदण्ड की उत्पत्ति हुई, जिसका परिणाम था दण्ड-आज्ञा मगर दूसरी ओर अनेकों अपराधों के बाद वरदान की उत्पत्ति हुई, जिसका परिणाम था धार्मिकता. 17 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण एक ही मनुष्य के माध्यम से मृत्यु का शासन हो गया, तब इससे कहीं अधिक फैला हुआ है बड़ा अनुग्रह तथा धार्मिकता का वह वरदान, जो उनके जीवन में उस एक मनुष्य, मसीह येशु के द्वारा शासन करेगा.
18 इसलिए जिस प्रकार मात्र एक अपराध का परिणाम हुआ सभी के लिए दण्ड-आज्ञा, उसी प्रकार धार्मिकता के मात्र एक काम का परिणाम हुआ सभी मनुष्यों के लिए जीवन की धार्मिकता. 19 जिस प्रकार मात्र एक व्यक्ति की अनाज्ञाकारिता के परिणामस्परूप अनेकों अनेक पापी हो गए, उसी प्रकार एक व्यक्ति की आज्ञाकारिता से अनेक धर्मी बना दिए जाएँगे.
20 व्यवस्था बीच में आई कि पाप का अहसास तेज़ हो. जब पाप का अहसास तेज़ हुआ तो अनुग्रह कहीं अधिक तेज़ होता गया 21 कि जिस प्रकार पाप ने मृत्यु में शासन किया, उसी प्रकार अनुग्रह धार्मिकता के द्वारा हमारे प्रभु मसीह येशु में अनन्त जीवन के लिए शासन करे.
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