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M’Cheyne Bible Reading Plan

The classic M'Cheyne plan--read the Old Testament, New Testament, and Psalms or Gospels every day.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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मारक 14

मसीह येशु की हत्या का षड्यन्त्र

(मत्ति 26:1-5; लूकॉ 22:1, 2)

14 फ़सह तथा खमीर रहित रोटी के उत्सव के लिए मात्र दो दिन शेष रह गए थे. प्रधान याजक तथा शास्त्री इस खोज में थे कि मसीह येशु को पकड़ कर गुप्त रूप से उनकी हत्या कर दें, क्योंकि उनका विचार था: “उत्सव के समय में नहीं, अन्यथा बलवा हो जाएगा.”

मसीह येशु बैथनियाह नगर आए. वहाँ वह पूर्व कोढ़ रोगी शिमोन नामक व्यक्ति के घर पर भोजन के लिए बैठे थे. एक स्त्री वहाँ संगमरमर के बर्तन में शुद्ध जटामासी का अत्यन्त कीमती इत्र ले आई. उसने उस बर्तन को तोड़ वह इत्र मसीह येशु के सिर पर उण्डेल दिया.

उपस्थित अतिथियों में से कुछ क्रुद्ध हो आपस में बड़बड़ाने लगे, “क्यों कर दिया इसने इस इत्र का फिज़ूल खर्च? इसे तीन सौ दीनार से भी अधिक दाम पर बेच कर वह राशि निर्धनों में वितरित की जा सकती थी.” वे उस स्त्री को इसके लिए डाँटने लगे.

किन्तु मसीह येशु ने उनसे कहा, “छोड़ दो उसे! क्यों सता रहे हो उसे? उसने मेरे लिए एक सराहनीय काम किया है. जहाँ तक निर्धनों का प्रश्न है, वे तो तुम्हारे साथ हमेशा ही रहेंगे. तुम उनकी सहायता तो कभी भी कर सकते हो किन्तु मैं तुम्हारे साथ हमेशा नहीं रहूँगा. जो उसके लिए सम्भव था, वह उसने किया है—उसने मेरी देह का अभिषेक मेरे अन्तिम संस्कार के पहले ही कर दिया है. मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: सभी संसार में जहाँ कहीं सुसमाचार का प्रचार किया जाएगा, इस स्त्री की याद में इसके इस सुन्दर कार्य का वर्णन भी किया जाता रहेगा.”

10 तब कारियोतवासी यहूदाह ने, जो बारह शिष्यों में से एक था, मसीह येशु को पकड़वाने के उद्देश्य से प्रधान पुरोहितों से भेंट की. 11 इससे वे अत्यन्त प्रसन्न हो गए और उसे धनराशि देने का वचन दिया. इसलिए यहूदाह इस अवसर में रहने लगा कि वह किसी प्रकार किसी सही अवसर पर मसीह येशु को पकड़वा दे.

फ़सह भोज की तैयारी

(मत्ति 26:17-19; लूकॉ 22:7-13)

12 अख़मीरी रोटी के उत्सव के पहिले दिन, जो फ़सह बलि अर्पण की बेला होती थी, शिष्यों ने मसीह येशु से पूछा, “हम आपके लिए फ़सह कहाँ तैयार करें—आपकी अभिलाषा है क्या?”

13 इस पर मसीह येशु ने अपने दो शिष्यों को इस निर्देश के साथ भेजा, “नगर में जाओ. तुम्हें जल का मटका ले जाता हुआ एक व्यक्ति मिलेगा. उसके पीछे-पीछे जाना. 14 वह जिस घर में प्रवेश करेगा, उसके घर के स्वामी से कहना, ‘गुरु ने पूछा है, “मेरा अतिथि-कक्ष कहाँ है, जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ फ़सह खाऊँ?” ’ 15 वह स्वयं तुम्हें एक विशाल, तैयार तथा सुसज्जित ऊपरी कक्ष दिखा देगा. हमारे लिए वहीं तैयारी करना.”

16 शिष्य चले गए. जब वे नगर पहुँचे, उन्होंने ठीक वैसा ही पाया जैसा प्रभु ने उनसे कहा था और वहाँ उन्होंने फ़सह तैयार किया.

17 सन्ध्या होने पर मसीह येशु अपने बारहों शिष्यों के साथ वहाँ आए. 18 जब वह भोजन पर बैठे हुए थे मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक अटल सत्य प्रकट कर रहा हूँ: तुममें से एक, जो मेरे साथ भोजन कर रहा है, मेरे साथ धोखा करेगा.”

19 अत्यन्त दुःखी हो वे उनसे एक-एक कर यह पूछने लगे, “निस्सन्देह वह मैं तो नहीं हूँ?”

20 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “है तो वह बारहों में से एक—वही, जो मेरे साथ कटोरे में रोटी डुबो रहा है. 21 मनुष्य के पुत्र को तो, जैसा कि उसके विषय में पवित्रशास्त्र में लिखा है, जाना ही है; किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो मनुष्य के पुत्र के साथ धोखा करेगा. उस व्यक्ति के लिए सही तो यही होता कि उसका जन्म ही न होता.”

22 भोजन के लिए बैठे हुए मसीह येशु ने रोटी ले कर उसके लिए आभार धन्यवाद करते हुए उसे तोड़ा और उनमें बाँटते हुए कहा, “लो, यह मेरा शरीर है.”

23 इसके बाद मसीह येशु ने प्याला उठाया, उसके लिए धन्यवाद दिया, शिष्यों को दिया और सब ने उसमें से पिया.

24 मसीह येशु ने उनसे कहा, “यह वायदे का मेरा लहू है, जो अनेकों के लिए उण्डेला गया है. 25 मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: दाख के इस रस को मैं अब से उस समय तक नहीं पिऊँगा जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया रस न पिऊँ.”

26 एक भक्ति गीत गाने के बाद वे ज़ैतून पर्वत पर चले गए.

पेतरॉस द्वारा नकारे जाने की भविष्यवाणी

(मत्ति 26:31-35)

27 उनसे मसीह येशु ने कहा, “तुम सभी मेरा साथ छोड़ कर चले जाओगे. जैसा कि इस सम्बन्ध में पवित्रशास्त्र का लेख है:

“मैं चरवाहे का संहार करूँगा और
    झुण्ड की सभी भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी.

28 किन्तु मरे हुओं में से जीवित होने के बाद मैं तुमसे पहले गलील प्रदेश पहुँच जाऊँगा.”

29 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “सभी शिष्य आपका साथ छोड़ कर जाएँ तो जाएँ किन्तु मैं आपका साथ कभी न छोड़ूँगा.”

30 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक अटल सत्य प्रकट कर रहा हूँ: आज रात में ही, इससे पहले कि मुर्गा बाँग दे, तुम मुझे तीन बार नकार चुके होंगे.”

31 किन्तु पेतरॉस दृढ़तापूर्वक कहते रहे, “यदि मुझे आपके साथ मृत्यु को अपनाना भी पड़े तो भी मैं आपको नहीं नकारूंगा.” अन्य सभी शिष्यों ने भी यही दोहराया.

गेतसेमनी उद्यान में मसीह येशु की अवर्णनीय वेदना

(मत्ति 26:36-46; लूकॉ 22:39-46)

32 वे गेतसेमनी नामक स्थान पर आए. मसीह येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जब तक मैं प्रार्थना कर रहा हूँ, तुम यहीं ठहरो.” 33 उन्होंने अपने साथ पेतरॉस, याक़ोब तथा योहन को ले लिया. वह अत्यन्त अधीर तथा व्याकुल हो रहे थे. 34 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मेरे प्राण इतने व्याकुल हैं मानो मेरी मृत्यु हो रही हो. तुम यहीं ठहरो और जागते रहो.”

35 वह उनसे थोड़ी ही दूर गए और भूमि पर गिर कर यह प्रार्थना करने लगे कि यदि सम्भव हो तो यह क्षण टल जाए. 36 प्रार्थना में उन्होंने कहा, “अब्बा! पिता! आपके लिए तो सभी कुछ सम्भव है. मेरे सामने रखे इस प्याले को हटा दीजिए. फिर भी मेरी नहीं, आपकी इच्छा के अनुरूप हो.”

37 जब मसीह येशु वहाँ लौट कर आए तो शिष्यों को सोता हुआ पाया. उन्होंने पेतरॉस से कहा, “शिमोन! सोए हुए हो! एक घण्टा भी जागे न रह सके! 38 जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ऐसा न हो कि तुम परीक्षा में फँस जाओ. निस्सन्देह आत्मा तो तत्पर है किन्तु शरीर दुर्बल.”

39 तब उन्होंने दोबारा जा कर वही प्रार्थना की. 40 लौट कर आने पर उन्होंने शिष्यों को फिर सोते हुए पाया. उनकी पलकें अत्यन्त बोझिल थीं. उन्हें यह भी नहीं सूझ रहा था कि प्रभु को क्या उत्तर दें.

41 जब मसीह येशु तीसरी बार उनके पास आए तो उन्होंने उनसे कहा, “अभी भी सो रहे हो? सोते रहो और विश्राम करो! बहुत हो गया! वह क्षण आ गया है. देख लो कैसे मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जा कर पापियों के हाथों में सौंपा जा रहा है! 42 चलो, अब हमें चलना चाहिए. वह पकड़वानेवाला आ गया है!”

मसीह येशु का बन्दी बनाया जाना

(मत्ति 26:47-56; लूकॉ 22:47-53; योहन 18:1-11)

43 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, उसी क्षण यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, आ पहुँचा. उसके साथ तलवार और लाठियाँ लिए हुए एक भीड़ भी थी. ये सब प्रधान पुरोहितों, शास्त्रियों तथा पुरनियों द्वारा भेजे गए थे.

44 पकड़वानेवाले ने उन्हें यह संकेत दिया था: “मैं जिसे चूमूँ, वही होगा वह. उसे पकड़ कर सिपाहियों की सुरक्षा में ले जाना.” 45 वहाँ पहुँचते ही यहूदाह सीधे मसीह येशु के पास गया और उनसे कहा, “रब्बी” और उन्हें चूम लिया. 46 इस पर उन्होंने मसीह येशु को पकड़ कर बान्ध लिया. 47 उनमें से, जो मसीह के साथ थे, एक ने तलवार खींची और महायाजक के दास पर प्रहार कर दिया जिससे उसका एक कान कट गया.

48 मसीह येशु ने भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा, “मुझे पकड़ने के लिए तुम तलवार और लाठियाँ ले कर आए हो मानो मैं कोई डाकू हूँ! 49 मन्दिर में शिक्षा देते हुए मैं प्रतिदिन तुम्हारे साथ ही होता था, तब तो तुमने मुझे नहीं पकड़ा किन्तु अब जो कुछ घटित हो रहा है वह इसीलिए कि पवित्रशास्त्र का लेख पूरा हो.” 50 सभी शिष्य मसीह येशु को छोड़ भाग चुके थे.

51 एक युवक था, जो मसीह येशु के पीछे-पीछे आ रहा था. उसने अपने शरीर पर मात्र एक चादर लपेटी हुई थी. जब उन्होंने उसे पकड़ना चाहा, 52 वह अपनी उस चादर को छोड़ नंगा ही भाग निकला.

मसीह येशु महासभा के सामने

(मत्ति 26:57-68)

53 वे मसीह येशु को महायाजक के सामने ले गए. वहाँ सभी प्रधान याजक, वरिष्ठ नागरिक तथा शास्त्री इकट्ठा थे. 54 पेतरॉस दूर ही दूर, उनके पीछे-पीछे आ रहे थे और वह महायाजक के आँगन में भी आ गए. वह अधिकारियों के साथ बैठ गए और उनके साथ आग तापने लगे.

55 मसीह येशु को मृत्युदण्ड देने की इच्छा लिए हुए प्रधान याजक तथा पूरी महासभा मसीह येशु के विरुद्ध गवाह खोजने का यत्न कर रही थी किन्तु इसमें वे विफल ही रहे. 56 निस्सन्देह उनके विरुद्ध अनेक झूठे गवाह उठ खड़े हुए थे किन्तु उनके गवाह में मेल न था.

57 तब कुछ ने मसीह येशु के विरुद्ध यह झूठी गवाही दी: 58 “हमने इसे कहते सुना है: ‘मैं मनुष्य के द्वारा बनाए गए इस मन्दिर को ढाह दूँगा और तीन दिन में एक दूसरा बना दूँगा, जो हाथ से बना न होगा.’” 59 इस आरोप में भी उनके गवाह में समानता न थी.

60 तब महायाजक खड़े हुए तथा मसीह येशु के पास आ कर उनसे पूछा, “क्या तुम्हें अपने बचाव में कुछ नहीं कहना है, ये सब तुम्हारे विरुद्ध क्या-क्या गवाही दे रहे हैं?” 61 किन्तु मसीह येशु ने कोई उत्तर न दिया. वह मौन ही बने रहे.

तब महायाजक ने उन पर व्यंग्य करते हुए पूछा, “क्या तुम ही मसीह हो—परम प्रधान के पुत्र?”

62 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जी हाँ, मैं हूँ. आप मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान के दायें पक्ष में आसीन तथा आकाश के बादलों पर लौटता हुआ देखेंगे.”

63 इस पर महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़ते हुए कहा, “अब क्या ज़रूरत रह गई किसी अन्य गवाह की? 64 तुम सभी ने परमेश्वर-निन्दा सुन ली है. क्या विचार है तुम्हारा?”

सबने एक मत से उन्हें मृत्युदण्ड का भागी घोषित किया. 65 कुछ ने उन पर थूकना प्रारम्भ कर दिया. उनकी आँखों पर पट्टी बान्ध कुछ उन्हें घूँसे मारते हुए कहने लगे, “कर भविष्यवाणी!” और प्रहरियों ने उनके मुख पर थप्पड़ भी मारे.

पेतरॉस का नकारना

(मत्ति 26:69-75; लूकॉ 22:54-65; योहन 18:25-27)

66 जब पेतरॉस नीचे आँगन में थे. महायाजक की एक सेविका वहाँ आई 67 उसे पेतरॉस वहाँ आग तापते हुए दिखे इसलिए वह उनकी ओर एकटक देखते हुए बोली.

“तुम भी तो येशु नाज़री के साथ थे!”

68 पेतरॉस ने यह कहते हुए नकार दिया, “क्या कह रही हो! मैं इस विषय में कुछ नहीं जानता. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है,” और वह द्वार की ओर चले गए. 69 एक बार फिर जब उस दासी ने उन्हें देखा तो आस-पास उपस्थित लोगों से दोबारा कहने लगी, “यह भी उन्हीं में से एक है!” 70 पेतरॉस ने दोबारा नकार दिया.

कुछ समय बाद उनके पास खड़े लोग ही पेतरॉस से कहने लगे, “इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं है कि तुम उनमें से एक हो क्योंकि तुम भी गलीलवासी हो.”

71 किन्तु पेतरॉस धिक्कार कर सौगन्ध खाते हुए कहने लगे, “तुम जिस व्यक्ति के विषय में कह रहे हो, उसे तो मैं जानता ही नहीं!”

72 उसी क्षण मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी. पेतरॉस को मसीह येशु की वह पहले से कही हुए बात याद आई, “इसके पहले कि मुर्ग दो बार बाँग दे, तुम तीन बार मुझे नकार चुके होंगे.” पेतरॉस फूट-फूट कर रोने लगे.

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रोमियों 14

अन्यों के प्रति व्यवहार

14 विश्वास में कमज़ोर व्यक्ति को उसकी मान्यताओं के विषय में किसी भी शंका के बिना ही स्वीकार करो. एक व्यक्ति इस विश्वास से सब कुछ खाता है कि सभी कुछ भोज्य है किन्तु जिसका विश्वास निर्बल है, वह मात्र साग-पात ही खाता है. वह, जो सब कुछ खाता है, उसे तुच्छ दृष्टि से न देखे, जो सब कुछ नहीं खाता; इसी प्रकार वह, जो सब कुछ नहीं खाता, उस पर दोष न लगाए, जो सब कुछ खाता है क्योंकि परमेश्वर ने उसे स्वीकार कर ही लिया है, जो सब कुछ नहीं खाता. कौन हो तुम, जो किसी और के सेवक पर उँगली उठा रहे हो? सेवक स्थिर रहे या गिरे, यह उसके स्वामी की ज़िम्मेदारी है. वह स्थिर ही होगा क्योंकि प्रभु उसे स्थिर करने में समर्थ हैं.

कोई किसी एक विशेष दिन को महत्व देता है जबकि किसी अन्य के लिए सभी दिन एक समान होते हैं. हर एक अपनी-अपनी धारणा में ही पूरी तरह निश्चित रहे. जो व्यक्ति किसी विशेष दिन को महत्व देता है, वह उसे प्रभु के लिए महत्व देता है तथा वह, जो सब कुछ खाता है, प्रभु के लिए खाता है क्योंकि वह इसके लिए परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट करता है तथा जो नहीं खाता, वह प्रभु का ध्यान रखते हुए नहीं खाता तथा वह भी परमेश्वर ही के प्रति धन्यवाद प्रकट करता है. हममें से किसी का भी जीवन उसका अपना नहीं है और न ही किसी की मृत्यु स्वयं उसके लिए होती है क्योंकि यदि हम जीवित हैं तो प्रभु के लिए और यदि हमारी मृत्यु होती है, तो वह भी प्रभु के लिए ही. इसलिए हम जीवित रहें या हमारी मृत्यु हो, हम प्रभु ही के हैं. यही वह कारण है कि मसीह की मृत्यु हुई तथा वह मरे हुओं में से जीवित हो गए कि वह जीवितों तथा मरे हुओं दोनों ही के प्रभु हों. 10 किन्तु तुम साथी पर आरोप क्यों लगाते हो? या तुम उसे तुच्छ क्यों समझते हो? हम सभी को परमेश्वर के न्यायासन के सामने उपस्थित होना है.

11 पवित्रशास्त्र का लेख है:

“‘मेरे जीवन की सौगन्ध,’ यह प्रभु का कहना है
‘हर एक घुटना मेरे सामने झुक जाएगा,
    हर एक जीभ परमेश्वर को स्वीकार करेगी.’”

12 हममें से हरेक परमेश्वर को स्वयं अपना हिसाब देगा.

13 अतएव अब से हम एक-दूसरे पर आरोप न लगाएं परन्तु यह निश्चय करें कि हम अपने भाई के मार्ग में न तो बाधा उत्पन्न करेंगे और न ही ठोकर का कोई कारण. 14 मुझे यह मालूम है तथा प्रभु मसीह येशु में मैं पूरी तरह से निश्चित हूँ कि अपने आप में कुछ भी अशुद्ध नहीं है. यदि किसी व्यक्ति ने किसी वस्तु को अशुद्ध मान ही लिया है, वह उसके लिए ही अशुद्ध है. 15 यदि आपके भोजन के कारण साथी उदास होता है तो तुम्हारा स्वभाव प्रेम के अनुसार नहीं रहा. अपने भोजन के कारण तो उसका विनाश न करो, जिसके लिए मसीह ने अपने प्राण दिए! 16 इसलिए जो तुम्हारी दृष्टि में तुम्हारे लिए सही और उचित है, उसके विषय में अन्यों को निन्दा करने का अवसर न मिले 17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य मात्र खान-पान के विषय में नहीं परन्तु पवित्रात्मा में धार्मिकता, शान्ति तथा आनन्द में है. 18 जो कोई मसीह की सेवा इस भाव में करता है, वह परमेश्वर को ग्रहण योग्य तथा मनुष्यों द्वारा भाता है.

19 हम अपने सभी प्रयास पारस्परिक और एक-दूसरे की उन्नति की दिशा में ही लक्षित करें. 20 भोजन को महत्व देते हुए परमेश्वर के काम को न बिगाड़ो. वास्तव में सभी भोज्य पदार्थ स्वच्छ हैं किन्तु ये उस व्यक्ति के लिए बुरे हो जाते हैं, जो इन्हें खाकर अन्य के लिए ठोकर का कारण बनता है. 21 सही यह है कि न तो माँस का सेवन किया जाए और न ही दाख़रस का या ऐसा कुछ भी किया जाए, जिससे साथी को ठोकर लगे.

22 इन विषयों पर अपने विश्वास को स्वयं अपने तथा परमेश्वर के मध्य सीमित रखो. धन्य है वह व्यक्ति, जिसकी अन्तरात्मा उसके द्वारा स्वीकृत किए गए विषयों में उसे नहीं धिक्कारती. 23 यदि किसी व्यक्ति को अपने खान-पान के विषय में संशय है, वह अपने ऊपर दोष ले आता है क्योंकि उसका खान-पान विश्वास से नहीं है. जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है.

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