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42 जब पौलॉस और बारनबास यहूदी सभागृह से बाहर निकल रहे थे, लोगों ने उनसे विनती की कि वे आनेवाले शब्बाथ पर भी इसी विषय पर आगे प्रवचन दें. 43 जब सभा समाप्त हुई अनेक यहूदी और यहूदीमत में से आए हुए नए विश्वासी पौलॉस तथा बारनबास के साथ हो लिए. पौलॉस तथा बारनबास ने उनसे परमेश्वर के अनुग्रह में स्थिर रहने की विनती की.
पौलॉस और बारनबास का अन्यजातियों के लिए भाषण
44 अगले शब्बाथ पर लगभग सारा नगर परमेश्वर का वचन सुनने के लिए उमड़ पड़ा. 45 उस बड़ी भीड़ को देख यहूदी जलन से भर गए तथा पौलॉस द्वारा पेश किए गए विचारों का विरोध करते हुए उनकी घोर निन्दा करने लगे. 46 किन्तु पौलॉस तथा बारनबास ने निडरता से कहा: “यह ज़रूरी था कि परमेश्वर का वचन सबसे पहिले आपके सामने स्पष्ट किया जाता. अब, जबकि आप लोगों ने इसे नकार दिया है और यह करते हुए स्वयं को अनन्त जीवन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है, हम अपना ध्यान अब अन्यजातियों की ओर केन्द्रित करेंगे, 47 क्योंकि हमारे लिए परमेश्वर की आज्ञा है:
“‘मैंने तुमको अन्यजातियों के लिए एक ज्योति के रूप में चुना है,
कि तुम्हारे द्वारा सारी पृथ्वी पर उद्धार लाया जाए.’”
48 यह सुन कर अन्यजाति आनन्द में प्रभु के वचन की प्रशंसा करने लगे तथा अनन्त जीवन के लिए पहले से ठहराए गए सुननेवालों ने इस पर विश्वास किया.
49 सारे क्षेत्र में प्रभु का वचन-सन्देश फैलता चला गया. 50 किन्तु यहूदियों ने नगर की भली, श्रद्धालु स्त्रियों तथा ऊँचे पद पर बैठे व्यक्तियों को भड़का दिया और पौलॉस और बारनबास के विरुद्ध उपद्रव करवा कर उन्हें अपने क्षेत्र की सीमा से निकाल दिया. 51 पौलॉस और बारनबास उनके प्रति विरोध प्रकट करते हुए अपने पैरों की धूलि झाड़ते हुए इकोनियॉन नगर की ओर चले गए. 52 प्रभु के शिष्य आनन्द और पवित्रात्मा से भरते चले गए.
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