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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 78

आसाप का एक गीत।

मेरे भक्तों, तुम मेरे उपदेशों को सुनो।
    उन बातों पर कान दो जिन्हें मैं बताना हूँ।
मैं तुम्हें यह कथा सुनाऊँगा।
    मैं तुम्हें पुरानी कथा सुनाऊँगा।
हमने यह कहानी सुनी है, और इसे भली भाँति जानते हैं।
    यह कहानी हमारे पूर्वजों ने कही।
इस कहानी को हम नहीं भूलेंगे।
    हमारे लोग इस कथा को अगली पीढ़ी को सुनाते रहेंगे।
हम सभी यहोवा के गुण गायेंगे।
    हम उन के अद्भुत कर्मो का जिनको उसने किया है बखान करेंगे।
यहोवा ने याकूब से वाचा किया।
    परमेश्वर ने इस्राएल को व्यवस्था का विधान दिया,
    और परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को आदेश दिया।
    उसने हमारे पूर्वजों को व्यवस्था का विधान अपने संतानों को सिखाने को कहा।
इस तरह लोग व्यवस्था के विधान को जानेंगे। यहाँ तक कि अन्तिम पीढ़ी तक इसे जानेगी।
    नयी पीढ़ी जन्म लेगी और पल भर में बढ़ कर बड़े होंगे, और फिर वे इस कहानी को अपनी संतानों को सुनायेंगे।
अत: वे सभी लोग यहोवा पर भरोसा करेंगे।
    वे उन शाक्तिपूर्ण कामों को नहीं भूलेंगे जिनको परमेश्वर ने किया था।
    वे ध्यान से रखवाली करेंगे और परमेश्वर के आदेशों का अनुसरण करेंगे।
अत: लोग अपनी संतानों को परमेश्वर के आदेशों को सिखायेंगे,
    तो फिर वे संतानें उनके पूर्वजों जैसे नहीं होंगे।
उनके पूर्वजों ने परमेश्वर से अपना मुख मोड़ा और उसका अनुसरण करने से इन्कार किया, वे लोग हठी थे।
    वे परमेश्वर की आत्मा के भक्त नहीं थे।

एप्रैम के लोगे शस्त्र धारी थे,
    किन्तु वे युद्ध से पीठ दिखा गये।
10 उन्होंने जो यहोवा से वाचा किया था पाला नहीं।
    वे परमेश्वर के सीखों को मानने से मुकर गये।
11 एप्रैम के वे लोग उन बड़ी बातों को भूल गए जिन्हें परमेश्वर ने किया था।
    वे उन अद्भुत बातों को भूल गए जिन्हें उसने उन्हें दिखायी थी।
12 परमेश्वर ने उनके पूर्वजों को मिस्र के सोअन में निज महाशक्ति दिखायी।
13 परमेश्वर ने लाल सागर को चीर कर लोगों को पार उतार दिया।
    पानी पक्की दीवार सा दोनों ओर खड़ा रहा।
14 हर दिन उन लोगों को परमेश्वर ने महा बादल के साथ अगुवाई की।
    हर रात परमेश्वर ने आग के लाट के प्रकाश से राहा दिखाया।
15 परमेश्वर ने मरूस्थल में चट्टान को फाड़ कर
    गहरे धरती के निचे से जल दिया।
16 परमेश्वर चट्टान से जलधारा वैसे लाया
    जैसे कोई नदी हो!
17 किन्तु लोग परमेश्वर के विरोध में पाप करते रहे।
    वे मरूस्थल तक में, परमपरमेश्वर के विरूद्ध हो गए।
18 फिर उन लोगों ने परमेश्वर को परखने का निश्चय किया।
    उन्होंने बस अपनी भूख मिटाने के लिये परमेश्वर से भोजन माँगा।
19 परमेश्वर के विरूद्ध वे बतियाने लगे, वे कहने लगे,
    “कया मरुभूमि में परमेश्वर हमें खाने को दे सकता है
20 परमेश्वर ने चट्टान पर चोट की और जल का एक रेला बाहर फूट पड़ा।
    निश्चय ही वह हमको कुछ रोटी और माँस दे सकता है।”
21 यहोवा ने सुन लिया जो लोगों ने कहा था।
    याकूब से परमेश्वर बहुत ही कुपित था।
इस्राएल से परमेश्वर बहुत ही कुपित था।
22     क्यों? क्योंकि लोगों ने उस पर भरोसा नहीं रखा था,
उन्हें भरोसा नहीं था, कि परमेश्वर उन्हें बचा सकता है।
23-24 किन्तु तब भी परमेश्वर ने उन पर बादल को उघाड़ दिया,
    उऩके खाने के लिय़े नीचे मन्ना बरसा दिया।
यह ठीक वैसे ही हुआ जैसे अम्बर के द्वार खुल जाये
    और आकाश के कोठे से बाहर अन्न उँडेला हो।
25 लोगों ने वह स्वर्गदूत का भोजन खाया।
    उन लोगों को तृप्त करने के लिये परमेश्वर ने भरपूर भोजन भेजा।
26 फिर परमेश्वर ने पूर्व से तीव्र पवन चलाई
    और उन पर बटेरे वर्षा जैसे गिरने लगी।
27 तिमान की दिशा से परमेश्वर की महाशक्ति ने एक आँधी उठायी और नीला आकाश काला हो गया
    क्योंकि वहाँ अनगिनत पक्षी छाए थे।
28 वे पक्षी ठीक डेरे के बीच में गिरे थे।
    वे पक्षी उन लोगों के डेरों के चारों तरफ गिरे थे।
29 उनके पास खाने को भरपूर हो गया,
    किन्तु उनकी भूख ने उनसे पाप करवाये।
30 उन्होंने अपनी भूख पर लगाम नहीं लगायी।
    सो उन्होंने उन पक्षियों को बिना ही रक्त निकाले, बटेरो को खा लिया।
31 सो उन लोगों पर परमेश्वर अति कुपीत हुआ और उनमें से बहुतों को मार दिया।
    उसने बलशाली युवकों तो मृत्यु का ग्रास बना दिया।
32 फिर भी लोग पाप करते रहे!
    वे उन अदूभुत कर्मो के भरोसा नहीं रहे, जिनको परमेश्वर कर सकता है।
33 सो परमेश्वर ने उनके व्यर्थ जीवन को
    किसी विनाश से अंत किया।
34 जब कभी परमेश्वर ने उनमें से किसी को मारा, वे बाकि परमेश्वर की ओर लौटने लगे।
    वे दौड़कर परमेश्वर की ओर लौट गये।
35 वे लोग याद करेंगे कि परमेश्वर उनकी चट्टान रहा था।
    वे याद करेंगे कि परम परमेश्वर ने उनकी रक्षा की।
36 वैसे तो उन्होंने कहा था कि वे उससे प्रेम रखते हैं।
    उन्हेंने झूठ बोला था। ऐसा कहने में वे सच्चे नहीं थे।
37 वे सचमुच मन से परमेश्वर के साथ नहीं थे।
    वे वाचा के लिये सच्चे नहीं थे।
38 किन्तु परमेश्वर करूणापूर्ण था।
    उसने उन्हें उनके पापों के लिये क्षमा किया, और उसने उनका विनाश नहीं किया।
परमेश्वर ने अनेकों अवसर पर अपना क्रोध रोका।
    परमेश्वर ने अपने को अति कुपित होने नहीं दिया।
39 परमेश्वर को याद रहा कि वे मात्र मनुष्य हैं।
    मनुष्य केवल हवा जैसे है जो बह कर चली जाती है और लौटती नहीं।
40 हाय, उन लोगों ने मरूभूमि में परमेश्वर को कष्ट दिया!
    उन्होंने उसको बहुत दु:खी किया था!
41 परमेश्वर के धैर्य को उन लोगों ने फिर परखा,
    सचमुच इस्राएल के उस पवित्र को उन्होंने कष्ट दिया।
42 वे लोग परमेश्वर की शक्ति को भूल गये।
    वे लोग भुल गये कि परमेश्वर ने उनको कितनी ही बार शत्रुओं से बचाया।
43 वे लोग मिस्र की अद्भुत बातों को
    और सोअन के क्षेत्रों के चमत्कारों को भूल गये।
44 उनकी नदियों को परमेश्वर ने खून में बदल दिया था!
    जिनका जल मिस्र के लोग पी नहीं सकते थे।
45 परमेश्वर ने भिड़ों के झुण्ड भेजे थे जिन्होंने मिस्र के लोगों को डसा।
    परमेश्वर ने उन मेढकों को भेजा जिन्होंने मिस्त्रियों के जीवन को उजाड़ दिया।
46 परमेश्वर ने उनके फसलों को टिड्डों को दे डाला।
    उनके दूसरे पौधे टिड्डियो को दे दिये।
47 परमेश्वर ने मिस्त्रियों के अंगूर के बाग ओलों से नष्ट किये,
    और पाला गिरा कर के उनके वृक्ष नष्ट कर दिये।
48 परमेश्वर ने उनके पशु ओलों से मार दिये
    और बिजलियाँ गिरा कर पशु धन नष्ट किये।
49 परमेश्वर ने मिस्र के लोगों को अपना प्रचण्ड क्रोध दिखाया।
    उनके विरोध में उसने अपने विनाश के दूत भेजे।
50 परमेश्वर ने क्रोध प्रकट करने के लिये एक राह पायी।
    उनमें से किसी को जीवित रहने नहीं दिया।
    हिंसक महामारी से उसने सारे ही पशुओं को मर जाने दिया।
51 परमेश्वर ने मिस्र के हर पहले पुत्र को मार डाला।
    हाम के घराने के हर पहले पुत्र को उसने मार डाला।
52 फिर उसने इस्राएल की चरवाहे के समान अगुवाई की।
    परमेश्वर ने अपने लोगों को ऐसे राह दिखाई जैसे जंगल में भेड़ों कि अगुवाई की है।
53 वह अपनेनिज लोगों को सुरक्षा के साथ ले चला।
    परमेश्वर के भक्तों को किसी से डर नहीं था।
    परमेश्वर ने उनके शत्रुओं को लाल सागर में हुबाया।
54 परमेश्वर अपने निज भक्तों को अपनी पवित्र धरती पर ले आया।
    उसने उन्हें उस पर्वत पर लाया जिसे उसने अपनी ही शक्ति से पाया।
55 परमेश्वर ने दूसरी जातियों को वह भूमि छोड़ने को विवश किया।
    परमेश्वर ने प्रत्येक घराने को उनका भाग उस भूमि में दिया।
    इस तरह इस्राएल के घराने अपने ही घरों में बस गये।
56 इतना होने पर भी इस्राएल के लोगों ने परम परमेश्वर को परखा और उसको बहुत दु:खी किया।
    वे लोग परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे।
57 इस्राएल के लोग परमेश्वर से भटक कर विमुख हो गये थे।
    वे उसके विरोध में ऐसे ही थे, जैसे उनके पूर्वज थे। वे इतने बुरे थे जैसे मुड़ा धनुष।
58 इस्राएल के लोगों ने ऊँचे पूजा स्थल बनाये और परमेश्वर को कुपित किया।
    उन्होंने देवताओं की मूर्तियाँ बनाई और परमेश्वर को ईर्ष्यालु बनाया।
59 परमेश्वर ने यह सुना और बहुत कुपित हुआ।
    उसने इस्राएल को पूरी तरह नकारा!
60 परमेश्वर ने शिलोह के पवित्र तम्बू को त्याग दिया।
    यह वही तम्बू था जहाँ परमेश्वर लोगों के बीच में रहता था।
61 फिर परमेश्वर ने उसके निज लोगों को दूसरी जातियों को बंदी बनाने दिया।
    परमेश्वर के “सुन्दर रत्न” को शत्रुओं ने छीन लिया।
62 परमेश्वर ने अपने ही लोगों (इस्राएली) पर निज क्रोध प्रकट किया।
    उसने उनको युद्ध में मार दिया।
63 उनके युवक जलकर राख हुए,
    और वे कन्याएँ जो विवाह योग्य थीं, उनके विवाह गीत नहीं गाये गए।
64 याजक मार डाले गए,
    किन्तु उनकी विधवाएँ उनके लिए नहीं रोई।
65 अंत में, हमारा स्वामी उठ बैठा
    जैसे कोई नींद से जागकर उठ बैठता हो।
    या कोई योद्धा दाखमधु के नशे से होश में आया हो।
66 फिर तो परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को मारकर भगा दिया और उन्हें पराजित किया।
    परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को हरा दिया और सदा के लिये अपमानित किया।
67 किन्तु परमेश्वर ने यूसुफ के घराने को त्याग दिया।
    परमेश्वर ने इब्राहीम परिवार को नहीं चुना।
68 परमेश्वर ने यहूदा के गोत्र को नहीं चुना
    और परमेश्वर ने सिय्योन के पहाड़ को चुना जो उसको प्रिय है।
69 उस ऊँचे पर्वत पर परमेश्वर ने अपना पवित्र मन्दिर बनाया।
    जैसे धरती अडिग है वैसे ही परमेश्वर ने निज पवित्र मन्दिर को सदा बने रहने दिया।
70 परमेश्वर ने दाऊद को अपना विशेष सेवक बनाने में चुना।
    दाऊद तो भेड़ों की देखभाल करता था, किन्तु परमेश्वर उसे उस काम से ले आया।
71 परमेश्वर दाऊद को भेड़ों को रखवाली से ले आया
    और उसने उसे अपने लोगों कि रखवाली का काम सौंपा, याकूब के लोग, यानी इस्राएल के लोग जो परमेश्वर की सम्पती थे।
72 और फिर पवित्र मन से दाऊद ने इस्राएल के लोगों की अगुवाई की।
    उसने उन्हें पूरे विवेक से राह दिखाई।

लैव्यव्यवस्था 26:1-20

परमेश्वर की आज्ञा पालन का पुरस्कार

26 “अपने लिए मूर्तियाँ मत बनाओ। मूर्तियाँ या यादगार के पत्थर स्थापित मत करो। अपने देश में उपासना करने के लिए पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित न करो। क्यों कियोंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ!

“मेरे आराम के विशेष दिनों को याद रखो और मेरे पवित्र स्थान का सम्मान करो। मैं यहोवा हूँ!

“मेरे नियमों और आदेशों को याद रखो और उनका पालन कोरो। यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं जिस समय वर्षा आनी चाहिए, उसी समय वर्षा कराऊँगा। भूमि फ़सलें पैदा करेगी और पेड़ अपने फल देंगे। तुम्हारा अनाज निकालने का काम तब तक चलेगा जब तक अँगूर इकट्ठा करने का समय आएगा और अँगूर का इकट्ठा करना तब तक चलेगा जब तक बोने का समय आएगा। तब तुम्हारे पास खाने के लिए बहुत होगा, और तुम अपने प्रदेश में सुरक्षित रहोगे। मै तुम्हारे देश को शान्ति दूँगा। तुम शान्ति से सो सकोगे। कोई वयक्ति भयभीत करने नहीं आएगा। मैं विनाशकारी जानवरों को तुम्हारे देश से बाहर रखूँगा। और सेनाएँ तुम्हारे देश से नहीं गुजरेंगी।

“तुम अपने शत्रुओं को पीछा करके भाओगे और उन्हें हराओगे। तुम उन्हें अपनी तलवार से मार डालोगे। तुम्हारे पाँच व्यक्ति सौ व्यक्तियों को पीछा कर के भगाएंगे और तुम्हारे सौ व्यक्ति हजार व्यक्तियों का पीछा करेंगे। तुम अपने शुत्रओं को हराओगे और उन्हें तलवार से मार डालोगे।

“तब मेंम तुम्हारी ओर मुड़ूँगा मैं तुम्हें बहुत से बच्चों वाला बनाऊँगा। मैं तुम्हारे साथ अपनी वाचा का पालन करूँगा। 10 तुम्हारे पास एक वर्ष से अधिक चलने वाली पर्याप्त पैदावार रहेगी। तुम नयी फसल काटोगे। किन्तु तब तुम्हें पुरानी पैदावार नयी पैदावार के लिए जगह बनाने हेतु फेंकनी पड़ेगी। 11 तुम लोगों के बीच मैं अपना पवित्र तम्बू रखूँगा। मैं तुम लोगों से अलग नहीं होऊँगा। 12 मै तुम्हारे साथ चलूँगा 13 और तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा। तुम मेरे लोग रहोगे। मै तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ तुम मिस्र में दास थे। किन्तु में तुम्हें मिस्र से बाहर लाया। तुम लोग दास के रूप में भारी बोझ ढोने से झुके हुए थे किन्तु मैंने तुम्हारे कंधों के जुंए को तोड़ फेंका। मैंने तुम्हें पुन: गर्व से चलने वाला बनाया।

योहवा की आज्ञा पालन न करने के लिए दण्ड

14 “किन्तु यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करोगे और मेरे ये सब आदेश नहीं मानोगे तो ये बुरी बातें होंगी। 15 यदि तुम मेरे नियमों और आदेशों को मानना अस्वीकार करते हो तो तुमने मेरी वाचा को तोड़ दिया है। 16 यदि तुम ऐसा करते हो तो मैं ऐसा करूँगा कि तुम्हारा भयंकर अनिष्ट होगा। मैं तुमको असाध्य रोग और तीव्र ज्वर लगाऊँगा वे तुम्हारी आँखे कठर करेंगे और तुम्हारा जीवन ले लेंगे। जब तुम अपने बीज बोओगे तो तुम्हें सफलता नहीं मिलेगी। तुम्हारी पैदावार तुम्हारे शुत्र खाएंगे। 17 मैं तुम्हारे विरुद्ध होऊँगा, अत: तुम्हारे शत्रु तुमको हराएँगे। वे शत्रु तुमसे घृणा करेंगे और तुम्हारे ऊपर शासन करेंगे। तुम तब भी भागोगे जब तुम्हारा पीछा कोई न कर रहा होगा।

18 “यदि इस के बाद भी तुम मेरी आज्ञा पालन नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे पापों के लिए सात गुना अधिक दण्ड दूँगा। 19 मैं उन बड़े नगरों को भी नष्ट करूँगा जो तुम्हें गर्वीला बनाते हैं। आकाश वर्षा नहीं देगा और धरती पैदावार नहीं उत्पन्न करेगी।[a] 20 तुम कठोर परिश्रम करोगे, किन्तु इससे कुछ भी नहीं होगा। तुम्हारी भूमि में कोई पैदावार नहीं होगी और तुम्हारे पेड़ों पर फल नहीं आएंगे।

1 तीमुथियुस 2:1-6

स्त्री-पुरुषों के लिये कुछ नियम

सबसे पहले मेरा विशेष रूप से यह निवेदन है कि सबके लिये आवेदन, प्रार्थनाएँ, अनुरोध और सब व्यक्तियों की ओर से धन्यवाद दिए जाएँ। शासकों और सभी अधिकारियों को धन्यवाद दिये जाएँ। ताकि हम चैन के साथ शांतिपूर्वक सम्पूर्ण श्रद्धा और परमेश्वर के प्रति सम्मान से पूर्ण जीवन जी सकें। यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला है। यह उत्तम है।

वह सभी व्यक्तियों का उद्धार चाहता है और चाहता है कि वे सत्य को पहचाने क्योंकि परमेश्वर एक ही है और मनुष्य तथा परमेश्वर के बीच में मध्यस्थ भी एक ही है। वह स्वयं एक मनुष्य है, मसीह यीशु। उसने सब लोगों के लिये स्वयं को फिरौती के रूप में दे डाला है। इस प्रकार उसने उचित समय परइसकी साक्षी दी।

मत्ती 13:18-23

बीज बोने की दृष्टान्त-कथा का अर्थ

(मरकुस 4:13-20; लूका 8:11-15)

18 “तो बीज बोने वाले की दृष्टान्त-कथा का अर्थ सुनो:

19 “वह बीज जो राह के किनारे गिर पड़ा था, उसका अर्थ है कि जब कोई स्वर्ग के राज्य का सुसंदेश सुनता है और उसे समझता नहीं है तो दुष्ट आकर, उसके मन में जो उगा था, उसे उखाड़ ले जाता है।

20 “वे बीज जो चट्टानी धरती पर गिरे थे, उनका अर्थ है वह व्यक्ति जो सुसंदेश सुनता है, उसे आनन्द के साथ तत्काल ग्रहण भी करता है। 21 किन्तु अपने भीतर उसकी जड़ें नहीं जमने देता, वह थोड़ी ही देर ठहर पाता है, जब सुसंदेश के कारण उस पर कष्ट और यातनाएँ आती हैं तो वह जल्दी ही डगमगा जाता है।

22 “काँटों में गिरे बीज का अर्थ है, वह व्यक्ति जो सुसंदेश को सुनता तो है, पर संसार की चिंताएँ और धन का लोभ सुसंदेश को दबा देता है और वह व्यक्ति सफल नहीं हो पाता।

23 “अच्छी धरती पर गिरे बीज से अर्थ है, वह व्यक्ति जो सुसंदेश को सुनता है और समझता है। वह सफल होता है। वह सफलता बोये बीज से तीस गुना, साठ गुना या सौ गुना तक होती है।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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