Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
मसीही होय के कारन दुःख सहई
12 मयारू संगवारीमन, जऊन पीरा भरे दुःख, परखे बर तुम्हर ऊपर पड़े हवय, ओकर ले अचम्भो झन करव कि कोनो अनहोनी बात तुम्हर ऊपर होवत हवय। 13 पर आनंद मनावव कि तुमन मसीह के दुःख म सामिल हवव, ताकि जब ओकर महिमा परगट होवय, त तुमन आनंद ले मगन हो जावव। 14 कहूं मसीह के नांव के कारन तुम्हर बेजत्ती होथे, त अपन-आप ला धइन समझव, काबरकि महिमा अऊ परमेसर के आतमा तुम्हर ऊपर छइहां करथे। 15 कहूं तुमन दुःख भोगव, त ए दुःख भोगई ह एक हतियारा या चोर या कोनो आने किसम के अपराधी के रूप म झन होवय, अऊ एह आने मन के काम म बाधा डलइया के रूप म घलो झन होवय। 16 पर कहूं तुमन एक मसीही के रूप म दुःख भोगथव, त एकर बर झन लजावव, पर परमेसर के इस्तुति करव, कि मसीह के नांव तुम्हर संग हवय। 17 नियाय के समय आ गे हवय अऊ परमेसर के मनखेमन के नियाय पहिली करे जाही, अऊ कहूं एकर सुरूआत हमर ले होथे, त ओमन के अंत कइसने होही, जऊन मन परमेसर के सुघर संदेस ला नइं मानय? 18 जइसने कि परमेसर के बचन ह कहिथे,
“यदि धरमीमन बर उद्धार पाना कठिन ए,
त भक्तिहीन अऊ पापी मन के का होही?”
19 एकरसेति, जऊन मन परमेसर के ईछा के मुताबिक दुःख उठाथें, ओमन अपन-आप ला अपन बिसवास के काबिल सिरिस्टी करइया परमेसर के हांथ म सऊंप देवंय, अऊ बने काम करे म लगे रहंय।
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