Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
15 जो स्वर्गदूत, मुझे सम्बोधित कर रहा था, उसके पास नगर, उसके द्वार तथा उसकी शहरपनाह को मापने के लिए सोने का एक मापक-दण्ड था. 16 नगर की संरचना वर्गाकार थी—उसकी लम्बाई उसकी चौड़ाई के बराबर थी. उसने नगर को इस मापदण्ड से मापा. नगर 2,220 किलोमीटर लम्बा, इतना ही चौड़ा और इतना ही ऊँचा था. 17 तब उसने शहरपनाह को मापा. वह सामान्य मानवीय मापदण्ड के अनुसार 65 मीटर थी. यही माप स्वर्गदूत का भी था. 18 शहरपनाह सूर्यकान्त मणि की तथा नगर शुद्ध सोने का बना था, जिसकी आभा निर्मल काँच के समान थी. 19 शहरपनाह की नींव हर एक प्रकार के कीमती पत्थरों से सजायी गयी थी: पहला पत्थर था सूर्यकान्त, दूसरा नीलकान्त, तीसरा स्फटिक, चौथा पन्ना 20 पांचवां गोमेद, छठा माणिक्य, सातवां स्वर्णमणि; आठवाँ हरितमणि; नवाँ पुखराज; दसवां चन्द्रकान्त; ग्यारहवाँ धूम्रकान्त और बारहवाँ नीलम. 21 नगर के बारहों द्वार बारह मोती थे—हर एक द्वार एक पूरा मोती था तथा नगर का प्रधान मार्ग शुद्ध सोने का बना था, जिसकी आभा निर्मल काँच के समान थी.
22 इस नगर में मुझे कोई मन्दिर दिखाई न दिया क्योंकि स्वयं सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर और मेमना इसका मन्दिर हैं.
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