Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
आरोहण गीत।
1 यहोवा के सभी भक्त आनन्दित रहते हैं।
वे लोग परमेश्वर जैसा चाहता, वैसा गाते हैं।
2 तूने जिनके लिये काम किया है, उन वस्तुओं का तू आनन्द लेगा।
उन ऐसी वस्तुओं को कोई भी व्यक्ति तुझसे नहीं छिनेगा। तू प्रसन्न रहेगा और तेरे साथ भली बातें घटेंगी।
3 घर पर तेरी घरवाली अंगूर की बेल सी फलवती होगी।
मेज के चारों तरफ तेरी संतानें ऐसी होंगी, जैसे जैतून के वे पेड़ जिन्हें तूने रोपा है।
4 इस प्रकार यहोवा अपने अनुयायिओं को
सचमुच आशीष देगा।
5 यहोवा सिय्योन से तुझ को आशीर्वाद दे यह मेरी कामना है।
जीवन भर यरूशलेम में तुझको वरदानों का आनन्द मिले।
6 तू अपने नाती पोतों को देखने के लिये जीता रहे यह मेरी कामना है।
इस्राएल में शांति रहे।
12 उस दिन यहोवा ने इस्राएलियों द्वारा एमोरी लोगों को पराजित होने दिया और उस दिन यहोशू इस्राएल के सभी लोगों के सामने खड़ा हुआ और उसने यहोवा से कहाः
“हे सूर्य, गिबोन के आसमान में खड़े रह और हट नहीं।
हे चन्द्र तू अय्यालोन की घाटी के ऊपर आसमान में खड़े रह और हट नहीं।”
13 सूर्य स्थिर हो गया और चन्द्रमा ने भी तब तक चलना छोड़ दिया जब तक लोगों ने अपने शत्रुओं को पराजित नहीं कर दिया। यह सचमुच हुआ, यह कथा याशार की किताब में लिखी है। सूर्य आसमान के मध्य रुका। यह पूरे दिन वहाँ से नहीं हटा। 14 ऐसा उस दिन के पहले किसी भी समय कभी नहीं हुआ था और तब से अब तक कभी नहीं हुआ है। वही दिन था, जब यहोवा ने मनुष्य की प्रार्थना मानी। वास्तव में यहोवा इस्राएलियों के लिये युद्ध कर रहा था!
मनुष्य के बनाये नियमों से परमेश्वर का विधान बड़ा है
(मरकुस 7:1-23)
15 फिर कुछ फ़रीसी और यहूदी धर्मशास्त्री यरूशलेम से यीशु के पास आये और उससे पूछा, 2 “तेरे अनुयायी हमारे पुरखों के रीति-रिवाजों का पालन क्यों नहीं करते? वे खाना खाने से पहले अपने हाथ क्यों नहीं धोते?”
3 यीशु ने उत्तर दिया, “अपने रीति-रिवाजों के कारण तुम परमेश्वर के विधि को क्यों तोड़ते हो? 4 क्योंकि परमेश्वर ने तो कहा था ‘तू अपने माता-पिता का आदर कर’(A) और ‘जो कोई अपने पिता या माता का अपमान करता है, उसे अवश्य मार दिया जाना चाहिये।’(B) 5 किन्तु तुम कहते हो जो कोई अपने पिता या अपनी माता से कहे, ‘क्योंकि मैं अपना सब कुछ परमेश्वर को अर्पित कर चुका हूँ, इसलिये तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।’ 6 इस तरह उसे अपने माता पिता का आदर करने की आवश्यकता नहीं। इस प्रकार तुम अपने रीति-रिवाजों के कारण परमेशवर के आदेश को नकारते हो। 7 ओ ढोंगियों, तुम्हारे बारे में यशायाह ने ठीक ही भविष्यवाणी की थी। उसने कहा था:
8 ‘यह लोग केवल होठों से मेरा आदर करते हैं;
पर इनका मन मुझ से सदा दूर रहता है।
9 मेरे लिए उनकी उपासना व्यर्थ है,
क्योंकि उनकी शिक्षा केवल लोगों द्वारा बनाए हुए सिद्धान्त हैं।’”(C)
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