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Revised Common Lectionary (Semicontinuous)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with sequential stories told across multiple weeks.
Duration: 1245 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 4:13-25

व्यवस्था के पालन मात्र से धार्मिकता नहीं

13 उस प्रतिज्ञा का आधार, जो अब्राहाम तथा उनके वंशजों से की गई थी कि अब्राहाम पृथ्वी के वारिस होंगे, व्यवस्था नहीं परन्तु विश्वास की धार्मिकता थी. 14 यदि व्यवस्था का पालन करने से उन्हें मीरास प्राप्त होती है तो विश्वास खोखला और प्रतिज्ञा बेअसर साबित हो गई है. 15 व्यवस्था क्रोध का पिता है किन्तु जहाँ व्यवस्था है ही नहीं, वहाँ व्यवस्था का उल्लंघन भी सम्भव नहीं!

16 परिणामस्वरूप विश्वास ही उस प्रतिज्ञा का आधार है, कि परमेश्वर के अनुग्रह में अब्राहाम के सभी वंशजों को यह प्रतिज्ञा निश्चित रूप से प्राप्त हो सके—न केवल उन्हें, जो व्यवस्था के अधीन हैं परन्तु उन्हें भी, जिनका विश्वास वैसा ही है, जैसा अब्राहाम का, जो हम सभी के कुलपिता हैं. 17 जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: मैंने तुम्हें अनेकों राष्ट्रों का पिता ठहराया है, हमारे कुलपिता अब्राहाम ने उन्हीं परमेश्वर में विश्वास किया, जो मरे हुओं को जीवन देते हैं तथा अस्तित्व में आने की आज्ञा उन्हें देते हैं, जो हैं ही नहीं.

अब्राहाम का विश्वास, मसीही विश्वास का आदर्श

18 बिलकुल निराशा की स्थिति में भी अब्राहाम ने उनसे की गई इस प्रतिज्ञा के ठीक अनुरूप उस आशा में विश्वास किया: वह अनेकों राष्ट्रों के पिता होंगे, ऐसे ही होंगे तुम्हारे वंशज. 19 अब्राहाम जानते थे कि उनका शरीर मरी हुए दशा में था क्योंकि उनकी आयु लगभग सौ वर्ष थी तथा साराह का गर्भ तो मृत था ही. फिर भी वह विश्वास में कमज़ोर नहीं हुए. 20 उन्होंने परमेश्वर की प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में अपने विश्वास में विचलित न होकर, स्वयं को उसमें मजबूत करते हुए परमेश्वर की महिमा की 21 तथा पूरी तरह निश्चिंत रहे कि वह, जिन्होंने यह प्रतिज्ञा की है, उसे पूरा करने में भी सामर्थी हैं. 22 इसलिए अब्राहाम के लिए यही विश्वास की धार्मिकता मानी गई. 23 उनके लिए धार्मिकता मानी गई, ये शब्द मात्र उन्हीं के विषय में नहीं हैं, 24 परन्तु इनका सम्बन्ध हमसे भी है, जिन्हें परमेश्वर की ओर से धार्मिकता की मान्यता प्राप्त होगी—हम, जिन्होंने विश्वास उनमें किया है—जिन्होंने हमारे प्रभु मसीह येशु को मरे हुओं से दोबारा जीवित किया, 25 जो हमारे अपराधों के कारण मृत्युदण्ड के लिए सौंपे गए तथा हमें धर्मी घोषित कराने के लिए दोबारा जीवित किए गए.

मत्तियाह 9:9-13

मत्तियाह का बुलाया जाना

(मारक 2:13-17; लूकॉ 5:27-32)

वहाँ से जाने के बाद येशु ने चुँगी लेने वाले के आसन पर बैठे हुए एक व्यक्ति को देखा, जिसका नाम मत्तियाह था. येशु ने उसे आज्ञा दी, “मेरे पीछे हो ले.” मत्तियाह उठ कर येशु के साथ हो लिए.

10 जब येशु भोजन के लिए बैठे थे, अनेक चुँगी लेने वाले तथा अपराधी व्यक्ति भी उनके साथ शामिल थे. 11 यह देख फ़रीसियों ने आपत्ति उठाते हुए येशु के शिष्यों से कहा, “तुम्हारे गुरु चुँगी लेने वाले और अपराधी व्यक्तियों के साथ भोजन क्यों करते हैं?”

12 यह सुन येशु ने स्पष्ट किया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं परन्तु रोगी व्यक्ति को होती है. 13 अब जाओ और इस कहावत का अर्थ समझो: मुझे बलि नहीं परन्तु दया चाहिए. क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने के लिए इस पृथ्वी पर आया हूँ.”

मत्तियाह 9:18-26

लहूस्राव-पीड़ित स्त्री की चंगाई तथा मरी हुई बालिका का नया जीवन

(मारक 5:21-43; लूकॉ 8:40-56)

18 जब येशु उन लोगों से इन विषयों पर बातचीत कर रहे थे, यहूदी-सभागृह का एक अधिकारी उनके पास आया और उनके सामने झुक कर विनती करने लगा, “कुछ देर पहले ही मेरी पुत्री की मृत्यु हुई है. आप कृपया आकर उस पर हाथ रख दीजिए और वह जीवित हो जाएगी.” 19 येशु और उनके शिष्य उसके साथ चले गए.

20 मार्ग में बारह वर्ष से लहूस्राव-पीड़ित एक स्त्री ने पीछे से आ कर येशु के वस्त्र के छोर को छुआ 21 क्योंकि उसका यह विश्वास था, “यदि मैं उनके वस्त्र को छू भर लूँ, तो मैं रोगमुक्त हो जाऊँगी.”

22 येशु ने पीछे मुड़ कर उसे देखा और उससे कहा, “तुम्हारे लिए यह आनन्द का विषय है: तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ कर दिया.” उसी क्षण वह स्त्री स्वस्थ हो गई.

23 जब येशु यहूदी-सभागृह के अधिकारी के घर पर पहुँचे तो उन्होंने भीड़ का कोलाहल और शोक-संगीत सुना. 24 इसलिए उन्होंने आज्ञा दी, “यहाँ से चले जाओ क्योंकि बालिका की मृत्यु नहीं हुई है—वह सो रही है.” इस पर वे येशु का ठठ्ठा करने लगे 25 किन्तु जब भीड़ को बाहर निकाल दिया गया, येशु ने कक्ष में प्रवेश कर बालिका का हाथ पकड़ा और वह उठ बैठी. 26 यह समाचार सारे क्षेत्र में फैल गया.

Saral Hindi Bible (SHB)

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