Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
13 तब अगुवामन ले एक झन मोर ले पुछिस, “जऊन मन सफेद कपड़ा पहिरे हवंय, ओमन कोन अंय, अऊ ओमन कहां ले आय हवंय?”
14 मेंह कहेंव, “हे महाराज, तेंह जानथस।”
अऊ ओह कहिस, “एमन ओ मनखे अंय, जऊन मन भारी सतावा म ले होके आय हवंय। एमन मेढ़ा-पीला के लहू म अपन कपड़ा ला धोके सफेद कर ले हवंय।
15 एकरसेति,
एमन परमेसर के सिंघासन के आघू म ठाढ़े रहिथें,
अऊ रात-दिन परमेसर के सेवा ओकर मंदिर म करथें,
अऊ जऊन ह सिंघासन म बिराजे हवय,
ओह ओमन के संग रहिके ओमन के रकछा करही।
16 ‘एमन ला न तो कभू भूख लगही,
अऊ न कभू पियास।
सूरज के घाम ह एमन के कुछू नइं कर सकय,’[a]
अऊ तीपत गरमी के कुछू असर एमन ऊपर नइं होवय।
17 काबरकि जऊन मेढ़ा-पीला ह सिंघासन के आघू म हवय,
ओह ओमन के चरवाहा होही;
‘ओह ओमन ला जिनगी के पानी के सोतामन करा ले जाही।’
‘अऊ परमेसर ह ओमन के आंखी के जम्मो आंसू ला पोंछही।’[b]”
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