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Revised Common Lectionary (Complementary)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with thematically matched Old and New Testament readings.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 118:1-2

यहोवा का मान करो क्योंकि वह परमेश्वर है।
    उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!
इस्राएल यह कहता है,
    “उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!”

भजन संहिता 118:14-24

14 यहोवा मेरी शक्ति और मेरा विजय गीत है।
    यहोवा मेरी रक्षा करता है।
15 सज्जनों के घर में जो विजय पर्व मन रहा तुम उसको सुन सकते हो।
    देखो, यहोवा ने अपनी महाशक्ति फिर दिखाई है।
16 यहोवा की भुजाये विजय में उठी हुई हैं।
    देखो यहोवा ने अपनी महाशक्ति फिर से दिखाई।

17 मैं जीवित रहूँगा, मैं मरूँगा नहीं,
    और जो कर्म यहोवा ने किये हैं, मैं उनका बखान करूँगा।
18 यहोवा ने मुझे दण्ड दिया
    किन्तु मरने नहीं दिया।
19 हे पुण्य के द्वारों तुम मेरे लिये खुल जाओ
    ताकि मैं भीतर आ पाऊँ और यहोवा की आराधना करूँ।
20 वे यहोवा के द्वार है।
    बस केवल सज्जन ही उन द्वारों से होकर जा सकते हैं।
21 हे यहोवा, मेरी विनती का उत्तर देने के लिये तेरा धन्यवाद।
    मेरी रक्षा के लिये मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ।

22 जिसको राज मिस्त्रियों ने नकार दिया था
    वही पत्थर कोने का पत्थर बन गया।
23 यहोवा ने इसे घटित किया
    और हम तो सोचते हैं यह अद्भुत है!
24 यहोवा ने आज के दिन को बनाया है।
    आओ हम हर्ष का अनुभव करें और आज आनन्दित हो जाये!

उत्पत्ति 1:20-2:4

पाँचवाँ दिन—मछलियाँ और पक्षी

20 तब परमेश्वर ने कहा, “जल, अनेक जलचरों से भर जाए और पक्षी पृथ्वी के ऊपर वायुमण्डल में उड़ें।” 21 इसलिए परमेश्वर ने समुद्र में बहुत बड़े—बड़े जलजन्तु बनाए। परमेश्वर ने समुद्र में विचरण करने वाले प्राणियों को बनाया। समुद्र में भिन्न—भिन्न जाति के जलजन्तु हैं। परमेश्वर ने इन सब की सृष्टि की। परमेश्वर ने हर तरह के पक्षी भी बनाए जो आकाश में उड़ते हैं। परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।

22 परमेश्वर ने इन जानवरों को आशीष दी, और कहा, “जाओ और बहुत से बच्चे उत्पन्न करो और समुद्र के जल को भर दो। पक्षी भी बहुत बढ़ जाएं।”

23 तब शाम हुई और सवेरा हुआ। यह पाँचवाँ दिन था।

छठवाँ दिन—भूमि के जीवजन्तु और मनुष्य

24 तब परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी हर एक जाति के जीवजन्तु उत्पन्न करे। बहुत से भिन्न जाति के जानवर हों। हर जाति के बड़े जानवर और छोटे रेंगनेवाले जानवर हों और यह जानवर अपनी जाति के अनुसार और जानवर बनाएं” और यही सब हुआ।

25 तो, परमेश्वर ने हर जाति के जानवरों को बनाया। परमेश्वर ने जंगली जानवर, पालतू जानवर, और सभी छोटे रेंगनेवाले जीव बनाए और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।

26 तब परमेश्वर ने कहा, “अब हम मनुष्य बनाएं। हम मनुष्य को अपने स्वरूप जैसा बनाएगे। मनुष्य हमारी तरह होगा। वह समुद्र की सारी मछलियों पर और आकाश के पक्षियों पर राज करेगा। वह पृथ्वी के सभी बड़े जानवरों और छोटे रेंगनेवाले जीवों पर राज करेगा।”

27 इसलिए परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में[a] बनाया। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरुप में सृजा। परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया। 28 परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी। परमेश्वर ने उनसे कहा, “तुम्हारी बहुत सी संताने हों। पृथ्वी को भर दो और उस पर राज करो। समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों पर राज करो। हर एक पृथ्वी के जीवजन्तु पर राज करो।”

29 परमेश्वर ने कहा, “देखो, मैंने तुम लोगों को सभी बीज वाले पेड़ पौधे और सारे फलदार पेड़ दिए हैं। ये अन्न तथा फल तुम्हारा भोजन होगा। 30 मैं प्रत्येक हरे पेड़ पौधो जानवरों के लिए दे रहा हूँ। ये हरे पेड़—पौधे उनका भोजन होगा। पृथ्वी का हर एक जानवर, आकाश का हर एक पक्षी और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जीवजन्तु इस भोजन को खाएंगे।” ये सभी बातें हुईं।

31 परमेश्वर ने अपने द्वारा बनाई हर चीज़ को देखा और परमेश्वर ने देखा कि हर चीज़ बहुत अच्छी है।

शाम हुई और तब सवेरा हुआ। यह छठवाँ दिन था।

सातवाँ दिन—विश्राम

इस तरह पृथ्वी, आकाश और उसकी प्रत्येक वस्तु की रचना पूरी हुई। परमेश्वर ने अपने किए जा रहे काम को पूरा कर लिया। अतः सातवें दिन परमेश्वर ने अपने काम से विश्राम किया। परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीषित किया और उसे पवित्र दिन बना दिया। परमेश्वर ने उस दिन को पवित्र दिन इसलिए बनाया कि संसार को बनाते समय जो काम वह कर रहा था उन सभी कार्यों से उसने उस दिन विश्राम किया।

मानव जाति का आरम्भ

यह पृथ्वी और आकाश का इतिहास है। यह कथा उन चीज़ों की है, जो परमेश्वर द्वारा पृथ्वी और आकाश बनाते समय, घटित हुईं।

1 कुरिन्थियों 15:50-58

50 हे भाइयो, मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ: मांस और लहू (हमारे ये पार्थिव शरीर) परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकार नहीं पा सकते। और न ही जो विनाशमान है, वह अविनाशी का उत्तराधिकारी हो सकता है। 51 सुनो, मैं तुम्हें एक रहस्यपूर्ण सत्य बताता हूँ: हम सभी मरेंगे नहीं, बल्कि हम सब बदल दिये जायेंगे। 52 जब अंतिम तुरही बजेगी तब पलक झपकते एक क्षण में ही ऐसा हो जायेगा क्योंकि तुरही बजेगी और मरे हुए अमर हो कर जी उठेंगे और हम जो अभी जीवित हैं, बदल दिये जायेंगे। 53 क्योंकि इस नाशवान देह का अविनाशी चोले को धारण करना आवश्यक है और इस मरणशील काया का अमर चोला धारण कर लेना अनिवार्य है। 54 सो जब यह नाशमान देह अविनाशी चोले को धारण कर लेगी और वह मरणशील काया अमर चोले को ग्रहण कर लेगी तो शास्त्र का लिखा यह पूरा हो जायेगा:

“विजय ने मृत्यु को निगल लिया है।”(A)

55 “हे मृत्यु तेरी विजय कहाँ है?
ओ मृत्यु, तेरा दंश कहाँ है?”(B)

56 पाप मृत्यु का दंश है और पाप को शक्ति मिलती है व्यवस्था से। 57 किन्तु परमेश्वर का धन्यवाद है जो प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें विजय दिलाता है।

58 सो मेरे प्यारे भाइयो, अटल बने डटे रहो। प्रभु के कार्य के प्रति अपने आपको सदा पूरी तरह समर्पित कर दो। क्योंकि तुम तो जानते ही हो कि प्रभु में किया गया तुम्हारा कार्य व्यर्थ नहीं है।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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