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Revised Common Lectionary (Complementary)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with thematically matched Old and New Testament readings.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 119:105-112

नुन्

105 हे यहोवा, तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक
    और मार्ग के लिये उजियाला है।
106 तेरे नियम उत्तम हैं।
    मैं उन पर चलने का वचन देता हूँ, और मैं अपने वचन का पालन करूँगा।
107 हे यहोवा, बहुत समय तक मैंने दु:ख झेले हैं,
    कृपया मुझे अपना आदेश दे और तू मुझे फिर से जीवित रहने दे!
108 हे यहोवा, मेरी विनती को तू स्वीकार कर,
    और मुझ को अपनी विधान कि शिक्षा दे।
109 मेरा जीवन सदा जोखिम से भरा हुआ है।
    किन्तु यहोवा मैं तेरे उपदेश भूला नहीं हूँ।
110 दुष्ट जन मुझको फँसाने का यत्न करते हैं
    किन्तु तेरे आदेशों को मैंने कभी नहीं नकारा है।
111 हे यहोवा, मैं सदा तेरी वाचा का पालन करूँगा।
    यह मुझे अति प्रसन्न किया करता है।
112 मैं सदा तेरे विधान पर चलने का
    अति कठोर यत्न करूँगा।

2 राजा 22:3-20

योशिय्याह मन्दिर की मरम्मत के लिये आदेश देता है

योशिय्याह ने अपने राज्यकाल के अट्ठारहवें वर्ष में अपने मन्त्री, मशुल्लाम के पौत्र व असल्याह के पुत्र शापान को यहोवा के मन्दिर में भेजा। योशिय्याह ने कहा, “महयाजक हिलकिय्याह के पास जाओ। उससे कहो कि उसे वह धन लेना चाहिये जिसे लोग यहोवा के मन्दिर में लाये हैं। द्वारपालों ने उस धन को लोगों से इकट्ठा किया था। याजकों को यह धन उन कारीगरों को देने में उपयोग करना चाहिये जो यहोवा के मन्दिर की मरम्मत करते हैं। याजकों को इस धन को उन लोगों को देना चाहिये जो यहोवा के मन्दिर की देखभाल करते हैं। बढ़ई, पत्थर की दीवार बनाने वाले मिस्त्री और पत्थर तराश के लिये धन का उपयोग करो। मन्दिर में लगाने के लिये इमारती लकड़ी और कटे पत्थर के खरीदने में धन का उपयोग करो। उस धन को न गिनो जिसे तुम मजदूरों को दो। उन मजदूरों पर विश्वास किया जा सकता है।”

व्यवस्था की पुस्तक मन्दिर में मिली

महायाजक हिलकिय्याह ने शास्त्री शापान से कहा, “देखो! मुझे व्यवस्था की पुस्तक यहोवा के मन्दिर में मिली है।” हिलकिय्याह ने इस पुस्तक को शापान को दिया और शापान ने इसे पढ़ा।

शास्त्री शापान, राजा योशिय्याह के पास आया और उसे बताया जो हुआ था। शापान ने कहा, “तुम्हारे सेवकों ने मन्दिर से मिले धन को लिया और उसे उन कारीगरों को दिया जो यहोवा के मन्दिर की देख—रेख कर रहे थे।” 10 तब शास्त्री शापान ने राजा से कहा, “याजक हिलकिय्याह ने मुझे यह पुस्तक भी दी है।” तब शापान ने राजा को पुस्तक पढ़ कर सुनाई।

11 जब राजा ने व्यवस्था की पुस्तक के शब्दों को सुना, उसने अपना दुःख और परेशानी प्रकट करने के लिये अपने वस्त्रों को फाड़ डाला। 12 तब राजा ने याजक हिलकिय्याह, शापान के पुत्र अहीकाम, मीकायाह के पुत्र अकबोर, शास्त्री शापान और राजसेवक असाया को आदेश दिया। 13 राजा योशिय्याह ने कहा, “जाओ, और यहोवा से पूछो कि हमें क्या करना चाहिये। यहोवा से मेरे लिये, लोगों के लिये और पूरे यहूदा के लिये याचना करो। इस मिली हुई पुस्तक के शब्दों के बारे में पूछो। यहोवा हम लोगों पर क्रोधित है। क्यों क्योंकि हमारे पूर्वजों ने इस पुस्तक की शिक्षा को नहीं माना। उन्होंने हम लोगों के लिये लिखी सब बातों को नहीं किया।”

योशिय्याह और नबिया हुल्दा

14 अतः याजक हिलकिय्याह, अहीकाम, अकबोर, शापान और असाया, नबिया हुल्दा के पास गए। हुल्दा हर्हस के पौत्र व तिकवा के पुत्र शल्लूम की पत्नी थी। वह याजक के वस्त्रों की देखभाल करता था। हुल्दा यरूशलेम में द्वितीय खण्ड में रह रही थी। वे गए और उन्होंने हुल्दा से बातें कीं।

15 तब हुल्दा ने उनसे कहा, “यहोवा इस्राएल का परमेश्वर कहता हैः उस व्यक्ति से कहो जिसने तुम्हें मेरे पास भेजा हैः 16 ‘यहोवा यह कहता हैः मैं इस स्थान पर विपत्ति ला रहा हूँ और उन मनुष्यों पर भी जो यहाँ रहते हैं। ये विपत्तियाँ हैं जिन्हें उस पुस्तक में लिखा गया है जिसे यहूदा के राजा ने पढ़ा है। 17 यहूदा के लोगों ने मुझे त्याग दिया है और अन्य देवताओं के लिये सुगन्धि जलाई है। उन्होंने मुझे बहुत क्रोधित किया है। उन्होंने बहुत सी देवमूर्तियाँ बनाईं। यही कारण है कि मैं इस स्थान के विरुद्ध अपना क्रोध प्रकट करूँगा। मेरा क्रोध उस अग्नि की तरह होगा जो बुझाई न जा सकेगी।’

18-19 “यहूदा के राजा योशिय्याह ने तुम्हें यहोवा से सलाह लेने को भेजा है। योशिय्याह से यह कहोः ‘यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर ने जो कहा उसे तुमने सुना। तुमने वह सुना जो मैंने इस स्थान और इस स्थान पर रहने वाले लोगों के बारे में कहा। तुम्हारा हृदय कोमल है और जब तुमने यह सुना तो तुम्हें दु:ख हुआ। मैंने कहा कि भयंकर घटनायें इस स्थान (यरूशलेम) के साथ घटित होंगी। और तुमने अपने दुःख को प्रकट करने के लिये अपने वस्त्रों को फाड़ डाला और तुम रोने लगे। यही कारण है कि मैंने तुम्हारी बात सुनी।’ यहोवा यह कहता है, 20 ‘मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों के साथ ले आऊँगा। तुम मरोगे और अपनी कब्र में शान्तिपूर्वक जाओगे। अतः तुम्हारी आँखें उन विपत्तियों को नहीं देखेंगी जिन्हें मैं इस स्थान (यरूशलेम) पर ढाने जा रहा हूँ।’”

तब याजक हिलकिय्याह, अहीकाम, अकबोर, शापान और असाया ने राजा से यह सब कहा।

रोमियों 11:2-10

परमेश्वर ने अपने लोगों को नहीं नकारा जिन्हें उसने पहले से ही चुना था। अथवा क्या तुम नहीं जानते कि एलिय्याह के बारे में शास्त्र क्या कहता है: कि जब एलिय्याह परमेश्वर से इस्राएल के लोगों के विरोध में प्रार्थना कर रहा था? “हे प्रभु, उन्होंने तेरे नबियों को मार डाला। तेरी वेदियों को तोड़ कर गिरा दिया। केवल एक नबी मैं ही बचा हूँ और वे मुझे भी मार डालने का जतन कर रहे हैं।”(A) किन्तु तब परमेश्वर ने उसे कैसे उत्तर दिया था, “मैंने अपने लिए सात हजार लोग बचा रखे हैं जिन्होंने बाल के आगे माथा नहीं टेका।”(B)

सो वैसे ही आज कल भी कुछ ऐसे लोग बचे हैं जो उसके अनुग्रह के कारण चुने हुए हैं। और यदि यह परमेश्वर के अनुग्रह का परिणाम है तो लोग जो कर्म करते हैं, यह उन कर्मों का परिणाम नहीं है। नहीं तो परमेश्वर की अनुग्रह, अनुग्रह ही नहीं ठहरती।

तो इससे क्या? इस्राएल के लोग जिसे खोज रहे थे, वे उसे नहीं पा सके। किन्तु चुने हुओं को वह मिल गया। जबकि बाकी सब को कठोर बना दिया गया। शास्त्र कहता है:

“परमेश्वर ने उन्हें एक चेतना शून्य आत्मा प्रदान की।”(C)

“ऐसी आँखें दीं जो देख नहीं सकती थीं
    और ऐसे कान दिए जो सुन नहीं सकते थे।
और यही दशा ठीक आज तक बनी हुई है।”(D)

दाऊद कहता है:

“अपने ही भोजनों में फँसकर वे बंदी बन जाएँ
    उनका पतन हो और उन्हें दण्ड मिले।
10 उनकी आँखें धुँधली हो जायें ताकि वे देख न सकें
    और तू उनकी पीड़ाओं तले, उनकी कमर सदा-सदा झुकाए रखें।”(E)

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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