Revised Common Lectionary (Complementary)
22 तब सुलैमान यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ। सभी लोग उसके सामने खड़े थे। राजा सुलैमान ने अपने हाथों को फैलाया और आकाश की ओर देखा।
23 उसने कहा,
“हे यहोवा इस्राएल के परमेश्वर तेरे समान धरती पर या आकाश में कोई ईश्वर नहीं है। तूने अपने लोगों के साथ वाचा की क्योंकि तू उनसे प्रेम करता है और तूने अपनी वाचा को पूरा किया। तू उन लोगों के प्रति दयालू और स्नेहपूर्ण है जो तेरा अनुसरण करते हैं।
41-42 “अन्य स्थानों के लोग तेरी महानता और तेरी शक्ति के बारे में सुनेंगे। वे बहुत दूर से इस मन्दिर में प्रार्थना करने आएंगे। 43 कृपया अपने निवास स्थान, स्वर्ग से उनकी प्रार्थना सुन। कृपया तू वह सब कुछ प्रदान कर जिसे अन्य स्थानों के लोग तुझसे माँगें। तब वे लोग भी इस्राएली लोगों की तरह ही तुझसे डरेंगे और तेरा सम्मान करेंगे।
1 उन नये कामों के लिये जिन्हें यहोवा ने किया है नया गीत गाओ।
अरे ओ समूचे जगत यहोवा के लिये गीत गा।
2 यहोवा के लिये गाओ! उसके नाम को धन्य कहो!
उसके सुसमाचार को सुनाओ! उन अद्भुत बातों का बखान करो जिन्हें परमेश्वर ने किया है।
3 अन्य लोगों को बताओ कि परमेश्वर सचमुच ही अद्भुत है।
सब कहीं के लोगों में उन अद्भुत बातों का जिन्हें परमेश्वर करता है बखान करो।
4 यहोवा महान है और प्रशंसा योग्य है।
वह किसी भी अधिक “देवताओं” से डरने योग्य है।
5 अन्य जातियों के सभी “देवता” केवल मूर्तियाँ हैं,
किन्तु यहोवा ने आकाशों को बनाया।
6 उसके सम्मुख सुन्दर महिमा दीप्त है।
परमेश्वर के पवित्र मन्दिर सामर्थ्य और सौन्दर्य हैं।
7 अरे! ओ वंशों, और हे जातियों यहोवा के लिये महिमा
और प्रशंसा के गीत गाओ।
8 यहोवा के नाम के गुणगान करो।
अपनी भेटे उठाओ और मन्दिर में जाओ।
9 यहोवा का उसके भव्य, मन्दिर में उपासना करो।
अरे ओ पृथ्वी के मनुष्यों, यहोवा की उपासना करो।
1 पौलुस की ओर से, जो एक प्रेरित है, जिसने एक ऐसा सेवा व्रत धारण किया है, जो उसे न तो मनुष्यों से प्राप्त हुआ है और न किसी एक मनुष्य द्वारा दिया गया है, बल्कि यीशु मसीह द्वारा उस परम पिता परमेश्वर से, जिसने यीशु मसीह को मरे हुओं में से फिर से जिला दिया था, दिया गया है। 2 और मेरे साथ जो भाई हैं,
उन सब की ओर से गलातिया[a] क्षेत्र की कलीसियाओं के नाम:
3 हमारे परम पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शांति मिले। 4 जिसने हमारे पापों के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया ताकि इस पापपूर्ण संसार से, जिसमें हम रह रहे हैं, वह हमें छुटकारा दिला सके। हमारे परम पिता परमेश्वर की यही इच्छा है। 5 वह सदा सर्वदा महिमावान हो आमीन!
सच्चा सुसमाचार एक ही है
6 मुझे अचरज है। कि तुम लोग इतनी जल्दी उस परमेश्वर से मुँह मोड़ कर, जिसने मसीह के अनुग्रह द्वारा तुम्हें बुलाया था, किसी दूसरे सुसमाचार की ओर जा रहे हो। 7 कोई दूसरा सुसमाचार तो वास्तव में है ही नहीं, किन्तु कुछ लोग ऐसे हैं जो तुम्हें भ्रम में डाल रहे हैं और मसीह के सुसमाचार में हेर-फेर का जतन कर रहे हैं। 8 किन्तु चाहे हम हों और चाहे कोई स्वर्गदूत, यदि तुम्हें हमारे द्वारा सुनाये गये सुसमाचार से भिन्न सुसमाचार सुनाता है तो उसे धिक्कार है। 9 जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर दोहरा रहा हूँ कि यदि चाहे हम हों, और चाहे कोई स्वर्गदूत, यदि तुम्हारे द्वारा स्वीकार किए गए सुसमाचार से भिन्न सुसमाचार सुनाता है तो उसे धिक्कार है।
10 क्या इससे तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं मनुष्यों का समर्थन चाहता हूँ? या यह कि मुझे परमेश्वर का समर्थन मिले? अथवा क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करने का जतन कर रहा हूँ? यदि मैं मनुष्यों को प्रसन्न करता तो मैं मसीह के सेवक का सा नहीं होता।
पौलुस का सुसमाचार परमेश्वर से प्राप्त है
11 हे भाईयों, मैं तुम्हें जताना चाहता हूँ कि वह सुसमाचार जिसका उपदेश तुम्हें मैंने दिया है, 12 कोई मनुष्य से प्राप्त सुसमाचार नहीं है क्योंकि न तो मैंने इसे किसी मनुष्य से पाया है और न ही किसी मनुष्य ने इसकी शिक्षा मुझे दी है। बल्कि दैवी संदेश के रूप में यह यीशु मसीह द्वारा मेरे सामने प्रकट हुआ है।
विश्वास की शक्ति
(मत्ती 8:5-13; यूहन्ना 4:43-54)
7 यीशु लोगों को जो सुनाना चाहता था, उसे कह चुकने के बाद वह कफ़रनहूम चला आया। 2 वहाँ एक सेनानायक था जिसका दास इतना बीमार था कि मरने को पड़ा था। वह सेवक उसका बहुत प्रिय था। 3 सेनानायक ने जब यीशु के विषय में सुना तो उसने कुछ बुजुर्ग यहूदी नेताओं को यह विनती करने के लिये उसके पास भेजा कि वह आकर उसके सेवक के प्राण बचा ले। 4 जब वे यीशु के पास पहुँचे तो उन्होंने सच्चे मन से विनती करते हुए कहा, “वह इस योग्य है कि तू उसके लिये ऐसा करे। 5 क्योंकि वह हमारे लोगों से प्रेम करता है। उसने हमारे लिए आराधनालय का निर्माण किया है।”
6 सो यीशु उनके साथ चल दिया। अभी जब वह घर से अधिक दूर नहीं था, उस सेनानायक ने उसके पास अपने मित्रों को यह कहने के लिये भेजा, “हे प्रभु, अपने को कष्ट मत दे। क्योंकि मैं इतना अच्छा नहीं हूँ कि तू मेरे घर में आये। 7 इसीलिये मैंने तेरे पास आने तक की नहीं सोची। किन्तु तू बस कह दे और मेरा सेवक स्वस्थ हो जायेगा। 8 मैं स्वयं किसी अधिकारी के नीचे काम करने वाला व्यक्ति हूँ और मेरे नीचे भी कुछ सैनिक हैं। मैं जब किसी से कहता हूँ ‘जा’ तो वह चला जाता है और जब दूसरे से कहता हूँ ‘आ’ तो वह आ जाता है। और जब मैं अपने दास से कहता हूँ, ‘यह कर’ तो वह उसे ही करता है।”
9 यीशु ने जब यह सुना तो उसे उस पर बहुत आश्चर्य हुआ। जो जन समूह उसके पीछे चला आ रहा था, उसकी तरफ़ मुड़ कर यीशु ने कहा, “मैं तुम्हे बताता हूँ ऐसा विश्वास मुझे इस्राएल में भी कहीं नहीं मिला।”
10 फिर भेजे हुए वे लोग जब वापस घर पहुँचे तो उन्होंने उस सेवक को निरोग पाया।
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