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राजकर्मचारी के बेटे को जीवन-दान

(मत्ती 8:5-13; लूका 7:1-10)

43 दो दिन बाद वह वहाँ से गलील को चल पड़ा। 44 (क्योंकि यीशु ने खुद कहा था कि कोई नबी अपने ही देश में कभी आदर नहीं पाता है।) 45 इस तरह जब वह गलील आया तो गलीलियों ने उसका स्वागत किया क्योंकि उन्होंने वह सब कुछ देखा था जो उसने यरूशलेम में पर्व के दिनों किया था। (क्योंकि वे सब भी इस पर्व में शामिल थे।)

46 यीशु एक बार फिर गलील में काना गया जहाँ उसने पानी को दाखरस में बदला था। अब की बार कफ़रनहूम में एक राजा का अधिकारी था जिसका बेटा बीमार था। 47 जब राजाधिकारी ने सुना कि यहूदिया से यीशु गलील आया है तो वह उसके पास आया और विनती की कि वह कफ़रनहूम जाकर उसके बेटे को अच्छा कर दे। क्योंकि उसका बेटा मरने को पड़ा था। 48 यीशु ने उससे कहा, “अद्भुत संकेत और आश्चर्यकर्म देखे बिना तुम लोग विश्वासी नहीं बनोगे।”

49 राजाधिकारी ने उससे कहा, “महोदय, इससे पहले कि मेरा बच्चा मर जाये, मेरे साथ चल।”

50 यीशु ने उत्तर में कहा, “जा तेरा पुत्र जीवित रहेगा।”

यीशु ने जो कुछ कहा था, उसने उस पर विश्वास किया और घर चल दिया। 51 वह घर लौटते हुए अभी रास्ते में ही था कि उसे उसके नौकर मिले और उसे समाचार दिया कि उसका बच्चा ठीक हो गया।

52 उसने पूछा, “सही हालत किस समय से ठीक होना शुरू हुई थी?”

उन्होंने जवाब दिया, “कल दोपहर एक बजे उसका बुखार उतर गया था।”

53 बच्चे के पिता को ध्यान आया कि यह ठीक वही समय था जब यीशु ने उससे कहा था, “तेरा पुत्र जीवित रहेगा।” इस तरह अपने सारे परिवार के साथ वह विश्वासी हो गया।

54 यह दूसरा अद्भुत चिन्ह था जो यीशु ने यहूदियों को गलील आने पर दर्शाया।

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