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M’Cheyne Bible Reading Plan

The classic M'Cheyne plan--read the Old Testament, New Testament, and Psalms or Gospels every day.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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प्रेरित 11

पेतरॉस द्वारा अपने स्वभाव का स्पष्टीकरण

11 सारे यहूदिया प्रदेश में प्रेरितों और शिष्यों तक यह समाचार पहुँच गया कि अन्यजातियों ने भी परमेश्वर के वचन-सन्देश को ग्रहण कर लिया है. परिणामस्वरूप येरूशालेम पहुँचने पर ख़तना किए हुए शिष्यों ने पेतरॉस को आड़े हाथों लिया, “आप वहाँ खतनारहितों के अतिथि होकर रहे तथा आपने उनके साथ भोजन भी किया!”

इसलिए पेतरॉस ने उन्हें क्रमानुसार समझाना शुरु किया, “जब मैं योप्पा नगर में प्रार्थना कर रहा था, तन्मयावस्था में मैंने दर्शन में एक चादर जैसी वस्तु को चारों कोनों से लटके हुए स्वर्ग से नीचे उतरते देखा. वह वस्तु मेरे एकदम पास आ गई. उसे ध्यान से देखने पर मैंने पाया कि उसमें पृथ्वी पर के सभी चौपाये, जंगली पशु, रेंगते जन्तु तथा आकाश के पक्षी थे. उसी समय मुझे यह शब्द सुनाई दिया, ‘उठो, पेतरॉस, मारो और खाओ.’

“मैंने उत्तर दिया, ‘बिलकुल नहीं प्रभु! क्योंकि मैंने कभी भी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु मुँह में नहीं डाली.’

“स्वर्ग से दोबारा यह शब्द सुनाई दिया, ‘जिसे परमेश्वर ने शुद्ध घोषित कर दिया है तुम उसे अशुद्ध मत समझो.’ 10 तीन बार दोहराने के बाद वह सब स्वर्ग में उठा लिया गया.

11 “ठीक उसी समय तीन व्यक्ति उस घर के सामने आ खड़े हुए, जहाँ मैं ठहरा हुआ था. वे कयसरिया नगर से मेरे लिए भेजे गए थे. 12 पवित्रात्मा ने मुझे आज्ञा दी कि मैं बिना किसी आपत्ति के उनके साथ चला जाऊँ. मेरे साथ ये छः शिष्य भी वहाँ गए थे. हम उस व्यक्ति के घर में गए. 13 उसने हमें बताया कि किस प्रकार उसने अपने घर में उस स्वर्गदूत को देखा, जिसने उसे आज्ञा दी थी कि योप्पा नगर से शिमोन अर्थात् पेतरॉस को आमन्त्रित किया जाए, 14 जो उन्हें वह सन्देश देंगे जिसके द्वारा उसका तथा उसके सारे परिवार को उद्धार प्राप्त होगा.

15 “जब मैंने प्रवचन शुरु किया उन पर भी पवित्रात्मा उतरे—ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार वह शुरुआत में हम पर उतरे 16 थे—तब मुझे प्रभु के ये शब्द याद आए, ‘निःसन्देह योहन जल में बपतिस्मा देता रहा किन्तु तुम्हें पवित्रात्मा में बपतिस्मा दिया जाएगा.’ 17 इसलिए जब प्रभु मसीह येशु में विश्वास करने पर परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया है, जो हमें दिया था, तब मैं कौन था, जो परमेश्वर के काम में रुकावट उत्पन्न करता?”

18 यह सुनने के बाद इसके उत्तर में वे कुछ भी न कह पाए परन्तु इन शब्दों में परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे, “इसका मतलब तो यह हुआ कि जीवन पाने के लिए परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी पश्चाताप की ओर उभारा है.”

अन्तियोख़ नगर में कलीसिया की नींव

19 वे शिष्य, जो स्तेफ़ानॉस के सताहट के फलस्वरूप शुरुआत में तितर-बितर हो गए थे, फ़ॉयनिके, कुप्रास तथा अन्तियोख़ नगरों में जा पहुँचे थे. ये यहूदियों के अतिरिक्त अन्य किसी को भी सन्देश नहीं सुनाते थे 20 किन्तु कुछ कुप्रास तथा कुरेनेवासी अन्तियोख़ नगरों में आकर यूनानियों को भी मसीह येशु के विषय में सुसमाचार देने लगे. 21 उन पर प्रभु की कृपादृष्टि थी. बड़ी संख्या में लोगों ने विश्वास कर प्रभु को ग्रहण किया.

22 यह समाचार येरूशालेम की कलीसिया में भी पहुँचा. इसलिए उन्होंने बारनबास को अन्तियोख़ नगर भेजा. 23 वहाँ पहुँच कर जब बारनबास ने परमेश्वर के अनुग्रह के प्रमाण देखे तो वह बहुत आनन्दित हुए और उन्होंने उन्हें पूरी लगन के साथ प्रभु में स्थिर बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया. 24 बारनबास भले, पवित्रात्मा से भरे हुए और विश्वास में परिपूर्ण व्यक्ति थे. बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभु के पास लाए गए.

25 इसलिए बारनबास को तारस्यॉस नगर जाकर शाऊल को खोजना सही लगा. 26 शाऊल के मिल जाने पर वह उन्हें लेकर अन्तियोख़ नगर आ गए. वहाँ कलीसिया में एक वर्ष तक रह कर दोनों ने अनेक लोगों को शिक्षा दी. अन्तियोख़ नगर में ही सबसे पहले मसीह येशु के शिष्य मसीही कहलाए.

बारनबास तथा शाऊल द्वारा येरूशालेम का प्रतिनिधित्व

27 इन्ही दिनों में कुछ भविष्यद्वक्ता येरूशालेम से अन्तियोख़ आए. 28 उन्हीं में से अगाबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता ने पवित्रात्मा की प्रेरणा से यह संकेत दिया कि सारी पृथ्वी पर अकाल पड़ने पर है—यह कयसर क्लॉदियॉस के शासनकाल की घटना है. 29 इसलिए शिष्यों ने यहूदिया प्रदेश के मसीह के विश्वासियों के लिए अपनी सामर्थ के अनुसार सहायता देने का निश्चय किया. 30 अपने इस निश्चय के अनुसार उन्होंने दानराशि बारनबास और शाऊल के द्वारा पुरनियों को भेज दी.

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मारक 6

नाज़रेथवासियों द्वारा विश्वास करने से इनकार

(मत्ति 13:53-58)

मसीह येशु वहाँ से अपने गृहनगर आए. उनके शिष्य उनके साथ थे. शब्बाथ पर वह यहूदी सभागृह में शिक्षा देने लगे. उसे सुन उनमें से अनेक चकित हो कहने लगे, “कहाँ से प्राप्त हुआ इसे यह सब? कहाँ से प्राप्त हुआ है इसे यह बुद्धि-कौशल और यह अद्भुत काम करने की क्षमता? क्या यह वही बढ़ई नहीं? क्या यह मरियम का पुत्र तथा याक़ोब, योसेस, यहूदाह तथा शिमोन का भाई नहीं? क्या उसी की बहनें हमारे मध्य नहीं हैं?” इस पर उन्होंने मसीह येशु को अस्वीकार कर दिया.

मसीह येशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता हर जगह सम्मानित होता है सिवाय अपने स्वयं के नगर में, अपने सम्बन्धियों तथा परिवार के मध्य.” कुछ रोगियों पर हाथ रख उन्हें स्वस्थ करने के अतिरिक्त मसीह येशु वहाँ कोई अन्य अद्भुत काम न कर सके. मसीह येशु को उनके अविश्वास पर बहुत ही आश्चर्य हुआ.

आयोग पर बारह शिष्यों का भेजा जाना

(मत्ति 10:1-15; लूकॉ 9:1-6)

मसीह येशु नगर-नगर जा कर शिक्षा देते रहे. उन्होंने उन बारहों को बुलाया और उन्हें प्रेतों[a] पर अधिकार देते हुए उन्हें दो-दो करके भेज दिया.

मसीह येशु ने उन्हें आदेश दिए, “इस यात्रा में छड़ी के अतिरिक्त अपने साथ कुछ न ले जाना—न भोजन, न झोली और न पैसा. हाँ, चप्पल तो पहन सकते हो किन्तु अतिरिक्त बाहरी वस्त्र नहीं.” 10 आगे उन्होंने कहा, “जिस घर में भी तुम ठहरो उस नगर से विदा होने तक वहीं रहना. 11 जहाँ कहीं तुम्हें स्वीकार न किया जाए या तुम्हारा प्रवचन न सुना जाए, वह स्थान छोड़ते हुए अपने पैरों की धूल वहीं झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध प्रमाण हो.”

12 शिष्यों ने प्रस्थान किया. वे यह प्रचार करने लगे कि पश्चाताप सभी के लिए ज़रूरी है. 13 उन्होंने अनेक दुष्टात्माएं निकाली तथा अनेक रोगियों को तेल मलकर उन्हें स्वस्थ किया.

मसीह येशु और हेरोदेस

14 राजा हेरोदेस तक इसका समाचार पहुँच गया क्योंकि मसीह येशु की ख्याति दूर दूर तक फैल गयी थी. कुछ तो यहाँ तक कह रहे थे, “बपतिस्मा देने वाले योहन मरे हुओं में से जीवित हो गए हैं. यही कारण है कि मसीह येशु में यह अद्भुत सामर्थ्य प्रकट है.”

15 कुछ कह रहे थे, “वह एलियाह हैं.”

कुछ यह भी कहते सुने गए, “वह एक भविष्यद्वक्ता हैं—अतीत में हुए भविष्यद्वक्ताओं के समान.”

16 यह सब सुन कर हेरोदेस कहता रहा, “योहन, जिसका मैंने वध करवाया था, जीवित हो गया है.”

17-18 स्वयं हेरोदेस ने योहन को बन्दी बना कर कारागार में डाल दिया था क्योंकि उसने अपने भाई फ़िलिप्पॉस की पत्नी हेरोदीअस से विवाह कर लिया था. योहन हेरोदेस को याद दिलाते रहते थे, “तुम्हारे लिए अपने भाई की पत्नी को रख लेना व्यवस्था के अनुसार नहीं है.” इसलिए 19 हेरोदीअस के मन में योहन के लिए शत्रुभाव पनप रहा था. वह उनका वध करवाना चाहती थी किन्तु उससे कुछ नहीं हो पा रहा था. 20 हेरोदेस योहन से डरता था क्योंकि वह जानता था कि योहन एक धर्मी और पवित्र व्यक्ति हैं. हेरोदेस ने योहन को सुरक्षित रखा था. योहन के प्रवचन सुन कर वह घबराता तो था फिर भी उसे उनके प्रवचन सुनना बहुत प्रिय था.

21 आखिरकार हेरोदीअस को वह मौका प्राप्त हो ही गया: अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हेरोदेस ने अपने सभी उच्च अधिकारियों, सेनापतियों और गलील प्रदेश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भोज पर आमन्त्रित किया. 22 इस अवसर पर हेरोदीअस की पुत्री ने वहाँ अपने नृत्य के द्वारा हेरोदेस और अतिथियों को मोह लिया. राजा ने पुत्री से कहा, “मुझसे चाहे जो माँग लो, मैं दूँगा.” 23 राजा ने सौगन्ध खाते हुए कहा, “तुम जो कुछ माँगोगी, मैं तुम्हें दूँगा—चाहे वह मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो.” 24 अपनी माँ के पास जा कर उसने पूछा.

“क्या माँगूँ?” “बपतिस्मा देने वाले योहन का सिर,” उसने कहा.

25 पुत्री ने तुरन्त जा कर राजा से कहा, “मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय एक बर्तन में बपतिस्मा देने वाले योहन का सिर ला कर दें.”

26 हालांकि राजा को इससे गहरा दुःख तो हुआ किन्तु आमन्त्रित अतिथियों के सामने ली गई अपनी सौगन्ध के कारण वह अस्वीकार न कर सका. 27 तत्काल राजा ने एक जल्लाद को बुलवाया और योहन का सिर ले आने की आज्ञा दी. वह गया, कारागार में योहन का वध किया 28 और उनका सिर एक बर्तन में रख कर पुत्री को सौंप दिया और उसने जा कर अपनी माता को सौंप दिया. 29 जब योहन के शिष्यों को इसका समाचार प्राप्त हुआ, वे आए और योहन के शव को ले जा कर एक क़ब्र में रख दिया.

30 प्रेरित लौट कर मसीह येशु के पास आए और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों और दी गई शिक्षा का विवरण दिया. 31 मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ, कुछ समय के लिए कहीं एकान्त में चलें और विश्राम करें,” क्योंकि अनेक लोग आ-जा रहे थे और उन्हें भोजन तक का अवसर प्राप्त न हो सका था. 32 वे चुपचाप नाव पर सवार हो एक सुनसान जगह पर चले गए.

33 लोगों ने उन्हें वहाँ जाते हुए देख लिया. अनेकों ने यह भी पहचान लिया कि वे कौन थे. आस-पास के नगरों से अनेक लोग दौड़ते हुए उनसे पहले ही उस स्थान पर जा पहुँचे. 34 जब मसीह येशु तट पर पहुँचे, उन्होंने वहाँ एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा. उसे देख वह दुःखी हो उठे क्योंकि उन्हें भीड़ बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगी. वहाँ मसीह येशु उन्हें अनेक विषयों पर शिक्षा देने लगे.

35 दिन ढल रहा था. शिष्यों ने मसीह येशु के पास आ कर उनसे कहा, “यह सुनसान जगह है और दिन ढला जा रहा है. 36 अब आप इन्हें विदा कर दीजिए कि ये पास के गाँवों में जा कर अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.”

37 किन्तु मसीह येशु ने उन्हीं से कहा, “तुम ही दो इन्हें भोजन!”

शिष्यों ने इसके उत्तर में कहा, “इतनों के भोजन में कम से कम दो सौ दीनार लगेंगे. क्या आप चाहते हैं कि हम जा कर इनके लिए इतने का भोजन ले आएँ?”

38 “मसीह येशु ने उनसे पूछा,” “कितनी रोटियां हैं यहाँ?”

“जाओ, पता लगाओ!” उन्होंने पता लगा कर उत्तर दिया, “पाँच—और इनके अलावा दो मछलियां भी.”

39 मसीह येशु ने सभी लोगों को झुण्ड़ों में हरी घास पर बैठ जाने की आज्ञा दी. 40 वे सभी सौ-सौ और पचास-पचास के झुण्ड़ों में बैठ गए. 41 मसीह येशु ने वे पाँच रोटियां और दो मछलियां ले कर स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर उनके लिए धन्यवाद प्रकट किया. तब वह रोटियां तोड़ते और शिष्यों को देते गए कि वे उन्हें भीड़ में बाँटते जाएँ. इसके साथ उन्होंने वे दो मछलियां भी उनमें बांट दीं. 42 उन सभी ने खाया और तृप्त हो गए. 43 शिष्यों ने जब तोड़ी गई रोटियों तथा मछलियों के शेष भाग इकट्ठा किए तो उनसे बारह टोकरे भर गए. 44 जिन्होंने भोजन किया था, उनमें से पुरुष ही पाँच हज़ार थे.

मसीह येशु का पानी के ऊपर चलना

(मत्ति 14:22-33; योहन 6:16-21)

45 तुरन्त ही मसीह येशु ने शिष्यों को ज़बरन नाव पर बैठा उन्हें अपने से पहले दूसरे किनारे पर स्थित नगर बैथसैदा पहुँचने के लिए विदा किया—वह स्वयं भीड़ को विदा कर रहे थे. 46 उन्हें विदा करने के बाद वह प्रार्थना के लिए पर्वत पर चले गए.

47 सन्ध्या हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे. 48 मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुँचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे. 49 उन्हें जल-सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई प्रेत है और वे चिल्ला उठे 50 क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे.

इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूँ! मत डरो! साहस मत छोड़ो!” 51 यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यन्त चकित रह गए. 52 रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे.

53 झील पार कर वे गन्नेसरत प्रदेश में पहुँच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी. 54 मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया. 55 जहाँ कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहाँ ले आते थे. 56 मसीह येशु जिस किसी नगर, गाँव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.

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