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M’Cheyne Bible Reading Plan

The classic M'Cheyne plan--read the Old Testament, New Testament, and Psalms or Gospels every day.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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प्रेरित 4

महासभा के सामने पेतरॉस तथा योहन

जब वे भीड़ को सम्बोधित कर ही रहे थे, कि अचानक याजकगण, मन्दिर रखवालों का प्रधान तथा सदूकी उनके पास आ पहुँचे. ये अत्यन्त क्रोधी थे क्योंकि प्रेरित भीड़ को शिक्षा देते हुए मसीह येशु में मरे हुओं के जी उठने की घोषणा कर रहे थे. उन्होंने उन्हें बन्दी बनाकर अगले दिन तक के लिए कारागार में डाल दिया क्योंकि दिन ढल चुका था. उनके सन्देश को सुनकर अनेकों ने विश्वास किया, जिनकी संख्या लगभग पाँच हज़ार तक पहुँच गई.

अगले दिन यहूदियों के राजा, पुरनिये और शास्त्री येरूशालेम में इकट्ठा थे. वहाँ महायाजक हन्ना, कायाफ़स, योहन, अलेक्सान्दरॉस तथा महायाजकीय वंश के सभी सदस्य इकट्ठा थे. उन्होंने प्रेरितों को सब के बीच खड़ा कर प्रश्न करना प्रारम्भ कर दिया: “तुमने किस अधिकार से या किस नाम में यह किया है?”

तब पवित्रात्मा से भरकर पेतरॉस ने उत्तर दिया: “सम्मान्य राजागण और समाज के पुरनियों! यदि आज हमारा परीक्षण इसलिए किया जा रहा है कि एक अपंग का कल्याण हुआ है और इसलिए कि यह व्यक्ति किस प्रक्रिया द्वारा स्वस्थ हुआ है, 10 तो आप सभी को तथा, सभी इस्राएल राष्ट्र को यह मालूम हो कि यह सब नाज़रेथवासी, मसीह येशु के द्वारा किया गया है, जिन्हें आपने क्रूस का मृत्युदण्ड दिया, किन्तु जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से दोबारा जीवित किया. आज उन्हीं के नाम के द्वारा स्वस्थ किया गया यह व्यक्ति आपके सामने खड़ा है. 11 मसीह येशु ही वह चट्टान हैं

“‘जिन्हें आप भवन निर्माताओं ने ठुकरा कर अस्वीकृत कर दिया,
    जो कोने का प्रधान पत्थर बन गए.’

12 उद्धार किसी अन्य में नहीं है क्योंकि आकाश के नीचे मनुष्यों के लिए दूसरा कोई नाम दिया ही नहीं गया जिसके द्वारा हमारा उद्धार हो.”

13 पेतरॉस तथा योहन का यह साहस देख और यह जानकर कि वे दोनों अनपढ़ और साधारण व्यक्ति हैं, वे चकित रह गए. उन्हें धीरे-धीरे यह याद आया कि ये वे हैं, जो मसीह येशु के साथी रहे हैं. 14 किन्तु स्वस्थ हुए व्यक्ति की उपस्थिति के कारण वे कुछ न कह सके; 15 उन्होंने उन्हें सभागार से बाहर जाने की आज्ञा दी. तब वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे, 16 “हम इनके साथ क्या करें? यह तो स्पष्ट है कि इनके द्वारा एक असाधारण चमत्कार अवश्य हुआ है और यह येरूशालेमवासियों को भी मालूम हो चुका है. इस सच को हम नकार नहीं सकते. 17 किन्तु लोगों में इस समाचार का और अधिक प्रसार न हो, हम इन्हें यह चेतावनी दें कि अब वे किसी से भी इस नाम का वर्णन करते हुए बातचीत न करें.”

18 तब उन्होंने उन्हें भीतर बुलाकर आज्ञा दी कि वे न तो येशु नाम का वर्णन करें और न ही उसके विषय में कोई शिक्षा दें. 19 किन्तु पेतरॉस और योहन ने उन्हें उत्तर दिया, “आप स्वयं निर्णय कीजिए कि परमेश्वर की दृष्टि में उचित क्या है: आपकी आज्ञा का पालन या परमेश्वर की आज्ञा का. 20 हमसे तो यह हो ही नहीं सकता कि जो कुछ हमने देखा और सुना है उसका वर्णन न करें.”

21 इस पर यहूदी प्रधानों ने उन्हें दोबारा धमकी दे कर छोड़ दिया. उन्हें यह सूझ ही नहीं रहा था कि उन्हें किस आधार पर दण्ड दिया जाए क्योंकि सभी लोग इस घटना के लिए परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे. 22 उस व्यक्ति की उम्र, जो अद्भुत रूप से स्वस्थ हुआ था, चालीस वर्ष से अधिक थी.

सताहट के समय प्रेरितों की प्रार्थना

23 मुक्त होने पर प्रेरितों ने अपने साथियों को जा बताया कि प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने उनसे क्या-क्या कहा था. 24 यह विवरण सुन कर उन सबने एक मन हो ऊँचे शब्द से परमेश्वर की वन्दना की: “परम प्रधान प्रभु,” आप ही हैं जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र और इनमें निवास कर रहे प्राणियों की सृष्टि की है. 25 आपने ही पवित्रात्मा से अपने सेवक, हमारे पूर्वज दाविद के द्वारा कहा:

“‘राष्ट्र क्रोधित क्यों होते हैं
    जातियां व्यर्थ योजनाएँ क्यों करती हैं?
26 पृथ्वी के राजा मोर्चा बान्धते
    और शासक प्रभु के विरुद्ध
और उनके अभिषिक्त के विरुद्ध.’”

27 एकजुट हो उठ खड़े होते हैं. “यह एक सच्चाई है कि इस नगर में हेरोदेस तथा पोन्तियुस पिलातॉस दोनों ही इस्राएलियों तथा अन्यजातियों के साथ मिलकर आपके द्वारा अभिषिक्त, आपके पवित्र सेवक मसीह येशु के विरुद्ध एकजुट हो गए 28 कि जो कुछ आपके सामर्थ्य और उद्देश्य के अनुसार पहले से निर्धारित था, वही हो. 29 प्रभु, उनकी धमकियों की ओर ध्यान दीजिए और अपने दासों को यह सामर्थ दीजिए कि वे आपके वचन का प्रचार बिना डर के कर सकें 30 जब आप अपने सामर्थी स्पर्श के द्वारा चंगा करते तथा अपने पवित्र सेवक मसीह येशु के द्वारा अद्भुत चिह्नों का प्रदर्शन करते जाते हैं.”

31 उनकी यह प्रार्थना समाप्त होते ही वह भवन, जिसमें वे इकट्ठा थे, थरथरा गया और वे सभी पवित्रात्मा से भर गए और बिना डर के परमेश्वर के सन्देश का प्रचार करने लगे.

शिष्यों का धन

32 शिष्यों के इस समुदाय में सभी एक मन और एक प्राण थे. कोई भी अपने धन पर अपना अधिकार नहीं जताता था. उन सभी का धन एक में मिला हुआ था. 33 प्रेरितगण असाधारण सामर्थ के साथ प्रभु मसीह येशु के दोबारा जी उठने की गवाही दिया करते थे और परमेश्वर का असीम अनुग्रह उन पर बना था. 34 उनमें कोई भी निर्धन नहीं था क्योंकि उनमें जो खेतों व मकानों के स्वामी थे, अपनी सम्पत्ति बेच कर उससे प्राप्त धनराशि लाते 35 और प्रेरितों के चरणों में रख देते थे, जिसे ज़रूरत के अनुसार निर्धनों में बांट दिया जाता था.

बारनबास की उदारता

36 योसेफ़ नामक एक कुप्रोसवासी लेवी थे, जिन्हें प्रेरितों द्वारा बारनबास नाम दिया गया था, जिसका अर्थ है प्रोत्साहन का पुत्र, 37 उन्होंने अपनी भूमि को बेच दिया और उससे प्राप्त धन लाकर प्रेरितों के चरणों में रख दिया.

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मत्तियाह 27

पिलातॉस के न्यायालय में येशु

(मारक 15:1; लूकॉ 22:66-71)

27 प्रातःकाल सभी प्रधान पुरोहितों तथा पुरनियों ने आपस में येशु को मृत्युदण्ड देने की सहमति की. येशु को बेड़ियों से बान्ध कर वे उन्हें राज्यपाल पिलातॉस के यहाँ ले गए.

इसी समय, जब येशु पर दण्ड की आज्ञा सुनाई गई, यहूदाह, जिसने येशु के साथ धोखा किया था, दुःख और पश्चाताप से भर उठा. उसने प्रधान पुरोहितों और पुरनियों के पास जा कर चांदी के वे तीस सिक्के यह कहते हुए लौटा दिए, “एक निर्दोष के साथ धोखा करके मैंने पाप किया है.”

“हमें इससे क्या?” वे बोले, “यह तुम्हारी समस्या है!”

वे सिक्के मन्दिर में फेंक यहूदाह चला गया और जा कर फाँसी लगा ली.

उन सिक्कों को इकट्ठा करते हुए उन्होंने विचार किया, “इस राशि को मन्दिर के कोष में डालना उचित नहीं है क्योंकि यह लहू का दाम है.” तब उन्होंने इस विषय में विचार-विमर्श कर उस राशि से परदेशियों के अंतिम संस्कार के लिए कुम्हार का एक खेत मोल लिया. यही कारण है कि आज तक उस खेत को लहू-खेत नाम से जाना जाता है. इससे भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह द्वारा की गई यह भविष्यवाणी पूरी हो गई: उन्होंने चांदी के तीस सिक्के लिए—यह उसका दाम है, जिसका दाम इस्राएल वंश के द्वारा निर्धारित किया गया था 10 और उन्होंने वे सिक्के कुम्हार के खेत के लिए दे दिए, जैसा निर्देश प्रभु ने मुझे दिया था.

येशु दोबारा पिलातॉस के सामने

(मारक 15:2-5; लूकॉ 23:1-5; योहन 18:28-38)

11 येशु राज्यपाल के सामने लाए गए और राज्यपाल ने उनसे प्रश्न करने प्रारम्भ किए, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”

येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह आप स्वयं ही कह रहे हैं.”

12 जब येशु पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों द्वारा आरोप पर आरोप लगाए जा रहे थे, येशु मौन बने रहे. 13 इस पर पिलातॉस ने येशु से कहा, “क्या तुम सुन नहीं रहे ये लोग तुम पर कितने आरोप लगा रहे हैं?” 14 येशु ने पिलातॉस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर न दिया. राज्यपाल के लिए यह अत्यन्त आश्चर्यजनक था.

15 फ़सह उत्सव पर परम्परा के अनुसार राज्यपाल की ओर से उस बन्दी को, जिसे लोग चाहते थे, छोड़ दिया जाता था. 16 उस समय बन्दीगृह में बार-अब्बास नामक एक कुख्यात अपराधी बन्दी था. 17 इसलिए जब लोग इकट्ठा हुए पिलातॉस ने उनसे प्रश्न किया, “मैं तुम्हारे लिए किसे छोड़ दूँ, बार-अब्बास को या येशु को, जो मसीह कहलाता है? क्या चाहते हो तुम?” 18 पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि मात्र जलन के कारण ही उन्होंने येशु को उनके हाथों में सौंपा था.

19 जब पिलातॉस न्यायासन पर बैठा था, उसकी पत्नी ने उसे यह सन्देश भेजा, “उस धर्मी व्यक्ति को कुछ न करना क्योंकि पिछली रात मुझे स्वप्न में उसके कारण घोर पीड़ा हुई है.”

20 इस पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने भीड़ को उकसाया कि वे बार-अब्बास की मुक्ति की और येशु के मृत्युदण्ड की माँग करें.

21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो, दोनों में से मैं किसे छोड़ दूँ?” भीड़ का उत्तर था.

“बार-अब्बास को.”

22 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तब मैं येशु का, जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?”

उन सभी ने एक साथ कहा.

“उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”

23 पिलातॉस ने पूछा, “क्यों? क्या अपराध है उसका?”

किन्तु वे और अधिक चिल्लाने लगे, “क्रूस पर चढ़ाया जाए उसे!”

24 जब पिलातॉस ने देखा कि वह कुछ भी नहीं कर पा रहा परन्तु हुल्लड़ की सम्भावना है तो उसने भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए यह घोषणा कर दी, “मैं इस व्यक्ति के लहू का दोषी नहीं हूँ. तुम ही इसके लिए उत्तरदायी हो.”

25 लोगों ने उत्तर दिया, “इसकी हत्या का दोष हम पर तथा हमारी सन्तान पर हो!”

26 तब पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को मुक्त कर दिया किन्तु येशु को कोड़े लगवा कर क्रूसित करने के लिए भीड़ के हाथों में सौंप दिया.

येशु के सिर पर काँटों का मुकुट

(मारक 15:16-20)

27 तब पिलातॉस के सैनिक येशु को प्राइतोरियम (किले में) ले गए और सारे सैनिकों ने उन्हें घेर लिया. 28 जो वस्त्र येशु पहने हुए थे, उतार कर उन्होंने उन्हें एक चमकीला लाल वस्त्र पहना दिया. 29 उन्होंने एक कँटीली लता को गूँथ कर उसका मुकुट बना उनके सिर पर रख दिया और उनके दायें हाथ में एक नरकुल की एक छड़ी थमा दी. तब वे उनके सामने घुटने टेक कर यह कहते हुए उनका मज़ाक करने लगे, “यहूदियों के राजा की जय!” 30 उन्होंने येशु पर थूका भी और फिर उनके हाथ से उस नरकुल छड़ी को ले कर उसी से उनके सिर पर प्रहार करने लगे. 31 इस प्रकार जब वे येशु का उपहास कर चुके, उन्होंने वह लाल वस्त्र उतार कर उन्हीं के वस्त्र उन्हें पहना दिए और उन्हें उस स्थल पर ले जाने लगे जहाँ उन्हें क्रूस पर चढ़ाया जाना था.

क्रूस-मार्ग पर येशु

(मारक 15:21-24; लूकॉ 23:26-31; योहन 19:17)

32 जब वे बाहर निकले, उन्हें शिमोन नामक एक व्यक्ति, जो कुरैनवासी था, दिखाई दिया. उन्होंने उसे येशु का क्रूस उठा कर चलने के लिए मजबूर किया. 33 जब वे सब गोलगोथा नामक स्थल पर पहुँचे, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान, 34 उन्होंने येशु को पीने के लिए दाखरस तथा कड़वे रस का मिश्रण दिया किन्तु उन्होंने मात्र चख कर उसे पीना अस्वीकार कर दिया.

35 येशु को क्रूसित करने के बाद उन्होंने उनके वस्त्रों को आपस में बांट लेने के लिए पासा फेंका 36 और वहीं बैठ कर उनकी चौकसी करने लगे. 37 उन्होंने उनके सिर के ऊपर दोषपत्र लगा दिया था, जिस पर लिखा था: “यह येशु है—यहूदियों का राजा.”

38 उसी समय दो अपराधियों को भी उनके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक को उनकी दायीं ओर, दूसरे को उनकी बायीं ओर.

39 जो भी उस रास्ते से निकलता था, निन्दा करता हुआ निकलता था. वे सिर हिला-हिला कर कहते जाते थे, 40 “अरे तू! तू तो कहता था कि मन्दिर को ढाह दो और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा, अब स्वयं को तो बचा कर दिखा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो उतर आ क्रूस से!” 41 इसी प्रकार प्रधान याजक भी शास्त्रियों और पुरनियों के साथ मिल कर उनका उपहास करते हुए कह रहे थे, 42 “दूसरों को तो बचाता फिरा है, स्वयं को नहीं बचा सकता! इस्राएल का राजा है! क्रूस से नीचे आकर दिखाए तो हम इसका विश्वास कर लेंगे. 43 यह परमेश्वर में विश्वास करता है क्योंकि इसने दावा किया था, ‘मैं ही परमेश्वर-पुत्र हूँ,’ तब परमेश्वर इसे अभी छुड़ा दें—यदि वह इससे प्रेम करते हैं.” 44 उनके साथ क्रूस पर चढ़ाये गए राजद्रोही भी इसी प्रकार उनकी उल्लाहना कर रहे थे.

येशु की मृत्यु

(मारक 15:33-41; लूकॉ 23:44-49; योहन 19:28-37)

45 छठे घण्टे से ले कर नवें घण्टे तक उस सारे प्रदेश पर अन्धकार छाया रहा. 46 नवें घण्टे के लगभग येशु ने ऊँची आवाज़ में पुकार कर कहा, “एली, एली, लमा सबख़थानी?” जिसका अर्थ है, “मेरे परमेश्वर! मेरे परमेश्वर! आपने मुझे क्यों छोड़ दिया?”

47 उनमें से कुछ ने, जो वहाँ खड़े थे, यह सुन कर कहा, “अरे! सुनो-सुनो! एलियाह को पुकार रहा है!”

48 उनमें से एक ने तुरन्त दौड़ कर एक स्पंज सिरके में भिगोया और एक नरकुल की एक छड़ी पर रख कर येशु के ओंठों तक बढ़ा दिया. 49 किन्तु औरों ने कहा, “ठहरो, ठहरो, देखें एलियाह उसे बचाने आते भी हैं या नहीं.”

50 येशु ने एक बार फिर ऊँची आवाज़ में पुकारा और अपने प्राण त्याग दिए.

51-53 उसी क्षण मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक दो भागों में विभाजित कर दिया गया, पृथ्वी कांप उठी, चट्टानें फट गईं और क़ब्रें खुल गईं. येशु के पुनरुत्थान के बाद उन अनेक पवित्र लोगों के शरीर जीवित कर दिए गये, जो बड़ी नींद में सो चुके थे. क़ब्रों से बाहर आ कर उन्होंने पवित्र नगर में प्रवेश किया तथा अनेकों को दिखाई दिए.

54 सेनापति और वे, जो उसके साथ येशु की चौकसी कर रहे थे, उस भूकम्प तथा अन्य घटनाओं को देख कर अत्यन्त भयभीत हो गए और कहने लगे, “सचमुच यह परमेश्वर के पुत्र थे!”

55 अनेक स्त्रियाँ दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं. वे गलील प्रदेश से येशु की सेवा करती हुई उनके पीछे-पीछे आ गई थीं. 56 उनमें थीं मगदालावासी मिरियम, याक़ोब और योसेफ़ की माता मिरियम तथा ज़ेबेदियॉस की पत्नी.

येशु को क़ब्र में रखा जाना

(मारक 15:42-47; लूकॉ 23:50-56; योहन 19:38-42)

57 जब सन्ध्या हुई तब अरिमथिया नामक नगर के एक सम्पन्न व्यक्ति, जिनका नाम योसेफ़ था, वहाँ आए. वह स्वयं येशु के चेले बन गए थे. 58 उन्होंने पिलातॉस के पास जा कर येशु के शव को ले जाने की आज्ञा माँगी. पिलातॉस ने उन्हें शव ले जाने की आज्ञा दे दी. 59 योसेफ़ ने शव को एक स्वच्छ चादर में लपेटा 60 और उसे नई कन्दरा-क़ब्र में रख दिया, जो योसेफ़ ने स्वयं अपने लिए चट्टान में खुदवाई थी. उन्होंने क़ब्र के द्वार पर एक विशाल पत्थर लुढ़का दिया और तब वह अपने घर चले गए. 61 मगदालावासी मरियम तथा अन्य मरियम, दोनों ही कन्दरा-क़ब्र के सामने बैठी रहीं.

येशु की क़ब्र पर प्रहरियों की नियुक्ति

62 दूसरे दिन, जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, प्रधान याजक तथा फ़रीसी पिलातॉस के यहाँ इकट्ठा हुए और पिलातॉस को सूचित किया, 63 “महोदय, हमको यह याद है कि जब यह छली जीवित था, उसने कहा था, ‘तीन दिन बाद मैं जीवित हो जाऊँगा’; 64 इसलिए तीसरे दिन तक के लिए कन्दरा-क़ब्र पर कड़ी सुरक्षा की आज्ञा दे दीजिए, अन्यथा सम्भव है उसके शिष्य आ कर शव चुरा ले जाएँ और लोगों में यह प्रचार कर दें, ‘वह मरे हुओं में से जीवित हो गया है’; तब तो यह छल पहले से कहीं अधिक हानिकर सिद्ध होगा.”

65 पिलातॉस ने उनसे कहा, “प्रहरी तो आपके पास हैं न! आप जैसा उचित समझें करें.” 66 अतः उन्होंने जा कर प्रहरी नियुक्त कर तथा पत्थर पर मोहर लगा कर क़ब्र को पूरी तरह सुरक्षित बना दिया.

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