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Read the Gospels in 40 Days

Read through the four Gospels--Matthew, Mark, Luke, and John--in 40 days.
Duration: 40 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
मत्तियाह 4-6

जंगल में शैतान द्वारा मसीह येशु की परख

(मारक 1:12-13; लूकॉ 4:1-13)

इसके बाद पवित्रात्मा के निर्देश में येशु को जंगल ले जाया गया कि वह शैतान द्वारा परखे जाएँ. उन्होंने चालीस दिन और चालीस रात उपवास किया. उसके बाद जब उन्हें भूख लगी, परखने वाले ने उनके पास आकर कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो इन पत्थरों को आज्ञा दो कि ये रोटी बन जाएँ.”

येशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है मनुष्य का अस्तित्व सिर्फ़ भोजन से नहीं परन्तु परमेश्वर के मुख से निकले हुए हर एक शब्द से होता है.”

तब शैतान ने येशु को पवित्र नगर में ले जाकर मन्दिर के शीर्ष पर खड़ा कर दिया और उनसे कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो यहाँ से नीचे कूद जाओ क्योंकि लिखा है

“वह अपने स्वर्गदूतों को तुम्हारे सम्बन्ध में
    आज्ञा देंगे तथा वे तुम्हें हाथों-हाथ उठा
    लेंगे कि तुम्हारे पैर को पत्थर से चोट न लगे.”

उसके उत्तर में येशु ने उससे कहा, “यह भी तो लिखा है तुम प्रभु अपने परमेश्वर को न परखो.”

तब शैतान येशु को अत्यन्त ऊँचे पर्वत पर ले गया और विश्व के सारे राज्य और उनका सारा ऐश्वर्य दिखाते हुए उनसे कहा, “मैं ये सब तुम्हें दे दूँगा यदि तुम मेरी दण्डवत्-वन्दना करो.”

10 इस पर येशु ने उसे उत्तर दिया, “हट, शैतान! दूर हो! क्योंकि लिखा है तुम सिर्फ प्रभु अपने परमेश्वर की ही आराधना और सेवा किया करो.”

11 तब शैतान उन्हें छोड़ कर चला गया और स्वर्गदूत आए और उनकी सेवा करने लगे.

सेवकाई का प्रारम्भ गलील प्रदेश से

(मारक 1:14-15; लूकॉ 4:14-15; योहन 4:43-45)

12 यह मालूम होने पर कि बपतिस्मा देने वाले योहन को बन्दी बना लिया गया है, येशु गलील प्रदेश में चले गए 13 और नाज़रेथ नगर को छोड़ कफ़रनहूम नगर में बस गए, जो झील तट पर ज़बूलून तथा नप्ताली नामक क्षेत्र में था. 14 ऐसा इसलिए हुआ कि भविष्यद्वक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी हो:

15 यरदन नदी के पार समुद्रतट पर बसे ज़बूलून तथा नप्ताली प्रदेश
    अर्थात् गलील प्रदेश में,
    जहाँ [a]अन्यजाति बसे हुए हैं,
16 —उन्होंने, जो अन्धकार में निवास कर रहे हैं,
    एक तेज़ प्रकाश का दर्शन किया; उन लोगों पर,
जो ऐसे स्थान में निवास कर रहे हैं जिस पर मृत्यु-छाया है,
    प्रकाश उदय हुआ.

17 उस समय से येशु ने यह उपदेश देना प्रारम्भ कर दिया, “पश्चाताप करो क्योंकि स्वर्ग-राज्य समीप आ गया है.”

पहिले चार शिष्यों का बुलाया जाना

(मारक 1:16-20)

18 एक दिन गलील झील के किनारे चलते हुए येशु ने दो भाइयों को देखा: शिमोन, जो पेतरॉस कहलाए तथा उनके भाई आन्द्रेयास को. ये समुद्र में जाल डाल रहे थे क्योंकि वे मछुवारे थे. 19 येशु ने उनसे कहा, “मेरा अनुसरण करो—मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुवारे बनाऊँगा.” 20 वे उसी क्षण अपने जाल छोड़ कर येशु का अनुसरण करने लगे.

21 जब वे वहाँ से आगे बढ़े तो येशु ने दो अन्य भाइयों को देखा—ज़ेबेदियॉस के पुत्र याक़ोब तथा उनके भाई योहन को. वे दोनों अपने पिता के साथ नाव में अपने जाल ठीक कर रहे थे. येशु ने उन्हें बुलाया. 22 उसी क्षण वे नाव और अपने पिता को छोड़ येशु के पीछे हो लिए.

सारे गलील प्रदेश में येशु द्वारा प्रचार और चंगाई की सेवा

(मारक 1:35-39; लूकॉ 4:42-44)

23 येशु सारे गलील प्रदेश की यात्रा करते हुए, उनके यहूदी-सभागृहों में शिक्षा देते हुए, स्वर्ग-राज्य के ईश्वरीय सुसमाचार का उपदेश देने लगे. वह लोगों के हर एक रोग तथा हर एक व्याधि को दूर करते जा रहे थे. 24 सारे सीरिया प्रदेश में उनके विषय में समाचार फैलता चला गया और लोग उनके पास उन सब को लाने लगे, जो रोगी थे तथा उन्हें भी, जो विविध रोगों, पीड़ाओं, प्रेतों, मूर्च्छा रोगों तथा पक्षाघात से पीड़ित थे. येशु इन सभी को स्वस्थ करते जा रहे थे. 25 गलील प्रदेश, देकापोलिस, येरूशालेम, यहूदिया प्रदेश और यरदन नदी के पार से बड़ी भीड़ उनके पीछे-पीछे चली जा रही थी.

पर्वत से प्रवचन

इकट्ठा हो रही भीड़ को देख येशु पर्वत पर चले गए और जब वह बैठ गए तो उनके शिष्य उनके पास आए. येशु ने उन्हें शिक्षा देना प्रारम्भ किया.

धन्य वचन

(लूकॉ 6:17-26)

“धन्य हैं वे, जो दीन आत्मा के हैं
    क्योंकि स्वर्ग-राज्य उन्हीं का है.
धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं.
    क्योंकि उन्हें शान्ति दी जाएगी.
धन्य हैं वे, जो नम्र हैं
    क्योंकि पृथ्वी उन्हीं की होगी.
धन्य हैं वे, जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं
    क्योंकि उन्हें तृप्त किया जाएगा.
धन्य हैं वे, जो कृपालु हैं
    क्योंकि उन पर कृपा की जाएगी.
धन्य हैं वे, जिनके हृदय शुद्ध हैं
    क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे.
धन्य हैं वे, जो शान्ति कराने वाले हैं
    क्योंकि वे परमेश्वर की सन्तान कहलाएँगे.
10 धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए गए हैं
    क्योंकि स्वर्ग-राज्य उन्हीं का है.

11 “धन्य हो तुम, जब लोग तुम्हारी निन्दा करें और सताएं तथा तुम्हारे विषय में मेरे कारण सब प्रकार के बुरे विचार फैलाते हैं. 12 हर्षोल्लास में आनन्द मनाओ क्योंकि तुम्हारा प्रतिफल स्वर्ग में है. उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को भी इसी रीति से सताया था, जो तुमसे पहले आए हैं.

नमक और प्रकाश की शिक्षा

13 “तुम पृथ्वी के नमक हो किन्तु यदि नमक नमकीन न रहे तो उसके खारेपन को दोबारा कैसे लौटाया जा सकेगा? तब तो वह किसी भी उपयोग का नहीं सिवाय इसके कि उसे बाहर फेंक दिया जाए और लोग उसे रौंदते हुए निकल जाएँ.

14 “तुम संसार के लिए ज्योति हो. पहाड़ी पर स्थित नगर को छिपाया नहीं जा सकता. 15 कोई भी जलते हुए दीप को किसी बर्तन से ढाँक कर नहीं रखता—उसे उसके निर्धारित स्थान पर रखा जाता है कि वह उस घर में उपस्थित लोगों को प्रकाश दे. 16 लोगों के सामने अपना प्रकाश इस रीति से प्रकाशित होने दो कि वे तुम्हारे भले कामों को देख सकें तथा तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, स्तुति करें.

व्यवस्था की पूर्ति पर शिक्षा

17 “अपने मन से यह विचार निकाल दो कि मेरे आने का उद्देश्य व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं के लेखों को व्यर्थ साबित करना है—उन्हें पूरा करना ही मेरा उद्देश्य है. 18 मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूँ: जब तक आकाश और पृथ्वी अस्तित्व में हैं, पवित्रशास्त्र का एक भी बिन्दु या मात्रा गुम न होगी, जब तक सब कुछ नष्ट न हो जाए. 19 इसलिए जो कोई इनमें से छोटी सी छोटी आज्ञा को तोड़ता तथा अन्यों को यही करने की शिक्षा देता है, स्वर्ग-राज्य में शूद्रतम घोषित किया जाएगा. इसके विपरीत, जो कोई इन आदेशों का पालन करता और इनकी शिक्षा देता है, स्वर्ग-राज्य में विशिष्ट घोषित किया जाएगा.

20 “मैं तुम्हें इस सच्चाई से भी परिचित करा दूँ: यदि परमेश्वर के प्रति तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो तो तुम किसी भी रीति से स्वर्ग-राज्य में प्रवेश न कर सकोगे.

क्रोध पर शिक्षा

21 “यह तो तुम सुन ही चुके हो कि पूर्वजों को यह आज्ञा दी गई थी हत्या मत करो और जो कोई हत्या करता है, वह न्यायालय के प्रति उत्तरदायी होगा, 22 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि हर एक, जो अपने भाई से रुष्ट है,[b] वह न्यायालय के सामने दोषी होगा और जो कोई अपने भाई से कहे ‘अरे निकम्मे!’ वह सर्वोच्च न्यायालय के प्रति अपराध का दोषी होगा तथा वह, जो कहे, ‘अरे मूर्ख!’ वह तो नर्क की आग के योग्य दोषी होगा.

23 “इसलिए, यदि तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ाने जा रहे हो और वहाँ तुम्हें यह याद आए कि तुम्हारे भाई के मन में तुम्हारे प्रति वैमनस्य है, 24 अपनी भेंट वेदी के पास ही छोड़ दो और जा कर सबसे पहिले अपने भाई से मेल मिलाप करो और तब लौट कर अपनी भेंट चढ़ाओ.

25 “न्यायालय जाते हुए मार्ग में ही अपने दुश्मन से मित्रता का सम्बन्ध फिर से बना लो कि तुम्हारा दुश्मन तुम्हें न्यायाधीश के हाथ में न सौंपे और न्यायाधीश अधिकारी के और तुम्हें बन्दीगृह में डाला जाए. 26 मैं तुम्हें इस सच से परिचित कराना चाहता हूँ कि जब तक तुम एक-एक पैसा लौटा न दो बन्दीगृह से छूट न पाओगे.

कामुकता के विषय में शिक्षा

27 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: व्यभिचार मत करो 28 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि हर एक, जो किसी स्त्री को कामुक दृष्टि से मात्र देख लेता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका. 29 यदि तुम्हारी दायीं आँख तुम्हारे लड़खड़ाने का कारण बनती है तो उसे निकाल फेंको. तुम्हारे सारे शरीर को नर्क में झोंक दिया जाए इससे तो उत्तम यह है कि तुम्हारे शरीर का एक ही अंग नाश हो. 30 यदि तुम्हारा दायाँ हाथ तुम्हें विनाश के गड्ढे में गिराने के लिए उत्तरदायी है तो उसे काट कर फेंक दो. तुम्हारे सारे शरीर को नर्क में झोंक दिया जाए इससे तो उत्तम यह है कि तुम्हारे शरीर का एक ही अंग नाश हो.

तलाक के विषय में शिक्षा

31 “यह कहा गया था: कोई भी, जो अपनी पत्नी से तलाक चाहे, वह उसे अलग होने का प्रमाण-पत्र दे 32 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि हर एक, जो वैवाहिक व्यभिचार के अलावा किसी अन्य कारण से अपनी पत्नी से तलाक लेता है, वह अपनी पत्नी को व्यभिचार की ओर ढ़केलता है और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करता है, व्यभिचार करता है.

शपथ लेने के विषय में शिक्षा

33 “तुम्हें मालूम होगा कि पूर्वजों से कहा गया था: झूठी शपथ मत लो परन्तु प्रभु से की गई शपथ को पूरा करो 34 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि शपथ ही न लो; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है, 35 न पृथ्वी की, क्योंकि वह उनके चरणों की चौकी है, न येरूशालेम की, क्योंकि वह राजाधिराज का नगर है 36 और न ही अपने सिर की, क्योंकि तुम एक भी बाल न तो काला करने में समर्थ हो और न ही सफ़ेद करने में; 37 परन्तु तुम्हारी बातो में हाँ का मतलब हाँ और न का न हो—जो कुछ इनके अतिरिक्त है, वह उस दुष्ट द्वारा प्रेरित है.

बदला लेने के विषय में शिक्षा

38 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: आँख के लिए आँख तथा दाँत के लिए दाँत 39 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि बुरे व्यक्ति का सामना ही न करो. इसके विपरीत, जो कोई तुम्हारे दायें गाल पर थप्पड़ मारे, दूसरा गाल भी उसकी ओर कर दो. 40 यदि कोई तुम्हें न्यायालय में घसीट कर तुम्हारा कुर्ता लेना चाहे तो उसे अपनी चादर भी दे दो. 41 जो कोई तुम्हें एक किलोमीटर चलने के लिए मजबूर करे उसके साथ दो किलोमीटर चले जाओ. 42 उसे, जो तुमसे कुछ माँगे, दे दो और जो तुमसे उधार लेना चाहे, उससे अपना मुख न छिपाओ.

शत्रुओं से प्रेम करने की शिक्षा

(लूकॉ 6:27-36)

43 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने शत्रु से घृणा 44 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो[c] और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना 45 कि तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान हो जाओ क्योंकि वह बुरे और भले, दोनों ही पर सूर्योदय करते हैं. इसी प्रकार वह धर्मी तथा अधर्मी, दोनों ही पर वर्षा होने देते हैं. 46 यदि तुम प्रेम मात्र उन्हीं से करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं तो तुम किस प्रतिफल के अधिकारी हो? क्या चुंगी लेने वाले भी यही नहीं करते? 47 यदि तुम मात्र अपने बन्धुओं का ही नमस्कार करते हो तो तुम अन्यों की आशा कौन सा सराहनीय काम कर रहे हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा ही नहीं करते? 48 इसलिए ज़रूरी है कि तुम सिद्ध बनो, जैसे तुम्हारे स्वर्गीय पिता सिद्ध हैं.

दान का गुप्त होना ज़रूरी है

“ध्यान रहे कि तुम लोगों की प्रशंसा पाने के उद्देश्य से धर्म के काम न करो अन्यथा तुम्हें तुम्हारे स्वर्गीय पिता से कोई भी प्रतिफल प्राप्त न होगा. जब तुम दान दो तब इसका ढिंढोरा न पीटो, जैसा पाखण्डी यहूदी-सभागृहों तथा सड़कों पर किया करते हैं कि वे मनुष्यों द्वारा सम्मानित किए जाएँ. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके; किन्तु तुम जब ज़रूरतमन्दों को दान दो तो तुम्हारे बायें हाथ को यह मालूम न हो सके कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है कि तुम्हारी दान प्रक्रिया पूरी तरह गुप्त रहे. तब तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.

प्रार्थना का गुप्त होना ज़रूरी है

“प्रार्थना करते हुए तुम्हारी मुद्रा दिखावा करने वाले लोगों के समान न हो क्योंकि उनकी रुचि यहूदी-सभागृहों में तथा नुक्कड़ों पर खड़े हो कर प्रार्थना करने में होती है कि उन पर लोगों की दृष्टि पड़ती रहे. मैं तुम पर यह सच प्रकाशित कर रहा हूँ कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके. इसके विपरीत जब तुम प्रार्थना करो, तुम अपनी कोठरी में चले जाओ, द्वार बन्द कर लो और अपने पिता से, जो अदृश्य हैं, प्रार्थना करो और तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.

प्रार्थना प्रतिरूप: जैसा प्रभु ने सिखाया

“अपनी प्रार्थना में अर्थहीन शब्दों को दोहराते न जाओ, जैसा अन्यजाति करते हैं क्योंकि उनका विचार है कि शब्दों के अधिक होने के कारण ही उनकी प्रार्थना सुनी जाएगी. इसलिए उनके समान न बनो क्योंकि तुम्हारे स्वर्गीय पिता को विनती करने से पहले ही तुम्हारी ज़रूरत का अहसास रहता है.

प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का प्रतिमान

(लूकॉ 11:2-4)

“तुम प्रार्थना इस प्रकार किया करो:

“हमारे स्वर्गीय पिता, आपका नाम पवित्र रखा जाए.
10 आपका राज्य हर जगह हो.
आपकी इच्छा पूरी हो—
    जिस प्रकार स्वर्ग में उसी प्रकार पृथ्वी पर भी.
11 आज हमें हमारा दैनिक आहार प्रदान कीजिए.
12 जैसे हमने उन्हें क्षमा किया है,
    जिन्होंने हमारे विरुद्ध अपराध किए थे,
    उसी प्रकार आप भी हमारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए.
13 हमें परीक्षा से बचा कर उस दुष्ट से हमारी रक्षा कीजिए क्योंकि राज्य,
सामर्थ्य तथा प्रताप सदा-सर्वदा आप ही का है. आमेन.

14 यदि तुम अन्यों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेंगे. 15 किन्तु यदि तुम अन्यों के अपराध क्षमा नहीं करते तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेंगे.

उपवास का गुप्त होना ज़रूरी है

16 “जब कभी तुम उपवास रखो तब पाखण्डियों के समान अपना मुँह मुरझाया हुआ न बना लो. वे अपना रूप ऐसा इसलिए बना लेते हैं कि लोगों की दृष्टि उन पर अवश्य पड़े. सच तो यह है कि वे अपना पूरा-पूरा प्रतिफल प्राप्त कर चुके. 17 किन्तु जब तुम उपवास करो तो अपने बाल सँवारो और अपना मुँह धो लो 18 कि तुम्हारे उपवास के विषय में सिवाय तुम्हारे स्वर्गीय पिता के—जो अदृश्य हैं—किसी को भी मालूम न हो. तब तुम्हारे पिता, जो अन्तर्यामी हैं, तुम्हें प्रतिफल देंगे.

वास्तविक धन

19 “पृथ्वी पर अपने लिए धन इकट्ठा न करो, जहाँ कीट-पतंगे तथा ज़ंग उसे नाश करते तथा चोर सेन्ध लगा कर चुराते हैं 20 परन्तु धन स्वर्ग में जमा करो, जहाँ न तो कीट-पतंगे या ज़ंग नाश करते और न ही चोर सेन्ध लगा कर चुराते हैं 21 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहीं तुम्हारा मन भी होगा.

आँख—शरीर का दीपक

22 “शरीर का दीपक आँख है. इसलिए यदि तुम्हारी आँख निरोगी है, तुम्हारा सारा शरीर उजियाला होगा. 23 यदि तुम्हारी आँख रोगी है, तुम्हारा सारा शरीर अन्धकारमय हो जाएगा. वह उजियाला, जो तुम में है, यदि वह अन्धकार है तो कितना गहन होगा वह अन्धकार!

24 “कोई भी व्यक्ति दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता क्योंकि वह एक को तुच्छ मान कर दूसरे के प्रति समर्पित रहेगा या एक का सम्मान करते हुए दूसरे को तुच्छ जानेगा. तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा कर ही नहीं सकते.

परमेश्वर का प्रबन्ध ही विश्वासयोग्य है

25 “यही कारण है कि मैं तुमसे कहता हूँ कि अपने जीवन के विषय में चिन्ता न करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पिओगे; और न ही शरीर के विषय में कि क्या पहनोगे. क्या जीवन आहार से और शरीर वस्त्रों से अधिक कीमती नहीं? 26 पक्षियों की ओर ध्यान दो: वे न तो बीज बोते हैं और न ही खलिहान में उपज इकट्ठा करते हैं. फिर भी तुम्हारे स्वर्गीय पिता उनका भरण-पोषण करते हैं. क्या तुम्हारी महत्ता उनसे कहीं अधिक नहीं? 27 और तुम में ऐसा कौन है, जो चिन्ता के द्वारा अपनी आयु में एक क्षण की भी वृद्धि कर सकता है?

28 “और वस्त्र तुम्हारी चिन्ता का विषय क्यों? मैदान के फूलों का ध्यान तो करो कि वे कैसे खिलते हैं. वे न तो परिश्रम करते हैं और न ही वस्त्र-निर्माण. 29 फिर भी मैं तुमसे कहता हूँ कि शलोमोन की वेष-भूषा का ऐश्वर्य किसी भी दृष्टि से इनके तुल्य नहीं था. 30 यदि परमेश्वर घास का श्रृंगार इस सीमा तक करते हैं, जिसका जीवन थोड़े समय का है और जो कल आग में झोंक दिया जाएगा, क्या वह तुमको कहीं अधिक सुशोभित न करेंगे? कैसा कमज़ोर है तुम्हारा विश्वास! 31 इसलिए इस विषय में चिन्ता न करो कि हम क्या खाएँगे या क्या पिएंगे या हमारे वस्त्रों का प्रबन्ध कैसे होगा? 32 अन्यजाति ही इन वस्तुओं के लिए कोशिश करते रहते हैं. तुम्हारे स्वर्गीय पिता को यह मालूम है कि तुम्हें इन सबकी ज़रूरत है. 33 तुम्हारी सबसे पहली प्राथमिकता परमेश्वर का राज्य तथा उनकी धार्मिकता की उपलब्धि हो और ये सभी वस्तुएं भी तुम्हें प्राप्त होती जाएँगी. 34 इसलिए कल की चिन्ता न करो—कल अपनी चिन्ता स्वयं करेगा क्योंकि हर एक दिन अपने साथ अपना ही पर्याप्त दुःख लिए हुए आता है.

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