Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
योहन 14-17

शिष्यों के लिए धीरज

14 “अपने मन को व्याकुल न होने दो, तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, मुझ में भी विश्वास करो. मेरे पिता के यहाँ अनेक निवास स्थान हैं—यदि न होते तो मैं तुम्हें बता देता. मैं तुम्हारे लिए स्थान तैयार करने जा रहा हूँ. वहाँ जा कर तुम्हारे लिए स्थान तैयार करने के बाद मैं तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए फिर आऊँगा कि जहाँ मैं हूँ, तुम भी मेरे साथ वहीं रहो. वह मार्ग तुम जानते हो, जो मेरे ठिकाने तक पहुंचाता है.”

परमेश्वर की ओर एकमात्र मार्ग

थोमॉस ने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, हम आपका ठिकाना ही नहीं जानते तो उसका मार्ग कैसे जान सकते हैं?” मसीह येशु ने उत्तर दिया, “मैं ही वह मार्ग, वह सच और वह जीवन हूँ, बिना मेरे द्वारा कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता. यदि तुम वास्तव में मुझे जानते तो मेरे पिता को भी जानते. इसके बाद तुमने उन्हें जान लिया है और उन्हें देख भी लिया है.”

फ़िलिप्पॉस ने मसीह येशु से विनती की, “प्रभु, आप हमें पिता के दर्शन मात्र करा दें, यही हमारे लिए काफ़ी होगा.”

“फ़िलिप्पॉस!” मसीह येशु ने कहा, “इतने लंबे समय से मैं तुम्हारे साथ हूँ, क्या फिर भी तुम मुझे नहीं जानते? जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को भी देख लिया. फिर तुम यह कैसे कह रहे हो, ‘हमें पिता के दर्शन करा दीजिए’? 10 क्या तुम यह नहीं मानते कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझमें? जो वचन मैं तुमसे कहता हूँ, वह मैं अपनी ओर से नहीं कहता; मेरे अंदर बसे पिता ही हैं, जो मुझमें हो कर अपना काम पूरा कर रहे हैं. 11 मेरा विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझमें, नहीं तो कामों की गवाही के कारण विश्वास करो. 12 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: वह, जो मुझ में विश्वास करता है, वे सारे काम करेगा, जो मैं करता हूँ बल्कि इनसे भी अधिक बड़े-बड़े काम करेगा क्योंकि अब मैं पिता के पास जा रहा हूँ. 13 मेरे नाम में तुम जो कुछ माँगोगे, मैं उसे पूरा करूँगा जिससे पुत्र में पिता की महिमा हो. 14 मेरे नाम में तुम मुझसे कोई भी विनती करो, मैं उसे पूरा करूँगा.

मसीह येशु द्वारा पवित्रात्मा की प्रतिज्ञा

15 “यदि तुम्हें मुझसे प्रेम है तो तुम मेरे आदेशों का पालन करोगे. 16 मैं पिता से विनती करूँगा और वह तुम्हें एक और सहायक देंगे कि वह हमेशा तुम्हारे साथ रहें: 17 सच की आत्मा, जिन्हें संसार ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि संसार न तो उन्हें देखता है और न ही उन्हें जानता है. तुम उन्हें जानते हो क्योंकि वह तुम में वास करते हैं और वह तुम में हमेशा बने रहेंगे. 18 मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूँगा, मैं तुम्हारे पास लौट कर आऊँगा. 19 कुछ ही समय शेष है, जब संसार मुझे नहीं देखेगा परन्तु तुम मुझे देखोगे. मैं जीवित हूँ इसलिए तुम भी जीवित रहोगे. 20 उस दिन तुम्हें यह मालूम हो जाएगा कि मैं अपने पिता में हूँ, तुम मुझ में हो और मैं तुम में. 21 वह, जो मेरे आदेशों को स्वीकार करता और उनका पालन करता है, वही है, जो मुझसे प्रेम करता है. वह, जो मुझसे प्रेम करता है, मेरे पिता का प्रियजन होगा. मैं उससे प्रेम करूँगा और स्वयं को उस पर प्रकट करूँगा.”

22 यहूदाह ने, जो कारियोतवासी नहीं थे, उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, ऐसा क्या हो गया कि आप स्वयं को तो हम पर प्रकट करेंगे किन्तु संसार पर नहीं?”

23 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि कोई व्यक्ति मुझसे प्रेम करता है तो वह मेरी शिक्षा का पालन करेगा; वह मेरे पिता का प्रियजन बनेगा और हम उसके पास आ कर उसके साथ निवास करेंगे. 24 वह, जो मुझसे प्रेम नहीं करता, मेरे वचन का पालन नहीं करता. ये वचन, जो तुम सुन रहे हो, मेरे नहीं, मेरे पिता के हैं, जो मेरे भेजनेवाले हैं.

25 “तुम्हारे साथ रहते हुए मैंने ये सच तुम पर प्रकट कर दिए हैं 26 परन्तु सहायक अर्थात् पवित्रात्मा, जिन्हें पिता मेरे नाम में प्रेषित करेंगे, तुम्हें इन सब विषयों की शिक्षा देंगे और जो कुछ मैंने तुमसे कहा है, उसकी याद दिलाएंगे. 27 तुम्हारे लिए मैं शान्ति छोड़े जाता हूँ; मैं तुम्हें अपनी शान्ति दे रहा हूँ; वैसी नहीं, जैसी संसार देता है. अपने मन को व्याकुल और भयभीत न होने दो.

28 “मेरी बातें याद रखो: मैं जा रहा हूँ और तुम्हारे पास लौट आऊँगा. यदि तुम मुझसे प्रेम करते तो यह जान कर आनन्दित होते कि मैं पिता के पास जा रहा हूँ, जो मुझसे अधिक महान हैं. 29 यह घटित होने से पहले ही मैंने तुम्हें इससे अवगत करा दिया है कि जब यह घटित हो तो तुम विश्वास करो. 30 अब मैं तुमसे अधिक कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि संसार का राजा आ रहा है. मुझ पर उसका कोई अधिकार नहीं है. 31 संसार यह समझ ले कि मैं अपने पिता से प्रेम करता हूँ. यही कारण है कि मैं उनके सारे आदेशों का पालन करता हूँ.

“उठो, यहाँ से चलें.

सच्ची दाखलता—मसीह येशु

15 “मैं ही सच्ची दाखलता हूँ और मेरे पिता किसान हैं. मुझमें लगी हुई हर एक डाली, जो फल नहीं देती, उसे वह काट देते हैं तथा हर एक फल देने वाली डाली को छांटते हैं कि वह और भी अधिक फल लाए. उस वचन के द्वारा, जो मैंने तुमसे कहा है, तुम शुद्ध हो चुके हो. मुझमें स्थिर बने रहो तो मैं तुम में स्थिर बना रहूँगा. शाखा यदि लता से जुड़ी न रहे तो फल नहीं दे सकती, वैसे ही तुम भी मुझ में स्थिर रहे बिना फल नहीं दे सकते.

“मैं दाखलता हूँ, तुम डालियाँ हो. वह, जो मुझमें स्थिर बना रहता है और मैं उसमें, बहुत फल देता है; मुझसे अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते. यदि कोई मुझमें स्थिर बना नहीं रहता, वह फेंकी हुई डाली के समान सूख जाता है. उन्हें इकट्ठा कर आग में झोंक दिया जाता है और वे स्वाहा हो जाती हैं. यदि तुम मुझमें स्थिर बने रहो और मेरे वचन तुम में स्थिर बने रहें तो तुम्हारे माँगने पर तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी. तुम्हारे फलों की बहुतायत में मेरे पिता की महिमा और तुम्हारा मेरे शिष्य होने का सबूत है.

“जिस प्रकार पिता ने मुझसे प्रेम किया है उसी प्रकार मैंने भी तुम से प्रेम किया है; मेरे प्रेम में स्थिर बने रहो. 10 तुम मेरे प्रेम में स्थिर बने रहोगे, यदि तुम मेरे आदेशों का पालन करते हो, जैसे मैं पिता के आदेशों का पालन करता आया हूँ और उनके प्रेम में स्थिर हूँ. 11 यह सब मैंने तुमसे इसलिए कहा है कि तुम में मेरा आनन्द बना रहे और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए. आपसी प्रेम की आज्ञा 12 यह मेरी आज्ञा है कि तुम एक-दूसरे से उसी प्रकार प्रेम करो, जिस प्रकार मैंने तुमसे प्रेम किया है. 13 इससे श्रेष्ठ प्रेम और कोई नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण दे दे. 14 यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करते हो तो तुम मेरे मित्र हो. 15 मैंने तुम्हें दास नहीं, मित्र माना है क्योंकि दास स्वामी के कार्यों से अनजान रहता है. मैंने तुम्हें उन सभी बातों को बता दिया है, जो मुझे पिता से मिली हुई हैं. 16 तुमने मुझे नहीं परन्तु मैंने तुम्हे चुना है और तुम्हें नियुक्त किया है कि तुम फल दो—ऐसा फल, जो स्थायी हो—जिससे मेरे नाम में तुम पिता से जो कुछ माँगो, वह तुम्हें दे सकें. 17 मेरी आज्ञा यह है: एक दूसरे से प्रेम करो.

संसार की ओर से घृणा की चेतावनी

18 “यदि संसार तुमसे घृणा करता है तो याद रखो कि उसने तुमसे पहले मुझसे घृणा की है. 19 यदि तुम संसार के होते तो संसार तुमसे अपनों जैसा प्रेम करता. तुम संसार के नहीं हो—संसार में से मैंने तुम्हे चुन लिया है—संसार तुमसे इसीलिए घृणा करता है. 20 याद रखो कि मैंने तुमसे क्या कहा था: दास अपने स्वामी से बढ़कर नहीं होता. यदि उन्होंने मुझे सताया तो तुम्हें भी सताएंगे. यदि उन्होंने मेरी शिक्षा ग्रहण की तो तुम्हारी शिक्षा भी ग्रहण करेंगे. 21 वे यह सब तुम्हारे साथ मेरे कारण करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते. 22 यदि मैं न आता और यदि मैं उनसे ये सब न कहता तो वे दोषी न होते. परन्तु अब उनके पास अपने पाप को छिपाने के लिए कोई भी बहाना नहीं बचा है. 23 वह, जो मुझसे घृणा करता है, मेरे पिता से भी घृणा करता है. 24 यदि मैं उनके मध्य वे काम न करता, जो किसी अन्य व्यक्ति ने नहीं किए तो वे दोषी न होते, परन्तु अब उन्होंने मुझे देख लिया और उन्होंने मुझसे व मेरे पिता दोनों से घृणा की है 25 कि व्यवस्था का यह लेख पूरा हो: उन्होंने अकारण ही मुझसे घृणा की.

26 “जब सहायक—सच्चाई का आत्मा, जो पिता से हैं—आएंगे, जिन्हें मैं तुम्हारे लिए पिता के पास से भेजूँगा, वह मेरे विषय में गवाही देंगे. 27 तुम भी मेरे विषय में गवाही दोगे क्योंकि तुम शुरुआत से मेरे साथ रहे हो.

16 “मैंने तुम पर ये सच्चाई इसलिए प्रकट की कि तुम भरमाए जाने से बचे रहो. वे सभागृह से तुमको निकाल देंगे, इतना ही नहीं, वह समय भी आ रहा है जब तुम्हारा हत्यारा अपने कुकाम को परमेश्वर की सेवा समझेगा. ये कुकाम वे इसलिए करेंगे कि उन्होंने न तो पिता को जाना है और न मुझे. ये सच्चाई मैंने तुम पर इसलिए प्रकट की है कि जब यह सब होने लगे तो तुम्हें याद आए कि इनके विषय में मैंने तुम्हें पहले से ही सावधान कर दिया था. मैंने ये सब तुम्हें शुरुआत में इसलिए नहीं बताया कि उस समय मैं तुम्हारे साथ था.

पवित्रात्मा की भूमिका का प्रकाशन

“अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जा रहा हूँ, और तुम में से कोई नहीं पूछ रहा कि आप कहाँ जा रहे हैं? ये सब सुन कर तुम्हारा हृदय शोक से भर गया है. फिर भी सच यह है कि मेरा जाना तुम्हारे लिए लाभदायक है क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह स्वर्गीय सहायक तुम्हारे पास नहीं आएंगे. यदि मैं जाऊँ तो मैं उन्हें तुम्हारे पास भेजूँगा. वह आ कर संसार के सामने पाप, धार्मिकता और न्याय के विषय में दोषों को प्रकाश में लाएंगे: पाप के विषय में; क्योंकि वे मुझ में विश्वास नहीं करते; 10 धार्मिकता के विषय में; क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ और इसके बाद तुम मुझे न देखोगे; 11 न्याय के विषय में; क्योंकि संसार का हाकिम दोषी ठहराया जा चुका है.

12 “मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है परन्तु अभी तुम उसे ग्रहण करने के योग्य नहीं हो. 13 जब सहायक—सच्चाई-का-आत्मा—आएंगे, वह पूरी सच्चाई में तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे. वह अपनी ओर से कुछ नहीं कहेंगे, परन्तु वही कहेंगे, जो वह सुनते हैं. वह तुम्हारे लिए आनेवाली घटनाओं को उजागर करेंगे. 14 वही मुझे महिमित करेंगे क्योंकि वह मुझसे प्राप्त बातों को तुम्हारे सामने प्रकट करेंगे. 15 वह सब कुछ, जो पिता का है, मेरा है; इसीलिए मैंने यह कहा कि वह मुझसे मिली हुई बातों को तुम पर प्रकट करेंगे.”

प्रार्थना में येशु नाम के प्रयोग का निर्देश

16 “कुछ ही समय में तुम मुझे नहीं देखोगे और कुछ समय बाद तुम मुझे दोबारा देखोगे.”

17 इस पर उनके कुछ शिष्य आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “उनका इससे क्या मतलब है कि वह हमसे कह रहे हैं, ‘कुछ ही समय में तुम मुझे नहीं देखोगे और कुछ समय बाद तुम मुझे दोबारा देखोगे;’ और यह भी, ‘मैं पिता के पास जा रहा हूँ’?” 18 वे एक-दूसरे से पूछते रहे, “समझ नहीं आता कि वह क्या कह रहे हैं. क्या है यह कुछ समय बाद जिसके विषय में वह बार-बार कह रहे हैं?”

19 यह जानते हुए कि वे उनसे कुछ पूछना चाहते हैं, मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या तुम इस विषय पर विचार कर रहे हो कि मैंने तुमसे कहा कि कुछ ही समय में तुम मुझे नहीं देखोगे और कुछ समय बाद मुझे दोबारा देखोगे? 20 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम रोओगे और विलाप करोगे जबकि संसार आनन्द मना रहा होगा. तुम शोकाकुल होगे किन्तु तुम्हारा शोक आनन्द में बदल जाएगा. 21 प्रसव के पहले स्त्री शोकित होती है क्योंकि उसका प्रसव पास आ गया है किन्तु शिशु के जन्म के बाद संसार में उसके आने के आनन्द में वह अपनी पीड़ा भूल जाती है. 22 इसी प्रकार अभी तुम भी शोकित हो किन्तु मैं तुमसे दोबारा मिलूँगा, जिससे तुम्हारा हृदय आनन्दित होगा कोई तुमसे तुम्हारा आनन्द छीन न लेगा. 23 उस दिन तुम मुझसे कोई प्रश्न न करोगे. मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: यदि तुम पिता से कुछ भी माँगोगे, वह तुम्हें मेरे नाम में दे देंगे. 24 अब तक तुमने मेरे नाम में पिता से कुछ भी नहीं मांगा; माँगो और तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा कि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए.

25 “इस समय मैंने ये सब बातें तुम्हें कहावतों में बतायी है किन्तु समय आ रहा है, जब मैं पिता के विषय में कहावतों में नहीं परन्तु साफ़ शब्दों में बताऊँगा. 26 उस दिन तुम स्वयं मेरे नाम में पिता से माँगोगे. मैं यह नहीं कह रहा कि मुझे ही तुम्हारी ओर से पिता से विनती करनी पड़ेगी. 27 पिता स्वयं तुमसे प्रेम करते हैं क्योंकि तुमने मुझसे प्रेम किया और यह विश्वास किया है कि मैं पिता का भेजा हुआ हूँ. 28 हाँ, मैं—पिता का भेजा हुआ—संसार में आया हूँ और अब संसार को छोड़ रहा हूँ कि पिता के पास लौट जाऊँ.”

29 तब शिष्य कह उठे, “हाँ, अब आप कहावतों में नहीं, साफ़ शब्दों में समझा रहे हैं. 30 अब हम समझ गए हैं कि आप सब कुछ जानते हैं और अब किसी को आप से कोई प्रश्न करने की ज़रूरत नहीं. इसीलिए हम विश्वास करते हैं कि आप परमेश्वर की ओर से आए हैं.”

31 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हें अब विश्वास हो रहा है!” 32 देखो, समय आ रहा है परन्तु आ चुका है, जब तुम तितर-बितर हो अपने आप में व्यस्त हो जाओगे और मुझे अकेला छोड़ दोगे; किन्तु मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे पिता मेरे साथ हैं.

33 “मैंने तुमसे ये सब इसलिए कहा है कि तुम्हें मुझमें शान्ति प्राप्त हो. संसार में तुम्हारे लिए क्लेश ही क्लेश है किन्तु आनन्दित हो कि मैंने संसार पर विजय प्राप्त की है.”

मसीह येशु की अपने ही लिए प्रार्थना

17 इन बातों के प्रकट करने के बाद मसीह येशु ने स्वर्ग की ओर दृष्टि उठा कर प्रार्थना की.

“पिता, वह समय आ गया है. अपने पुत्र को महिमित कीजिए कि पुत्र आपको महिमित करे. क्योंकि आपने उसे सारी मानवजाति पर अधिकार दिया है कि वह उन सबको अनन्त जीवन प्रदान करे जिन्हें आपने उसे सौंपा है. अनन्त जीवन यह है कि वे आपको, जो एकमात्र सच्चे परमेश्वर हैं और मसीह येशु को, जिसे आपने भेजा है, जानें. जो काम आपने मुझे सौंपा था, उसे पूरा कर मैंने पृथ्वी पर आपको महिमित किया है. इसलिए पिता, आप मुझे अपने साथ उसी महिमा से महिमित कीजिए, जो महिमा मेरी आपके साथ संसार की सृष्टि से पहले थी.

मसीह येशु की शिष्यों के लिए प्रार्थना

“मैंने आपको उन सब पर प्रगट किया, संसार में से जिनको चुन कर आपने मुझे सौंपा था. वे आपके थे किन्तु आपने उन्हें मुझे सौंपा था और उन्होंने आपके वचन का पालन किया. अब वे जान गए हैं कि जो कुछ आपने मुझे दिया है, वह सब आप ही की ओर से है क्योंकि आप से प्राप्त आज्ञाएँ मैं ने उन्हें दे दी है. उन्होंने उनको ग्रहण किया और वास्तव में यह जान लिया है कि मैं आप से आया हूँ; उन्होंने विश्वास किया कि आप ही मेरे भेजनेवाले हैं. आप से मेरी विनती संसार के लिए नहीं किन्तु उनके लिए है, जो आपके हैं और जिन्हें आपने मुझे सौंपा है. 10 वह सब, जो मेरा है, आपका है, जो आपका है, वह मेरा है और मैं उनमें महिमित हुआ हूँ 11 अब मैं संसार में नहीं रहूँगा; मैं आपके पास आ रहा हूँ, किन्तु वे सब संसार में हैं. पवित्र पिता! उन्हें अपने उस नाम में, जो आपने मुझे दिया है, सुरक्षित रखिए कि वे एक हों जैसे हम एक हैं. 12 जब मैं उनके साथ था, मैंने उन्हें आपके उस नाम में, जो आपने मुझे दिया था, सुरक्षित रखा. मैंने उनकी रक्षा की; उनमें से किसी का नाश नहीं हुआ, सिवाय विनाश के पुत्र के; वह भी इसलिए कि पवित्रशास्त्र का वचन पूरा हो. 13 अब मैं आपके पास आ रहा हूँ. ये सब मैं संसार में रहते हुए ही कह रहा हूँ कि वे मेरे आनन्द से परिपूर्ण हो जाएँ. 14 मैंने उनको आपका वचन-सन्देश दिया है. संसार ने उनसे घृणा की है क्योंकि वे संसार के नहीं हैं, जिस प्रकार मैं भी संसार का नहीं हूँ. 15 मैं आप से यह विनती नहीं करता कि आप उन्हें संसार में से उठा लें परन्तु यह कि आप उन्हें उस दुष्ट से बचाए रखें. 16 वे संसार के नहीं हैं, जिस प्रकार मैं भी संसार का नहीं हूँ. 17 उन्हें सच्चाई में अपने लिए अलग कीजिए—आपका वचन सत्य है. 18 जैसे आपने मुझे संसार में भेजा था, मैंने भी उन्हें संसार में भेजा. 19 उनके लिए मैं स्वयं को समर्पित करता हूँ कि वे भी सच्चाई में समर्पित हो जाएँ.

मसीह येशु की भविष्य में बनने वाले शिष्यों के लिए प्रार्थना

20 “मैं मात्र इनके लिए ही नहीं परन्तु उन सब के लिए भी विनती करता हूँ, जो इनके सन्देश के द्वारा मुझ में विश्वास करेंगे. 21 पिता! वे सब एक हों; जैसे आप मुझ में और मैं आप में, वैसे ही वे हम में एक हों जिससे संसार विश्वास करे कि आप ही मेरे भेजनेवाले हैं. 22 वह महिमा, जो आपने मुझे प्रदान की है, मैंने उन्हें दे दी है कि वे भी एक हों, जिस प्रकार हम एक हैं, 23 आप मुझमें और मैं उनमें कि वे पूरी तरह से एक हो जाएं जिससे संसार पर यह साफ़ हो जाए कि आपने ही मुझे भेजा और आपने उनसे वैसा ही प्रेम किया है जैसा मुझसे.

24 “पिता, मेरी इच्छा यह है कि वे भी, जिन्हें आपने मुझे सौंपा है, मेरे साथ वहीं रहें, जहाँ मैं हूँ कि वे मेरी उस महिमा को देख सकें, जो आपने मुझे दी है क्योंकि संसार की सृष्टि के पहले से ही आपने मुझसे प्रेम किया है.

25 “न्याय करने वाले पिता, संसार ने तो आपको नहीं जाना किन्तु मैं आपको जानता हूँ, उनको यह मालूम हो गया है कि आपने ही मुझे भेजा है. 26 मैंने आपको उन पर प्रकट किया है, और प्रकट करता रहूँगा कि जिस प्रेम से आपने मुझसे प्रेम किया है वही प्रेम उनमें बस जाए और मैं उनमें.”

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.