Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Beginning

Read the Bible from start to finish, from Genesis to Revelation.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 17-18

अन्यों को भटकाने पर

17 इसके बाद अपने शिष्यों से मसीह येशु ने कहा, “यह असम्भव है कि ठोकरें न लगें किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो ठोकर का कारण है. इसके बजाय कि वह निर्बलों के लिए ठोकर का कारण बने, उत्तम यह होता कि उसके गले में चक्की का पाट बान्ध कर उसे गहरे समुद्र में फेंक दिया जाता. इसलिए तुम स्वयं के प्रति सावधान रहो.

“यदि तुम्हारा भाई अपराध करे तो उसे डाँटो और यदि वह मन फिराए तो उसे क्षमा कर दो. यदि वह एक दिन में तुम्हारे विरुद्ध सात बार भी अपराध करे और सातों बार तुमसे आ कर कहे, ‘मुझे इसका पछतावा है,’ तो उसे क्षमा कर दो.”

प्रेरितों ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमारे विश्वास को बढ़ा दीजिए.”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के बीज के बराबर भी हो, तो तुम इस शहतूत के पेड़ को यह आज्ञा देते, ‘उखड़ जा और जा कर समुद्र में लग जा!’ तो यह तुम्हारी आज्ञा का पालन करता.

विनम्र सेवा

“क्या तुममें से कोई ऐसा है, जिसके खेत में काम करने या भेड़ों की रखवाली के लिए एक दास हो और जब वह दास खेत से लौटे तो वह दास से कहे, ‘आओ, मेरे साथ भोजन करो’? क्या वह अपने दास को यह आज्ञा न देगा, ‘मेरे लिए भोजन तैयार करो और मुझे भोजन परोसने के लिए तैयार हो जाओ. मैं भोजन के लिए बैठ रहा हूँ. तुम मेरे भोजन समाप्त करने के बाद भोजन कर लेना?’ क्या वह अपने दास का आभार इसलिए मानेगा कि उसने उसे दिए गए आदेशों का पालन किया है? नहीं! 10 यही तुम सबके लिए भी सही है: जब तुम वह सब कर लो, जिसकी तुम्हें आज्ञा दी गई थी, यह कहो: ‘हम अयोग्य सेवक हैं. हमने केवल अपना कर्तव्य पूरा किया है.’”

एक अकेला आभारी कोढ़ रोगी

11 येरूशालेम नगर की ओर बढ़ते हुए मसीह येशु शोमरोन और गलील प्रदेश के बीच से होते हुए जा रहे थे. 12 जब वह गाँव में प्रवेश कर ही रहे थे, उनकी भेंट दस कोढ़ रोगियों से हुई, जो दूर ही खड़े रहे. 13 उन्होंने दूर ही से पुकारते हुए मसीह येशु से कहा, “स्वामी! मसीह येशु! हम पर कृपा कीजिए!” 14 उन्हें देख मसीह येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “जा कर पुरोहितों द्वारा स्वयं का निरीक्षण करवाओ.” जब वे जा ही रहे थे, वे शुद्ध हो गए. 15 उनमें से एक, यह अहसास होते ही कि वह शुद्ध हो गया है, मसीह येशु के पास लौट आया और ऊँचे शब्द में परमेश्वर की वंदना करने लगा. 16 मसीह येशु के चरणों पर गिर कर उसने उनके प्रति धन्यवाद प्रकट किया—वह शोमरोनवासी था. 17 मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या सभी दस शुद्ध नहीं हुए? कहाँ हैं वे अन्य नौ? 18 क्या इस परदेशी के अतिरिक्त किसी अन्य ने परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट करना सही न समझा?” 19 तब मसीह येशु ने उससे कहा, “उठो और जाओ. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें हर तरह से स्वस्थ किया है.”

परमेश्वर के राज्य के दिन का प्रश्न

20 एक अवसर पर, जब फ़रीसियों ने उनसे यह जानना चाहा कि परमेश्वर के राज्य का आगमन कब होगा, तो मसीह येशु ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के राज्य का आगमन दिखनेवाले संकेतों के साथ नहीं होगा 21 और न ही इसके विषय में कोई यह कह सकता है, ‘देखो-देखो! यह है परमेश्वर का राज्य!’ क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे ही बीच में है.”

22 तब अपने शिष्यों से उन्मुख हो मसीह येशु ने कहा, “वह समय आ रहा है जब तुम मनुष्य के पुत्र के राज्य का एक दिन देखने के लिए तरस जाओगे और देख न पाओगे. 23 लोग आ कर तुम्हें सूचना देंगे, ‘देखो, वह वहाँ है!’ या, ‘देखो, वह यहाँ है!’ यह सुन कर तुम चले न जाना और न ही उनके पीछे भागना 24 क्योंकि मनुष्य के पुत्र का दोबारा आना बिजली कौन्धने के समान होगा—आकाश में एक छोर से दूसरे छोर तक; 25 किन्तु उसके पूर्व उसका अनेक यातनाएँ सहना और इस पीढ़ी द्वारा तिरस्कार किया जाना अवश्य है. 26 ठीक जिस प्रकार नोहा के युग में हुआ था, मनुष्य के पुत्र के समय में भी होगा, 27 तब भी लोगों में उस समय तक खाना-पीना, विवाह उत्सव होते रहे जब तक नूह ने जलयान में प्रवेश न किया, तब पानी की बाढ़ आई और सब कुछ नाश हो गया. 28 ठीक यही स्थिति थी लोत के समय में—लोग उत्सव, लेन देन, खेती और निर्माण का काम करते रहे 29 किन्तु जैसे ही लोत ने सोदोम नगर से प्रस्थान किया, आकाश से आग और गंधक की बारिश हुई और सब कुछ नाश हो गया. 30 यही सब होगा उस दिन, जब मनुष्य का पुत्र प्रकट होगा.

31 “उस समय सही यह होगा कि वह, जो छत पर हो और उसकी वस्तुएं घर में हों, वह उन्हें लेने नीचे न उतरे. इसी प्रकार वह, जो खेत में काम कर रहा है, वह भी लौट कर न आए. 32 याद है लोत की पत्नी! 33 वह, जो अपने प्राणों को बचाना चाहता है, उन्हें खो देता है और वह, जो अपने जीवन से मोह नहीं रखता, उसे बचा पाता है. 34 उस रात एक बिछौने पर सोए हुए दो व्यक्तियों में से एक उठा लिया जाएगा, दूसरा छोड़ दिया जाएगा. 35 दो स्त्रियाँ एक साथ अनाज पीस रही होंगी, एक उठा ली जाएगी, दूसरी छोड़ दी जाएगी. 36 खेत में दो व्यक्ति काम कर रहे होंगे एक उठा लिया जाएगा, दूसरा छोड़ दिया जाएगा.”

37 उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “कब प्रभु?”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “गिद्ध वहीं इकट्ठा होंगे, जहाँ शव होता है.”

दुराग्रही विधवा

18 तब मसीह येशु ने शिष्यों को यह समझाने के उद्देश्य से कि हतोत्साहित हुए बिना निरन्तर प्रार्थना करते रहना ही सही है, यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया. “किसी नगर में एक न्यायाधीश था. वह न तो परमेश्वर से डरता था और न किसी को कुछ समझता था. उसी नगर में एक विधवा भी थी, जो बार-बार उस न्यायाधीश के पास ‘आकर विनती करती थी कि उसे न्याय दिलाया जाए.’

“कुछ समय तक तो वह न्यायाधीश उसे टालता रहा किन्तु फिर उसने मन में विचार किया, ‘यद्यपि मैं न तो परमेश्वर से डरता हूँ और न लोगों से प्रभावित होता हूँ फिर भी यह विधवा आ-आकर मेरी नाक में दम किए दे रही है. इसलिए उत्तम यही होगा कि मैं इसका न्याय कर ही दूँ कि यह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम तो न करे.’”

प्रभु ने आगे कहा, “उस अधर्मी न्यायाधीश के शब्दों पर ध्यान दो कि उसने क्या कहा. तब क्या परमेश्वर अपने उन चुने हुओं का न्याय न करेंगे, जो दिन-रात उनके नाम की दोहाई दिया करते हैं? क्या वह उनके सम्बन्ध में देर करेंगे? सच मानो, परमेश्वर बिना देर किए उनके पक्ष में सक्रिय हो जाएँगे. फिर भी, क्या मनुष्य के पुत्र के पुनरागमन पर विश्वास बना रहेगा?”

दो भिन्न प्रार्थनाएँ

तब मसीह येशु ने उनके लिए, जो स्वयं को तो धर्मी मानते थे परन्तु अन्यों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे, यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया.

10 “प्रार्थना करने दो व्यक्ति मन्दिर में गए, एक फ़रीसी था तथा दूसरा चुँगी लेने वाला. 11 फ़रीसी की प्रार्थना इस प्रकार थी: ‘परमेश्वर! मैं आपका आभारी हूँ कि मैं अन्य मनुष्यों जैसा नहीं हूँ—छली, अन्यायी, व्यभिचारी और न इस चुँगी लेने वाले के जैसा. 12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दसवां अंश दिया करता हूँ.’ 13 किन्तु चुँगी लेने वाला दूर ही खड़ा रहा. उसने दृष्टि तक उठाने का साहस न किया, अपने सीने पर शोक में प्रहार करते हुए उसने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर! कृपा कीजिए मुझ पापी पर!’

14 “विश्वास करो वास्तव में यही चुँगी लेने वाला (परमेश्वर से) धर्मी घोषित किया जा कर घर लौटा—न कि वह फ़रीसी. क्योंकि हर एक, जो स्वयं को बड़ा बनाता है, छोटा बना दिया जाएगा तथा जो व्यक्ति स्वयं नम्र हो जाता है, वह ऊँचा उठाया जाता है.”

मसीह येशु तथा बालक

(मत्ति 19:13-15; मारक 10:13-16)

15 लोग अपने बालकों को मसीह येशु के पास ला रहे थे कि मसीह येशु उन्हें स्पर्श मात्र कर दें. शिष्य यह देख उन्हें डाँटने लगे. 16 मसीह येशु ने बालकों को अपने पास बुलाते हुए कहा, “नन्हे बालकों को मेरे पास आने दो. मत रोको उन्हें! क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है. 17 वास्तव में जो परमेश्वर के राज्य को एक नन्हे बालक के भाव में ग्रहण नहीं करता, उसमें कभी प्रवेश न कर पाएगा.”

अनन्त काल के जीवन का अभिलाषी धनी युवक

(मत्ति 19:16-30; मारक 10:17-31)

18 एक प्रधान ने उनसे प्रश्न किया, “उत्तम गुरु! अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मेरे लिए क्या करना सही होगा?”

19 “तुम मुझे उत्तम कह कर क्यों बुला रहे हो?” मसीह येशु ने कहा. “परमेश्वर के अलावा दूसरा कोई भी उत्तम नहीं. 20 आज्ञा तो तुम्हें मालूम ही हैं: व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने माता-पिता का सम्मान करना.”

21 “इन सबका पालन तो मैं बचपन से करता आ रहा हूँ,” उसने उत्तर दिया.

22 यह सुन मसीह येशु ने उससे कहा, “एक कमी फिर भी है तुममें. अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर निर्धनों में बांट दो. धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्त होगा. तब आ कर मेरे पीछे हो लो.” 23 यह सुन वह प्रधान बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनी था.

24 यह देख मसीह येशु ने कहा, “धनवानों का स्वर्ग-राज्य में प्रवेश कैसा कठिन है! 25 एक धनी के स्वर्ग-राज्य में प्रवेश करने की तुलना में सुई के छेद में से ऊँट का पार हो जाना सरल है.”

26 इस पर सुननेवाले पूछने लगे, “तब किसका उद्धार सम्भव है?” 27 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के लिए सम्भव है.”

28 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “हम तो अपना घरबार छोड़ कर आपके पीछे चल रहे हैं.”

29 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सच तो यह है कि ऐसा कोई भी नहीं, जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए अपनी घर-गृहस्थी, पत्नी, भाई, बहन, माता-पिता या सन्तान का त्याग किया हो 30 और उसे इस समय में कई गुणा अधिक तथा आगामी युग में अनन्त काल का जीवन प्राप्त न हो.”

दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की तीसरी भविष्यवाणी

(मत्ति 20:17-19; मारक 10:32-34)

31 तब मसीह येशु ने बारहों शिष्यों को अलग ले जा कर उन पर प्रकट किया, “हम येरूशालेम नगर जा रहे हैं. भविष्यद्वक्ताओं द्वारा मनुष्य के पुत्र के विषय में जो भी लिखा गया है, वह पूरा होने पर है, 32 उसे अन्यजातियों को सौंप दिया जाएगा. उसका उपहास किया जाएगा, उसे अपमानित किया जाएगा, उस पर थूका जाएगा. 33 उसे कोड़े लगाने के बाद वे उसे मार डालेंगे और वह तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित हो जाएगा.”

34 शिष्यों को कुछ भी समझ में न आया. उनसे इसका अर्थ छिपाकर रखा गया था. इस विषय में मसीह येशु की कही बातें शिष्यों की समझ से परे थीं.

येरीख़ो नगर में अंधे व्यक्ति

(मत्ति 20:29-34; मारक 10:46-52)

35 जब मसीह येशु यरीख़ो नगर के पास पहुँचे, उन्हें एक अंधा मिला, जो मार्ग के किनारे बैठा हुआ भिक्षा माँग रहा था. 36 भीड़ का शोर सुनकर उसने जानना चाहा कि क्या हो रहा है. 37 उन्होंने उसे बताया, “नाज़रेथ के येशु यहाँ से होकर जा निकल रहें हैं.”

38 वह अंधा पुकार उठा, “येशु! दाविद की सन्तान! मुझ पर दया कीजिए!”

39 उन्होंने, जो आगे-आगे चल रहे थे, उसे डाँटा और उसे शान्त रहने की आज्ञा दी. इस पर वह और भी ऊँचे शब्द में पुकारने लगा, “दाविद के पुत्र! मुझ पर कृपा कीजिए!”

40 मसीह येशु रुक गए और उन्हें आज्ञा दी कि वह व्यक्ति उनके पास लाया जाए. जब वह उनके पास लाया गया, मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, 41 “क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”

“प्रभु मैं देखना चाहता हूँ!” उसने उत्तर दिया.

42 मसीह येशु ने कहा, “रोशनी प्राप्त करो. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है.” 43 तत्काल ही वह देखने लगा. परमेश्वर की वन्दना करते हुए वह मसीह येशु के पीछे चलने लगा. यह देख सारी भीड़ भी परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी.

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.