Beginning
कोरिन्थॉस नगर में कलीसिया की नींव
18 इसके बाद पौलॉस अथेनॉन नगर से कोरिन्थॉस नगर चले गए. 2 वहाँ उनकी भेंट अकुलॉस नामक एक यहूदी से हुई. वह जन्मत: पोन्तॉस नगर का निवासी था. कुछ ही समय पूर्व वह अपनी पत्नी प्रिस्का के साथ इतालिया से पलायन कर आया था क्योंकि राजा क्लॉदियॉस ने रोम से सारे यहूदियों के निकल जाने की आज्ञा दी थी. पौलॉस उनसे भेंट करने गए. 3 पौलॉस और अकुलॉस का व्यवसाय एक ही था इसलिए पौलॉस उन्हीं के साथ रहकर काम करने लगे—वे दोनों ही तम्बू बनाने वाले थे. 4 हर एक शब्बाथ पर पौलॉस यहूदी आराधनालय में प्रवचन देते और यहूदियों तथा यूनानियों की शंका दूर करते थे.
5 जब मकेदोनिया से सीलास और तिमोथियॉस वहाँ आए तो पौलॉस मात्र वचन की शिक्षा देने के प्रति समर्पित हो गए और यहूदियों के सामने यह साबित करने लगे कि येशु ही वह मसीह हैं. 6 उनकी ओर से प्रतिरोध और निन्दा की स्थिति में पौलॉस अपने वस्त्र झटक कर कह दिया करते थे, “अपने विनाश के लिए तुम स्वयं दोषी हो—मैं निर्दोष हूँ. अब मैं अन्यजातियों के मध्य जा रहा हूँ.”
7 पौलॉस यहूदी आराधनालय से निकल कर तीतॉस युस्तस के घर पर चले गए. वह परमेश्वर भक्त व्यक्ति था. उसका घर यहूदी आराधनालय के पास ही था. 8 यहूदी आराधनालय के प्रभारी क्रिस्पॉस ने सपरिवार प्रभु में विश्वास किया. अनेक कोरिन्थवासी वचन सुन विश्वास कर बपतिस्मा लेते जा रहे थे.
9 प्रभु ने पौलॉस से रात में दर्शन में कहा, “अब भयभीत न होना. वचन का प्रचार करते जाओ. मौन न रहो. 10 मैं तुम्हारे साथ हूँ. कोई तुम पर आक्रमण करके तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकता क्योंकि इस नगर में मेरे अनेक भक्त हैं.” 11 इसलिए पौलॉस वहाँ एक वर्ष छः मास तक रहे और परमेश्वर के वचन की शिक्षा देते रहे.
पौलॉस पर यहूदियों द्वारा मुकद्दमा
12 जब गैलियो आख़ेया प्रदेश का राज्यपाल था, यहूदी एकमत होकर पौलॉस के विरुद्ध खड़े हो गए और उन्हें न्यायालय ले गए. 13 उन्होंने उन पर आरोप लगाया, “यह व्यक्ति लोगों को परमेश्वर की आराधना इस प्रकार से करने के लिए फुसला रहा है, जो व्यवस्था के आदेशों के विपरीत है.” 14 जब पौलॉस अपनी-अपनी रक्षा में कुछ बोलने पर ही थे, गैलियो ने यहूदियों से कहा, “ओ यहूदियों! यदि तुम मेरे सामने किसी प्रकार के अपराध या किसी घोर दुष्टता का आरोप लेकर आते तो मैं उसके लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल करता 15 किन्तु यदि यह विवादित शब्दों, नामों या तुम्हारे ही अपने विधान से सम्बन्धित है तो इसका निर्णय तुम स्वयं करो. मैं इसका निर्णय नहीं करना चाहता.” 16 यह कहते हुए उसने उन्हें न्याय के कमरे से बाहर खदेड़ दिया. 17 यहूदियों ने यहूदी आराधनालय के प्रधान सोस्थेनेस को पकड़ कर न्यायालय के सामने ही पीटना प्रारम्भ कर दिया. गैलियो पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
तथा तीसरी यात्रा का प्रारम्भ
18 वहाँ अनेक दिन रहने के बाद पौलॉस शिष्यों से विदा लेकर जलमार्ग से सीरिया प्रदेश चले गए. उनके साथ प्रिस्का और अकुलॉस भी थे. सेन्क्रिया नगर में पौलॉस ने अपना मुण्डन करवा लिया क्योंकि उन्होंने एक संकल्प लिया था. 19 वे इफ़ेसॉस नगर में आए. पौलॉस उन्हें वहीं छोड़कर यहूदी सभागृह में जाकर यहूदियों से वाद-विवाद करने लगे. 20 वे पौलॉस से कुछ दिन और ठहरने की विनती करते रहे किन्तु पौलॉस राज़ी नहीं हुए. 21 पौलॉस ने उनसे यह कहते हुए आज्ञा चाही “यदि परमेश्वर चाहेंगे तो मैं दोबारा लौट कर तुम्हारे पास आऊँगा” और वह इफ़ेसॉस नगर छोड़ कर जलमार्ग से आगे चले गए. 22 कयसरिया नगर पहुँच कर उन्होंने कलीसिया से भेंट की और फिर अन्तियोख़ नगर चले गए.
23 अन्तियोख़ नगर में कुछ दिन बिता कर वह वहाँ से विदा हुए और नगर-नगर यात्रा करते हुए सभी गलातिया प्रदेश और फ़्रिजिया क्षेत्र में से होते हुए शिष्यों को प्रोत्साहित करते हुए आगे बढ़ गए.
24 अपोल्लॉस नामक एक यहूदी व्यक्ति थे, जिनका जन्म अलेक्सान्द्रिया नगर में हुआ था. वह इफ़ेसॉस नगर आए. वह प्रभावशाली वक्ता और पवित्रशास्त्र के बड़े ज्ञानी थे 25 किन्तु उन्हें प्रभु के मार्ग की मात्र ज़ुबानी शिक्षा दी गई थी. वह अत्यन्त उत्साही स्वभाव के थे तथा मसीह येशु के विषय में उनकी शिक्षा सटीक थी किन्तु उनका ज्ञान मात्र योहन के बपतिस्मा तक ही सीमित था. 26 अपोल्लॉस निडरता से यहूदी आराधनालय में प्रवचन देने लगे किन्तु जब प्रिस्का और अकुलॉस ने उनका प्रवचन सुना तो वे उन्हें अलग ले गए और वहाँ उन्होंने अपोल्लॉस को परमेश्वर के शिक्षा सिद्धान्त की सच्चाई को और अधिक साफ़ रीति से समझाया.
27 जब अपोल्लॉस ने आख़ेया प्रदेश के आगे जाने की इच्छा व्यक्त की तो शिष्यों ने उन्हें प्रोत्साहित किया तथा आख़ेया प्रदेश के शिष्यों को पत्र लिख कर विनती की कि वे उन्हें स्वीकार करें. इसलिए जब अपोल्लॉस वहाँ पहुँचे, उन्होंने उन शिष्यों का बहुत प्रोत्साहन किया, जिन्होंने अनुग्रह द्वारा विश्वास किया था 28 क्योंकि वह सार्वजनिक रूप से यहूदियों का खण्डन करते और पवित्रशास्त्र के आधार पर प्रमाणित करते थे कि येशु ही वह मसीह हैं.
इफ़ेसॉस नगर में योहन के शिष्य
19 जब अपोल्लॉस कोरिन्थॉस नगर में थे तब पौलॉस दूरवर्तीय प्रदेशों से होते हुए इफ़ेसॉस नगर आए और उनकी भेंट कुछ शिष्यों से हुई. 2 पौलॉस ने उनसे प्रश्न किया, “क्या विश्वास करते समय तुमने पवित्रात्मा प्राप्त किया था?”
उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं. हमने तो यह सुना तक नहीं कि पवित्रात्मा भी कुछ होता है.”
3 तब पौलॉस ने प्रश्न किया, “तो तुमने बपतिस्मा कौनसा लिया था?”
उन्होंने उत्तर दिया, “योहन का.”
4 तब पौलॉस ने उन्हें समझाया, “योहन का बपतिस्मा मात्र पश्चाताप का बपतिस्मा था. बपतिस्मा देते हुए योहन यह कहते थे कि लोग विश्वास उनमें करें, जो उनके बाद आ रहे थे अर्थात् मसीह येशु.” 5 जब उन शिष्यों को यह समझ में आया तो उन्होंने प्रभु मसीह येशु के नाम में बपतिस्मा लिया. 6 जब पौलॉस ने उनके ऊपर हाथ रखे, उन पर पवित्रात्मा उतरा और वे अन्य भाषाओं में बातचीत और भविष्यवाणी करने लगे. 7 ये लगभग बारह व्यक्ति थे.
इफ़ेसॉस नगर में कलीसिया की नींव
8 तब पौलॉस आराधनालय में गए और वहाँ वह तीन माह तक हर शब्बाथ को निडरता से बोलते रहे तथा परमेश्वर के राज्य के विषय में लोगों की शंकाओं को दूर करते रहे. 9 किन्तु, जो कठोर थे, उन्होंने वचन को नहीं माना और सार्वजनिक रूप से इस मत के विषय में बुरे विचारों का प्रचार किया. इसलिए पौलॉस अपने शिष्यों को साथ ले वहाँ से चले गए. वह तिरान्नुस के विद्यालय में गए, जहाँ वह हर रोज़ भीड़ से परमेश्वर सम्बन्धी विषयों पर बात किया करते थे. 10 यह सब दो वर्ष तक होता रहा. इसके परिणामस्वरूप सारे आसिया प्रदेश में यहूदियों तथा यूनानियों दोनों ही ने प्रभु का सन्देश सुना.
11 परमेश्वर ने पौलॉस के द्वारा असाधारण चमत्कार दिखाए, 12 यहाँ तक कि उनके शरीर से स्पर्श हुए रूमाल और अंगोछे जब रोगियों तक ले जाए गए, वे स्वस्थ हो गए तथा दुष्टात्मा उन्हें छोड़ चले गए.
13 नगर-नगर घूमते हुए कुछ यहूदी ओझाओं ने भी दुष्टात्मा से पीड़ितों को प्रभु मसीह येशु के नाम में यह कहते हुए दुष्टात्माओं से मुक्त करने का प्रयास किया, “मैं येशु नाम में, जिनका प्रचार प्रेरित पौलॉस करते हैं, तुम्हें बाहर आने की आज्ञा देता हूँ.”
14 स्कीवा नामक यहूदी प्रधान याजक के सात पुत्र थे, जो यही कर रहे थे. 15 एक दिन एक दुष्टात्मा ने उनसे कहा, “येशु को तो मैं जानता हूँ तथा पौलॉस के विषय में भी मुझे मालूम है, किन्तु तुम कौन हो?” 16 और उस दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति ने लपक कर उन सभी को अपने वश में कर लिया और उनकी ऐसी पिटाई की कि वे उस घर से नंगे तथा घायल होकर भागे.
17 इस घटना के विषय में इफ़ेसॉस नगर के सभी यहूदियों और यूनानियों को मालूम हो गया और उन पर आतंक छा गया किन्तु प्रभु मसीह येशु का नाम बढ़ता चला गया.
18 कुछ नए शिष्यों ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि वे स्वयं भी इन्हीं कामों में लगे हुए थे. 19 अनेक जादूगरों ने अपनी पोथियाँ लाकर सबके सामने जला दी. उनका आका गया कुल दाम पचास हज़ार चांदी के सिक्के था. 20 प्रभु के पराक्रम से वचन बढ़ता गया और मजबूत होता चला गया.
21 इसके बाद पौलॉस ने अपने मन में मकेदोनिया तथा आख़ेया प्रदेश से होते हुए येरूशालेम जाने का निश्चय किया. वह मन में विचार कर रहे थे, “इन सबके बाद मेरा रोम जाना भी सही होगा.” 22 अपने दो सहायकों—तिमोथियॉस तथा इरास्तॉस को मकेदोनिया प्रदेश प्रेषित कर वह स्वयं कुछ समय के लिए आसिया प्रदेश में रुक गए.
इफ़ेसॉस नगर: चांदी का काम करनेवालों का उपद्रव
23 उसी समय वहाँ इस मत को लेकर बड़ी खलबली मच गई. 24 देमेत्रियॉस नामक एक चांदी का कारीगर था, जो आरतिमिस देवी की मूर्तियाँ गढ़ा करता था, जिससे कारीगरों का एक बड़ा उद्योग चल रहा था. 25 उसने इन्हें तथा इसी प्रकार के काम करने वाले सब कारीगरों को इकट्ठा कर उनसे कहा, “भाइयो, यह तो आप समझते ही हैं कि हमारी बढ़ोतरी का आधार यही काम है. 26 आपने देखा और सुना होगा कि न केवल इफ़ेसॉस नगर में परन्तु सभी आसिया प्रदेश में इस पौलॉस ने बड़ी संख्या में लोगों को यह कहकर भरमा दिया है कि हाथ के गढ़े देवता वास्तविक देवता नहीं होते. 27 अब जोखिम न केवल यह है कि हमारे काम का सम्मान जाता रहेगा परन्तु यह भी कि महान देवी आरतिमिस का मन्दिर भी व्यर्थ साबित हो जाएगा और वह, जिसकी पूजा सारा आसिया प्रदेश ही नहीं परन्तु सारा विश्व करता है, अपने भव्य पद से गिरा दी जाएगी.”
28 यह सुनते ही वे सब क्रोध से भर गए और चिल्ला उठे, “इफ़ेसॉसवासियों की देवी आरतिमिस महान है!” 29 सारा नगर घबराया हुआ था. एकजुट हो वे मकेदोनिया प्रदेश से आए पौलॉस के साथी गायॉस तथा आरिस्तारख़ॉस को घसीटते हुए रंगशाला की ओर भागे. 30 पौलॉस इस भीड़ के सामने जाना ही चाहते थे किन्तु शिष्यों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया. 31 न केवल उन्होंने परन्तु नगर-प्रशासकों ने भी, जो पौलॉस के मित्र थे, बार-बार सन्देश भेज कर उनसे रंगशाला की ओर न जाने की विनती की.
32 भीड़ में से कोई कुछ चिल्ला रहा था तो कोई कुछ. सारी भीड़ पूरी तरह घबराई हुई थी. बहुतों को तो यही मालूम न था कि वे वहाँ इकट्ठा किसलिए हुए हैं. 33 कुछ ने यह अर्थ निकाला कि यह सब अलेक्सान्दरॉस के कारण हो रहा है क्योंकि यहूदियों ने उसे ही आगे कर रखा था. वह अपने हाथ के संकेत से अपने बचाव में भीड़ से कुछ कहने का प्रयास भी कर रहा था 34 किन्तु जैसे ही उन्हें यह मालूम हुआ कि अलेक्सान्दरॉस यहूदी है, सारी भीड़ लगभग दो घण्टे तक एक शब्द में चिल्लाती रही “इफ़ेसॉसवासियों की देवी आरतिमिस महान है.”
35 भीड़ के शान्त हो जाने पर नगर के हाकिमों ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “इफ़ेसॉसवासियो! भला यह कौन नहीं जानता कि इफ़ेसॉस नगर महान आरतिमिस तथा उस मूर्ति का रक्षक है, जो आकाश से उतरी है. 36 अब, जब कि यह बिना विवाद के सच है, ठीक यह होगा कि आप शान्त रहें और बिना सोचे-समझे कुछ भी न करें. 37 आप इन व्यक्तियों को यहाँ ले आए हैं, जो न तो मन्दिरों के लुटेरे हैं और न ही हमारी देवी की निन्दा करने वाले. 38 इसलिए यदि देमेत्रियॉस और उसके साथी कारीगरों को इनके विषय में कोई आपत्ति है तो न्यायालय खुला है तथा न्यायाधीश भी उपलब्ध हैं. वे उनके सामने अपने आरोप पेश करें. 39 यदि आपकी इसके अलावा कोई दूसरी माँग है तो उसे नियत सभा में ही पूरा किया जाएगा. 40 आज की इस घटना के कारण हम पर उपद्रव का आरोप लगने का खतरा है क्योंकि इसके लिए कोई भी ठोस कारण दिखाई नहीं पड़ता. इस सम्बन्ध में हम इस तितर-बितर भीड़ के इकट्ठा होने का ठोस कारण देने में असमर्थ होंगे.” 41 यह कह कर नगर हाकिमों ने भीड़ को विदा कर दिया.
इफ़ेसॉस नगर से पौलॉस का रवाना होना
20 नगर में कोलाहल शान्त होने पर पौलॉस ने शिष्यों को बुलवाया, उनको प्रोत्साहित किया और उनसे विदा लेकर मकेदोनिया प्रदेश की ओर रवाना हुआ. 2 वह उन सभी क्षेत्रों में से होते हुए, वहाँ शिष्यों का उत्साह बढ़ाते हुए यूनान देश जा पहुँचे. 3 वह वहाँ तीन महीने तक कार्य करते रहे किन्तु जब वह सीरिया प्रदेश की यात्रा प्रारम्भ करने पर थे, उन्हें यह सूचना प्राप्त हुई कि यहूदी उनके विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे हैं, तो उन्होंने मकेदोनिया प्रदेश से होते हुए लौट जाने का निश्चय किया. 4 इस यात्रा में बेरोयावासी पायरूस के पुत्र सोपेतर, थेस्सलोनिकेयुस नगर के आरिस्तारख़ॉस, सेकुन्दुस, दरबे से गायॉस, तिमोथियॉस तथा आसिया प्रदेश से तुख़िकस व त्रोफ़िमस हमारे साथी यात्री थे. 5 ये साथी यात्री हमसे आगे चले गए और त्रोऑस नगर पहुँच कर हमारा इंतज़ार करते रहे 6 किन्तु हमने अख़मीरी रोटी के उत्सव के बाद ही फ़िलिप्पॉय नगर से जलमार्ग द्वारा यात्रा शुरु की. पाँच दिन में हम त्रोऑस नगर पहुँचे और अपने साथियों से मिले. वहाँ हम सात दिन रहे.
त्रोऑस नगर: पौलॉस द्वारा मृतक व्यक्ति का उत्थान
7 सप्ताह के पहिले दिन हम रोटी तोड़ने के लिए इकट्ठा हुए. पौलॉस ने वहाँ प्रवचन देना प्रारम्भ कर दिया, जो मध्यरात तक चलता गया क्योंकि उनकी योजना अगले दिन यात्रा प्रारम्भ करने की थी. 8 उस ऊपरी कक्ष में, जहाँ सब इकट्ठा हुए थे, अनेक दीपक जल रहे थे. 9 यूतिकुस नामक एक युवक खिड़की पर बैठा हुआ झपकियां ले रहा था. पौलॉस प्रवचन करते चले गए और उसे गहरी नीन्द आ गई. वह तीसरे तल से भूमि पर जा गिरा और उसकी मृत्यु हो गई. 10 पौलॉस नीचे गए, उसके पास जाकर उससे लिपट गए और कहा, “घबराओ मत, यह जीवित है.” 11 तब वह दोबारा ऊपर गए और रोटी तोड़ने की रीति पूरी की. वह उनसे इतनी लम्बी बातचीत करते रहे कि सुबह हो गई. इसके बाद वे वहाँ से चले गए. 12 उस युवक को वहाँ से जीवित ले जाते हुए उन सब के हर्ष की कोई सीमा न थी.
त्रोऑस नगर से मिलेतॉस नगर को
13 हम जलयान पर सवार हो अस्सेस नगर की ओर आगे बढ़े, जहाँ से हमें पौलॉस को साथ लेकर आगे बढ़ना था. पौलॉस वहाँ थल मार्ग से पहुँचे थे क्योंकि यह उन्हीं की पहले से ठहराई योजना थी. 14 अस्सेस नगर में उनसे भेंट होने पर हमने उन्हें जलयान में अपने साथ लिया और मितिलीन नगर जा पहुँचे. 15 दूसरे दिन वहाँ से यात्रा करते हुए हम किऑस नगर के पास से होते हुए सामोस नगर पहुँचे और उसके अगले दिन मिलेतॉस नगर. 16 पौलॉस ने इफ़ेसॉस नगर में न उतर कर आगे बढ़ते जाने का निश्चय किया क्योंकि वह चाहते थे कि आसिया प्रदेश में ठहरने के बजाय यदि सम्भव हो तो शीघ्र ही पेन्तेकॉस्त उत्सव के अवसर पर येरूशालेम पहुँच जाएँ.
इफ़ेसॉस नगर के कलीसिया-पुरनियों से विदाई
17 मिलेतॉस नगर से पौलॉस ने इफ़ेसॉस नगर को समाचार भेज कर कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया. 18 उनके वहाँ पहुँचने पर पौलॉस ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा: “आसिया प्रदेश में मेरे प्रवेश के पहिले दिन से आपको यह मालूम है कि मैं किस प्रकार हमेशा आपके साथ रहा, 19 और किस तरह सारी विनम्रता में आँसू बहाते हुए उन यातनाओं के बीच भी, जो यहूदियों के षड्यन्त्रों के कारण मुझ पर आईं, मैं प्रभु की सेवा करता रहा. 20 घर-घर जाकर तथा सार्वजनिक रूप से वह शिक्षा देने में, जो तुम्हारे लिए लाभदायक है, मैं कभी पीछे नहीं रहा. 21 मैं यहूदियों और यूनानियों से पूरी सच्चाई में पश्चाताप के द्वारा परमेश्वर की ओर मन फिराने तथा हमारे प्रभु मसीह येशु में विश्वास की विनती करता रहा हूँ.”
22 “अब, पवित्रात्मा की प्रेरणा में मैं येरूशालेम जा रहा हूँ. वहाँ मेरे साथ क्या होगा, इससे मैं अनजान हूँ; 23 बजाय इसके कि हर एक नगर में पवित्रात्मा मुझे सावधान करते रहते हैं कि मेरे लिए बेड़ियाँ और यातनाएँ तैयार हैं. 24 अपने जीवन से मुझे कोई मोह नहीं है सिवाय इसके कि मैं अपनी इस दौड़ को पूरा करूँ तथा उस सेवा कार्य को, जो प्रभु मसीह येशु द्वारा मुझे सौंपा गया है—पूरी सच्चाई में परमेश्वर के अनुग्रह के ईश्वरीय सुसमाचार के प्रचार की. 25 अब यह भी सुनो: मैं जानता हूँ कि तुम सभी, जिनके बीच मैंने राज्य का प्रचार किया है, अब मेरा मुख कभी न देख सकोगे. 26 इसलिए आज मैं तुम सब पर यह स्पष्ट कर रहा हूँ कि मैं किसी के भी विनाश का दोषी नहीं हूँ. 27 मैंने किसी पर भी परमेश्वर के सारे उद्देश्य को बताने में आनाकानी नहीं की. 28 तुम लोग अपना ध्यान रखो तथा उस समूह का भी, जिसका रखवाला तुम्हें पवित्रात्मा ने चुना है कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की देखभाल करो जिसे उन्होंने स्वयं अपना लहू देकर मोल लिया है. 29 मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद तुम्हारे बीच फाड़नेवाले भेड़िये आ जाएँगे, जो इस समूह को नहीं छोड़ेंगे. 30 इतना ही नहीं, तुम्हारे बीच से ऐसे व्यक्तियों का उठना होगा, जो गलत शिक्षा देने लगेंगे और तुम्हारे ही झुण्ड़ में से अपने चेले बनाने लगेंगे. 31 इसलिए यह याद रखते हुए सावधान रहो कि तीन वर्ष तक मैंने दिन-रात आँसू बहाते हुए तुम्हें चेतावनी देने में कोई ढील नहीं दी.”
32 “अब मैं तुम्हें प्रभु और उनके अनुग्रह के वचन की देखभाल में सौंप रहा हूँ, जिसमें तुम्हारे विकास करने तथा तुम्हें उन सबके साथ मीरास प्रदान करने की क्षमता है, जो प्रभु के लिए अलग किए गए हैं. 33 मैंने किसी के स्वर्ण, रजत या वस्त्र का लालच नहीं किया. 34 तुम सब स्वयं जानते हो कि अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए तथा उनके लिए भी, जो मेरे साथ रहे, मैंने अपने इन हाथों से मेहनत की है. 35 हर एक परिस्थिति में मैंने तुम्हारे सामने यही आदर्श प्रस्तुत किया है कि यह ज़रूरी है कि हम दुर्बलों की सहायता इसी रीति से कठिन परिश्रम के द्वारा करें. स्वयं प्रभु येशु द्वारा कहे गए ये शब्द याद रखो, ‘लेने के बजाय देना धन्य है.’”
36 जब पौलॉस यह कह चुके, उन्होंने घुटने टेककर उन सबके साथ प्रार्थना की. 37 तब शिष्य रोने लगे और पौलॉस से गले लगकर उन्हें बार-बार चूमने लगे. 38 उनकी पीड़ा का सबसे बड़ा कारण यह था कि पौलॉस ने कह दिया था कि अब वे उन्हें कभी न देख सकेंगे. इसके बाद वे सब पौलॉस के साथ जलयान तक गए.
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