Book of Common Prayer
प्रेम करने की विधि
18 प्रियजन, हमारे प्रेम की अभिव्यक्ति वचन व मौखिक नहीं परन्तु कामों और सच्चाई में हो. 19 इसी के द्वारा हमें ढ़ांढ़स मिलता है कि हम उसी सत्य के हैं. इसी के द्वारा हम परमेश्वर के सामने उन सभी विषयों में आश्वस्त हो सकेंगे. 20 जब कभी हमारा अन्तर्मन हम पर आरोप लगाता रहता है; क्योंकि परमेश्वर हमारे हृदय से बड़े हैं, वह सर्वज्ञानी हैं.
21 इसलिए प्रियजन, यदि हमारा मन हम पर आरोप न लगाए तो हम परमेश्वर के सामने निड़र बने रहते हैं 22 तथा हम उनसे जो भी विनती करते हैं, उनसे प्राप्त करते हैं क्योंकि हम उनके आदेशों का पालन करते हैं तथा उनकी इच्छा के अनुसार स्वभाव करते हैं. 23 यह परमेश्वर की आज्ञा है कि हम उनके पुत्र मसीह येशु में विश्वास करें तथा हम में आपस में प्रेम हो जैसा उन्होंने हमें आज्ञा दी है. 24 वह, जो उनके आदेशों का पालन करता है, उनमें स्थिर है और उसके भीतर उनका वास है. इसका अहसास हमें उन्हीं पवित्रात्मा द्वारा होता है, जिन्हें परमेश्वर ने हमें दिया है.
आत्माओं को परखना
4 प्रियजन, हर एक आत्मा का विश्वास न करो परन्तु आत्माओं को परख कर देखो कि वे परमेश्वर की ओर से हैं भी या नहीं, क्योंकि संसार में अनेक झूठे भविष्यद्वक्ता पवित्रात्मा के वक्ता होने का दावा करते हुए कार्य कर रहे हैं. 2 परमेश्वर के आत्मा को तुम इस प्रकार पहचान सकते हो: ऐसी हर एक आत्मा, जो परमेश्वर की ओर से है, यह स्वीकार करती है कि मसीह येशु का नीचे उतरना मनुष्य के शरीर में हुआ. 3 ऐसी हर एक आत्मा, जो मसीह येशु को स्वीकार नहीं करती परमेश्वर की ओर से नहीं है. यह मसीह-विरोधी की आत्मा है, जिसके विषय में तुमने सुना था कि वह आने पर है और अब तो वह संसार में आ ही चुकी है.
4 प्रियजन, तुम परमेश्वर के हो. तुमने झूठे भविष्यद्वक्ताओं को हराया है; श्रेष्ठ वह हैं, जो तुम्हारे अन्दर में हैं, बजाय उसके जो संसार में है. 5 वे संसार के हैं इसलिए उनकी बातचीत के विषय भी सांसारिक ही होते हैं तथा संसार उनकी बातों पर मन लगाता है. 6 हम परमेश्वर की ओर से हैं. वे जो परमेश्वर को जानते है, हमारी सुनते हैं. जो परमेश्वर का नहीं है, वह हमारी नहीं सुनता. इसी से हम सच के आत्मा तथा असच के आत्मा की पहचान कर सकते हैं.
मार्था और मरियम को धीरज
17 वहाँ पहुँच कर मसीह येशु को मालूम हुआ कि लाज़रॉस को कन्दरा-क़ब्र में रखे हुए चार दिन हो चुके है. 18 बैथनियाह नगर येरूशालेम के पास, लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर था. 19 अनेक यहूदी मार्था और मरियम के पास उनके भाई की मृत्यु पर शान्ति देने आ गए थे. 20 जैसे ही मार्था को मसीह येशु के नगर के पास होने की सूचना मिली, वह उनसे मिलने चली गई किन्तु मरियम घर में ही रही.
21 मार्था ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, यदि आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु न होती. 22 फिर भी मैं जानती हूँ कि अब भी आप परमेश्वर से जो कुछ माँगेंगे, वह आपको देंगे.”
23 मसीह येशु ने उससे कहा, “तुम्हारा भाई फिर से जीवित हो जाएगा.” 24 मार्था ने मसीह येशु से कहा, “मैं जानती हूँ. अन्तिम दिन पुनरुत्थान के समय वह फिर से जीवित हो जाएगा.”
मसीह येशु—पुनरुत्थान और जीवन
25 मसीह येशु ने उससे कहा, “मैं ही वह पुनरुत्थान और वह जीवन हूँ. जो कोई मुझ में विश्वास करता है, वह जिएगा—भले ही उसकी मृत्यु हो जाए 26 तथा वह जीवित व्यक्ति, जो मुझ में विश्वास करता है, उसकी मृत्यु कभी न होगी. क्या तुम यह विश्वास करती हो?”
27 उसने कहा, “जी हाँ, प्रभु, मुझे विश्वास है कि आप ही मसीह हैं, आप ही परमेश्वर-पुत्र हैं और आप ही वह हैं, जिनके संसार में आने के बारे में पहले से बताया गया था.”
28 यह कह कर वह लौट गई और अपनी बहन मरियम को अलग ले जा कर उसे सूचित किया, “गुरुवर आ गए हैं और तुम्हें बुला रहे हैं.” 29 यह सुन कर मरियम तत्काल मसीह येशु से मिलने निकल पड़ी.
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