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दुष्टात्माओं से छुटकारे

(मत्ती 8:28-34; लूका 8:26-39)

फिर वे झील के उस पार गिरासेनियों के देश पहुँचे। यीशु जब नाव से बाहर आया तो कब्रों में से निकल कर तत्काल एक ऐसा व्यक्ति जिस में दुष्टात्मा का प्रवेश था, उससे मिलने आया। वह कब्रों के बीच रहा करता था। उसे कोई नहीं बाँध सकता था, यहाँ तक कि जंजीरों से भी नहीं। क्योंकि उसे जब जब हथकड़ी और बेड़ियाँ डाली जातीं, वह उन्हें तोड़ देता। ज़ंजीरों के टुकड़े-टुकड़े कर देता और बेड़ियों को चकनाचूर। कोई भी उसे काबू नहीं कर पाता था। कब्रों और पहाड़ियों में रात-दिन लगातार, वह चीखता-पुकारता अपने को पत्थरों से घायल करता रहता था।

उसने जब दूर से यीशु को देखा, वह उसके पास दौड़ा आया और उसके सामने प्रणाम करता हुआ गिर पड़ा। और ऊँचे स्वर में पुकारते हुए बोला, “सबसे महान परमेश्वर के पुत्र, हे यीशु! तू मुझसे क्या चाहता है? तुझे परमेश्वर की शपथ, मेरी विनती है तू मुझे यातना मत दे।” क्योंकि यीशु उससे कह रहा था, “ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।”

तब यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?”

और उसने उसे बताया, “मेरा नाम लीजन अर्थात् सेना है क्योंकि हम बहुत से हैं।” 10 उसने यीशु से बार बार विनती की कि वह उन्हें उस क्षेत्र से न निकाले।

11 वहीं पहाड़ी पर उस समय सुअरों का एक बड़ा सा रेवड़ चर रहा था। 12 दुष्टात्माओं ने उससे विनती की, “हमें उन सुअरों में भेज दो ताकि हम उन में समा जायें।” 13 और उसने उन्हें अनुमति दे दी। फिर दुष्टात्माएँ उस व्यक्ति में से निकल कर सुअरों में समा गयीं, और वह रेवड़, जिसमें कोई दो हजार सुअर थे, ढलवाँ किनारे से नीचे की तरफ लुढ़कते-पुढ़कते दौड़ता हुआ झील में जा गिरा। और फिर वहीं डूब मरा।

14 फिर रेवड़ के रखवालों ने जो भाग खड़े हुए थे, शहर और गाँव में जा कर यह समाचार सुनाया। तब जो कुछ हुआ था, उसे देखने लोग वहाँ आये। 15 वे यीशु के पास पहुँचे और देखा कि वह व्यक्ति जिस पर दुष्टात्माएँ सवार थीं, कपड़े पहने पूरी तरह सचेत वहाँ बैठा है, और यह वही था जिस में दुष्टात्माओं की पूरी सेना समाई थी, वे डर गये। 16 जिन्होंने वह घटना देखी थी, लोगों को उसका ब्योरा देते हुए बताया कि जिसमें दुष्टात्माएँ समाई थीं, उसके साथ और सुअरों के साथ क्या बीती। 17 तब लोग उससे विनती करने लगे कि वह उनके यहाँ से चला जाये।

18 और फिर जब यीशु नाव पर चढ़ रहा था तभी जिस व्यक्ति में दुष्टात्माएँ थीं, यीशु से विनती करने लगा कि वह उसे भी अपने साथ ले ले। 19 किन्तु यीशु ने उसे अपने साथ चलने की अनुमति नहीं दी। और उससे कहा, “अपने ही लोगों के बीच घर चला जा और उन्हें वह सब बता जो प्रभु ने तेरे लिये किया है। और उन्हें यह भी बता कि प्रभु ने दया कैसे की।”

20 फिर वह चला गया और दिकपुलिस के लोगों को बताने लगा कि यीशु ने उसके लिये कितना बड़ा काम किया है। इससे सभी लोग चकित हुए।

एक मृत लड़की और रोगी स्त्री

(मत्ती 9:18-26; लूका 8:40-56)

21 यीशु जब फिर उस पार गया तो उसके चारों तरफ एक बड़ी भीड़ जमा हो गयी। वह झील के किनारे था। तभी 22 यहूदी आराधनालय का एक अधिकारी जिसका नाम याईर था वहाँ आया और जब उसने यीशु को देखा तो वह उसके पैरों पर गिर कर 23 आग्रह के साथ विनती करता हुआ बोला, “मेरी नन्हीं सी बच्ची मरने को पड़ी है, मेरी विनती है कि तू मेरे साथ चल और अपना हाथ उसके सिर पर रख जिससे वह अच्छी हो कर जीवित रहे।”

24 तब यीशु उसके साथ चल पड़ा और एक बड़ी भीड़ भी उसके साथ हो ली। जिससे वह दबा जा रहा था।

25 वहीं एक स्त्री थी जिसे बारह बरस से लगातार खून जा रहा था। 26 वह अनेक चिकित्सकों से इलाज कराते कराते बहुत दुखी हो चुकी थी। उसके पास जो कुछ था, सब खर्च कर चुकी थी, पर उसकी हालत में कोई भी सुधार नहीं आ रहा था, बल्कि और बिगड़ती जा रही थी।

27 जब उसने यीशु के बारे में सुना तो वह भीड़ में उसके पीछे आयी और उसका वस्त्र छू लिया। 28 वह मन ही मन कह रही थी, “यदि मैं तनिक भी इसका वस्त्र छू पाऊँ तो ठीक हो जाऊँगी।” 29 और फिर जहाँ से खून जा रहा था, वह स्रोत तुरंत ही सूख गया। उसे अपने शरीर में ऐसी अनुभूति हुई जैसे उसका रोग अच्छा हो गया हो। 30 यीशु ने भी तत्काल अनुभव किया जैसे उसकी शक्ति उसमें से बाहर निकली हो। वह भीड़ में पीछे मुड़ा और पूछा, “मेरे वस्त्र किसने छुए?”

31 तब उसके शिष्यों ने उससे कहा, “तू देख रहा है भीड़ तुझे चारों तरफ़ से दबाये जा रही है और तू पूछता है ‘मुझे किसने छुआ?’”

32 किन्तु वह चारों तरफ देखता ही रहा कि ऐसा किसने किया। 33 फिर वह स्त्री, यह जानते हुए कि उसको क्या हुआ है, भय से काँपती हुई सामने आई और उसके चरणों पर गिर कर सब सच सच कह डाला। 34 फिर यीशु ने उससे कहा, “बेटी, तेरे विश्वास ने तुझे बचाया है। चैन से जा और अपनी बीमारी से बची रह।”

35 वह अभी बोल ही रहा था कि यहूदी आराधनालय के अधिकारी के घर से कुछ लोग आये और उससे बोले, “तेरी बेटी मर गयी। अब तू गुरु को नाहक कष्ट क्यों देता है?”

36 किन्तु यीशु ने, उन्होंने जो कहा था सुना और यहूदी आराधनालय के अधिकारी से वह बोला, “डर मत, बस विश्वास कर।”

37 फिर वह सब को छोड़, केवल पतरस, याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को साथ लेकर 38 यहूदी आराधनालय के अधिकारी के घर गया। उसने देखा कि वहाँ खलबली मची है; और लोग ऊँचे स्वर में रोते हुए विलाप कर रहे हैं। 39 वह भीतर गया और उनसे बोला, “यह रोना बिलखना क्यों है? बच्ची मरी नहीं है; वह सो रही है।” 40 इस पर उन्होंने उसकी हँसी उड़ाई।

फिर उसने सब लोगों को बाहर भेज दिया और बच्ची के पिता, माता और जो उसके साथ थे, केवल उन्हें साथ रखा। 41 उसने बच्ची का हाथ पकड़ा और कहा, “तलीता, कूमी।” (अर्थात् “छोटी बच्ची, मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ी हो जा।”) 42 फिर छोटी बच्ची तत्काल खड़ी हो गयी और इधर उधर चलने फिरने लगी। (वह लड़की बारह साल की थी।) लोग तुरन्त आश्चर्य से भर उठे। 43 यीशु ने उन्हें बड़े आदेश दिये कि किसी को भी इसके बारे में पता न चले। फिर उसने उन लोगों से कहा कि वे उस बच्ची को खाने को कुछ दें।

गिरासेनॉस का प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति

तब वे झील के दूसरे तट पर गिरासेनॉस क्षेत्र में आए. मसीह येशु के नाव से नीचे उतरते ही एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी क़ब्र से निकल कर उनके पास आया. वह क़ब्रों के मध्य ही रहा करता था. अब कोई भी उसे साँकलों तथा बेड़ियों से भी बान्ध पाने में समर्थ न था. बहुधा उसे बेड़ियों तथा साँकलों में बांधे जाने के प्रयास किए गए किन्तु वह साँकलों को तोड़ देता तथा बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर डालता था. अब किसी में इतनी क्षमता न थी कि उसे वश में कर सके. रात-दिन क़ब्रों के मध्य तथा पहाड़ियों में वह चिल्लाता रहता था तथा स्वयं को पत्थर मार-मार कर घायल कर लेता था.

दूर से ही जब उसने मसीह येशु को देखा, वह दौड़ कर उनके पास आया, अपना सिर झुकाया और उसमें से उँची आवाज़ में ये शब्द सुनाई दिए, “परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र येशु! मेरा आपका कोई लेन-देन नहीं. आपको परमेश्वर की शपथ, मुझे कोई कष्ट न दें,” क्योंकि मसीह येशु उसे आज्ञा दे चुके थे, “ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ!”

तब मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या नाम है तेरा?”

प्रेत ने उत्तर दिया, “सेना—क्योंकि हम बहुत हैं.” 10 प्रेत मसीह येशु से विनती करने लगा कि वह उसे उस प्रदेश से बाहर न भेजें.

11 वहीं पहाड़ी पर सूअरों का एक विशाल झुण्ड चर रहा था. 12 प्रेत-समूह ने मसीह येशु से विनती की, “हमें इन सूअरों में भेज दीजिए कि हम उनमें जा बसें.” 13 मसीह येशु ने उन्हें यह आज्ञा दे दी. वे प्रेत बाहर निकल कर उन सूअरों में प्रवेश कर गए. लगभग दो हज़ार सूअरों का वह झुण्ड पहाड़ की तीव्र ढलान पर तेज़ गति से दौड़ता हुआ झील में जा डूबा.

14 भयभीत रखवाले भाग गए तथा नगर और पास के क्षेत्रों में जा कर इस घटना के विषय में बताने लगे. नगरवासी, जो कुछ हुआ था, उसे देखने वहाँ आने लगे. 15 जब वे मसीह येशु के पास पहुँचे, उन्होंने देखा कि वह प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति वस्त्र धारण किए हुए सचेत स्थिति में वहाँ बैठा था. यह वही व्यक्ति था जिसमें प्रेतों की सेना पैठी थी. यह देख वे डर गए. 16 सारे घटनाक्रम को देखने वाले लोगों ने उनके सामने इसका बयान किया कि प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति तथा सूअरों के साथ क्या-क्या हुआ है. 17 इस पर वे मसीह येशु से विनती करने लगे कि वह उनके क्षेत्र से बाहर चले जाएँ.

18 जब मसीह येशु नाव पर सवार हो रहे थे, प्रेतों से विमुक्त हुआ व्यक्ति मसीह येशु से विनती करने लगा कि उसे उनके साथ ले लिया जाए. 19 मसीह येशु ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी परन्तु उसे आदेश दिया, “अपने परिजनों के पास लौट जाओ और उन्हें बताओ कि तुम्हारे लिए प्रभु ने कैसे-कैसे आश्चर्यकाम किए हैं तथा तुम पर उनकी कैसी कृपादृष्टि हुई है.” 20 वह देकापोलीस नगर में गया और उन कामों का वर्णन करने लगा, जो मसीह येशु ने उसके लिए किए थे. यह सुन सभी चकित रह गए.

तथा मरी हुई लड़की का जी उठना

(मत्ति 9:18-26; लूकॉ 8:40-56)

21 मसीह येशु दोबारा झील के दूसरे तट पर चले गए. एक बड़ी भीड़ उनके पास इकट्ठी हो गयी. मसीह येशु झील तट पर ही रहे. 22 स्थानीय यहूदी सभागृह का एक अधिकारी, जिसका नाम याइरॉस था, वहाँ आया. यह देख कि वह कौन हैं, वह उनके चरणों पर गिर पड़ा. 23 बड़ी ही विनती के साथ उसने मसीह येशु से कहा, “मेरी बेटी मरने पर है. कृपया चलिए और उस पर हाथ रख दीजिए कि वह स्वस्थ हो जाए और जीवित रहे.” 24 मसीह येशु उसके साथ चले गए.

बड़ी भीड़ भी उनके पीछे-पीछे चल रही थी और लोग उन पर गिरे पड़ रहे थे.

25 एक स्त्री बारह वर्ष से रक्तस्राव से पीड़ित थी. 26 अनेक चिकित्सकों के हाथों उसने अनेक पीड़ाएं सही थीं. इसमें वह अपना सब कुछ व्यय कर चुकी थी फिर भी इससे उसे लाभ के बदले हानि ही उठानी पड़ी थी. 27 मसीह येशु के विषय में सुन कर उसने भीड़ में उनके पीछे आ कर उनका वस्त्र छुआ. 28 उसका यह विश्वास था: “यदि मैं उनके वस्त्र को छू भर लूँ तो मैं स्वस्थ हो जाऊँगी.” 29 उसी क्षण उसका रक्तस्राव थम गया. स्वयं उसे अपने शरीर में यह मालूम हो गया कि वह अपनी पीड़ा से ठीक हो चुकी है.

30 उसी क्षण मसीह येशु को भी यह आभास हुआ कि उनमें से सामर्थ्य निकली है. भीड़ में ही उन्होंने मुड़ कर प्रश्न किया, “कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है?”

31 शिष्यों ने उनसे कहा, “आप तो देख ही रहे हैं कि किस प्रकार भीड़ आप पर गिरी पड़ रही है और आप प्रश्न कर रहे हैं, ‘कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है’!”

32 प्रभु की दृष्टि उसे खोजने लगी, जिसने यह किया था. 33 वह स्त्री यह जानते हुए कि उसके साथ क्या हुआ है, भय से काँपती हुई उनके चरणों पर आ गिरी और उन पर सारी सच्चाई प्रकट कर दी. 34 मसीह येशु ने उस स्त्री से कहा, “पुत्री, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है. शान्ति में विदा हो जाओ और स्वस्थ रहो.”

35 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, याइरॉस के घर से आए कुछ लोगों ने यह सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है. अब गुरुवर को कष्ट देने का क्या लाभ?”

36 मसीह येशु ने यह सुन उस यहूदी सभागृह अधिकारी से कहा, “भयभीत न हो—केवल विश्वास करो.”

37 उन्होंने पेतरॉस, याक़ोब तथा याक़ोब के भाई योहन के अतिरिक्त अन्य किसी को भी अपने साथ आने की अनुमति न दी 38 और ये सब यहूदी सभागृह अधिकारी के घर पर पहुँचे. मसीह येशु ने देखा कि वहाँ शोर मचा हुआ है तथा लोग ऊँची आवाज़ में रो-पीट रहे हैं. 39 घर में प्रवेश कर मसीह येशु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “यह शोर और रोना-पीटना क्यों! बच्ची की मृत्यु नहीं हुई है—वह केवल सो रही है.” 40 यह सुन वे मसीह येशु का ठठ्ठा करने लगे, किन्तु मसीह येशु ने उन सभी को वहाँ से बाहर निकाल बच्ची के पिता तथा अपने साथियों को साथ ले उस कक्ष में प्रवेश किया, जहाँ वह बालिका थी.

41 वहाँ उन्होंने बालिका का हाथ पकड़ कर उससे कहा, “तालीथा कोऊम” अर्थात् बालिके, उठो! 42 उसी क्षण वह उठ खड़ी हुई और चलने-फिरने लगी. इस पर वे सभी चकित रह गए. बालिका की आयु बारह वर्ष थी. 43 मसीह येशु ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिए कि इस घटना के विषय में कोई भी जानने न पाए और फिर उनसे कहा कि उस बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए.