Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
1 अरे ओ सब राष्ट्रों यहोवा कि प्रशंसा करो।
अरे ओ सब लोगों यहोवा के गुण गाओ।
2 परमेश्वर हमें बहुत प्रेम करता है!
परमेश्वर हमारे प्रति सदा सच्चा रहेगा!
यहोवा के गुण गाओ!
आशा के प्रतिज्ञाएं
30 यह सन्देश यहोवा का है जो यिर्मयाह को मिले। 2 इस्राएल के लोगों के परमेश्वर यहोवा ने यह कहा, “यिर्मयाह, मैंने जो सन्देश दिये है, उन्हें एक पुस्तक में लिख डालो। इस पुस्तक को अपने लिये लिखो।” 3 यह सन्देश यहोवा का है। “यह करो, क्योंकि वे दिन आएंगे जब मैं अपने लोगों इस्राएल और यहूदा को देश निकाले से वापस लाऊँगा।” यह सन्देश यहोवा का है। “मैं उन लोगों को उस देश में वापस लाऊँगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था। तब मेरे लोग उस देश को फिर अपना बनायेंगे।”
4 यहोवा ने यह सन्देश इस्राएल और यहूदा के लोगों के बारे में दिया। 5 यहोवा ने जो कहा, वह यह है:
“हम भय से रोते लोगों का रोना सुनते हैं!
लोग भयभीत हैं! कहीं शान्ति नहीं!
6 “यह प्रश्न पूछो इस पर विचार करो:
क्या कोई पुरुष बच्चे को जन्म दे सकता है निश्चय ही नही!
तब मैं हर एक शक्तिशाली व्यक्ति को पेट पकड़े क्यों देखता हूँ
मानों वे प्रसव करने वाली स्त्री की पीड़ा सह रहे हो
क्यों हर एक व्यक्ति का मुख शव सा सफेद हो रहा है
क्यों? क्योंकि लोग अत्यन्त भयभीत हैं।
7 “यह याकूब के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण समय है।
यह बड़ी विपत्ति का समय है।
इस प्रकार का समय फिर कभी नहीं आएगा।
किन्तु याकूब बच जायेगा।”
8 यह सन्देश सर्वशक्तिमान यहोवा का है: “उस समय, मैं इस्राएल और यहूदा के लोगों की गर्दन से जुवे को तोड़ डालूँगा और तुम्हें जकड़ने वाली रस्सियों को मैं तोड़ दूँगा। विदेशों के लोग मेरे लोगों को फिर कभी दास होने के लिये विवश नहीं करेंगे। 9 इस्राएल और यहूदा के लोग अन्य देशों की भी सेवा नहीं करेंगे। नहीं, वे तो अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करेंगे और वे अपने राजा दाऊद की सेवा करेंगे। मैं उस राजा को उनके पास भेजूँगा।
10 “अत: मेरे सेवक याकूब डरो नहीं।”
यह सन्देश यहोवा का है।
“इस्राएल, डरो नहीं।
मैं उस अति दूर के स्थान से तुम्हें बचाऊँगा।
तुम उस बहुत दूर के देश में बन्दी हो,
किन्तु मैं तुम्हारे वंशजों को
उस देश से बचाऊँगा।
याकूब फिर शान्ति पाएगा।
याकूब को लोग तंग नहीं करेंगे।
मेरे लोगों को भयभीत करने वाला कोई शत्रु नहीं होगा।
11 इस्राएल और यहूदा के लोगों, मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
यह सन्देश यहोवा का है, “और मैं तुम्हें बचाऊँगा।
मैंने तुम्हें उन राष्ट्रों में भेजा।
किन्तु मैं उन सभी राष्ट्रों को पूरी तरह नष्ट कर दूँगा।
यह सत्य है कि मैं उन राष्ट्रों को नष्ट करुँगा।
किन्तु मैं तुम्हें नष्ट नहीं करुँगा।
तुम्हें उन बुरे कामों का जरूर दण्ड मिलेगा जिन्हें तुमने किये।
किन्तु मैं तुम्हें अच्छी प्रकार से अनुशासित करूँगा।”
12 यहोवा कहता है, “इस्राएल और यहूदा के तुम लोगों को एक घाव
है जो अच्छा नहीं किया जा सकता।
तुम्हें एक चोट है जो अच्छी नहीं हो सकती।
13 तुम्हारे घावों को ठीक करने वाला कोई व्यक्ति नहीं है।
अत: तुम स्वस्थ नहीं हो सकते।
14 तुम अनेक राष्ट्रों के मित्र बने हो,
किन्तु वे राष्ट्र तुम्हारी परवाह नहीं करते।
तुम्हारे मित्र तुम्हें भूल गए हैं।
मैंने तुम्हें शत्रु जैसी चोट पहुँचाई।
मैंने तुम्हें कठोर दण्ड दिया।
मैंने यह तुम्हारे बड़े अपराध के लिये किया।
15 इस्राएल और यहूदा तुम अपने घाव के बारे में क्यों चिल्ला रहे हो तुम्हारा घाव कष्टकर है
और इसका कोई उपचार नहीं है।
मैंने अर्थात् यहोवा ने तुम्हारे बड़े अपराधों के कारण तुम्हें यह सब किया।
मैंने ये चीजें तुम्हारे अनेक पापों के कारण कीं।
16 उन राष्ट्रों ने तुम्हें नष्ट किया।
किन्तु अब वे राष्ट्र नष्ट किये जायेंगे।
इस्राएल और यहूदा तुम्हारे शत्रु बन्दी होंगे।
उन लोगों ने तुम्हारी चीज़ें चुराई।
किन्तु अन्य लोग उनकी चीज़ें चुराएंगे।
उन लोगों ने तुम्हारी चीज़ें युद्ध में लीं।
किन्तु अन्य लोग उनसे चीज़ें युद्ध में लेंगे।
17 मैं तुम्हारे स्वास्थ को लौटाऊँगा और मैं तुम्हारे घावों को भरूँगा।”
यह सन्देश यहोवा का है।
“क्यों क्योंकि अन्य लोगों ने कहा कि तुम जाति—बहिष्कृत हो।
उन लोगों ने कहा, ‘कोई भी सिय्योन की परवाह नहीं करता।’”
5 इस पर जो सिंहासन पर बैठा था, वह बोला, “देखो, मैं सब कुछ नया किए दे रहा हूँ।” उसने फिर कहा, “इसे लिख ले क्योंकि ये वचन विश्वास करने योग्य हैं और सत्य हैं।”
6 वह मुझसे फिर बोला, “सब कुछ पूरा हो चुका है। मैं ही अल्फा हूँ और मैं ही ओमेगा हूँ। मैं ही आदि हूँ और मैं ही अन्त हूँ। जो भी प्यासा है मैं उसे जीवन-जल के स्रोत से सेंत-मेंत में मुक्त भाव से जल पिलाऊँगा। 7 जो विजयी होगा, उस सब कुछ का मालिक बनेगा। मैं उसका परमेश्वर होऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा। 8 किन्तु कायरों अविश्वासियों, दुर्बुद्धियों, हत्यारों, व्यभिचारियों, जादूटोना करने वालों मूर्तिपूजकों और सभी झूठ बोलने वालों को भभकती गंधक की जलती झील में अपना हिस्सा बँटाना होगा। यही दूसरी मृत्यु है।”
9 फिर उन सात दूतों में से जिनके पास सात अंतिम विनाशों से भरे कटोरे थे, एक आगे आया और मुझसे बोला, “यहाँ आ। मैं तुझे वह दुल्हिन दिखा दूँ जो मेमने की पत्नी है।” 10 अभी मैं आत्मा के आवेश में ही था कि वह मुझे एक विशाल और ऊँचे पर्वत पर ले गया। फिर उसने मुझे यरूशलेम की पवित्र नगरी का दर्शन कराया। वह परमेश्वर की ओर से आकाश से नीचे उतर रही थी।
11 वह परमेश्वर की महिमा से मण्डित थी। वह सर्वथा निर्मल यशब नामक महामूल्यवान रत्न के समान चमक रही थी। 12 नगरी के चारों ओर एक विशाल ऊँचा परकोटा था जिसमें बारह द्वार थे। उन बारहों द्वारों पर बारह स्वर्गदूत थे। तथा बारहों द्वारों पर इस्राएल के बारह कुलों के नाम अंकित थे। 13 इनमें से तीन द्वार पूर्व की ओर थे, तीन द्वार उत्तर की ओर, तीन द्वार दक्षिण की ओर, और तीन द्वार पश्चिम की ओर थे। 14 नगर का परकोटा बारह नीवों पर बनाया गया था तथा उन पर मेमने के बारह प्रेरितों के नाम अंकित थे।
15 जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था, उसके पास सोने से बनी नापने की एक छड़ी थी जिससे वह उस नगर को, उसके द्वारों को और उसके परकोटे को नाप सकता था। 16 नगर को वर्गाकार में बसाया गया था। यह जितना लम्बा था उतना ही चौड़ा था। उस स्वर्गदूत ने उस छड़ी से उस नगरी को नापा। वह कोई बारह हज़ार स्टोडिया पायी गयी। उसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई एक जैसी थी। 17 स्वर्गदूत ने फिर उसके परकोटे को नापा। वह कोई एक सौ चवालीस हाथ था। उसे मनुष्य के हाथों की लम्बाई से नापा गया था जो हाथ स्वर्गदूत का भी हाथ है। 18 नगर का परकोटा यशब नामक रत्न का बना था तथा नगर को काँच के समान चमकते शुद्ध सोने से बनाया गया था।
19 नगर के परकोटे की नीवें हर प्रकार के बहुमूल्य रत्नों से सजाई गयी थी। नींव का पहला पत्थर यशब का बना था, दूसरी नीलम से, तीसरी स्फटिक से, चौथी पन्ने से, 20 पाँचवीं गोमेद से, छठी मानक से, सातवीं पीत मणि से, आठवीं पेरोज से, नवीं पुखराज से, दसवीं लहसनिया से, ग्यारहवीं धूम्रकांत से और बारहवीं चन्द्रकाँत मणि से बनी थी। 21 बारहों द्वार बारह मोतियों से बने थे, हर द्वार एक-एक मोती से बना था। नगर की गलियाँ स्वच्छ काँच जैसे शुद्ध सोने की बनी थीं।
22 नगर में मुझे कोई मन्दिर दिखाई नहीं दिया। क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर और मेमना ही उसके मन्दिर थे। 23 उस नगर को किसी सूर्य या चन्द्रमा की कोई आवश्यकता नहीं है कि वे उसे प्रकाश दें, क्योंकि वह तो परमेश्वर के तेज से आलोकित था। और मेमना ही उस नगर का दीपक है।
24 सभी जातियों के लोग इसी दीपक के प्रकाश के सहारे आगे बढ़ेंगे। और इस धरती के राजा अपनी भव्यता को इस नगर में लायेंगे। 25 दिन के समय इसके द्वार कभी बंद नहीं होंगे और वहाँ रात तो कभी होगी ही नहीं। 26 जातियों के कोष और धन सम्पत्ति को उस नगर में लाया जायेगा। 27 कोई अपवित्र वस्तु तो उसमें प्रवेश तक नहीं कर पायेगी और न ही लज्जापूर्ण कार्य करने वाले और झूठ बोलने वाले उसमें प्रवेश कर पाएँगे उस नगरी में तो प्रवेश बस उन्हीं को मिलेगा जिनके नाम मेमने की जीवन की पुस्तक में लिखे हैं।
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