Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
4 याकूब के परिवार, यहोवा का सन्देश सुनो।
इस्राएल के तुम सभी परिवार समूहो, सन्देश सुनो।
5 जो यहोवा कहता है, वह यह है:
“क्या तुम समझते हो कि, मैं तुम्हारे पूर्वजों का हितैषी नहीं था?
तब वे क्यों मुझसे दूर हो गए तुम्हारे पूर्वजों ने निरर्थक हो गये।
6 तुम्हारे पूर्वजों ने यह नहीं कहा,
‘यहोवा ने हमें मिस्र से निकाला।
यहोवा ने मरुभूमि में हमारा नेतृत्व किया।
यहोवा हमे सूखे चट्टानी प्रदेश से लेकर आया,
यहोवा ने हमें अन्धकारपूर्ण और भयपूर्ण देशों में राह दिखाई।
कोई भी लोग वहाँ नहीं रहते कोई भी लोग उस देश से यात्रा नहीं करते।
लेकिन यहोवा ने उस प्रदेश में हमारा नेतृत्व किया।
अत: वह यहोवा अब कहाँ हैं?’
7 “यहोवा कहता है, मैं तुम्हें अनेक अच्छी चीज़ों से भरे उत्तम देश में लाया।
मैंने यह किया जिससे तुम वहाँ उगे हुये फल और पैदावार को खा सके।
किन्तु तुम आए और मेरे देश को तुमने ‘गन्दा’ किया।
मैंने वह देश तुम्हें दिया था,
किन्तु तुमने उसे बुरा स्थान बनाया।”
8 “याजकों ने नहीं पूछा, ‘यहोवा कहाँ हैं’ व्यवस्था को जाननेवाले लोगों ने मुझको जानना नहीं चाहा।
इस्राएल के लोगों के प्रमुख मेरे विरुद्ध चले गए।
नबियों ने झूठे बाल देवता के नाम भविष्यवाणी की।
उन्होंने निरर्थक देव मूर्तियों की पूजा की।”
9 यहोवा कहता है, “अत: मैं अब तुम्हें फिर दोषी करार दूँगा,
और तुम्हारे पौत्रों को भी दोषी ठहराऊँगा।
10 समुद्र पार कित्तियों के द्वीपों को जाओ
और देखो किसी को केदार प्रदेश को भेजो
और उसे ध्यान से देखने दो।
ध्यान से देखो क्या कभी किसी ने ऐसा काम किया:
11 क्या किसी राष्ट्र के लोगों ने कभी अपने पुराने देवताओं को नये देवता से बदला है नहीं!
निसन्देह उनके देवता वास्तव में देवता हैं ही नहीं।
किन्तु मेरे लोगों ने अपने यशस्वी परमेश्वर को निरर्थक देव मूर्तियों से बदला हैं।
12 “आकाश, जो हुआ है उससे अपने हृदय को आघात पहुँचने दो!
भय से काँप उठो!”
यह सन्देश यहोवा का था।
13 “मेरे लोगों ने दो पाप किये हैं।
उन्होंने मुझे छोड़ दिया (मैं ताजे पानी का सोता हूँ।)
और उन्होंने अपने पानी के निजी हौज खोदे हैं।
(वे अन्य देवताओं के भक्त बने हैं।)
किन्तु उनके हौज टूटे हैं।
उन हौजों में पानी नहीं रुकेगा।
गित्तीथ के संगत पर संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक पद।
1 परमेश्वर जो हमारी शक्ति है आनन्द के साथ तुम उसके गीत गाओ,
तुम उसका जो इस्राएल का परमेश्वर है, जय जयकार जोर से बोलो।
10 मैं, यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ।
मैं वही परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र से बाहर लाया था।
हे इस्राएल, तू अपना मुख खोल,
मैं तुझको निवाला दूँगा।
11 “किन्तु मेरे लोगों ने मेरी नहीं सुनी।
इस्राएल ने मेरी आज्ञा नहीं मानी।
12 इसलिए मैंने उन्हें वैसा ही करने दिया, जैसा वे करना चाहते थे।
इस्राएल ने वो सब किया जो उन्हें भाता था।
13 भला होता मेरे लोग मेरी बात सुनते, और काश! इस्राएल वैसा ही जीवन जीता जैसा मैं उससे चाहता था।
14 तब मैं फिर इस्राएल के शत्रुओं को हरा देता।
मैं उन लोगों को दण्ड देता जो इस्राएल को दु:ख देते।
15 यहोवा के शत्रु डर से थर थर काँपते हैं।
वे सदा सर्वदा को दण्डित होंगे।
16 परमेश्वर निज भक्तों को उत्तम गेहूँ देगा।
चट्टान उन्हें शहद तब तक देगी जब तक तृप्त नहीं होंगे।”
सन्तुष्टता की आराधना
13 भाई के समान परस्पर प्रेम करते रहो। 2 अतिथियों का सत्कार करना मत भूलो, क्योंकि ऐसा करतेहुए कुछ लोगों ने अनजाने में ही स्वर्गदूतों का स्वागत-सत्कार किया है। 3 बंदियों को इस रूप में याद करो जैसे तुम भी उनके साथ बंदी रहे हो। जिनके साथ बुरा व्यवहार हुआ है उनकी इस प्रकार सुधि लो जैसे मानो तुम स्वयं पीड़ित हो।
4 विवाह का सब को आदर करना चाहिए। विवाह की सेज को पवित्र रखो। क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों और दुराचारियों को दण्ड देगा। 5 अपने जीवन को धन के लालच से मुक्त रखो। जो कुछ तुम्हारे पास है, उसी में संतोष करो क्योंकि परमेश्वर ने कहा है:
“मैं तुझको कभी नहीं छोड़ूँगा;
मैं तुझे कभी नहीं तजूँगा।”(A)
6 इसलिए हम विश्वास के साथ कहते हैं:
“प्रभु मेरी सहाय करता है;
मैं कभी भयभीत न बनूँगा।
कोई मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?”(B)
7 अपने मार्ग दर्शकों को याद रखो जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है। उनकी जीवन-विधि के परिणाम पर विचार करो तथा उनके विश्वास का अनुसरण करो। 8 यीशु मसीह कल भी वैसा ही था, आज भी वैसा ही है और युग-युगान्तर तक वैसा ही रहेगा।
15 अतः आओ हम यीशु के द्वारा परमेश्वर को स्तुति रूपी बलि अर्पित करें जो उन होठों का फल है जिन्होंने उसके नाम को पहचाना है। 16 तथा नेकी करना और अपनी वस्तुओं को औरों के साथ बाँटना मत भूलो। क्योंकि परमेश्वर ऐसी ही बलियों से प्रसन्न होता है।
क्या सब्त के दिन उपचार उचित है?
14 एक बार सब्त के दिन प्रमुख फरीसियों में से किसी के घर यीशु भोजन पर गया। उधर वे बड़ी निकटता से उस पर आँख रखे हुए थे।
अपने को महत्त्व मत दो
7 क्योंकि यीशु ने यह देखा कि अतिथि जन अपने लिये बैठने को कोई सम्मानपूर्ण स्थान खोज रहे थे, सो उसने उन्हें एक दृष्टान्त कथा सुनाई। वह बोला: 8 “जब तुम्हें कोई विवाह भोज पर बुलाये तो वहाँ किसी आदरपूर्ण स्थान पर मत बैठो। क्योंकि हो सकता है वहाँ कोई तुमसे अधिक बड़ा व्यक्ति उसके द्वारा बुलाया गया हो। 9 फिर तुम दोनों को बुलाने वाला तुम्हारे पास आकर तुमसे कहेगा, ‘अपना यह स्थान इस व्यक्ति को दे दो।’ और फिर लज्जा के साथ तुम्हें सबसे नीचा स्थान ग्रहण करना पड़ेगा।
10 “सो जब तुम्हे बुलाया जाता है तो जाकर सबसे नीचे का स्थान ग्रहण करो जिससे जब तुम्हें आमंत्रित करने वाला आएगा तो तुमसे कहेगा, ‘हे मित्र, उठ ऊपर बैठ।’ फिर उन सब के सामने, जो तेरे साथ वहाँ अतिथि होंगे, तेरा मान बढ़ेगा। 11 क्योंकि हर कोई जो अपने आपको उठायेगा, उसे नीचा किया जायेगा और जो अपने आपको नीचा बनाएगा, उसे उठाया जायेगा।”
प्रतिफल
12 फिर जिसने उसे आमन्त्रित किया था, वह उससे बोला, “जब कभी तू कोई दिन या रात का भोज दे तो अपने मित्रों, भाई बंधों, संबधियों या धनी मानी पड़ोसियों को मत बुला क्योंकि बदले में वे तुझे बुलायेंगे और इस प्रकार तुझे उसका फल मिल जायेगा। 13 बल्कि जब तू कोई भोज दे तो दीन दुखियों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को बुला। 14 फिर क्योंकि उनके पास तुझे वापस लौटाने को कुछ नहीं है सो यह तेरे लिए आशीर्वाद बन जायेगा। इसका प्रतिफल तुझे धर्मी लोगों के जी उठने पर दिया जायेगा।”
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