Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
गित्तीथ के संगत पर संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक पद।
1 परमेश्वर जो हमारी शक्ति है आनन्द के साथ तुम उसके गीत गाओ,
तुम उसका जो इस्राएल का परमेश्वर है, जय जयकार जोर से बोलो।
10 मैं, यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ।
मैं वही परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र से बाहर लाया था।
हे इस्राएल, तू अपना मुख खोल,
मैं तुझको निवाला दूँगा।
11 “किन्तु मेरे लोगों ने मेरी नहीं सुनी।
इस्राएल ने मेरी आज्ञा नहीं मानी।
12 इसलिए मैंने उन्हें वैसा ही करने दिया, जैसा वे करना चाहते थे।
इस्राएल ने वो सब किया जो उन्हें भाता था।
13 भला होता मेरे लोग मेरी बात सुनते, और काश! इस्राएल वैसा ही जीवन जीता जैसा मैं उससे चाहता था।
14 तब मैं फिर इस्राएल के शत्रुओं को हरा देता।
मैं उन लोगों को दण्ड देता जो इस्राएल को दु:ख देते।
15 यहोवा के शत्रु डर से थर थर काँपते हैं।
वे सदा सर्वदा को दण्डित होंगे।
16 परमेश्वर निज भक्तों को उत्तम गेहूँ देगा।
चट्टान उन्हें शहद तब तक देगी जब तक तृप्त नहीं होंगे।”
यहूदा विश्वासयोग्य नहीं रहा
2 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यहोवा का सन्देश यह था: 2 “यिर्मयाह, जाओ और यरूशलेम के लोगों को सन्देश दो। उनसे कहो:
“जिस समय तुम नव राष्ट्र थे, तुम मेरे विश्वासयोग्य थे।
तुमने मेरा अनुगमन नयी दुल्हन सा किया।
तुमने मेरा अनुगमन मरुभूमि में से होकर किया, उस प्रदेश में अनुगमन किया जिसे कभी कृषि भूमि न बनाया गया था।
3 इस्राएल के लोग यहोवा को एक पवित्र भेंट थे।
वे यहोवा द्वारा उतारे गये प्रथम फल थे।
इस्राएल को चोट पहुँचाने का प्रयत्न करने वाले हर एक लोग अपराधी निर्णीत किये गए थे।
उन बुरे लोगों पर बुरी आपत्तियाँ आई थीं।”
यह सन्देश यहोवा का था।
14 “क्या इस्राएल के लोग दास हो गए हैं
ल के लोगों की सम्पत्ति अन्य लोगों ने क्यों ले ली
15 जवान सिंह (शत्रु) इस्राएल राष्ट्र पर दहाड़ते हैं, गुरते हैं।
सिंहों ने इस्राएल के लोगों का देश उजाड़ दिया हैं।
इस्राएल के नगर जला दिये गए हैं।
उनमें कोई भी नहीं रह गया है।
16 नोप और तहपन्हेस नगरों के लोगों ने तुम्हारे सिर के शीर्ष को कुचल दिया है।
17 यह परेशानी तुम्हारे अपने दोष के कारण है।
तुम अपने यहोवा परमेश्वर से विमुख हो गए, जबकि वह सही दिशा में तुम्हें ले जा रहा था।
18 यहूदा के लोगों, इसके बारे में सोचो:
क्या उसने मिस्र जाने में सहायता की क्या इसने नील नदी का पानी पीने में सहायता की नहीं!
क्या इसने अश्शूर जाने में सहायता की क्या इसने परात नदी का जल पीने में सहायता की नहीं!
19 तुमने बुरे काम किये, और वे बुरी चीजें तुम्हें केवल दण्ड दिलाएंगी।
विपत्तियाँ तुम पर टूट पड़ेंगी और ये विपत्तियाँ तुम्हें पाठ पढ़ाएंगी।
इस विषय में सोचो: तब तुम यह समझोगे कि अपने परमेश्वर से विमुख हो जाना कितना बुरा है।
मुझसे न डरना बुरा है।”
यह सन्देश मेरे स्वामी सर्वशक्तिमान यहोवा का था।
20 “यहूदा बहुत पहले तुमने अपना जुआ फेंक दिया था।
तुमने वह रस्सियाँ तोड़ फेंकी जिसे मैं तुम्हें अपने पास रखने में काम में लाता था।
तुमने मुझसे कहा, ‘मै आपकी सेवा नहीं करूँगा!’
सच्चाई यह है कि तुम वेश्या की तरह हर एक ऊँची पहाड़ी पर
और हर एक हरे पेड़ के नीचे लेटे और काम किये।
21 यहूदा, मैंने तुम्हें विशेष अंगूर की बेल की तरह रोपा।
तुम सभी अच्छे बीज के समान थे।
तुम उस भिन्न बेल में कैसे बदले
जो बुरे फल देती है
22 यदि तुम अपने को ल्ये से भी धोओ,
बहुत साबुन भी लगाओ,
तो भी मैं तुम्हारे दोष के दाग को देख सकता हूँ।”
यह सन्देश परमेश्वर यहोवा का था।
एक माँ का अपने बच्चों के लिए आग्रह
(मरकुस 10:35-45)
20 फिर जब्दी के बेटों की माँ अपने बेटों समेत यीशु के पास पहुँची और उसने झुक कर प्रार्थना करते हुए उससे कुछ माँगा।
21 यीशु ने उससे पूछा, “तू क्या चाहती है?”
वह बोली, “मुझे वचन दे कि मेरे ये दोनों बेटे तेरे राज्य में एक तेरे दाहिनी ओर और दूसरा तेरे बाई ओर बैठे।”
22 यीशु ने उत्तर दिया, “तुम नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम यातनाओं का वह प्याला पी सकते हो, जिसे मैं पीने वाला हूँ?”
उन्होंने उससे कहा, “हाँ, हम पी सकते हैं!”
23 यीशु उनसे बोला, “निश्चय ही तुम वह प्याला पीयोगे। किन्तु मेरे दाएँ और बायें बैठने का अधिकार देने वाला मैं नहीं हूँ। यहाँ बैठने का अधिकार तो उनका है, जिनके लिए यह मेरे पिता द्वारा सुरक्षित किया जा चुका है।”
24 जब बाकी दस शिष्यों ने यह सुना तो वे उन दोनों भाईयों पर बहुत बिगड़े। 25 तब यीशु ने उन्हें अपने पास बुलाकर कहा, “तुम जानते हो कि गैर यहूदी राजा, लोगों पर अपनी शक्ति दिखाना चाहते हैं और उनके महत्वपूर्ण नेता, लोगों पर अपना अधिकार जताना चाहते हैं। 26 किन्तु तुम्हारे बीच ऐसा नहीं होना चाहिये। बल्कि तुम में जो बड़ा बनना चाहे, तुम्हारा सेवक बने। 27 और तुम में से जो कोई पहला बनना चाहे, उसे तुम्हारा दास बनना होगा। 28 तुम्हें मनुष्य के पुत्र जैसा ही होना चाहिये जो सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के छुटकारे के लिये अपने प्राणों की फिरौती देने आया है।”
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