Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
1 हे यहोवा, मुझको तेरा भरोसा है,
इसलिए मैं कभी निराश नहीं होऊँगा।
2 अपनी नेकी से तू मुझको बचायेगा। तू मुझको छुड़ा लेगा।
मेरी सुन। मेरा उद्धार कर।
3 तू मेरा गढ़ बन।
सुरक्षा के लिए ऐसा गढ़ जिसमें मैं दौड़ जाऊँ।
मेरी सुरक्षा के लिए तू आदेश दे, क्योंकि तू ही तो मेरी चट्टान है; मेरा शरणस्थल है।
4 मेरे परमेश्वर, तू मुझको दुष्ट जनों से बचा ले।
तू मुझको क्रूरों कुटिल जनों से छुड़ा ले।
5 मेरे स्वामी, तू मेरी आशा है।
मैं अपने बचपन से ही तेरे भरोसे हूँ।
6 जब मैं अपनी माता के गर्भ में था, तभी से तेरे भरोसे था।
जिस दिन से मैंने जन्म धारण किया, मैं तेरे भरोसे हूँ।
मैं तेरी प्रर्थना सदा करता हूँ।
20 यहोवा कहता है, “तुम शबा देश से मुझे सुगन्धि की भेंट क्यों लाते हो
तुम भेंट के रूप में दूर देशों से सुगन्धि क्यों लाते हो
तुम्हारी होमबलि मुझे प्रसन्न नहीं करती।
तुम्हारी बलि मुझे खुश नहीं करती।”
21 अत: यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“मैं यहूदा के लोगों के सामने समस्यायें रखूँगा।
वे लोगों को गिराने वाले पत्थर से होंगे।
पिता और पुत्र उन पर ठोकर खाकर गिरेंगे।
मित्र और पड़ोसी मरेंगे।”
22 यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“उत्तर के देश से एक सेना आ रही है,
पृथ्वी के दूर स्थानों से एक शक्तिशाली राष्ट्र आ रहा है।
23 सैनिकों के हाथ में धनुष और भाले हैं, वे क्रूर हैं।
वे कृपा करना नहीं जानते।
वे बहुत शक्तिशाली हैं।
वे सागर की तरह गरजते हैं, जब वे अपने घोड़ों पर सवार होते हैं।
वह सेना युद्ध के लिये तैयार होकर आ रही है।
हे सिय्योन की पुत्री, सेना तुम पर आक्रमण करने आ रही हैं।”
24 हमने उस सेना के बारे में सूचना पाई है।
हम भय से असहाय हैं।
हम स्वयं को विपत्तियों के जाल में पड़ा अनुभव करते हैं।
हम वैसे ही कष्ट में हैं जैसे एक स्त्री को प्रसव—वेदना होती है।
25 खेतों में मत जाओ, सड़कों पर मत निकलो।
क्यों क्योंकि शत्रु के हाथों में तलवार है,
क्योंकि खतरा चारों ओर है।
26 हे मेरे लोगों, टाट के वस्त्र पहन लो।
राख में लोट लगा लो।
मरे लोगों के लिए फूट—फूट कर रोओ।
तुम एकमात्र पुत्र के खोने पर रोने सा रोओ।
ये सब करो क्योंकि विनाशक अति शीघ्रता से हमारे विरुद्ध आएंगे।
27 “यिर्मयाह, मैंने (यहोवा ने)
तुम्हें प्रजा की कच्ची धातु का पारखी बनाया है।
तुम हमारे लोगों की जाँच करोगे
और उनके व्यवहार की चौकसी रखोगे।
28 मेरे लोग मेरे विरुद्ध हो गए हैं,
और वे बहुत हठी हैं।
वे लोगों के बारे में बुरी बातें कहते घूमते हैं।
वे उस काँसे और लोहे की तरह हैं जो चकमहीन
और जंग खाये हैं।
29 वे उस श्रमिक की तरह हैं जिसने चाँदी को शुद्ध करने की कोशिश की।
उसकी धोकनी तेज चली, आग भी तेज जली,
किन्तु आग से केवल रांगा निकला।
यह समय की बरबादी थी जो शुद्ध चाँदी बनाने का प्रयत्न किया गया।
ठीक इसी प्रकार मेरे लोगों से बुराई दूर नहीं की जा सकी।
30 मेरे लोग ‘खोटी चाँदी’ कहे जायेंगे।
उनको यह नाम मिलेगा क्योंकि यहोवा ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।”
पौलुस और सिलास थिस्सलुनिके में
17 फिर अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया की यात्रा समाप्त करके वे थिस्सुलुनिके जा पहुँचे। वहाँ यहूदियों का एक आराधनालय था। 2 अपने सामान्य स्वभाव के अनुसार पौलुस उनके पास गया और तीन सब्त तक उनके साथ शास्त्रों पर विचार-विनिमय करता रहा। 3 और शास्त्रों से लेकर उन्हें समझाते हुए यह सिद्ध करता रहा कि मसीह को यातनाएँ झेलनी ही थीं और फिर उसे मरे हुओं में से जी उठना था। वह कहता, “यह यीशु ही, जिसका मैं तुम्हारे बीच प्रचार करता हूँ, मसीह है।” 4 उनमें से कुछ जो सहमत हो गए थे, पौलुस और सिलास के मत में सम्मिलित हो गये। परमेश्वर से डरने वाले अनगिनत यूनानी भी उनमें मिल गये। इनमें अनेक महत्वपूर्ण स्त्रियाँ भी सम्मिलित थीं।
5 पर यहूदी तो डाह में जले जा रहे थे। उन्होंने कुछ बाजारू गुँडों को इकट्ठा किया और एक हुजूम बना कर नगर में दंगे करा दिये। उन्होंने यासोन के घर पर धावा बोल दिया। और यह कोशिश करने लगे कि किसी तरह पौलुस और सिलास को लोगों के सामने ले आयें। 6 किन्तु जब वे उन्हें नहीं पा सके तो यासोन को और कुछ दूसरे बन्धुओं को नगर अधिकारियों के सामने घसीट लाये। वे चिल्लाये, “ये लोग जिन्होंने सारी दुनिया में उथल पुथल मचा रखी है, अब यहाँ आये हैं। 7 और यासोन सम्मान के साथ उन्हें अपने घर में ठहराये हुए है। और वे सभी कैसर के आदेशों के विरोध में काम करते हैं और कहते है, एक राजा और है जिसका नाम है यीशु।”
8 जब भीड़ ने और नगर के अधिकारियों ने यह सुना तो वे भड़क उठे। 9 और इस प्रकार उन्होंने यासोन तथा दूसरे लोगों को ज़मानती मुचलका लेकर छोड़ दिया।
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