Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
3 उन पर विचार करो, जिन्होंने पापियों द्वारा दिए गए घोर कष्ट इसलिए सह लिए कि तुम निराश होकर साहस न छोड़ दो.
पिता का अनुशासन
4 पाप के विरुद्ध अपने संघर्ष में तुमने अब तक उस सीमा तक प्रतिरोध नहीं किया है कि तुम्हें लहू बहाना पड़े. 5 क्या तुम उस उपदेश को भी भुला चुके हो जो तुम्हें पुत्र मान कर किया गया था:
मेरे पुत्र, प्रभु के अनुशासन को व्यर्थ न समझना
और उनकी ताड़ना से साहस न छोड़ देना
6 क्योंकि प्रभु अनुशासित उन्हें करते हैं,
जिनसे उन्हें प्रेम है तथा हर एक को,
जिसे उन्होंने पुत्र के रूप में स्वीकार किया है, ताड़ना भी देते हैं?
7 सताहट को अनुशासन समझ कर सहो. परमेश्वर का तुमसे वैसा ही व्यवहार है, जैसा पिता का अपनी सन्तान से होता है. भला कोई सन्तान ऐसी भी होती है, जिसे पिता अनुशासित न करता हो? 8 अनुशासित तो सभी किए जाते हैं किन्तु यदि तुम अनुशासित नहीं किए गए हो, तुम उनकी अपनी नहीं परन्तु अवैध सन्तान हो. 9 इसके अतिरिक्त हमें अनुशासित करने के लिए हमारे शारीरिक पिता हैं, जिनका हम सम्मान करते हैं. परन्तु क्या यह अधिक सही नहीं कि हम आत्माओं के पिता के अधीन रहकर जीवित रहें? 10 हमारे पिता, जैसा उन्हें सबसे अच्छा लगा, हमें थोड़े समय के लिए अनुशासित करते रहे किन्तु परमेश्वर हमारी भलाई के लिए हमें अनुशासित करते हैं कि हम उनकी पवित्रता में भागीदार हो जाएँ. 11 किसी भी प्रकार का अनुशासन उस समय तो आनन्दकर नहीं परन्तु दुःखकर ही प्रतीत होता है, किन्तु जो इसके द्वारा शिक्षा प्राप्त करते हैं, बाद में उनमें इससे धार्मिकता की शान्ति भरा प्रतिफल इकट्ठा किया जाता है.
12 इसलिए शिथिल होते जा रहे हाथों तथा निर्बल घुटनों को मजबूत बनाओ 13 तथा अपना मार्ग सीधा बनाओ जिससे अपंग अंग नष्ट न हों परन्तु स्वस्थ बने रहें.
परमेश्वर को अस्वीकार करने के प्रति चेतावनी
14 सभी के साथ शान्ति बनाए रखो तथा उस पवित्रता के खोजी रहो, जिसके बिना कोई भी प्रभु को देख न पाएगा. 15 ध्यान रखो कि कोई भी परमेश्वर के अनुग्रह से वंचित न रह जाए. कड़वी जड़ फूटकर तुम पर कष्ट तथा अनेकों के अशुद्ध होने का कारण न बने. 16 सावधान रहो कि तुम्हारे बीच न तो कोई व्यभिचारी व्यक्ति हो और न ही एसाव के जैसा परमेश्वर का विरोधी, जिसने पहिलौठा पुत्र होने के अपने अधिकार को मात्र एक भोजन के लिए बेच दिया. 17 तुम्हें मालूम ही है कि उसके बाद जब उसने वह आशीष दोबारा प्राप्त करनी चाही, उसे अयोग्य समझा गया—आँसू बहाने पर भी वह उस आशीष को अपने पक्ष में न कर सका.
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