Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
संगित निर्देशक के लिये दाऊद का पद।
1 मैं यहोवा पर भरोसा करता हूँ।
फिर तू मुझसे क्यों कहता है कि मैं भाग कर कहीं जाऊँ?
तू कहता है मुझसे कि, “पक्षी की भाँति अपने पहाड़ पर उड़ जा!”
2 दुष्ट जन शिकारी के समान हैं। वे अन्धकार में छिपते हैं।
वे धनुष की डोर को पीछे खींचते हैं।
वे अपने बाणों को साधते हैं और वे अच्छे, नेक लोगों के ह्रदय में सीधे बाण छोड़ते हैं।
3 क्या होगा यदि वे समाज की नींव को उखाड़ फेंके?
फिर तो ये अच्छे लोग कर ही क्या पायेंगे?
4 यहोवा अपने विशाल पवित्र मन्दिर में विराजा है।
यहोवा स्वर्ग में अपने सिंहासन पर बैठता है।
यहोवा सब कुछ देखता है, जो भी घटित होता है।
यहोवा की आँखें लोगों की सज्जनता व दुर्जनता को परखने में लगी रहती हैं।
5 यहोवा भले व बुरे लोगों को परखता है,
और वह उन लोगों से घृणा करता है, जो हिसा से प्रीति रखते हैं।
6 वह गर्म कोयले और जलती हुई गन्धक को वर्षा की भाँति उन बुरे लोगों पर गिरायेगा।
उन बुरे लोगों के भाग में बस झुलसाती पवन आयेगी
7 किन्तु यहोवा, तू उत्तम है। तुझे उत्तम जन भाते हैं।
उत्तम मनुष्य यहोवा के साथ रहेंगे और उसके मुख का दर्शन पायेंगे।
2 आमोस के पुत्र यशायाह ने यहूदा और यरूशलेम के बारे में यह सन्देश देखा।
2 यहोवा का मन्दिर पर्वत पर है।
भविष्य में, उस पर्वत को अन्य सभी पर्वतों में सबसे ऊँचा बनाया जायेगा।
उस पर्वत को सभी पहाड़ियों से ऊँचा बनाया जायेगा।
सभी देशों के लोग वहाँ जाया करेंगे।
3 बहुत से लोग वहाँ जाया करेंगे।
वे कहा करेंगे, “हमे यहोवा के पर्वत पर जाना चाहिये।
हमें याकूब के परमेश्वर के मन्दिर में जाना चाहिये।
तभी परमेश्वर हमें अपनी जीवन विधि की शिक्षा देगा
और हम उसका अनुसरण करेंगे।”
सिय्योन पर्वत पर यरूशलेम में, परमेश्वर यहोवा के उपदेशों का सन्देश का आरम्भ होगा
और वहाँ से वह समूचे संसार में फैलेगा।
4 तब परमेश्वर सभी देशों का न्यायी होगा।
परमेश्वर बहुत से लोगों के लिये विवादों का निपटारा कर देगा
और वे लोग लड़ाई के लिए अपने हथियारों का प्रयोग करना बन्द कर देंगे।
अपनी तलवारों से वे हल के फाले बनायेंगे
तथा वे अपने भालों को पौधों को काटने की दँराती के रुप में काम में लायेंगे।
लोग दूसरे लोगों के विरुद्ध लड़ना बन्द कर देंगे।
लोग युद्ध के लिये फिर कभी प्रशिक्षित नहीं होंगे।
विश्वास की महिमा
11 विश्वास का अर्थ है, जिसकी हम आशा करते हैं, उसके लिए निश्चित होना। और विश्वास का अर्थ है कि हम चाहे किसी वस्तु को देख नहीं रहे हो किन्तु उसके अस्तित्त्व के विषय में निश्चित होना कि वह है। 2 इसी कारण प्राचीन काल के लोगों को परमेश्वर का आदर प्राप्त हुआ था।
3 विश्वास के आधार पर ही हम यह जानते हैं कि परमेश्वर के आदेश से ब्रह्माण्ड की रचना हुई थी। इसलिए जो दृश्य है, वह दृश्य से ही नहीं बना है।
4 हाबिल ने विश्वास के कारण ही परमेश्वर को कैन से उत्तम बलि चढ़ाई थी। विश्वास के कारण ही उसे एक धर्मी पुरुष के रूप में तब सम्मान मिला था जब परमेश्वर ने उसकी भेंटों की प्रशंसा की थी। और विश्वास के कारण ही वह आज भी बोलता है यद्यपि वह मर चुका है।
5 विश्वास के कारण ही हनोक को इस जीवन से ऊपर उठा लिया गया ताकि उसे मृत्यु का अनुभव न हो। परमेश्वर ने क्योंकि उसे दूर हटा दिया था इसलिए वह पाया नहीं गया। क्योंकि उसे उठाए जाने से पहले परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले के रूप में उसे सम्मान मिल चुका था। 6 और विश्वास के बिना तो परमेश्वर को प्रसन्न करना असम्भव है। क्योंकि हर एक वह जो उसके पास आता है, उसके लिए यह आवश्यक है कि वह इस बात का विश्वास करे कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वे जो उसे सच्चाई के साथ खोजते हैं, वह उन्हें उसका प्रतिफल देता है।
7 विश्वास के कारण ही नूह को जब उन बातों की चेतावनी दी गयी जो उसने देखी तक नहीं थी तो उसने पवित्र भयपूर्वक अपने परिवार को बचाने के लिए एक नाव का निर्माण किया था। अपने विश्वास से ही उसने इस संसार को दोषपूर्ण माना और उस धार्मिकता का उत्तराधिकारी बना जो विश्वास से आती है।
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