Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
यदूतून राग पर संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक पद।
1 मैं सहायता पाने के लिये परमेश्वर को पुकारूँगा।
हे परमेश्वर, मैं तेरी विनती करता हूँ, तू मेरी सुन ले!
2 हे मेरे स्वामी, मुझ पर जब दु:ख पड़ता है, मैं तेरी शरण में आता हूँ।
मैं सारी रात तुझ तक पहुँचने में जुझा हूँ।
मेरा मन चैन पाने को नहीं माना।
11 याद करो वे शाक्ति भरे काम जिनको यहोवा ने किये।
हे परमेश्वर, जो काम तूने बहुत समय पहले किये मुझको याद है।
12 मैंने उन सभी कामों को जिनको तूने किये है मनन किया।
जिन कामों को तूने किया मैंने सोचा है।
13 हे परमेश्वर, तेरी राहें पवित्र हैं।
हे परमेश्वर, कोई भी महान नहीं है, जैसा तू महान है।
14 तू ही वह परमेश्वर है जिसने अद्भुत कार्य किये।
तू ने लोगों को अपनी निज महाशक्ति दर्शायी।
15 तूने निज शक्ति का प्रयोग किया और भक्तों को बचा लिया।
तूने याकूब और यूसुफ की संताने बचा ली।
16 हे परमेश्वर, तुझे सागर ने देखा और वह डर गया।
गहरा समुद्र भय से थर थर काँप उठा।
17 सघन मेघों से उनका जल छूट पड़ा था।
ऊँचे मेघों से तीव्र गर्जन लोगों ने सुना।
फिर उन बादलों से बिजली के तेरे बाण सारे बादलों में कौंध गये।
18 कौंधती बिजली में झँझावान ने तालियाँ बजायी जगत चमक—चमक उठा।
धरती हिल उठी और थर थर काँप उठी।
19 हे परमेश्वर, तू गहरे समुद्र में ही पैदल चला। तूने चलकर ही सागर पार किया।
किन्तु तूने कोई पद चिन्ह नहीं छोड़ा।
20 तूने मुसा और हारून का उपयोग निज भक्तों की अगुवाई
भेड़ों के झुण्ड की तरह करने में किया।
29 तब राजा अहाब और राजा यहोशापात रामोत में अराम की सेना से युद्ध करने गए। यह गिलाद नामक क्षेत्र में था। 30 अहाब ने यहोशापात से कहा, “हम युद्ध की तैयारी करेंगे। मैं ऐसे वस्त्र पहनूँगा जो मुझे ऐसा रूप देंगे कि मैं ऐसा लगूँगा कि मैं राजा नहीं हूँ। किन्तु तुम अपने विशेष वस्त्र पहनो जिससे तुम ऐसे लगो कि तुम राजा हो।” इस प्रकार इस्राएल के राजा ने युद्ध का आरम्भ उस व्यक्ति की तरह वस्त्र पहनकर किया जो राजा न हो।
31 अराम के राजा के पास बत्तीस रथ—सेनापति थे। उस राजा ने इन बत्तीस रथ—सेनापतियों को आदेश दिया कि वे इस्राएल के राजा को खोज निकाले। अराम के राजा ने सेनापतियों से कहा कि उन्हें राजा को अवश्य मार डालना चाहिये। 32 अत: युद्ध के बीच इन सेनापतियों ने राजा यहोशापात को देखा। सेनापतियों ने समझा कि वही इस्राएल का राजा है। अत: वे उसे मारने गए। यहोशापत ने चिल्लाना आरम्भ किया। 33 सेनापतियों ने समझ लिया कि वह राजा अहाब नहीं है। अत: उन्होंने उसे नहीं मारा।
34 किन्तु एक सैनिक ने हवा में बाण छोड़ा, वह किसी विशेष व्यक्ति को अपना लक्ष्य नहीं बना रहा था। किन्तु उसका बाण इस्राएल के राजा अहाब को जा लगा। बाण ने राजा को उस छोटी जगह में बेधा, जो शरीर का भाग उसके कवच से ढका नहीं था। अत: राजा अहाब ने अपने सारथी से कहा, “मुझे एक बाण ने बेध दिया है! इस क्षेत्र से रथ को बाहर ले चलो। हमें युद्ध से दूर निकल जाना चाहिये।”
35 सेनायें युद्ध में लड़ती रहीं। राजा अहाब अपने रथ में ठहरा रहा। वह रथ के सहारे एक ओर झुका हुआ था। वह अराम की सेना को देख रहा था। उसका खून नीचे बहता रहा और उसने रथ के तले को ढक लिया। बाद में, शाम को राजा मर गया। 36 सन्ध्या के समय इस्राएल की सेना के सभी पुरुषों को अपने नगर और प्रदेश वापस लौटने का आदेश दिया गया।
37 अत: राजा अहाब इस प्रकार मरा। कुछ व्यक्ति उसके शव को शोमरोन ले आए। उन्होंने उसे वहीं दफना दिया। 38 लोगों ने अहाब के रथ को शोमरोन में जल के कुंड में धोया। राजा अहाब के खून को रथ से, कुत्तों ने चाटा और वेश्याओं ने पानी का उपयोग नहाने के लिये किया। ये बातें वैसे ही हुई जैसा यहोवा ने होने को कहा था।
39 अपने राज्यकाल में अहाब ने जो कुछ किया वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। उसी पुस्तक में राजा ने अपने महल को अधिक सुन्दर बनाने के लिये जिस हाथी—दाँत का उपयोग किया था, उसके बारे में कहा गया है और उस पुस्तक में उन नगरों के बारे में भी लिखा गया है जिसे उसने बनाया था। 40 अहाब मरा, और अपने पूर्वजों के पास दफना दिया गया। उसका पुत्र अहज्याह राजा बना।
इस्राएल का राजा अहज्याह
51 अहज्याह अहाब का पुत्र था। वह राजा योहशापात के यहूदा पर राज्यकाल के सत्रहवें वर्ष में राजा बना। अहज्याह ने शोमरोन में दो वर्ष तक राज किया। 52 अहज्याह ने यहोवा के विरुद्ध पाप किये। उसने वे ही पाप किये जो उसके पिता अहाब उसकी माँ ईजेबेल और नबात के पुत्र यारोबाम ने किये थे। ये सभी शासक इस्राएल के लोगों को और अधिक पाप की ओर ले गए। 53 अहज्याह ने अपने से पूर्व अपने पिता के समान असत्य देवता बाल की पूजा और सेवा की। अत: अहज्याह ने यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर को बहुत अधिक क्रोधित किया। यहोवा अहज्याह पर वैसा ही क्रोधित हुआ जैसा उसके पहले वह उसके पिता पर क्रोधित हुआ था।
5 यह देखने के लिए अपने आप को परखो कि क्या तुम विश्वासपूर्वक जी रहे हो। अपनी जाँच पड़ताल करो अथवा क्या तुम नहीं जानते कि वह यीशु मसीह तुम्हारे भीतर ही है। यदि ऐसा नहीं है, तो तुम इस परीक्षा में पूरे नहीं उतरे। 6 मैं आशा करता हूँ कि तुम यह जान जाओगे कि हम इस परीक्षा में किसी भी तरह विफल नहीं हुए। 7 हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि तुम कोई बुराई न करो। इसलिए वही करो जो उचित है। चाहे हम इस परीक्षा में विफल हुए ही क्यों न दिखाई दें। 8 वास्तव में हम सत्य के विरुद्ध कुछ कर ही नहीं सकते। हम तो जो करते हैं, सत्य के लिये ही करते हैं।
9 हमारी निर्बलता और तुम्हारी सबलता हमें प्रसन्न करती है और हम इसी के लिये प्रार्थना करते रहते हैं कि तुम दृढ़ से दृढ़तर बनों। 10 इसलिए तुमसे दूर रहते हुए भी मैं इन बातों को तुम्हें लिख रहा हूँ ताकि जब मैं तुम्हारे बीच होऊँ तो मुझे प्रभु के द्वारा दिये गये अधिकार से तुम्हें हानि पहुँचाने के लिए नहीं बल्कि तुम्हारे आध्यात्मिक विकास के लिए तुम्हारे साथ कठोरता न बरतनी पड़े।
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