Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
सतत सावधानी की आज्ञा
(मत्ति 24:36-51; लूकॉ 21:34-38)
32 “वास्तव में उस दिन तथा उस क्षण के विषय में किसी को मालूम नहीं है—स्वर्ग में न स्वर्गदूतों को और न ही पुत्र को—यह मात्र पिता को ही मालूम है.
33 “अब इसलिए कि तुम्हें उस विशेष क्षण के घटित होने के विषय में कुछ भी मालूम नहीं है, सावधान रहो, सतर्कता बनाए रखो. 34 यह स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी उस व्यक्ति की, जो अपनी सारी गृहस्थी अपने दासों को सौंप कर दूर यात्रा पर निकल पड़ा. उसने हर एक दास को भिन्न-भिन्न ज़िम्मेदारी सौंपी और द्वारपाल को भी सावधान रहने की आज्ञा दी.
35 “इसी प्रकार तुम भी सावधान रहो क्योंकि तुम यह नहीं जानते कि घर का स्वामी लौट कर कब आएगा—शाम को, आधी रात या भोर को मुर्गे की बाँग के समय. 36 ऐसा न हो कि उसका आना अचानक हो और तुम गहरी नींद में पाए जाओ. 37 जो मैं तुमसे कह रहा हूँ, वह सभी से सम्बन्धित है: सावधान रहो.”
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